मया - मयारू भाव से छत्तीसगढ़ी भाखा मा कभू - कभू मना करे के गोठ बर ओ ला नाकारात्मक ( नीषेधात्मक ) बनाय ला परथे, जे हिन्दी मा ' नहीं ' ( नाही ) अउर अग्रेजी मा ' नो / नॉट ' होथे । पर हमर छत्तीसगढ़ी भाखा मा अलग - बिलग, ठौर ( स्थान ) के मुताबिक ' नी ' के परयोग होथे । हमर छत्तीसगढ़ मा 29 जिला हे अउर अनगीनत गाँव, पर हर जिला मा अलग अलग बोले जाथे । गाँव मा तो अउरे हे । थोक - थोक गोठ हा बदलते रथे । छत्तीसगढ़ी मा कहे भी गे हे
जइसे : -
' कोस - कोस मा पानी बदले, कोस - कोस मा बानी ' ।
येखरो धलोक नाकारात्मक होथे, कभूठहराव या संबोधन बर होथे । अपन बात के समरथन बर गा, गे, रे, ओ प्रत्यय ला मिलाये जाथे ।
जइसे : -
हम नइ जावन ।
तुमन नई खावव ?
नहीं गा ! तोला जायेच ला पर
नइ बाबू गा ! मै कहाँ गये रहेंव ?
नइ गे ! एती आना ।
नई रे ! बाबू गारी दिही ।
नई गा ! मै कहाँ खाय रेहेंव ।
नई रे ! मैं बने नी कहत हवँव । आदि ।
2 ' ना ' नाकारात्मक गोठ मा कम उपयोग होथे । ठहराव, लय, अउर तुक बर ' ना ' के परयोग जादा होथे । कभू - कभू आदेशात्मक बर भी गोठीयाय जाथे ।
जइसे : -
जा ना दूद पीले गा । ( जाओ ना दूध पीलो । )
जा ना खा ले । ( जाओ न खालो । )
बुता ना काम के । ( एक भी काम का नहीं । )
सुल परे ना बँधान । ( कोई भी कार्य का महत्व नहीं होना ) आदि ।
3 . छत्तीसगढ़ी गीत मा धलों तुक बनाय खातिर ' ना ' शब्द के परयोग करथें ।
हमर छत्तीसगढ़ी मा सुआ लोकगीत के परथा हे । येमा एकर अड़बड़ परयोग होथे ।
जइसे : -
ना ना री ना ना ना री मोर सुआँ ना
ना रे सुआँ ना, तिरीया जनम झन दे ?
तिरीया जनम, मोर गऊ के समान, ना रे सुआँ ना - -
तिरीया जनम झन दे आदि ।
अंगरी ला मोरि - मोरि तुमा ला जगायेन रे सुआँ ना ?
वहू तुमा फरे लटा बोर, ना रे सुआँ ना
बेंट ते बेंट कुहालो बेंट, माँघ महिना मा छुटिक - छुटा ।
पुस महिना मा भेंट, ओ पुस महिना मा भेंट नरे सुआँ ना ।
तारा ते तारा नौ गढ़िया तारा ।
जल्दी - जल्दी बिदा करो, जाबोन हमर पारा ओ ।
जाबोन हमर पारा ऽऽऽऽ नरे सुआँ ना । आदि ।
4 . नाकारात्मक ( निषेधात्मक ) गोठ मा ' नी ' के परयोग होथे ।
जइसे : -
मोर करा अधेला पइसा घलो नी हवै ।
लबारी नी मारों जी ।
ओ हा गोठीयाय के सुल - मूल नी पाय गा । आदि ।
5 . ' नाही ' के गोठ घलो बने लागथे । एखर उपयोग बहुँते कम होथे ।
जइसे : -
हम नाहीं जान गा ।
हम नाहीं खान गा । का करबे ?
नाहीं ओती मत जा ।
हम नाहीं पढ़न गा । का करबे ? आदि ।
6 . ' नोहे ' ले पूर्ण नाकारात्मक गोठ बनाय जाथे ।
जइसे : -
एहर गरीबहा के बेटी नोहे ।
एहर गाँड़ा के घर नोहे ।
एहर पीरपीटी साँप नोहे ।
एहर बानी वाली के बेटी नोहे । आदि ।
7 . ' नीहे ' शब्द के परयोग भी नाकारात्मक गोठ बर अड़बड़ेच होथे ।
जइसे : -
आज गरीबहा अउर साव के नोनी मा चिन्हारी नीहे ।
मोला तोर उपर कुछू भरोसा नीहे ।
नीहे नीनी - बाबू के एको मया ।
आज - कल टूरी - टूरा मन के पोसाग मा चिन्हारी नीहे । आदि ।
8 . हमर छत्तीसगढ़ मा संग ' ए ' जोड़ दे ले गोठ ल गजब के ' बल ' ( ताकत ) मिलजाथे ।
जइसे : -
ए टुरी घोर सनिचर हिन हे ।
ए दुरा हा परबुधिया होगे हे ।
एकर घर - कुरिया के ठीकाना हे ।
एकर दाई - ददा मन बने बिवहार के हे ।
एकर ममादाई संग मोर बने पटथे । का कबे रे ?
ए परलोखिया टूरा हा बेर ढरक गेहे तबले आवत नई हे । आदि ।