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वचन ( बचन )

         वचन शब्द के कई ठन अरथ होथे :

1 . मनसे के मुँह ले निकले सारथक शब्द ला वचन ( बचन ) कथें । एकरे अरथ से प्रवचन ( परबचन ) शब्द बने हे

जइसे : -

1 . गुड़तुर बचन हे औसधी , कटुक बचन हे तीर ।

राधे भात मा नून डारे ले , कइसे होही खीर ।

2 . मधुर बचन बोलिए , तजदे बचन कठोर ।

जइसे दुनिया हा प्रेम करे , चन्दा अउर चकोर ।

3 . मधुर बचन हा औषधि के समान है ।

4 . गुरु के बचन माने मा ही सुख हे ।

2 . दृढ़ता पूर्वक या फेर प्रतिज्ञा के रूप मा कहे गोठ ला घलोक बचन कथें

जइसे : -

तें अपन बचन के पालन कर । ।

रघुकुल रीति सदा चलि आई , प्रान जाई पर बचन न जाही ।

राम हा विभीषन ला बचन दे डारे रहिस ।

3 . ब्याकरन मा वो शब्द , जेकर द्वारा जीनिस ( संज्ञा ) अर्थात् कोन्हू चीज ( वस्तु ) , मनसे ( ब्यक्ति ) , जाति या जघा ( स्थान ) के संख्या के बोध होथे , ओला वचन कथें । हमन एमेर ब्याकरन के चर्चा मा इही तीसरा बाला वचन ला मानबोन । अर्थात

परिभाषा : - जे शब्द मन ले जीनिस ( संज्ञा ) अर्थात् कोन्हू चीज ( वस्तु ) मनसे ( ब्यक्ति ) , जाति या जघा ( स्थान ) के एक या एक ले जादा होय के बोध होथे ओला वचन ( बचन ) कथे

छत्तीसगढ़ी मा वचन के दू परकार होथे :

1 . एकवचन अउर

2 . बहूवचन

1 . एकवचन : - जेन शब्द मन हा कोन्हू एकेच ठीन वस्तु , ब्यक्ति या स्थान या सर्वनाम के बोध कराथे , ओला एकवचन के जीनिस ( संज्ञा ) या सर्वनाम शब्द कहे जाथे 

जइसे : -

राम , नदी , घीव , कपड़ा , किताब , कुकुर , बिलई , बर्षा , पानी , जनता ,

सत , झूठ , बालू , आकास , मैं , तैं , वो , ओ , कोन हा । आदि ।

2 . बहूवचन : - जेन शब्द मन हा एक ले जादा वस्तु , ब्यक्ति या स्थान या सर्वनाम के बोध कराथे , ओला बहुवचन के जीनिस ( संज्ञा ) या सर्वनाम शब्द कहे जाथे

जइसे : -

1 . कुर्सी मन ,

2 . राम , श्याम अउर मोहन ,

3 . कइ ठन घोड़ा , कुकुर मन , बिलई मन ,

4 . कइ ठन किताब , कइ ठन फाइल , कइ ठन कम्पयूटर ,

5 . दो , तीन , चार , सात , हमन , तुमन , ओमन , वोमन , कौन मन , जम्मो बाटूर आदि ।

नोट : -

1 . ब्याकरन मा जीनिस ( संज्ञा ) कस सर्वनाम मा भी एकवचन अउर बहुवचन होथे

जइसे : -

मैं ले हमन , ले ओमन , कोन ले कौन मन , तैं ले तुमन आदि ।

2 . उधारन : -

एकवचन                    बहुवचन

बेंदरा बइठे हे ।           बेंदरा मन बइठे हैं ।

टूरा सूतही ।                टूरा मन सूतहीं ।

टूरी नाचत हे ।            टूरी मन नाचत हैं ।

येमा जइसे स्पष्ट है कि एकवचन अउर बहुवचन के पहिचान जीनिस ( संज्ञा ) अउर होनी ( क्रिया ) के रूप ले होथे । लेकिन कभू - कभू केवल होनी ( क्रिया ) के रूपेच मात्र ले एकवचन अउर बहुवचन के पहिचान होथे ।

वचन ब्यक्त करे के नियम :

छत्तीसगढ़ी मा वचन ब्यक्त करे के कुछ नियम हे , तेला आवव थोरकुन चरचा करन ।

1 . हर समे एकवचन मा परयोग होवइया शब्द घलोक होथे

जइसे : -

आकाश , बर्षा , पानी , जनता , घीव , सत्य , लबारी , चऊर , खुधरा  आदि ।

नोट : -

ए शब्द मन हमेशा एकवचन मा ही परयोग होथे ।

उधारन : -

आकास मा बादर छाए हे ।

कालि वर्षा अवस मा होही ।

आज तो पानी रही - रही के गीरत है ।

हमर गाँव के नरवा मा कुधरा नी हे ।

2 . हर समे बहुवचन मा परयोग होवइया शब्द घलोक होथे

जइसे : -

प्रान , आँसू , दर्शन , दसखत , समाचार , होस आदि ।

नोट : -

ए शब्द मन हमेशा बहुवचन मा ही परयोग होथे ।

उधारन : -

काली डोकरा के प्रान निकल गे ।

एमेर बइठ के आँसू मत बोहा । ।

तोर दर्शन अबड़ेच दिन बाद होइस हे ।

3 . कभू - कभू , कोन्हू - कोन्हू जघा मा एकवचन के शब्द रहे के बावजूद एकवचन के जघा मा बहुवचन के परयोग होथे ।

( अ . ) सम्मान सूचक : - एमा एकवचन के बहुवचन मा परयोग होथे ।

जइसे : -

गाधी जी छुआ - छूत के बिरोधी रहीन हैं ।

हमर गुरु जी कालि छत्तीसगढ़ जाहीं

भगवान श्री राम महान पुरुष रहीन

आचार्य श्री राम शर्मा साक्षात महाकाल के अवतार हे ।

वंदनीया माता जी भगवती देवी शर्मा जगत जननी हे । आदि ।

( ब . ) लोक ब्यवहार : - लोक ब्यवहार मा ते , तैं आदि के जघा मा आप आदि के परयोग करथें ।

जइसे : -

आप कोन गाँव ले आय हव ?

उन हा कब जाही ?

ओ हा का करत हे ? । आदि ।

( स . ) समुदाय वाचकः - मन , लोग , गन , समुह , समुदाय , जाति , दल आदि शब्द लगा के मूल शब्द ला बहुवचन के रूप मा परयोग किये जाथे ।

जइसे : -

हिन्दू लोग , टूरा मन , सिख समुदाय , बाम्हन जाति , बजरंग दल , समुह छात्रगन , बृद्ध । आदि ।

4 . कई बार जाति वाचक शब्द एकवचन मा ही बहुवचन के बोध करा देथे

जइसे : -

नागपुर के संतरा सरी दुनिया मा परसिद्ध है ।

मोर करा एल लाख रुपिया हे ।

हमर छत्तीसगढ़ हा धान के कटोरा नाव ले परसिद्ध है ।

हमर भारत देश हा गाँव मा बसथे ।

क्षमा ले बड़का अउर कुन्हू सजा नी हे ।

पीये के पानी हमर पारा पिथमी मा कम होवत जात हे ।

नोट : -

ए बाक्य मन मा संतरा , रुपिया आदि शब्द हा बहुवचन होए के बावजूद भी एकवचन के रूप मा परयोग होए । एसनेच अउर कई ठीन उधारन हे ।

जइसे : -

गरुआ , सुख , दुख , सांप आदि ।

5 . सर्वनाम अउर जीनिस ( संज्ञा ) मा एकवचन अउर बहुवचन अइसे होथे

प्रथम पुरुष        द्वितीय पुरुष         तृतीय पुरुष

एक व0 बहुवचन    एक व0 बहुवचन     एक व0 बहुवचन

मैं  ले   हम          तें ले   तूमन                 वो ले ओमन

मोर ले  हमर      तोर ले  तूमन के / तुम्हर  ओहर ले ओमन

मोला ले  हमला   तोला ले  तूमन ला          वोला ले वोमन ला

ओकर ले उनकर

स्थान , ब्यक्ति , वस्तु अउर जाति वाचक जीनिस ( संज्ञा ) मा एक के बोध होय ले एकवचन अउर एक ले जादा के बोध होय ले बहुवचन होही ।

जइसे : -

राम हाट जात हे ।

( एमा राम हा एकवचन है । )

राम अउर मोहन हाट जात हैं ।

( एमा राम अउर मोहन बहुवचन है । )

6 . होनी ( क्रिया ) मा बहुवचन बनाय बर होनी के बेरा ( काल ) के बारे मा भी आगू जाने ला परही

बेरा ( काल ) के बारे मा आगू चल के चरचा करना है । तेकर सेती एला ओई पाठ मा बिस्तार से देखबोन । अभी संछेप मा करना होनी ( क्रिया ) ला मानक मानके अइसे जानन :

एक व0   बहुवचन   एक व0   बहुवचन  एक व0   बहुवचन

करथे ।   करथें ।    करत हे । करत हे ।       करे हे ।   करे हैं ।

करीस । करीन ।   करत रहीस । करत रहीन ।   करे रहीस । करे रहीन

करही ।   करहीं ।  करत रही । करत रहीं ।        कर डारही । करडारहीं

याद राखव : - दारे ला कुहूँ - कुहूँ जघा डारे भी कहिथें

जइसे : -

मैं ये काम ला कर दारे हों । मैं ये काम ला कर डारे हों ।

मैं हा कबले ओ दूनों काम ला कर दोरे हों ।

तोर बुता के मारे मोला परसान कर डारे । ।

7 . रुख - रई , पशु , चिरई - चिरगुन अउर मनसे बर बहुवचन बनाय खातिर मन प्रत्यय जोड़े जाथे

जइसे : -

मुसवा - मुसवा मन । सूवा - सुवा मन । छोकरा - छोकरा मन । छोकरी - छोकरी मन । गरुआ - गरुआ मन । रुख - रुख मन । कका - कका मन ।  बाबू - बाबू मन ।  भईया - भईया मन । दीदी - दीदी मन ।   भौजी - भौजी मन ।  नोनी - नोनी मन । चिरई - चिरई मन । मोसी - मोसी मन ।  मोसा - मोसा मन । फांफा - फांफा मन । चिरगुन - चिरगन मन । सारी - सारी मन

( 8 . ) छत्तीसगढ़ी मा बहुवचन बनाय बर ठन , कन , अकन , कनी आदि के उपयोग अबड़ेच होथे ।

जइसे : -

कई ठन आमा के पेड़ है ।

एक कनी परसाद अउर दे ना ।

थोर कन दही महु ला देबे ?

अतकी अकन ला मैहा नी सकँव । आदि ।

( 9 . ) कुछ शब्द के आगू मा बहुवचन बनाय बर अब्बड़ , अड़बड़ , थोर , जादा , गंज , नंगते , गजबे आदि जोड़े जाथे ।

यहु मा गंजेच , अड़बडेच , थोरहेच , आदि सब शब्द मन के बाद मा कन / अकन भी जोड़े जाथे ।

जइसे : -

अब्बड़ मुसवा ।  जादा पानी हे ।गंज खजानी है ।  नंगतेकन भात दिस । गजबे मनखे आए हैं । गजबे कन भाजी हावे । भारी पानी गिरत हे । नगते भात देबे ।

थोरकन तेल उधार देदे । नंगतेच अकन मिठाई ला देदे हस रे । । थोर अकन चल बुल के आबोन तहिया । एक रुपिया मा अब्बड़ेच अकन खजानी मिले । आदि ।

( 10 . ) छत्तीसगढ़ मा सम्माननीय मनसे या परिवारिक संबंध के जाति / समूह वाचक संज्ञा बर छेव मा मन प्रत्यय लगा के बहुवचन बनाय जाथे

जइसे : -

ससूर - ससूर मन । सास - सास मन ।साढ़ , - साढ़ मन । ममा - ममा मन । ।कका - कका मन । मामी - मामी मन ।मामी - मामी मन । भाटो - भाटो मन ।मोसी - मोसी मन । भौजी - भौजी मन ।दाई - दाई मन ।   ददा - ददा मन ।फूफा - फूफा मन । नोनी - नोनी मन ।नानदाई - नानदाई मन । आदि । ।