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सुरेश पैगवार

पिता :- श्री भागीरथी पैगवार
सम्पर्क:- 9827964007
ईमेल :- sureshpaigwar@gmail.com
जन्म तिथि :- 03/01/1972
शिक्षा:- बी. एस. सी., एम. ए.(हिंदी साहित्य), डी. पी. एच.& एस.
पता :- जाँजगीर शारदा चौक जिला जाँजगीर- चाम्पा(छ ग)
पद:- केन्द्रीय रेल्वे में सेवारत्
विधा :- अनेकों साझा संकलन
रचना1 शीर्षकन :- उड़ो कभी तो ऐसे उड़ना
रचना1 :- उड़ो कभी तो ऐसे उड़ना, जैसे उड़े पतंग। डोर जुड़े जो अनुशासन की, तब जीतोगे जंग।। लाभ हानि जीवन के रण में, रहे कभी ना झूठ हार जीत का खेल अगर हो, अपनों को दें छूट देख विधाता जीवन दाता, भी हो जाये दंग।। उड़ो कभी - -, त्याग तपस्या से ही होती, जीवन नदिया पार परहित का जो ध्यान रखेंगे, सुखी रहे परिवार चाहत ज्यादा रखो नहीं पर, होना कभी न तंग।। उड़ो कभी - -, छोड़ व्यर्थ की सब बातों को, तुम बगराना प्रीत लाँघ न जाना मर्यादा को, रहो सदा मन मीत अंतर्मन निर्मल होवे तो, जग चलता है संग।। उड़ो कभी - -, ~~//~~~//~ व्याख्या:- प्रस्तुत गीत में अपने जीवन को अनुशासन की डोर से बाँधकर, मर्यादा में रह कर, परमार्थ करते हुए जीवन को जीने की शिक्षा दी गई है।
रचना2 शीर्षकन :- जिंदा रहने की जुगत
रचना2 :- सजल जिंदा रहने की हमको भी, कोई जुगत बताओ लोगो। खून हमारा क्यों पीते हो, तरस जरा सा खाओ लोगो।। हमको अपने गाँव की मिट्टी अपनी जान से प्यारी है इस मिट्टी से हमको ज्यादा दूर नहीं ले जाओ लोगो। मजदूरी कर जीवन यापन, हम किसान करते आए हैं साहूकारों ने छीना है, खेत हमें दिलवाओ लोगो। शहरों के रहने वालों ने, खाना खूब खिलाया फिर भी हम गाँवों के रहने वाले,गाँव हमें भिजवाओ लोगो। तुमने देखो जीवन भर के, विश्वासों को तोड़ दिया है अब भी आस हमारी बाकी, कुछ तो उसे बचाओ लोगो। धन्यवाद है तुम्हें कि तुमने, जीने को कुछ काम दिया है अब तो हुआ कठिन ये जीवन, कुछ कर्तव्य निभाओ लोगो। हालत देखो मजदूरों की, तुमको भी रोना आएगा हम ही नव निर्माण करेंगे, फिर वह मौसम लाओ लोगो।। ब्याख्या :- प्रस्तुत सजल में मजदूरों की व्यथा को दर्शाया गया है।
पुरस्कार :- मँचमणि, साहित्य गौरव, साहित्य प्रतिभा, युवा साहित्य सम्मान, आदि दर्जनों