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प्राची साहू

पिता :- श्री दिनेश साहू
सम्पर्क:- 9685998158
ईमेल :- iprachisahu@gmail.com
जन्म तिथि :- 24/07/2001
शिक्षा:- BA सेकंड ईयर
पता :- ग्राम कुसमी राजनादगांव
पद:- No
विधा :- No
रचना1 शीर्षकन :- ग़ज़ल
रचना1 :- कशमकश ज़िन्दगी है आसान थोड़ी है, ये जो मोहब्बत है मेरी आजार थोड़ी है, हां छोड़ा मैंने तुझको रस्मे वफ़ा के डर से, चाहत इबादत है हमदम मज़ाक़ थोड़ी है, झूठी हंसी फबती नहीं है तुझ पर, फेंक सरे बाज़ार हिजाब थोड़ी है, यह तेरे चेहरे की शोखियाँ ये गुरूर ये गुमान, रोशनी ही तो है शमा की मेहताब थोड़ी है, मुझे देख जो तुम मुस्कुरा देता है, तोहफा ही है ना हमदम ख़ैरात थोड़ी है, रो रोकर सूख चुकी है आंखें हमारी, रहम कर अश्क है मेरे बरसात थोड़ी है, तेरे शहर से दूर है मेरा शहर बहुत, मेरे ख्यालों से दूर तेरे जज़्बात थोड़ी है, हां हो गया तू उसका हमको सब ख़बर है, जादू कर रखा है उसने तू नापाक थोड़ी है।।
रचना2 शीर्षकन :- समाज
रचना2 :- समाज समाज समाज, इसके उसूलों पर चलते-चलते थक गई हूं मैं आज, नफरत हो गई है मुझे खुद से, पर डरती हूं मैं आज भी, देख कर के रीति रिवाज, समाज समाज समाज, इसी ने छीनी मेरी सांसे मेरी मां के गर्भ में ही, इसी ने जलाया मुझे जिंदा मेरे पति के घर में ही, आज भी डरती हूं घर से निकलने में, उन चंद लड़कों के कारण, डरती हूं, हारती हूं शिक्षा के मंदिर में भी, सपने बहुत है उन तारों को छूने के, पर डाल देते हैं चंद लोग मेरे सपनों पर तेजाब, समाज समाज समाज, ना जाने क्यों लड़ना पड़ता है खुद के अधिकार के लिए, अपने सम्मान के लिए अपने अभिमान के लिए, इज्जत तो बहुत होती है हमारी लेकिन सिर्फ उनकी बातों में, तुले रहते हैं वही लोग हमें नीचा दिखाने के लिए, चले जा रही हूं आंखें मूंदे अपने दर्द को बनाकर राज़, समाज समाज समाज, लगता है डर बहुत लेकिन नहीं डरूंगी आज, समाज तो है पर उसकी रीढ़ की हड्डी नहीं, सबसे कहूंगी आज, अपाहिज हो गया है समाज और इस के उसूलों पर चलते-चलते थक गई हूँ मैं आज।।
पुरस्कार :- No