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वर्ग शब्द

बाक्य परयोग

 ' ग ', ' गे ', ' रे ', ' ओ ', ' वो ', ' हों ', ' ह ', ' हं ', ' हस ', ' हवस ', ' अस ', ' कस ', ' जस ' के ' तस ' के परयोग

 ' ग '  के परयोग

1 .मरद ( नर ) मन बर गर्व के संबोधन करत बेरा गोठ के आग मा ' ग ' के परयोग होथे ।

ऐ शब्द ला छोकरी जात, मईलोगिन, छोकरा जात ( मरद ) सब मन कइथे । ये गोठ हर जम्मों झन बर नी होवै । अपन - भाई, देवर, संगी जवरिहा, टूरा, अनजान, चिन्हार, कका, ददा, बबा सब बर परयोग होथे ।

जइसे : -

ह ग भाई ! काली ते गांव जाबे?

हग ददा ! रमलू के टूरी उड़रिया भगा गे ।

ए ग जवइया बाबू ! थोरकुन अगोर तो ले ।

2 . सम्माननीय, आदरणीय मनसे बर ' ग ' के बदला मा ' हो ', ' जी ' या ' आप मन ' कहे ले आदर सतकार बड़ जाथे ।

जइसे : -

पटेल बबा हो ! पाय लागुं ।

ग्राम सेवक साहेब हो ! आप ला नमस्कार ।

3 . कभ - कभू अपन ले बड़का मनसे बर जेन परिचित हे ऊँकर मन बर ' ग ' कहे ले गोठ मा गुडतुर, मीठास आ जाथे ।

जइसे : -

पटेल बबा ग ! बाबू के जनम दिन मा मोर घर आज पधारे हो का?

हरिद्वार मा रइथो ग ! गंजदिन मा दरसन देथो?

4 . बड़े - बड़े मनसे ( आदमी ), जे मन ले कोई परिचय नीए, त ' ग ' वाक्य हर निच्चट लागथे ।

ये हर अपन - अपन जवरिहा बर परयोग करे मा बने होथे । ' ग ' आखर हर छत्तीसगढ़ के निन्धा पहिचान है । ए परकार के गोठ हा जनम के सिधवा, खेतिहार घर मा पेज - पानी बनईया नोनी जात, दीदी जात अउर उघरा जांगर, धुर्रा माटी मा सनाय, चउरा, गली, पइडगरी मा रेंगइया - खेलइया, नान - नान लइका - पिचका, नोनी बाबू जात मन के पुरखौती अमरीत कस गुडतुर गोठ होथे । ऐखर ले सुनईया मन के हिरदे मा मया - माथा, दिल उल जाथे । अइसन अमीर, भरे - बोजे घर मा कहाँ पाबे ये गोठ ला?

जइसे : -

मोर आत ले इही करा खेलत रबे बाबू ग ।

तोर दाई हा एतवारी हाट गे हे, काली कस झिन पदावे ग ।

5 . ' गड़ी ' के परयोग : - ए शब्द के परयोग केवल सहेली समझ के दाई अपन छोटे लइका बर संबोधन मा करथे ।

जइसे : -

ले ! खेल के आ जाबे न गड़ी ।

आज तें गंज भूखाय हस का गड़ी?

 ' गे ' के परयोग

1 . ' गे ' के परयोग मातूल परिवार के इस्तीरी - पुरुस दूनों बर परयोग होथे ।

जहसे : -

कइसे गे ! तोर दाई घर जावे का?

कइसे गे ! रयपुरहीन चल न आज नगरी हाट जाबोन । अई गे ! आवव । कइसे गे । सिरसिदा करहीन आज कल निच्चट दिखथस ।

कइसे गे ! ते कब घर जाबे?

का कहाँव गे ! मोर कहेना ला मनेच नहीं ।

गे ! ओ मोर कहेना ला माने तब?

2 : - ' गेहे ' शब्द घलोक गुडतुर बोली मा परयोग होथे ।

ये शब्द हा अपने ले नान्हें या बड़े इस्तीरी जाति बर संबोधन के रूप मा परयोग होथे ।

जइसे : -

चल गेहे पानी भरे ला जाबोन तरीया ।

ते हा अबड़ेच पदाथस गेहे ।

गेहे मोला तोर संग खेलावे नौहीं ।

3 : - 'गोया ' शब्द घलो अबड़ेच गुडतुर गोठ मा परयोग होथे ।

ए शब्द ला जब भाटों हर अपन सारी ल मजाक मा संबोधन के रूप मा करथे, तब सारी हा लजा जाथे ।

जइसे : -

तुमन गोया ! घर मा बने - बने रथो या । आना गोया ! दुख - सुख के गोठ - गोठ गोठिया लेतेन कथन । हमर लंग मा आ ना गोया ! बिहाव होइस हे तब ले अबड़ेच लजाथस या ।

' रे ' के परयोग

1 . ये एक ठन, अईसना गोठ हे कि का कबे? ' रे ' आखर हा छत्तीसगढ़ मा अक्सर अपने ले छोटे मन बर हीने भाव ले परयोग ( अपमान सूचक ) होथे ।

अपने ले बड़े मनसे ला ' रे ' कहे ले बने नी लागे । फेर का करबे? गोठ हा उदुप ले - मुंहू ले, भक्क ले निकर परथे, ते घोर अपराध, अपमान, खिसियाय कस लागथे । वइसे अपने ले छोटे ला अइसना बोलत घानी ओकर परती अपनत्व अठर मया के भाव भी रहीथे ।

जइसे : -

धूंच न रे ! इही करा काबा खड़े हस?

ते आधूच - आगु मा होते रथस रे बेलबेलहा !

2 . ‘ह रे’ शब्द कभू - कभू आखिर मा अपने ले छोटे, लईका, दुलरवा, पिंयारा, संगी जवरिहा ला कहे ले अबढेच मीठ लागथे । ए मेर ' रे ' के आगु मा ' ह ' आथे ।

जइसे : -

ह रे बाबू ! जा तो चोंगी सुपजा के लाये ।

ह रे दाऊ ! मोर भइसी ला धोके लान देबे।

ह रे संगी । चल कालि के जवइया आजेच जाइयोन ।

3 . येमा घलोक ' रे ' के सुछंद ( स्वतंत्र ) अरथ नी होवे ।

ये हर हिरदे के एक सहज स्वर हे, जेला बाजा - गाजा के संग मा रऊत, बरदिहा मन अपन तीज तिहार मा हरीख ( मगन होके ) नाचत - गात हाना ( दोहा ) पारे के आधु मा कर्थे - अरे रे रे रे

जइसे : -

अरे रे रे रे 

आगु - आगु राम चलत है, पाछू लछिमन भाई ।

माँझ मझोलन सिया - जानकी, चित्रकूट बर जाई । ।

अड़गड़ टूटे पड़गड़ टूटे, टूटे भूरी भैइस के छाँद रे ।

घर ले निकरे गोकुल - कन्हइया, भागे भूत - मसान रे । ।

एक दोहा पारेंव बहु गे बहुराई रे, दूसरा दोहा पारेंव मोर माता पिता के दोहाई रे ।

4 . अपन सुवारी ( पत्नी ) ला अ के साथ ' रे ' के संबोधन के रूप मा ' अरे ' के परयोग करे ले ओकर अरथ हा सरधा ले गोठियाय कस लागथे ।

जइसे : -

अरे गॅंउटनीन ! साग ल थोरकन जरा डारे ओ? अरे !

आज कइसे गाल फूलाय हे तोर मईके हा, नोनी?

अरे नोनी के दाई ! ते देखस घलो नीहि ओ? जरत ले नून हो गेहे तेला ।

5 . ' या ' आखर ला कुन्हू - कुन्हू मई लोगीन मन अपन दाई - दीदी मन बर सकारात्मक रूप मा गुदतुर बोली ले बोलथें ।

देवर - ननंद संग भउजी हर ए शब्द ला जादातर बने - बने गोठियाथे ।

जइसे : -

या दाई ! आवय इही करा बइठय ओ ।

दीदी या ! हाट के बेरा होगे हे का?

कइसे या ! भउजी तीजियारि मन आगे का ओ?

अई जाना या ! देखत हे देवर बाबू हर तोला?

' ओ ' या ' वो ' के परयोग

1 . ए दुनो शब्द हर जादातर मरद ( नर ) वर्ग के द्वारा नोनी जात महिला वर्ग के संबोधन बर होथे :

जइसे : -

बहुरिया ओ । कहां गेहे बाबू हा?

ह वो नोनी ! ये काखर घर ऐ?

काकी मन ओ ! गांव ले आगे का?

तोर का नाम हे वो नोनी?

जाना ओ नोनी ! बेर हा हिरक गे ।

ओ देरान - जेठान दूनों बने पटथो नी या?

2 . कभू - कभू वो - ओ हर जगा, मनसे, वस्तु, बेरा ल संकेत देहे बर सर्वनाम के रूप मा परयोग होथे ।

ए दूनों शब्द के उच्चारण समान होथे । येमा दुरिहा के भाव लूकाय रइथे ।

जइसे : -

वो दे ! ओहा बर - पीपर तरी खड़े हे ।

वो नदिया बीच मा छपरी आमा के बिरुवा हे ।

ओ बेरा मा आबे न ।

ओ नदिया नहायला जही ।

3 . कभू - कभू अपन घर मा सास बर बहुरिया मन ' अई ' के शब्द ले संबोधन करथे ।

जइसे : -

अई तहूँ गे रेहे या?

सास डोकरी ! अई कहाँ हो, घर मा हावो ओ?

अई चलव, हाट - बजार ले आ जातेन का?

4 . कभू कभू नकारात्मक वाक्य बर ' टार ' शब्द के परयोग होथे,

जेला आना कानी करके थोरकन लंबा राग लमात इन्कार करे के शब्द माने जाथे ।

जइसे : -

ओ टार  दाई ! तोर चोचला हमला कइसे पोसाही?

ओ टार  गे ! ते का का गोठिते रथस?

ओ टार  मै नई जावव त ।

टार  तोर डचरा ला मोला बने नी लागे ।

टार  काबर ते गोठियाथस?

टार  तोर लई - लिगरी बने नी सुहावे ।

5 . जब कुन्हू परेसानी मा आ जाये, ता मनाये बर निवेदन करे के रूप मा ' ले ' या ' ले ले ' के परयोग होथे ।

जइसे : -

ले जा ना बाबू ! एक कनी लान दे ।

ले ले गा ! एक कनी कहीं नी होय खाले । "

हों, हवौं, हवंव, हओं, हौं, हवौं अउर हव ' :

1  हिन्दी भाषा मा जिहाँ ' हूँ ' के परयोग होथे

उहाँ छत्तीसगढ़ मा - ' हों, हवौं, हवंव, हव ' हओं, हौं, हवौं ' के परयोग करथन । ये हर प्रथम कर्ता के वर्तमान काल के बोथ कराथे । एमा मंजूरी, मौजुदगी, सहमति के भाव व्यक्त होथे ।

जइसे : -

मैं खजानी खावत हों ।

( मैं खाने वाला वस्तु खा रहा हूँ । )

मैं जावत हवौं ।

( मैं जा रहा हूँ । )

मैं कहानी कहात हवंव ।

( मैं कहानी कह रहा हूँ । )

मै पढ़त - लिखत हँव ।

( मैं पढ़ - लिख रहा हूँ । )

मैं बने गीत गावत हवंव ।

( मैं अच्छा गीत गा रहा हूँ । )

2 . छत्तीसगढ़ी मा ' हों ' के बहुवचन ( हवन, हावन, हओन, हन ) होथे येला खाल्हे निहारव ।

जइसे : -

हमन गांव - गउतरी जावत हवन ।

( हम लोग गाँव आदि जा रहे हैं । )

हमन खावत हन ।

( हम लोग खा रहे हैं । )

हमन हुमन करे ला जावत हावन ।

( हम हवन करने जा रहे हैं । )

' ह / हँ ' के परयोग

ह / हँ '  मा तो गजब के परयोग होथे तेला देखव थोर कुन ।

1 . छत्तीसगढ़ी  मा ' हे ' के परयोग देवी - देवताओं के नाम के पहिली लगाये जाथे ।

' ह, हँ ' के परयोग छत्तीसगढ़ मा मनखे के नाम के आगू मा होथे घलोक ।

जइसे : -

हे भगवान ! दया करव ।

हे मातादाई ! मोला कतीक तरसाबे?

ह गा भइया ! मोर संग आज जाबे?

हँ ग बबा ! महुँ ल लेगबे?

2 . हिन्दी मा जिहाँ ' ने ' परयोग कर्ता बर होथे छत्तीसगढ़ी मा ' ह ' या ' हर ' परयोग होथे ।       

जइसे : -

कोन हर खाही

कोन ल कोन ह का कहत हावै?

सुगबती हर हरू - गरू होगीस हे ।

नदिया हर पानी बोहात हावे ।

3 . हिन्दी मा ' हाँ ', अंगरेजी मा ' यस ' अउर छत्तीसगढ़ी मा ' हँ ' कहिथें ।

जइसे : -

हँ ! मैं घला गये रहेंव ।

हँ ! हँ ! आन दिन जाबे ।

हँ ! अमरबेल कस फइल जाबे मिसन के परचार मा ।

4 . ' हँ ' शब्द से अचम्भित वाक्य के बोध होथे ।

जइसेः -   

हँ! ओकर कचलोहिया काया मा बिहाव होगे ।

हँ! असोड़िया साँप हा सूर असन हावे ।

हँ! आट हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा होथे ।

5 . कभू - कभू ' हँ ' ला दू घांव गोठियाय ला परथे, तभे अरथ हा स्पष्ट होथे । अउर स्वीकारात्मक वाक्य बनथे ।

जइसे : -

हँ हँ ! मैं जाहूँ गा । हँ हैं ! मोर ते का कर लेबे?

हँ हैं ! मोला का देख लेबे?

हँ हैं ! तोर असन ला, कतकोन देखो हों? '

‘हस, अस अउर हवस ’ के परयोग

हस, अस अउर हवस ' शब्द ला हिन्दी मा ' हो ' कथें । ये हा क्रिया के अन्त मा प्रत्यय के रूप मा लगथे अउर वर्तमान काल द्वितीय पुरुष एक वचन क्रिया के आखिर मा परयोग होथे ।

जइसे : -

तें दया - मया करत हस?

( तुम दया - मया कर रहे हो? )

तैं का करत अस?

( तुम क्या कर रहे हो । )

 चना - मुर्रा खात हस ( खाथस ) ।

( तुम चना - मुर्मरा खा रहे हो । )

तैं बीड़ी अबड़ेच पीथस ।

( तुम बहुत बीड़ी पी रहे हो । )

नोट : - ए मेर ' त ' + ' ह ' मिल के ' थ ' बनीस हे

जइसे : -

ते कब ले आवत हस गा?

( ते कब ले आवा थस गा? )

ते जावाथस नी गा?

( तुम जा रहे हो की नही? )