वर्ण-विचार ( मत)
हर भाषा के वर्ण अक्षर हा ब्रह्म नाद या नाद ब्रह्म (ध्वनि) लय ले उपजे हे। 'अ' देवनागरी अउर संस्कृत परिवार के पहिली 'अ' के निरमान होईस हे। येला मनसे मन नई सिरजे हें। ये (प्रकृति) कुदरुत के (गोदी) कोरा मा मनसे के बिकास ले होईस हे। तभे बिकास के संगे-संगे वर्ण माला आईस होही अउर (कंठ) टोटा ले बोलेगीस। भाखा के अनुशासित (हद मा रहना) रूप ला ब्याकरन केहे गेहे या फेर ब्याकरन ओ शास्तर हे जेला आरुग निमार के लिखे, बोले सुने जाय । ओ साधन जेकर ले मनसे हा अपन भाउना बिचार मन ला बने किसिम के बोलके, लिखके, गोठियाके, इसारा ले कहिके जेला लिख लेथें उही सार ला भाखा कहिथें । भाखा ला छोड़ के जघा-जघा गोठ गोठियाथ जाथे तेला बोली कहिथे । बिना बियाकरन के मुँह ले बोले अउर कान ले सुने जाय ओ कहेना ला बोली कहिथे, अउर जेला लिख-पड़ के, मन मा गुन ऊन के समझे-समझाय जाय, ओला लिखना कहे जाथे। भौगोलिक दशा, बाताबरन, खान-पान, रहन-सहन के मुताबिक हॉत-गोड़, मुँड़ी, नाक-कान, जबड़ा, कपार बनाउट के कारन अलग-अलग भाखा के अलग-अलग वर्ण-माला बने हे। ओसने किसिम के हिन्दी भाषा के वर्ण माला हे। पर छत्तीसगढ़ी मा भी हिन्दी वर्ण के उच्चारण होथे। येमा 12 ठन स्वर अउर 40 ठन व्यंजन बनीस हे।
नोट :-ये मूल ध्वनि जे तुकड़ा नी हो सके ओ वर्ण कहे जाथे ।
जइसे:- अ, आ, क् ख् च् छ् त् थ् ध् द् ध् य्र् ल् स् मन के संख्या 48
वर्ण माला हावे जेला खाल्हे कोती एक कनी निहारव
जइसे:-
1. अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ =11 (स्वर)
2. अं, अः = 02 (अयोगवाह)
येमे अ + अ =आ, इ +इ = ई, उ + उ = ऊ, ए + ए =ऐ बने है।
3. क् खू् ग् घ् ङ (क वर्ग) (टोटा - ध्वनि होथे)
च् छ् ज् ज् झ् ( च वर्ग ) - ( तारू - ध्वनि होथे )
ट् ट द द ण् ( ट वर्ग ) - ( मुरधन - ध्वनि होथे )
त् थ् द् ध् न् - ( त वर्ग ) - ( दाँत - ध्वनि होथे )
प् फ् ब् भ् म् - ( प वर्ग ) - ( ऑट - ध्वनि होथे )
य र ल व् - ( यवर्ग ) - ( हिरदे के जघा )
श् स् ह - ( सवर्ग ) - ( ऊष्म - 33 व्यंजन ) -
4. ड् ढ. - 02 ( उतिक्षप्त व्यंजन ) = 48 ब्यंजन
5 . ज्ञ ऋ श्र लृ - 04
कुल योग 52 अक्षर
स्वर के आधार मा सात 7 स्वर हे । संगीत गायन वादन मा भी 7 स्वर हा अपन ठउर जमाय हे ।
जइसे : - सा, रे, ग, म, प, ध, नि । ' सा ' ले सडज, ' रे ' ले ऋषभ, ' ग ' ले गांधार, ' म ' ले मध्यमा, ' प ' ले पंचम, ' ध ' ले धैवत, अउर ' नि ' - निषाद । इही मा एक स्वर अठर हे । ( नरम ) कोमल स्वर अउर तीब्र स्वर लेके 12 स्वर के बिस्तार होथे, जेमे संगीत के जम्मों राग - रागनी के ठाठ बजथे । जेहर जम्मों स्वर ला बाँध - सकेल के भाषा के निरमान करथे । हिन्दी भाखा मा पैतिस अउर अरबी, फारसी के शब्द ल घलो मिला देहे हे तेहा आरुग 40 ठन व्यंजन ही बनगे ।
ये 52 आखर मा पुरा हिन्दी अउर संस्कृत परिवार गुथाय हावे ।
स्वर अउर उपराहा कून्हू एको नी हे ।
1 . छत्तीसगढ़ी बोली मा ( अ :श्र ) के बहुते कमे परयोग होथे ।
2 . छत्तीसगढ़ी बोली मा व्यंजन ' ड ', ' त्र ', अउर ' ण ' के काम अं ' या ' न ' ले चल जाथे ।
जइसे : - गङ्गा ले गंगा ।
पुञ्ज ले पुंज । आदि ।
3 . येमा ' ण ' के बदला मा ' न ' के प्रयोग होथे
जइसे : - गण = गन, बाण = बान, निर्माण - निरमान, गणेश = गनेस, शरण = सरन, कणेश्वर = कनेसर, त्राण = तरान । आदि ।
4 . छत्तीसगढ़ मा कहीं अकचाकायेक लईक गोठ कुन्हू भाखा निकर पदथे उदूप ले ता तो ये ' ने ' या ' का ' के परयोग ' क्या ' होथे ।
जइसे : -
ते उहाँ गे रेहे का = तुम वहाँ गये थे क्या ।
ते का कथस ने = तुम क्या कह रहे हो । आदि ।
5 . येमा घलो ' य ' के जघा मा ' अ ', ' ज ' या ' ई ' के परयोग होथे ।
जइसे : - यस = जस, यमुना = जमुना, प्याला = पिआला, प्यार = पिआर, प्यासा = पिआसा, पंचायत = पंचाईत, प्यास = पिआस, प्यार = पियार, मायिका = मईका, गायिका = गाईका, जायिकादार = जाईकादार । आदि ।
6 . येला गौर ले देखे ले ' श ', ' ष ', के स्थान में एके ' स ' के परयोग होथे ।
जइसे : - शरण = सरन, शाव = साव, शरहद = सरहद, शंख = संख, षटबदन = सटबदन, षटपदी = सातपदी, क्लेश = कलेस, पाठ = साठ, षोड़ = सोंड़, षटना = सटना, षोंड़सी = सोरसी । आदि ।
7 . छत्तीसगढ़ी मा म के जघा ' व ' अउर ' त्र ' के ' तरा ' अठर ' त्रु ' के ' तुर ' होथे ।
जइसे : - ग्राम = गाँव, नाम = नाव । त्रास = तरास, त्रुटी = तुरटी । आदि ।
8 . छत्तीसगढ़ी ' व ' के बदला ' ब ' अक्षर ले काम चल जाथे ' व ' वर्ण बीच मा आथे । ओसने किसिम ले ' बाला ' के बदला ' बाला ' के परयोग हो जाथे ।
जइसे : - विश्वास = बिसवास, वंश = बंस, वज्र = बजरा, वंशी = बंशी, वन = बन, वजन = बजन, वर्चस = बरचस, बाण = बान, वाहन = बाहन, विहाता = बिहाता, विचार = विचार, विसरना = बिसरना, व्रज = बरज, विष्णु - बिसनु । आदि ।
9 . कभू = कभू ' व ' के परयोग ' व ' के रूप मा भी होथे, जब ' व ' हा कोन्हू शब्द के बीच मा आथे ।
जइसे : - भगवान = भगवान, सुवासिन, आवाजाही, अवरदा, पवन, जुवानी, अवरोध, दिवानी, भवानी, गवानी आदि ।
10 . येमा ' ढ़ ' के धलो ' ड़ + ह ' बोले जाथे ।
जइसे : - गढ़ा = गड़हा, बुढ़ा = बुड़हा, जुढ़ा = जुड़हा, ढुढ़ा = ढुड़हा । गुढ़ = गड़हा आदि ।
11 . ' श्र ' के जघा ' सि ' आथे ।
जइसे : - श्रृज = सिरीज, श्रवण = सरवन, श्राप = सराप, ब्रम = सरम, श्रेय = सरेय, श्रावण = सावन आदि ।
12 . येमा ' ला ' के जघा मा ' इसको ' कहे जाथे ।
जइसे : - येला अमरा देना रे = इसको पहुँचा दो ना । येला धरा दे = इसको पकड़ा दो । येला भगा दे = इसको भगवा दो ।
13 . येमा घलोक एक ठन ब्यंजन बाँच गेह ' क्ष ' के जघा मा ' छ ' हो जाथे ।
जइसे : - क्षत्री = छतरी, क्षमा = छमा । आदि ।
14 . मनसे तन तो बढ़ मुसकुल मा मिले हे तेला बने किसिमले सवारना हर मनसे चोला के करतब हे करतब ही नहीं हमर एक फरज घलोक हावे । जेमन बने राखिन अउर ओखर अपयोग करीन ओमन धन्य होगे जेकर आज हमन गुन गावत हावन ऋषि मनि बनसे जे इतिहास मा परसिध हे जघा - जघा । उही कचलोहिया काया के गोठ ला एक कनी देख लेवन । हमर ये कचलोहिया काया के दस दरवाजा है । ओसने किसम के हमर सिरिस्टि के 52 दरवाजा अर्थात् 52 आक्षर है । कभू - कभू उच्चारण अउर अरथ के दोष आ जाथे काबर कि छत्तीसगढ़ी हा नेक ठन भाषा के मिंझरा रूप हे । ओसने 1 ले 13 तक के नियम मा घलोक कभू - कभू उच्चारन अउर अरथ मा दोष आ जाथे, काबर की इहाँ मेर घलोक नेक ठन भाषा के मिले रूप हे ।