पिता :- |
श्री भागीरथी पैगवार |
सम्पर्क:- |
9827964007 |
ईमेल :- |
sureshpaigwar@gmail.com |
जन्म तिथि :- |
03/01/1972 |
शिक्षा:- |
बी. एस. सी., एम. ए.(हिंदी साहित्य), डी. पी. एच.& एस. |
पता :- |
जाँजगीर शारदा चौक जिला जाँजगीर- चाम्पा(छ ग) |
पद:- |
केन्द्रीय रेल्वे में सेवारत् |
विधा :- |
अनेकों साझा संकलन |
रचना1 शीर्षकन :- |
अटकर पंचे झनकर, अटर्रा हो जाबे |
रचना1 :- |
जेला देख तेला अनठेहरी गोठियात रहिथस, बेटा - -!, अपने गाल म थपरा झन मार रे! अपने रद्दा म आय, अउ अपने रद्दा म जाय कर। दुनिया के काम अरई कोंचना आय, फेर तोर आँखी कब उघरही। ये दुनिया आँखी के काजर हेरवईया ये। कोकरो आँखी मा झन गड़।
आज के समे अइसन हे, कठवा के आँखी अउ पथरा के छाती राख के चलबे, तभे दिन पहाही। भल के संसार नोहै, अक्कल ला दउँड़ा।
गज भर छाती होना गलत नोहै, फेर कोचक के घाव करना गलती आय। नून-तेल के फिकर कर।
चुलुक लगिस मँद-मऊहा के, त चिखला म बुड़ के, छाती पीटत रहिजाबे। ते पाय के कथौं, जाँगर के
टूटत ले कमा। पइसा झरही। दूधे खाबे, दूधे अँचोबे।लगवार के कमी नइ होय। जिहाँ गुर होथे, उहाँ चाँटा आइच जाथे। करम के रेखा खींचबे, तब्भे भाग के लेखा बनही। सरई डाँग कस होय भर ले हाँत के लकीर नइ बनय। नहीं त धारे-धार बोहा जाबे।
कांदा खा के झन मता, झन छानहीँ मा होरा भूंज। बेटा--- अलकर जघा म घाव होथे रे! मन के बात मने मा रखबे, ठोंक बजा के सँग धरबे। मन मसोस के रहि जाबे, फेर मन झन डोलाबे। माटी मा सोना उपजाबे। मुड़ धर के बइठे ले, कुछु नइ बनय, रगड़ के कमा।
बेटा, राम-राम कहिबे, पाँव-पलौटी परबे, लउठी बनबे, फेर लउठी झन अँटियाबे रे, झन लिखरी ल लाख बनाबे, पाँव फिसलत देर नइ लागय।
टेटका नइ खुसरय तइसन सिगबिग-सिगबिन करत मनखे के भीड़ मा, तैं सुकुवा बन के उबे। असख मनखे के हाँत-पाँव बनबे, झन हाँव-हाँव करबे, झन ढिल्ला संढ़वा बनबे।
बेटा, तोरे मुहूँ देख के जियथन, झन मन फाटय, झन मन मा फरक आय। झन गोरसी कस आगी बनबे, झन फुरफुँदी कस उड़ियाबे। हकन के कमाबे। कोकरो करा हाँत झन फइलाबे, झन लार चुचुवाबे। भले हँड़िया उपास पर जाय। आज नहीं तव कल बादर फरियाबे करही।
बेटा, दुनिया बहुत बड़े हे, जीवन डुमर के कीरा बन के नइ चलय। न रोय म राम मिलय। दिन तो बहुरबे करही, कहिथें चीज जायदाद ओरी के छाँव होथे। |
रचना2 शीर्षकन :- |
*सजल* (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य) |
रचना2 :- |
झगरा ठेनी ला, बिसा के, का करबे।
रंग रंग के, गोठिया के, का करबे।।
मुँठा भर मास नहीं, अउ जोमियाथस।
कोकरो मति ला, छरिया के, का करबे।।
सामना करना होही, ता सउहें कर।
खाँधा म कोकरो लदा के, का करबे।।
जतिक करबे गोठ, बस मया के करबे।
फेर रिस तरुवा म चढ़ा के, का करबे।।
तिड़ी बिड़ी कर देहे*, जतिक हमर सपना।
अब गद्दी ल, पोगरिया के, का करबे।।
गोरसी सहीं आगी, गुँगुवात रहिथस।
थोथना फेर ओरमा के, का करबे।।
सींका, जमो बिलई सेती, नइ टूटै।
घाघ ला पँदोली चढ़ा के, का करबे।।
अब रिस खाय ले काय होही, थिरा ले।
तैं फोहीं सहीं उपला के, का करबे।।
माँगे जा के महीं, ठेकवा लुकाथस।
गाँव के गौंटिन ल, फँसा के, का करबे।।
नून तेल के घलु, फिकर करे कर तहूँ।
बता फुरफुँदी कस उड़ा के, का करबे।।
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पुरस्कार :- |
साहित्य साधक, मँचमणि, छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का साहित्य सम्मान जैसे दर्जनों सम्मान |