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वर्ग शब्द

संज्ञारुप या क्रियारूप

निम्नलिखित कारक संज्ञा के बाद में लगाने से बनते हैं , जो संज्ञा में सीधे जोड दिये जाते हैं । बहुवचन के

लिए ' मन ' पर अंतसर्ग बाद में लगते हैं ।

कर्ताकारक हर

कर्मकारक का या ला

कारक ले या से

संप्रदान कारक का , ला ,बर

अपादान कारक ले या से

संबंध कारक के

अधिकरण कारक मा, में

संबोधन

कर्ताकारक का बाद में रखा जाना हिंदी के ' ने ' जैसा नहीं समझा जाना चाहिये । का उपयोग निश्चित रुप देने के लिये होता है , जैसे - गर ( गर्दन ) , मगर गर हर में निश्चितता दिखाई देती है । बहुवचन में क्वचित ' मन ' अंतसर्ग लगाने की आवश्यकता पड़ती है ।

कर्मकारक या संप्रदान कारक में ' का ' का अधिक उपयोग सभ्य लोगों द्वारा होता है , पर गाँव वाले ' ला

का उपयोग करते हैं । पर यह अंतर समाप्त होता जा रहा है , और ' का ' और ' ल ' का उपयोग कुछ विशेष क्षेत्रों में ही सिमट गया है । बिलासपुर तहसील और रतनपुर क्षेत्र में ' का ' का ही उपयोग अक्सर होता है । पर संप्रदान कारक में गाँव वाले कभी - कभी ' खातिर ' या ' खातर ' का उपयोग किए बिना संबंधकारक को बाद में रख या न रख ' के ' का उपसर्ग लगा देते हैं ,

जैसे घर - खातिर या घर - खातर , घर के खातिर , घर के खातर ।

कारक और अपादान कारक ' ले ' या ' से ' का उपयोग बाद में करते हैं पर अर्थ नहीं बदलता है । कोई 30 वर्ष पूर्व ' से ' का उपयोग लगभग ज्ञात नहीं था और आज भी पुराने लोग ' से ' का उपयोग नहीं करते । वे

अक्सर ' ले ' के बदले ' से ' का उपयोग करने का झुकाव है । यह शायद इसलिये होगा क्योंकि स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जा रही हैं ।

संबंधकारक ' के ' का लिंग नहीं बदलता है ,

जैसे किसान के बेटा ( पुल्लिंग एकवचन )

किसान के बेटी ( स्त्रीलिंग एकवचन )

किसान के बेटा मन ( पुल्लिंग बहुवचन )

किसान के बेटी मन ( स्त्रीलिंग बहुवचन )

संबोधनकारक विस्मय बोधक कई बार ' ए ' और ' ओ ' हैं जो कई बार ' वो ' लिखे जाते हैं । इनके अतिरिक्त दो और लोकप्रिय और महत्वपूर्ण विस्मयी संबोधन हैं , जो छत्तीसगढ़ी में अक्सर उपयोग हो रहे हैं , वे हैं

( 1 ) गा , अगा ( 2 ) और अओ

अगा और ओ यो वाक्य के अंत में रखे जाते हैं , या क्रिया के बाद । उपयोग ' कस ' के साथ भी होता है , जो परिचायक संबोधन के प्रारंभ मे होता है ताकि वार्तालाप प्रारंभ किया जाय । ' गा ' और ' अगा ' मात्र पुल्लिंग में ही लगाए जाते हैं और ' ओ ' और ' अओ ' स्त्रीलिंग में ही लगाए जाते हैं ।

उदाहरणार्थ

कहाँ जाबे गा ? ( पुल्लिंग )

कहाँ जाबे ओ ? ( स्त्रीलिंग )

अगा किसान भूती कब देबे ? ( स्त्रीलिंग )

अओ किसानिन भूती कब देबे ? ( स्त्रीलिंग )

का खात हस गा बाबू ? ( पुल्लिंग )

का खात हस ओ नोनी ? ( स्त्रीलिंग )

गोड़ धोये बर पानी लान गा बाबू ( पुल्लिंग )

गोड़ धोये बर पानी लान ओ नोनी ( स्त्रीलिंग )

जब इनमें आदरसूचक का उपयोग किया जाता है , तो ग , अगा , वो और

परिवर्तित होकर हा , अहो , जो , अजा में परिवर्तित हो जाते हैं और इनका उपयोग संज्ञा में लिंग भेद के बिना होता है पर वे पहले रखे जाते हैं

कस हो समधी या कस जी समधी तुंहर ले महानदी हर कतेक दुरिहा हय ?

चल जी भाटो रामायण गाबो ।

इसी प्रकार स्नेह का सूचक रे और अरे के द्वारा दर्शाया जाता है पर वहाँ पर संज्ञा का लिंग परिवर्तन नहीं होता है । वे वाक्य के पहले रखे जाते हैं , जैसे अन्य बोलियों में भी रखे जाते हैं । पर वहाँ रि और अरि का उपयोग स्त्रीलिंग संज्ञाओं के पूर्व आता है , उदाहरणार्थ

कहाँ जावत हस रे बाबू

कहाँ जावत हस रे नोनी

अरे बाबू

अरे नोनी

कई बार ये विस्मय बोधक अभिव्यक्ति अनादर सूचक बन जाते हैं , जैसे - कैसे गोठियात हस रे टुरा । सादृश्यता या सम्बन्ध -

इस प्रकार के बाद में लगाए जाने वाले प्रत्यय हर बिहारी और पूर्वी गौडियन भाषाओं में हल्के परिवर्तन के साथ आते है । जहाँ तक ' हर ' का प्रश्न है ऐसा नहीं लगता कि इसका संबंध अन्य गौड़ी भाषाओं से है । बिहारी # में वा का इसी प्रकार से उपयोग आता है , जो दीर्घ स्वरुप में होता है , ह काल , हर का * उद्गम को प्राकृत स्वरुप की ओर दर्शाता है , जिनका अंत ड , र या अर में होता है से - गल्ह या गलअड़ , गलअर , ये ई और गरहर के साथ सुस्वर के रुप में आते हैं । नीचे दिए गये विभक्तियों संज्ञारुपी पुल्लिंग के उदाहरण हैं जो शांत व्यजनों के साथ समाप्त हुई है - जैसे गर ( गला )

एकवचन

कर्ताकारक गर , गर हर

कर्मकारक गर का ( गले का ) गरला ( गले से )

सम्प्रदान कारक गर ले , गर से

अपादान कारक कर का , गर ला , या गर बर

सम्बन्ध कारक गर के

अधिकरण कारक गर म , गर से या गर ऊपर

सम्बोधन ए , गर

बहुवचन

कर्ताकारक गर , गर मन , गर हर , गर - मन - हर

कर्मकारक गर मन का , गर मन ला ( गले और गले तक )

कारक गर मन से , नर मन ले

सम्प्रदान कारक गर मन का , गर मन ला , गर मन बर ( गले पर या गले तक )

अपादान कारक गर मन ले , गर मन से

सम्बन्ध कारक गर मन के

अधिकरण कारक गर मन म , नर मन में ( गले में ) नर मन ऊपर

सम्बोधन ए गर मन ( इस गले में )

पुरानी और बिरले परंपरा में बहुवचन स्वरुप गरन का उपयोग किया जाता है

इसी प्रकार अन्य विभक्तियाँ दर्शाए गए है ,

जैसे

फर

पीपर

मनुख

पिसान

कुकुर

शब्दरुप

अधोलिखित उदाहरण पुल्लिंग संज्ञाओं के विभक्तियों के हैं जिनका अंत दीर्घ अ में होता है

कर्ताकारक लड़का लइका हर

कर्मकारक लइका का लइका ल

कारक लइका ले लइका ले

सम्प्रदान कारक लइका का लइका का ऊपर लइका के

अधिकरण कारक लइका मा में लइका का

सम्बोधन एलइका

बहुवचन

कर्ताकारक लइका मन लइका

कार्यकारक लइका मन का ल

कारक लइका मन ले से

सम्प्रदान कारक लइका मन का ला बर

सम्बन्ध कारक लइका मन के

अधिकरण कारक लइका मन मा में , ऊपर

सम्बोधन ए लइका मन

 

उसी प्रकार विभक्तियाँ

बइला

घोडवा

भइंसा

ममा

ढेढा ( दुल्हा का मित्र )

टुकना - टुकना हाना

ओढ़ना , ओन्हा

अगुआ

मेछा

इसी प्रकार सभी संज्ञाओं की विभक्ति बनती है , इसीलिए इनका आगे उदाहरण नहीं दिया गया है । नीचे

संज्ञाओं के विभिन्न समापन स्वरुपों को दिखाया गया है

ह्रस्व का पुल्लिंग - ऐसी कोई भी संज्ञा नहीं है जिसका अंत इ में होता है । संस्कृत में इसे समाप्ति होने वाले शब्दों को जब वे बोलियों में तत्सम स्वरुप में समाविष्ट होते हैं , जैसे अ - कई बार अंतिम स्वर की विभक्ति संज्ञा को शांत व्यंजन में समाप्त होती है । औ ( ब ) बई बार वे दीर्घ स्वरुप धारण करते हैं और

वे संज्ञा की विभक्ति इ जैसे हो जाते हैं ।

जैसे

( अ ) मणि मन बन जाता है ।

फणि फन बन जाता है ।

वासुकी नाग बासुक नाग बन जाता है ।

दुर्मति दुर्मत बन जाता है ।

( ब ) बलि बली बन जाता है ।

कवि कबी बन जाता है

मुनि मुनी बन जाता है

 

दीर्घ के पुल्लिंग - उदाहरणार्थ

हाथी चांटी

परोसी सीली ( चक्का )

गंवई दही

संगी साखी

दोसी ( दोषी ) डौंगरी

क्षीपी ( दर्जी ) माली

उ में पुल्लिंग ऐसी कोई संज्ञाएँ नहीं है जिसका अंत ऊ से होता है । संस्कृत में शब्द ऊ से समाप्त होते हैं ,

वे जब स्वीकार कर लिए जाते हैं तो ये तत्सम बोलियों में ( अ ) अंतिम स्वर को छोड़ देते हैं और संज्ञा की

तरह विभक्ति लेकर शांत व्यंजनों के साथ समाप्त होते हैं और ( ब ) कई बार दीर्घ स्वरुप मे संज्ञाओं की

विभक्ति ऊ में होते हैं । इस प्रकार ( अ ) पशु पस बन जाता है । ( ब ) साधु बन जाता है साधू , गुरु बन

जाता है गुरु ।

दीर्घ का पुल्लिंग - उदाहरण

चरु भालू

गेहुं आलू

भंऊ नाऊ

दाऊ टापू

साडू लाडू

बन्धू खड़ाऊँ

गेरु ढुंगरु ( छत्तीसगढ़ी में आवाज देने वाला यंत्र )

का पुल्लिंग उदाहरण

मनखे परले ( गत दिवस )

जने (जनेऊ ) मइके

दुबे दुबे चौबे पाँडे

पुल्लिंग मे यथा

भांटो ( बहन का पति )

आरो ( आरव ) ( आवाज देना या समाचार देना )

अन्नो ( बुद्धिमता )

संसो ( चिंता )

खोखरो ( झाड़ का पोलापन )

कोदो ( छत्तीसगढ़ी का धान्य पदार्थ )

कूरो ( नाप )

कोई भी पुल्लिंग संज्ञा का अंत ए आ ओ से नहीं होता । अ मात्र जो अपवान स्वरुप है , जो संस्कृत के

शब्द जौ , जिसे यव कहा जाता है से आते हैं ।

शांत व्यंजनों में स्त्रीलिंग , उदाहरण

जिनीस

गोठ मत ( विचार ) मस ( स्याही )

दीर्घ में स्त्रीलिंग , - उदाहरण

सुतिया ( गले का कड़ा - माला )

चरिहा ( छोटी टोकनी ) सुरता ( याद )

फरिया ( कपड़े का टुकड़ा )

दीर्घ में स्त्रीलिंग , उदाहरण

छेरी ( बकरी ) गोटी

मरकी माटी

दाई ( माँ ) दीदी ( बड़ी बहन )

मसानी या मसियानी ( दवात )

चेदरी या चेंदरी ( कपड़े का टुकड़ा साफ सफाई के लिए )

गूड़ी या गुड़ी ( गाँव की बैठक )

आँखी ( आँख ) पैरी ( पैरो में पहनने का गहना )

हस्व में स्त्रीलिंग , उदाहरण

फूफू दारु

बहू खातू ( खाद ) साजू ( पोशाक )

में स्त्रीलिंग , उदाहरण

बरे ( तेल का बीज ) साते ( जाँच करना )

आठे ( पखवाड़े का आठवां दिन )

फत्ते ( फतह , विजय )

में स्त्रीलिंग , उदाहरण

पतो परछो ( जाँच करना )

लाहो ( अच्छे फल ) सेरसों ( सरसों )

टाड़ो ( बोरे - बासी का पानी )

या में कोई स्त्रीलिंग नहीं है