विशेषण ( बखान )
संज्ञा ( जीनिस ) अउर सर्वनाम के बिशेषता ( गुन ) बताय बाला शब्द ला विशेषन ( विशेषण ) कथे ।
जइसे : -
दे टूरी हा करीं आँखी के हे ।
गोरी बदन बर । ( पड़री, फक - फक ले गोरी । )
काला रंग बर । ( बिरबिट ले करिया । )
लाल रंग बर । ( बीग, बीग - बुग, बुग ले, बीरींग ले लाल, आरुग लाल । )
अउर कई ठन अइसने विशेषण शब्द हे : -
रोंट, बड़े, जब्बड़, अब्बड़, सुग्धर, थोरहे,
बने, थोरको, लाम- लाम, चाकर- चाकर,
चातर- चातर, पोचही आँखी, करौं आँखी आदि।
छत्तीसगढ़ी मा बिशेषन ला जादातर कुन्हूं जीनिस के बड़ाई करे बर, गुन बताय बर अउर परसंसा करे बर परयोग करथें ।
बिशेषण ( बड़ाई - परसंशा ) के परकार :
1 . गुन वाचक अउर ख्यात - बिख्यात बिशेषन ( गुण वाचक बिशेषण ) : संज्ञा ( जीनिस ) अउर सर्वनाम ( नाम जाल ) के उपाधि, सुवाद, रंग आदि परसिद्धि बाला गुन बताय बाला शब्द ला गुन वाचक बिशेषन कथें ।
जइसे : -
महामना, अम्मट, मीठ, करू, कस्सा,
नूनछूर, सादा, पियर, सुहाना, सोंध, सिधवा,
चुचूर, बुद्धिमान, रोंट - रोंट, चोंची । आदि ।
जइसे : - करेला जहर करू हे ।
ओ मनखे बुद्धिमान हवै ।
ओ छोकरी बिरबिट कारी हे ।
तोर गोठ हर मीठ - मीठ सुहाथे ।
मुनगा के साग ल बधारे ले सोंध - सोंध लागथे ।
आज के साग - पान के अम्मट बने लागीस हे । आदि ।
2 .गिनतीहा बड़ाई - परसंसा वाचक बिशेषन ( संख्या वाचक बिशेषण ) :
जे बिशेषण मा जीव - जीनिस अउर सर्वनाम के संख्या अउर संख्या वाचक मात्रा के बोध कराथे, तेला गिनतिहा बिशेषण कथें ।
जइसे : -
तीन, चार, पांच, सब्बे, सब्बो, जम्मे, जम्मो,
खाला - खुजर, बहुँत, नंगते, अब्बड़, दसठन, झारा - झार । आदि ।
संख्यावाचक विशेषण के मुख्य तीन भेद होते हैं
( 1 ) निश्चित संख्यावाचक,
( 2 ) अनिश्चित संख्यावाचक और
( 3 ) परिमाणवाचक ।
( 1 ) निश्चित संख्यावाचक
इसके पाँच भेद हैं - गणनावाचक, क्रमवाचक, आवृत्तिवाचक,
समुदायवाचक और प्रत्येकबोधक ।
गणनावाचक
गणनावाचक विशेषणों के दो भेद होते हैं :
( अ ) पूर्णांक बोधक
( आ ) अपूर्णांक बोधक
पूर्णाक बोधक गणनावाचक
1 . एक, एगो, एगोट, गोटेक
2 . दुई, दूय, दुइ, दू
3 . तीन
4 . चार, च्यार
5 . पाँच
6 . छव, छय
7 . सात्, सात
8 . आँठ, आठ
9 . नों, नव
10 . दस
11 . इगारा, इगयारा, ग्यारा
12 . बारा
13 . तेरा
14 . चौदा
15 . पन्दरा
16 . सोरा सतरा
18 . अठारा, अंठारा, अट्ठारा
19 . अन्नीस, ओन्नीस, एक कम या एक घाट एक कोड़ी '
20 . एक कोरी, एक कोड़ी
21 . एक कोड़ी एक, एक आगर एक कोड़ी, एक कोड़ी से एक जादा
30 . एक कोड़ी दस, डेढ़ कोड़ी
100 . पाँच कोड़ी
अपूर्णाक बोधक गणनावाचक
¼ पाव, ( पई ) सूका, सूखा के
½ आधा ( अध )
3¾ पौन सूका ( सूखा ) कम दुई
2½ अढई
3 ½ अउठ
1¼ सवा, सवाई, पाँच सूका ( सूखा )
1½ डेढ़, डेढ़ा, छय सूका ( सूखा )
1¾ सूका ( सूखा ) ऊना दुई,
क्रमवाचक
पहिल, पहील, पहिली, पहिलवा, पहिलावत, पहिलावट । कभी - कभी पहिले के लिए औवल, औव्वल का भी प्रयोग होता है ।
दूसर, दुसरा, दुसरान, दुसरावन, दुसरावत, दुसराँवत, दुसरावंत, दुसरावट । कभी - कभी औवल की तुक पर दूसरे के लिए दूवल का भी प्रयोग किया जाता है ।
तीसर, तिसरान, तिसरावन, तिसरावत, तिसरावंट । कभी - कभी औवल एवं दूवल की तुक पर तीयल एवं तिव्वल का भी प्रयोग होता है ।
चउथा, चौथे, चौथन, चौथावन, चौथावट ।
शेष क्रमवाचक संख्या विशेषण की साधारण संख्याओं में वाँ, वीं अथवा ई जोड़कर बनाते हैं । जैसे दसवाँ, पनरहवीं
दौड़, परीक्षा आदि प्रतियोगिताओं में तीसर या तीयल के बाद आनेवाले प्रतियोगी फस्सी कहलाते हैं ।
आवृत्तिवाचक
छत्तीसगढ़ी आवृत्ति संख्यावाचक विशेषण गुन, न, पेंत, घाव, घा, वेर, वेरी, दार अथवा दारी लगाकर बनाए जाते हैं । इन प्रत्ययों के पहिले की संख्या का दीर्घ वर्ण प्रायः हस्व हो जाता है । जैसे :
दु गुन, दू - गुन, दून
तिगुन, ती - गुन
चर - गुन, चार - गुन, चौगुन
पंच - गुन आदि
एक पेंत, दू पेंत आदि
तीन घाव , तीन घा आदि
पाँच वेर , सातदार आदि
समुदाय संख्यावाचक
जोड़ा - जोड़ी दो का समूह
जोरा - जोरी दो का समूह
गंडा चार का समूह
कोरी , कोड़ी बीस का समूह
प्रत्येक बोधक
( 1 ) प्रत्येक बोधक विशेषण से कई वस्तुओं में से प्रत्येक का बोध होता है । जैसे : हर ( प्रत्येक ) आदमी के अपन घर जाए के चाही ।
( 2 ) गणनावाचक विशेषणों की द्विरुक्ति से भी इसी अर्थ की अभिव्यक्ति होती है । यथा - दू दू , दस दस ।
( 3 ) अपूर्णांक विशेषणों में मुख्य शब्द की द्विरुक्ति होती है यथा आध - आध सेर गोरस ।
( 2 ) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण
संख्या में एकन , अकन , एक , अक जोड़ने से अनिश्चय का बोध होता है । जैसे :
दू अकन : दो के लगभग
पाँच एकन : पाँच के लगभग
सातेक : सात के लगभग
कोरी एकन : बीस के लगभग
सौ अक : सौ के लगभग
( 3 ) परिमाण बोधक विशेषण
छत्तीसगढ़ी में परिणाम बोधक विशेषण निम्नलिखित हैं :
अउर , बहुँत , बहुँते ( बहुत ) , खूब , खूबे , अघांत , थोर , थोरे , थोरिक , थोरिकन थोरकुन , चिटिक , चिटिकन , चिटकुन , रंचिक , रचिकन , रचिकुन , रंचक , कटिक ( थोड़ा ) । जमा , जम्मा . जम्मो , सब , सबो , सब्बो ( सब ) , गजब . गंज . बढियन ।
संख्यावाचक विशेषण के मुख्य तीन भेदों
के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी में गुणात्मक तथा
ऋणात्मक विशेषण भी मिलते हैं ।
गुणात्मक संख्यावाचक
इनका प्रयोग प्रायः पहाड़ा में होता है । यथा :
दुई एकम दुई दुई छक्के बारा
दुई दूने चार दुई साते चौदा
दुई तियाँ छव दुई अटठे सोरा
दुई चौको आठ दुई नवाँ अठारा
दुई पंजे दस दुई दहाम बीस
ऋणात्मक संख्यावाचक
इनका व्यवहार ग्राम्य जनों के बीच अधिक होता है । ऋणात्मक संख्यावाचक विशेषण निम्नलिखित हैं :
कम : एक कम एक कोरी ( 19 )
घाट : एक घाट एक कोरी ( 19
3 .कतकिहा बहाना - बड़ाई वाचक बिशेषण : -
जे बिशेषण मा जीव जीनिस अउर सर्वनाम के परिमाण ( मात्रा - संख्या वाचक नहीं ) के बोध कराथे, तेला कतकिहा बहाना - बड़ाई वाचक बिशेषण कथें ।
जइसे : - टुड़ी अक, छटाक, ज्यादा, पाचुक, चिक्कन,
आधा, एककनी, थोरकुन नानकून, निच्चट । आदि ।
जइसे :
पाचुक दवई खाय ले ढुंगिया - ढकार नई आवे ।
दवाई टुड़ी अक खा ले बाबू ।
ओखर बहु हर आधाशिशी हे ।
कुकुर हर चिक्कन पसिया तक ला चाट डारिस हे ।
ते निच्चट अड़ही हस ओ रइपुरहीन ।
4 . इसारा वाचक बिशेषन ( सांकेतिक वाचक बिशेषण ) : - ये जीव जीनिस के ईशारा, संकेत के बोध कराथे छोकरा, छोकरी के ( उदंत ) के प्रेम बिलाप के हो ओला संकेतहा या इसारा बड़ाई ओखी या बाक्य कथें ।
जइसे : -
झगड़हा, रेंधिया, अप्पतहा, अलकरहा,
लफरहा, लरहा, बही - भूतही आदि ।
जइसे : - दे टूरा हा अब्बड़ झगड़हा ए ।
एकर रेंगना हा अलकरहा है ।
तुमन लफरहा कस गोठियाथव ?
आज कइसे तैं बही - भूतही कस दिखत हस ? आदि ।
5 . नारी जाति बर उपाधि वाचक ( नारी - उपाधि वाचक बिशेषण ) :
छत्तीसगढ़ी मा नारी मन के मइके के नाम से ओकर नामकरन उपाधि के रूप मा किए जाथे । अइसने शब्द ला नारी उपाधि वाचक बिशेषन कथें । ए बिशेषन मा गाँव के नाम के आगू मा हीन, करहीन आदि प्रत्यय जोड़ के उपाधि बनायें ।
जइसे : -
धमतरहीन, राजिमकरहीन, सांकराकरहीन,
जंगलहीन, रईगढ़हिन, संबलपुरहीन ।
आदि ।
जइसे : -
धमतरहीन अपन मइके चल दिस का गा ?
सिहावाकरिन मन बड़ गुनवान होथो ।
जंगलहीन ला घलोक ले जाना गा ।
सांकराकरहीन तहूँ काबर नी गे या ?
जंगलहीन मन बड़ खुबसूरत दिखथें, अउर बड़ महिनतिन हें ।
कहाँ हस ओ बेलरगहीन ? अरे ! सिरसीदाकरहीन घलो बईठे हस या ? चातर रजनीन मा जीये खाय ला नी जाने कमईचे हमर नोनी के चेहरा नी हे ।
6 . नर जाति बर उपाधि वाचक ( नर - उपाधि वाचक बिशेषण ) : - छत्तीसगढ़ी मा नर मन के निवास के गाँव के नाम से ओकर नामकरन उपाधि के रूप मा किए जाथे, तभे अइसने शब्द ला नर उपाधि वाचक बिशेषन कथें । ए बिशेषन मा गाँव के नाम के आगू मा हा, इहा, इया आदि प्रत्यय जोड़ के उपाधि बनाथें ।
जइसे : -
रईपुरिहा, छत्तीसगढ़िया, गवईहा,
बिलासपुरिहा, बस्तरिहा, बिदेसिया, गवइयाँ । आदि ।
जइसे : -
बिदेसिया मन के गोठ हा समझ मा नइ आवय ।
तुमन छत्तीसगढ़िया हो जी ? तुमर पार ला कुन्हू नी पा सकें ।
बिलासपुरिहा के गोठ तो छिलगत चलथे भईया ।
बस्तरिहा मन एकबोलिया होथें, ओमन जुबान के पक्का हे ।
मोर ममा रईपुरिहा अउर तोर ममा रायगढ़िया हे संगी ।
चतररजिया मन लफरहा होथे ।
शहरिहा मन गँवईहा के कभू पार नई पावय ।
नेवरीया बाबू आज दिखत नी हे गा ? आदि ।
गंगू हा आरुग गँवईहा हे । आदि ।