1 . ठन : - कोन्हों जीनिस ( संज्ञा ) वस्तु, प्रानी, जघा आदि के बादुर ( संख्या ) ला जाने बर ' ठन ' शब्द के परयोग होथे । एला संख्या बाचक प्रत्यय कथें । उधारन एक ठन, दू ठन, तीन ठन, दस ठन आदि । एहा ' कै ' के सवाल - जवाब मा उपयोग होथे ।
जइसे : -
तुमर कै ठन गाय जनमें हे ?
मोर पांच ठन गाय धनाय हे ।
तोर के ठन खेत जोतागे ?
तोर के ठन गाय - गरू हे । आदि ।
2 . मन : - यह हा कोन्हों जीनिस ( संज्ञा ) वस्तु, प्रानी, जघा आदि के बाटु ( संख्या ) ला जाने बर परयोग होथे । एहा ' कोन ' के सवाल - जवाब मा उपयोग होथे ।
जइसे : -
मनखे ले मनखे मन ।
नोनी ले बाबू मन ।
लोग ले लोग - लइका मन ।
दाई ले दीदी मन ।
डोकरी ले डोकरा मन ।
गाय ले गाय मन ।
भइया ले भौजी मन ।
कका ले काकी मन । आदि ।
3 . झन : - यहू हा कोन्हों जीनिस ( संज्ञा ) वस्तु, प्रानी, जघा आदि के बाटुर ( संख्या ) ला जाने बर परयोग होथे । एहा ' कै ' के सवाल - जवाब मा उपयोग होथे ।
( । ) मनुष ( व्यक्ति ) के बाटूर ( संख्या ) बोध कराय बर ये हे ।
जइसे : -
तोर आठ झन नोनी - बाब हें ।
चार झिन बरात गे रहीन ।
तीन झन चौथिया मा आये रीहिन ।
ओमन मई - पिला दस झन हवै । आदि ।
(।। ) नाकारात्मक गोठ मा मना करे बर भी ए शब्द के परयोग होथे ।
जइसे : -
येती झन आ । ( इधर मत आओ । )
ओती झन जा । ( उधर मत जाओ । )
दारू ला झन पी अउर झन पीया । ( शराब को न पीओ न ही पिलाओ । )
अइसना झन कर । ( ऐसा मत करो । ) आदि ।
(।।।) झन के पहिली ' कै ' कतका ' के सवाल करे मा भी एखर उपयोग होथे ।
जइसे : -
कै झन जवइया रहीन ?
कतका झन कनेशर नहाय ला गे रेहेव ?
कै - कै झन पइसा पाईन ?
कै झन बोट देवइया हे तोर ? आदि ।
4 . कन : - ए हा कोन्हों जीनिस ( संज्ञा ) वस्तु, प्रानी, जघा आदि के मात्रा ला जाने बर परयोग होथे । एहा केतेक / कतका ' के सवाल जवाब मा परयोगहोथे ।
जइसे : -
कतका कन गोरस हे ?
( कितना दूध है ? )
कुँआ मा कतका कन पानी हे ?
( कुँआ में कितना पानी भरा है ? )
पझरा पानी कतका कन हे ?
( श्रोत में कितना पानी है ? ) आदि
नोट : - कभू - कभू एखर उपयोग तुरुत अउर थोरकन जइसे अरथ मा भी होथे । काबर की छत्तीसगढ़ी मा ' कन ' हा हिन्दी के ' कण ' आय
जइसे : -
एक कन मा आत हों ।
एक कन मोला सुते ला देना गा ।
एक कन महु ला देना ।
एक कन मा का होही । आदि ।
5 . कन - कन ( कण - कण ) : - एखर परयोग घला छत्तीसगढ़ मा गोठियाय जाथे ।
जइसे : -
ओखर कन - कन मा का हमाय हे ? हम का जानबो रे ?
ओकर कन - कन मा भगवान बसे हे तेला तो देखो ।
नदिया के कुधरा के कन - कन ला कोन गिन सकत हे ? आदि ।
6 हन / हवन / हावन ( हैं ) : - छत्तीसगढ़ी मा ' हे ' के बहुवचन ' हन / हवन / हावन ' होथे ।
जइसे : -
हमन हन न गा । ( हम लोग हैं न श्रीमान जी । )
हमन जात हवन । ( हम लोग जा रहे हैं । )
हमन चार झिन हावन । ( हम चार है । ) आदि
7 . थन : - वास्तव मा एहा ' हन ' शब्द के ही ' त + हन = थन ' संयुक्त रूपमा बने हे । एखर अरथ भी ' हन / हवन / हावन ' के जइसे ही होथे । बस ' हन ' के आघू के आखिर मा ' त ' आना चाही ।
जइसे : -
रद्दा मा रेंगथन । ( रेंगत + हन = रेंगथन ) ( रास्ते पर चल रहे है । )
भात खावथन । ( खावत + हन = खावथन ) ( भोजन कर रहे है । )
हमन चाहा पीयाथन । ( हम चाय पीला रहे हैं । )
नाचथन - गावथन । ( नाच - गा रहे हैं । ) खाथन, पीथन, जीथन, रथन, जेवथन, लेथन । आदि ।
8 . चन : - ये शब्द के परयोग उहाँ होथे जिहाँ कुछू नुकसानी हो जाथे ।
जइसे : -
दूध चन - चन ले जरगे ।
मुँडी हा चन - चन ले चंदवा हे
घाम के मारे दूबी हर खेत मा चन - चन ले लेसागे ।
नंगते खातू छिछे ते खेत के धान चन - चन ले जर गे ।
पउर साल जंगल मा आगी लगे से जम्मों रुख - रई चन - चन ले जरगे । आदि ।
9 . मन / मने - मन : - कभू - कभू ' मन ' के जघा ' मने - मन ' के परयोग होथे ।
जइसे : -
तोर मन ला कोन जानही । ?
मन के बात गड़रिया जाने ?
मने - मन मा का गुनथस गा ?
मने - मन मा गुमसूम काबर रथस ?
मने - मन मा तुरते दुनिया ला कींजर गे का ? आदि ।