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प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

पिता :- श्री धनपति दाश
सम्पर्क:- 7828104111
ईमेल :- pkdash399@gmail.com
जन्म तिथि :- 10-08-1979
शिक्षा:- एम.ए. द्वय (हिन्दी, राजनीति शास्त्र), बी.एड. CG SET
पता :- साँकरा, जिला -रायगढ़ (छ.ग.)
पद:- हिन्दी व्याख्याता (पं)
विधा :- मइनसे के पीरा (छत्तीसगढी़ का प्रथम हाइकु संग्रह) वर्ष -2000 एवं अब तक और 14 तृतीया प्रकाशित ।
रचना1 शीर्षकन :- हाइकु : दीपक
रचना1 :- दीपक 01. आरती थाल जीवन चक्र राग दीप आलाप 02. रे ! लौ संताप सृजन का आलाप दीपक राग । 03. जलता दिया बुलंद हैं हौंसले तन सहमा । 04. दीये जलाती माचिस की तिलियाँ कभी घर भी । 05. दीप से मिला प्रेम की पराकाष्ठा जला पतंगा । 06. दीप जो जला अज्ञान का अंधेरा भाग निकला । 07. साहसी दीप लड़े अंधकार से पर आदमी । 08. दीपक जला पर वह तो स्वयं तम में पला । 09. बत्ती जलती मोम सह न सका पिघल पड़ा । 10. दीप जलता हृदय में उसके प्रेम पलता । 11. दीप निर्मम प्रेम करने वाले जले पतंग । 12. छोटा दीपक तिमिर हरण का बने द्योतक । 13. दीपक जला रोशन कर चला जग समूचा । 14. अंधेरी रात एक दीप बता दे उसे औकात । 15. राह दिखाता हथेली में सूरज बन के दीया । 16. दीया तो नहीं सदियों से जलते तेल व बाती । 17. राह दिखाता जगमग करता नन्हां सा दीया । 18. दीप से दीप मिल कर मनाते ज्ञान उत्सव । 19. ज्योत से ज्योत जलता जला दीया बनी मालिका । 20. दीप निर्मम मिलन के बहाने जले पतंग । 21. दीया व बाती अंधेरे से लड़ने बनते साथी । 22. प्रीत पुरानी दीया और बाती की कथा कहानी । 23. निशा घनेरी पर दीपक की लौ चीर डालती । 24. दीप सम्मुख थकी, हारी व झुकी निविड़ निशा । 25. शब्दों के दीप सुर की बातियों से बने संगीत । 26. जलता रहा रात भर दीपक सिसक रहा । 27. कहता दीप आनंद है अमृत वेदना विष । 28. मोम न बनो पिघल ही जाओगे इस दीप से । 29. जल दीपक अज्ञानता चीरते बुझना मत । 30. बूढ़ा दीपक रात भर जागता दिन में सोया । 31. पर्व मनाएँ शुभकामनाओं के दीप जलाएँ । 32. दीप जलाएँ तम को पी जाने का हूनर सीखें । 33. दीये तो नहीं सदियों से जलते घी और रुई । - प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
रचना2 शीर्षकन :- हाइकु : मन
रचना2 :- मन 01. महका मन हाइकु की सुगंध बाँचे पवन । 02. मन फकीर चित्रोत्पला के तीर रे ! क्यों अधीर ? 03. प्रथम वर्षा सौंधी महकी धरा मन हर्षाया । 04. बूँदें बरसीं तन व मन गीले प्रीत जगातीं । 05. मन गुलाब झुलसाती धूप ने जलाए ख्वाब । 06. मन रावण वासना की कुटिया सिया हरण । 07. मन बहके फूटी स्वप्न कलियाँ टेसू महके । 08. मन उल्लास बौराया है फागुन गा उठा फाग । 09. प्रेम का रंग लग हर्षाया तन फगवा मन । 10. होली के रंग प्रेम से पगे मन होली उमंग । 11. तेरी छुवन मन बगर गया मानो बसंत । 12. पंछी का मन कँपकँपाता हिम स्तब्ध जीवन । 13. मन की धुन बचपन की बात ले डाली सुन । 14. मीरा का मन अनुराग से पगा कनु का संग । 15. पूष की रात हल्कू जाएगा खेत मन उदास । 16. होरी का मन गोबर औ धनिया रहें प्रसन्न । 17. गेहूँ की बालि झूमती गीत गाती मन हर्षाती । 18. फुली सरषों पियराने लगे हैं मन के खेत । 19. दीप जलते रोशन कर जाते मन हमारे । 20. घना अंधेरा दीप जलता रहा मन अकेला । 21. पत्ते झरते ईश्वर की शरण में मन रमाते । * 22. माटी का तन तप कर निखरा कंचन मन । 23. घर थे कच्चे तब की बात और मन थे सच्चे । * 24. मन के भेद मिटाएँ तो मिटेंगे मत के भेद । 25. मयारु मन लोक गीत चंदन माटी वंदन । 26. बाँसों के वन रिलो में झूम उठे लोगों के मन । 27. मन क्या जुड़े जुड़ गये दिल भी हृदय जुड़े । 28. घुँगरु बना नाचता रहा मन छन.. छनाया । 29. आदमी-पंक्ति मन एक हाइकु छंद प्रकृति । 30. धूप को धुने मन मानो बादल गुन गुनाए । 31. काँच सा मन ह.ह. तोड़ ही दिया धूप निर्मम । 32. तनहा मन प्रकृति की गोद में हुआ सानंद । 33. टूटी पत्तियाँ कैसे संभले मन रूठी डालियाँ । 34. मन व्यथित भाव निर्झर हुए निकली पीर । 35. भव सरिता मन बना नाविक खे रहा नाव । - प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
पुरस्कार :- कई साहित्यिक संस्थानों द्वारा सम्मानित ।