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आखर - खुंटी - कारक

 

आखर - खुंटी - कारक

          अंधवा का जानहीं कि हाथी कइसन होथे । गोड़ ला छूआ के पूछबे त कही हाथी अइसन होथे । सोड़ ला टमराबे त सोड़कस हाथी होथे कही । कान ला टमडाबे त कान कस हाथी होथे कही । ओसने बिगन आखर खुंटी कारक के छत्तीसगढ़ भाखा के सुवाद ला का गम पा सकथन ? येखर बिगन तो लेड़गा - बेहा कहाबोन । जइसन छानी - माचा मा डोड़का - तोरई बिगन पानी के पोच - पोचहा कस लमेरा फरे रथे । तब इही भाखा के एक - एक आखर ला बने - बने सुग्धर सवारना हे, तभे तो हमर दुदु दाई हा अपन नान्हे लईका ला तोतरी भाखा ले गोठिया के, मोहा के रिझा लिही । तबे तो लईका हा महतारी के कोरा मा लझरंग ले बईठ जाहीं अउर मार फूदक - फूदक के हूँ - हूँ कहीं के किलकारी मारत उझलही, हुद्दा लगाही, मेंछराही । जब लईका हा कोरा मा बइठ के रतालू कस, कोखमा कस अंगठा ला धर के चूचरत सूत जही । जब लईका सूत के उठही तहान मया के मारे बाप हर खाँद - पिठईयाँ मा चढ़ा के आरा - पारा, घर - घर, अरछी - परछी हरीक के मारे किंदारही । महतारी धलोक अँचरा मा धर के लुकउल - छुवउल, घानी - मुनी, हँसी - ठीठोली खेलही । लालमदार के पंखुड़ी असन पातर जीभ अउर पाके कुंदरू चानी कस होंठ दिखही, थोकुन भाखा ले तोरराही तभे मयारूक दाई हर मुचमुचा के ओखर गाल ला चूमही, पुचकारही अउर जनम - जनम भर के आशिस दीही ।

                         हमर छत्तीसगढ़ी बोली के एक - एक आखर हा बसंती, गुलाब, जसमिनलता, केसरिया केकती, केवड़ा, कोकमा, मोंगरा, रातरानी फूलवा कस महमावत - कहँरत सरी दुनिया मा अपन कहर ( माहक ) बगराही । फूल के महत्ता तब होथे जब ओहर माला बना के गला मा पेहरे जाथे या फेर भगवान के चरन मा चढ़ाय जाथे । ओसने किसिम के आखर - खुंटी – कारक आखर ला गुथ लेथें । इहीं छत्तीसगढ़ी भाखा ला सुन्दर चुक - चुक ले, आखर खुंटी ले मुँडी ला कोर के सँवारे जाथे । आवव हमन येला सँवारन । आज हमर छत्तीसगढ़ महतारी हा ये जगती, धरती भर मा बगरे । अपन गियान के अनुसार अपन आखर ले हम छत्तीसगढ़ी - ब्याकरण - खण्ड ला सिल्हो - सिल्हो के तियार करे हावन । हम लकड़ी - फाटारुपी आखर - शब्द ले बुद्धिरुपी बिधना, बसला, रापा, कुदारी ले मयारुपी गारा, पानी अउर गुड़तुर खुदरी, माटी - मिंझरा के माता के भाखारुपी घर, कुरिया - काठा बनाबोन । ते कतेक सुग्धर महेल बनहीं ? तेकर मजा ला झिंन पूछव । आवव आखर - खुंटी कारक के सब्बो झन आनन्द लेवन ।

1 . छत्तीसगढ़ी भाखा मा सबले आगू आखर - खुंटी के कर्ता, फेर कर्ता ले करम अउर आखिर मा क्रिया ला राख के मीठ - मीठ सुलसुलहा बोले के लईक गोठ बनाय जाथे

जइसे : -

सुनीता पुस्तक पढ़त हवय ।

( एमा सुनीता कर्ता हे, पुस्तक कर्म अउ पढ़त क्रिया । )

में गाना गावत हों

( एमा में कर्ता, गाना कर्म अउर गावत क्रिया हे । ) आदि ।

2 . आखर - खुंटी ला कइठन ' हर आदि हा बाँट ( विभक्त कर ) देथे

जइसे : -

मैं हर रस्ता ला रेंगत हावँव ।

मैं हर गाड़ा ला फाँदत हों । आदि ।

ए मेर छत्तीसगढी गोठ मा ' हर ' आए हे, इही तो विभक्त करे बाला हे । अइसन अउर विभक्त बाला ला खाल्हे देखव ।

 1 . हर ( ने ) :  - इहां हर हा कर्ता मा लपटे ( चिपके ) हे ।

जइसे : -

चिन्मय हर खुडवा ( कबड्डी ) खेलथे   हर घर जाबे का ?

ओ टूरा हर अभीच्चेच हाट ले अइस हे । आदि

2 . ला ( को ) : - एहर कर्म के काम करथे ।

जइसे : -

मोला कबड्डी खेले ला नइ आवय । ।

हमन ला कहाँ जाना हे ?

तोला काली इस्कुल नी जाना है । आदि ।

3 . ले ( से ) :

1 . एखर ले अलग - बिलग ( अलगाव ) बोध होथे, ये अपादान कारक शब्द हे |

जइसे : -

ओखर ले मेहर होसियार हों ।

मोर संग ले ओ दूरिया गे ।

मोर कोती ले ओ गवाँगे ( मर गे ) । आदि ।

2 . इही ' ले ' शब्द ल दू घाँव ' लेले ' ( हिन्दी के लेलो ) केहे मा ओकर अरथ बदल जाथे ।

जइसे : -

एक जोड़ी चट्टी अउर लेले

आ तो बासी खा लेले

ले ले ! तें एको कनी काम अउर कर ले । आदि

3 . ले के बाद ' के ' जोड़ देहे ले अरथ ( हिन्दी के लेकर ) अउर दूसर किसिम ले बदल जाथे ।

जइसे : -

तें रोटी - पानी लेके कहाँ चल दे रे ?

तें जाना रे, दुकान ले गुड़ लेके आबे ।

तें ओला लेके जाबे रे ? आदि ।

4 . के ( का, के, की ) : - ये हा सम्बन्ध कारक शब्द के बोध कराथे ।

जइसे : -

गायत्री परिवार के जम्मों मन श्री राम शर्मा आचार्य के बेटा एँ ।

आज के लइका मन काकरोच बात नी मानय ।

दे विद्यापीठ के लइका मन बड़ होशियार एँ । आदि ।

5 . बर ( को, के लिये, हेतु ) : - ये हा सम्प्रदान कारक शब्द के बोध कराथे ।

जइसे : -

मोर बड़े टूरा बर कूहूं जगा छोकरी खोजना हे गा ।

मोर गोड़ बर चाँदी के सुग्घर साँटी लेदे न जी । आदि ।

6 . मा ( में / पर / पै ) : - ए हर अधिकरन कारक शब्द हे ।

जइसे : -

गाँव मा घर नीहीं, खार मा खेत नीहीं

तोर घर मा काली पहुना भेजबोंन बबा ! ते बनही गा ?

मोर मन मा देव बिराजे कोन जानही । आदि ।

7 . हे, ए ( है ) : - ए ला बाक्य मा परयोग - 1 एमा थोर कुन निहारो । ओ एसने

किसिम मा हावे हू - बा - हू - ब ।

जइसे : -

दे टूरा लईका मन जावत हे

दे नोनी देकरे हे

राम देकरे नाम

नोट : - 1 . हे के परयोग संबोधन कारक शब्द ( हिन्दी के हे, अजी, अहो, अरे ) के रूप मा भी किये जाथे

जइसे : -

हे भगवान ! मोला बचा ले ।

हे परभू ! तें बड़ दयालु हस ।

हे माता दाई किरपा छाहित हे । आदि ।

2 . ए ( ये ) के परयोग कहूँ ला इसारा करके बताय बर भी करथें ।

जइसे : -

टूरा लइका मन फालतू ऐं ।

खंभा के बिजली हर नी बरे ।

मंदिर बड़ सुग्घर बने हावै । आदि ।

8 . तको ( वे भी ) : - येखर परयोग बड़ सुलसुलहा गोठ मा गोठियाय जाथे कभू - कभू

जइसे : -

तको आ रहीस ।

तको मन खईन गा ।

फलानी के बेटी तको गे रीहिस ।

ओखर बेटी तको आ रहिस । आदि ।

9 . जन ( जी ) येहा आदर सचक शब्द आय, बाक्य के आग या पाछ लगाय जाथे । जंगल पट्टी मा ये भाखा के गोठ पूरा फैइले हे । जे नंगते गुड़तुर लागथे ।

जइसे : -

काय जन ?

उहाँ गे रीहिन का जन

ओखर बरात जाबो का जन

परसार के बडटका मा जना हे का जन । आदि ।

10 . घलो / घलोक ( भी ) : - छत्तीसगढ़ मा कुन्हू - कुन्हू जगा अलग - अलग ए शब्द के परयोग होथे ।

जइसे : -

ओमन घलो आईस की नीही गा ?       

अभीचेच ले तहूँ घलोक आगे बाबू !

ओहर रईपुर गेच रहिस घलोक ? आदि ।

11 . दाऊ : - सम्मानी मनसे जात बर ये शब्द ला संबोधन कारक शब्द के रूप मा गाँव मा गोठियाय जाथे ।

जइसे : -

जाना गा दाऊ

दाऊ ! एक कनी मोरो काम कर देगा ।

दाऊ ! मोरो लइका ला तोर फटफटी मा एक कनी बइठार ले ।

दाऊ ! मोर लइका ला एक कनी राखबे का ? आदि ।

12 . जे / जेन / जिन ( जो ) : - ये हर ओसने हे जे पहिली बताये गेहे ।

जइसे : -

जिन - जिन मन ऊहाँ गीन हैं, ओमन कभू नी लहूटीन हें ।

जेन जईसना कर ही ओईसना भरही ।

जे जानहीं उही जनाही । आदि ।

13 . जम्मो ( सब / सभी ) :

जइसे : -

जम्मो ला खा डारे काय रे ?

भगवान जम्मो ला मया करथे ।

जम्मो हा चातर होगे बाबू ।

जम्मो ला अटका दे । आदि ।

14 . जम्मो के जम्मो ( सब के सब ) : - पूर्णता ला बियक्त करे बर येला बताय गेहे ( जेमा कुछूच नी बाँचे हे ) एखर परयोग किए जाथे ।

जइसे : -

जम्मो के जम्मो मन आज हाट गीन है ।

जम्मो के जम्मो काज ला ते बिगाड़ दे रे

जम्मो के जम्मो ए टूरा खाय डारिस रे । आदि ।

15 . लंग, मेर, करा ( पास ) : - ए ला बाक्य मा परयोग - 4 मा थोर कुन निहारो । ओ एसने किसिम मा हावे हू - बा - हू - ब ।

जइसे : -

तोर लंग अउर मोर मेर ।

ओकर करा अउर काखर पास ।

तोर मोर दूनों लंग आदि ।

16 . संग ( साथ ) :

जइसे : -

दसोदा दाई संग किसन - कन्हैया हा साछात रथे ।

दाई तोर संग पीछू - पीछू महूँ जाहूँ ।

ददा तोर संग गंगा नहाय ला महूँ जाहूँ । आदि ।  

नोटः - समाज शास्तर के अनुसार हर मील मा बोली, भाखा, रहन - सहन, खान - पान, जिंनगी जीए के तौर - तरिका बदल जाथे एकरे सेती एसने फरक जाथे तेला इही हमर रचना मा दिखाय गेहे हे अउ, अउर, झिन, घला, घलो, घलोक कहि के गोठियाय जाथे काबर की बोली हर जघा - जघा एक बरोबर नी बोले जाय हमर छत्तीसगढ़ मा येला धियान दे बर हे ।