समास = सम + आस । अर्थात् समास ( गोठलुकवा ) के अरथ होथे , संक्षिप्त अउर उत्कृष्ट कथन ।
परिभाषा : -
1 . दू या दू ले जादा आपस मा संबंध राखे बाला शब्द मन ला मिला के जब एक नावा सारथक अउर संक्षिप्त शब्द के निरमान किये जाथे , तब उन शब्द मन के मेल ला गोठलुकवा ( समास ) कथें । ।
2 . दू या दू ले अधिक शब्द मन ला , उनकर बीच के शब्द मन या ( अव्यय ) या विभक्तिमन के लोप करके , मिला के जब कुन्हू स्वतंत्र शब्द के रचना किए जाथे त इही संयोग ला गोठलुकवा ( समास ) कथें ।
जइसे : -
रसोई बनाय के घर ला हम रसोईघर भी कह सकत हन ।
सीता - राम शब्द हा सीता अउर राम दू शब्द मन ला मिला
के अइसे बनाय गेहे कि उनकर बीच के अउर शब्द के ओमा लोप हो गेहे । अइसने परीक्षा - फल शब्द हा परीक्षा के फल शब्द मन ला मिला के अइसे बनाय गेहे कि उनकर बीच के के विभक्ति ( शब्द ) के ओमा लोप होगे हे ।
सामासिक शब्द : - गोठ - लुकवा ( समास ) के नियम मन ले बने नवनिर्मित संछिप शब्द - समूह या समास के ल ले बने नवनिर्मित संछिप शब्द - समूह ला सामासिक शब्द / सामासिक पद कथें । एला समस्त पद भी कथें । समास के क्रिया होय के बाद शब्द मन ( या अव्यय ) या विभक्ति मन के चिन्हा ( परसर्ग ) हा लुप्त हो जाथे ।
जइसे : -
सीता - राम अउर परीक्षा - फल हा सामासिक पद आय ।
एसने अउर शब्द राजपूत , रातोरात , जन्मरोगी आदि भी है ।
समास विग्रह : - सामासिक पद के शब्द मन ला फरियाय के रीति अर्थात् ।
सामासिक पद के शब्द मन के संबंध ला बताय बाला रीति ला समास विग्रह कथें ।
जइसे : -
सीता - राम सामासिक पद के समास विग्रह होही , सीता अउर राम ।
परीक्षा - फल समासिक पद के समास विग्रह होही , परीक्षा के फल ।
नोट : -
समास के उपयोग थोरकन मा जादा ला बताय के उदेश्य ले किये जाथे । दू या दू ले जादा शब्द मन के समस्त पद ( सामासिक शब्द ) बनात समय अक्सर संधि के नियम मन ( पाछू के पाठ मा बर्नित हे ) के भी पालन होथे । लेकिन संधि अउर समास मा थोरकन मौलिक अन्तर हे । जिहाँ संधि मा दू ध्वनि हा मिल के एक तिसरा ध्वनि के निरमान करथे , उहें समास मा कोन्हू नावा ध्वनि के निरमान नी होवय , बल्कि उनकर बीच के अव्यय ( शब्द मन ) या विभक्ति के लोप हो जाथे ।
समास रचना के पद
समास के रचना मा दू पद होथे :
1 . पहला पद ला पूर्वपद कथें अउर
2 . दूसरा पद ला उत्तरपद कथें ।
सामासिक पद पूर्वपद उत्तरपद समास विग्रह
कमलनयन कमल नयन कमल जइसे नयन
त्रिलोक त्रि लोक तीनों लोक के समूह
यथाविधि यथा विधि विधि के अनुसार
गोठलुकवा ( समास ) के भेद :
सामासिक पद हा दू या दू ले जादा पद ले मिल के बने होथे । ओमा पूर्व पद , उत्तर पद , उभय पद अउर अन्य पद में से एक ठन के परधान होय के आधार से समास के वर्गीकरन किए गेहे ।
समास
पूर्वपद - परधान , उत्तरपद - परधान , उभयपद - परधान , अन्यपद - परधान
( अव्ययी भाव ) ( तत्पुरुष कर्मधारय द्विगु ) ( द्वन्द्व ) ( बहुब्रीहि )
नोट : -
ए परकार से चरचरा के रूप मा हमन गोठलुकवा ( समास ) के कुल 6 भेद मानथन :
1 . द्वन्द्व समास
2 . द्विगु समास
3 . कर्मधारय समास
4 . तत्पुरुष समास
5 . अव्ययीभाव समास
6 . बहुव्रीहि समास ।
1 . द्वन्द् समासः - जे समास मा दूनों पद के परधानता होथे , जेमा जोड़े बाला अव्यय शब्द ( संयोजक शब्द ) अउर / अथवा / या के लोप हो जाथे अउर संयोजक शब्द के जघा मा ' - ' चिन्ह समासिक पद मा लग जाथे , ओ समास ला द्वन्द् समास कथें । ए समास के समास विग्रह करत बेर ओमा अउर / अथवा / या संयोजक शब्द लगाय जाथे ।
जइसे : -
समास विग्रह समस्तपद ( सामासिक पद )
भाई अउर बहन । भाई - बहिनी । गुरु अउर चेला । गुरु - चेला ।छोकरा अउर छोकरी । छोकरा - छोकरी ।कहा अउर सुनी । कहा - सुनी । इक अउर तीस । इकतीस । राम अउर लछमन । राम - लछमन । आज अउर कल । आज - कल । आदि ।
नोट : -
अइसने अउर कई ठन उधारन हे जइसे इहाँ - उहाँ , पाप - पुन्य , अन्न जल , खरा - खोटा , ऊँच - नीच , राधा - कृष्ण , सीता - राम , लेन - देन , बेद - पुरान , हार - जीत आदि ।
2 . द्विगु समासः - जे समास मा पहिला पद हा संख्या वाचक विशेषण , अउर दूसरा पद हा संज्ञा होथे अउर जेकर समस्त पद से कुन्हू समूह विशेष के बोध होथे , ओला द्विगुसमास कथें ।
जइसे : -
समस्तपद ( सामासिक पद ) समास विग्रह
त्रिलोक तीन लोक के समूह ।
पचपेड़ी पांच ठीन रुख समूह ।
चउराहा चार झन के समूह ।
दुपहर दु ठीन पहर के समूह ।
नवरात्रि नव ठीन रात के समूह ।
शताब्दी सौ ठीन अब्द ( साल ) के समूह ।
अठन्नी आठ ठीन आना के समूह ।
चौमासा चार महिना के समूह ।
नवग्रह नवों ग्रह के समूह ।
त्रिफला तीन ठीन फल के समूह ।
नोट : - अइसने त्रिभुवन , पंचपात्र , पंचवटी , दशमुख ( दस ठीन मुँह के समुह ) , चौमासा , त्रिवेणी , पंचतत्व , दुसूती आदि जम्मों शब्द मन द्विगु समास के उधारन हे ।
3 . कर्मधारय समास : - जे समास के उत्तर पद हा प्रधान होथे अउर दूनों पद हा विशेष्य - विशेषण या उपमेय - उपमान शब्द मन से मिल के बनथे अउर दूनों पद मा एकेच कारक के विभक्ति चिन्ह आथे , ओला कर्मधारय समास कथें ।
जइसे : -
चन्द्रमुखी सामासिक पद मा चन्द्र शब्द हा उपमान अउर मुखी शब्द हा अपमेय हे , जेकर समास विग्रह चन्द्रमा जइसे जेकर मुख हे होही । अइसने मुनिवर सामासिक पद मा मुनि शब्द हा विशेष्य अउर वर शब्द हा विशेषण हे , जेकर समास विग्रह मुनि मन मा श्रेष्ठ होथे ।
अइसने लौहपुरुष , गुरुदेव , भलामानस , पिताम्बर ( नीला हे जेन अम्बर अर्थात् ओनहा ) , नीलकमल , महापुरुष , कमलनयन , चरनकमल , नीलगगन , नीलगाय , कालीमिर्च , महादेव , शद्धधर्म , देहलता , घनश्याम आदि सब्बो हा कर्मधारय समास के उधारन है ।
नोट : -
1 . जब पहला पद अउर दूसरा पद मा संबंध बताय बाला पद हा लुप्त हो ताथे तभो मध्य पद लोपी कर्मधारय समास बनथे ।
जइसे : - दहीबरा दही मा बोराय बरा ।
पर्णकुटी पर्ण ( पत्ता ) मन ले बने कुटी ।
2 . जिहाँ पूर्वपद अव्यय अउर उत्तरपद संज्ञा होथे , लेकिन दूनों मिल के संज्ञा बन जाथे , उहाँ भी कर्मधारय समास होथे ।
जइसे : - कुसंग , निरासा , दुर्वचन आदि । येखर समास विग्रह होही
कुसंग कु + संग
निराशा निः + आशा
दुर्वचन दुः + वचन
इहाँ कु , निः अउर दुः हा अव्यय हे अउर संग , आशा अउर वचन संज्ञा ।
3 . जिहाँ दूनों पद विशेषण होथे उहाँ भी कर्मधारय समास होथे ।
जइसे : - काला - पीला ( काला अउर पीला ) ,
खट - मीठ ( खट्टा अउर मीठा ) ,
शीतोष्ण ( शीत अउर ऊष्ण ) आदि ।
नोट : - ये हा द्वन्द्व समास ले आने होथे । द्वन्द्व समास मा सामासिक पद या दूनों पद हा संज्ञा होथे । लेकिन कर्मधारय समास मा सामासिक पद या दूनों पद हा विशेषण होथे ।
4 . तत्पुरुष गोठलुकुवा ( समास ) : - जे समास मा सामासिक पद मन मा अरथ की के दृष्टि से पहिली पद गौण अउर उत्तरपद हा परधान होथे , ओला तत्पुरुष समास कथें । येमा दूनों शब्द मन के बीच मा आय बाला परसर्ग ( आखरखुंटी / कारक / विभक्ति चिन्ह ) मनके लोप हो जाथे । ये समास के विग्रह मा कर्ता कारक के विभक्ति ला छोड़ के सब्बो कारक के विभक्ति मन के उपयोग होथे । येमा एक ठीन अउर विशेष बात है कि ये समास मा पहिला पद हा प्रायः संज्ञा लेकिन गौण होथे ।
जइसे : -
तुलसीदासकृत - तुलसीदास जी के द्वारा कृत / रचित ( करन - से / केद्वारा )
तुलसीचौरा = तुलसी के चौरा ( संबंध - का / के / की )
हवनकुरिया = हवन बर कुरिया ( सम्प्रदान - बर / खातिर / के लिए ) आदि ।
नोट : - समास विग्रह मा जे कारक परगट होथे उही कारक बाला समास होथे । ओकरे बर कारक विभक्ति के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छ : भेद हावय :
1 . कर्म तत्पुरुष समास : - ये समास मा कर्म के विभक्ति ' ला ( को ) ' के लोप हो जाथे ।
जइसे : -
शिल्पकार = शिल्प ला करे बाला ।
सरगप्राप्त = सरग ला प्राप्त ।
बिघ्नहरता = बिघ्न ला हरे बाला ।
जसप्राप्त = जस ला प्राप्त । आदि ।
2 . करन तत्पुरुष समास : - ये समास मा करन कारक के विभक्ति ले / द्वारा
( से / के द्वारा ) ' के लोप हो जाथे ।
जइसे : -
मुंहमाँगा = मुंह ले माँगे हुवे ।
तुलसीकृत = तुलसी के द्वारा कृत । ।
कालीदासरचित = कालीदास द्वारा रचित ।
मनचाहा = मन ले चाहे हुवे ।
मदमात = मद ले माते । आदि ।
3 . सम्प्रदान तत्पुरुष समास : - ये समास मा सम्प्रदान कारक के विभक्ति ' बर ( को / के लिए ) के लोप हो जाथे ।
जइसे : -
हाथघड़ी = हाथ बर घड़ी ।
रंधनीकुरिया = राधे बर कुरिया ।
पाठशाला = पढ़े बर शाला ।
गुरुदक्षिना = गुरु बर दक्षिना ।
रस्ताखरचा = रस्ता बर खरचा ।
मालगोदाम = माल बर गोदाम ।
देशभक्ति = देश बर भक्ति ।
सत्याग्रह = सत्य बर आग्रह । आदि ।
4 . अपादान तत्पुरुष समास : - ये समास मा अपादान कारक के विभक्ति ' ले ( से ) ' के लोप हो जाथे ।
जइसे : -
करजामाफ = करजा ले माफ ।
देशनिकाला = देश ले निकाला ।
बलहीन = बल ले हीन ।
पथभ्रष्ट = पथ ले भ्रष्ट ।
बंधनमुक्त = बंधन ले मुक्त । आदि ।
5 . संबंध तत्पुरुष समास : - ये समास मा कारक के विभक्ति ' के / ( का / के / की ) ' के लोप हो जाथे ।
जइसे : -
गंगाजल = गंगा के जल ।
राजकुमार = राजा के कुमार ।
देवस्थान = देव के स्थान ।
रजापूत = राजा के पूत ।
देशवासी = देश के वासी ।
लखपति = लाखों ( रुपिया ) के पति
बईलागाड़ी = बईला के गाड़ी ।
बईलादौड़ = बईला के दौड़ । आदि । ।
6 . अधिकरण समास : - ये समास मा अधिकरन कारक के विभक्ति ' मा ' ' उपर ( में / पर / पै ) ' के लोप हो जाथे ।
जइसे : -
आपबीती = अपन उपर बीते ।
मुड़ीपीरा = मुड़ी मा पीरा ।
निशाचर = निशा ( रात ) मा किंदरइया ।
धियानमगन = धियान मा मगन ।
बनबासी = बन मा बास करे बाला ।
नोट : - नत्र तत्पुरुष समास : - जे समास मा पहला पद निषेधात्मक होथे अउर ओला अभाव या निषेधात्मक के अरथ बाला बनाय बर उत्तरपद के आगू मा अ / अन् जोड़े जाथे , ओ समास ला नञतत्पुरुष समास कथें ।
जइसे : -
अधर्म = अ + धर्म ।
अनंत = अन् + अन्त ।
आनाचार = अन् + आचार ।
अनादि = अन् + आदि ।
असंभव = अ + संभव ।
असभ्य = अ + सभ्य ।
नोट : - कुसंग , दुर्वचन , निराशा आदि हा नञतत्पुरुष समास नी होवय बल्कि कर्मधारय समास होथे । येमा पूर्वपद हा अव्यय अउर उत्तरपद हा संज्ञा होथे । दूनों पद मिल के संज्ञा बन जाथे । येमा अ / अन् उपसर्ग नी जोड़े जावे
5 . अव्ययी भाव समास : - जे समास के पूर्वपद हा अव्यय होथे साथ ही मा ओकरेच अरथ हा प्रधान होथे अउर ओकर मेल से बने पूर्ण समस्त पद ( सामासिक पद ) हा क्रिया - विशेषण अव्यय के काम करथे , ओ समास ला अव्ययीभाव समास कथें ।
जइसे : -
सामासिक पद विग्रह
आजन्म जनम भर
प्रतिदिन दिन - दिन
भरपेट पेट भर के
यथाशक्ति शक्ति के अनुसार । आदि ।
नोट : - इहाँ आखरी उधारन मा यथाशक्ति सामासिक पद मा यथा शब्द हा अव्यय हे अउर ओकरेच अरथ हा प्रधान है । येखर पूरा सामासिक पद हा क्रिया - विशेषण अव्यय के काम करत हे । ओखरे बर यथाशक्ति हा अव्ययी भाव समास होही । कभू - कभू संज्ञा अउर अव्यय मन के पुनरुक्ति ( दू बार उपयोग होय ) होय ले भी अव्ययीभाव समास होथे , लेकिन ये जरूरी है । कि ओकर परयोग क्रिया विशेषण के जइसे होवय ।
जइसे : - घर - घर , हाथों - हाथ , दिनों - दिन , रातों - रात , आपे - आप , मने - मन , बीचो - बिच , तीरे - तीर , एका - एक , पल - पल , हारी - बिमारी ( संज्ञा मन के पुनरुक्ति ) अउर धीरे - धीरे , फटा - पट , धड़ा - धड़ , पास - पास ( अव्यय मन के पुनरुक्ति ) आदि । येसनेच अउर कईठन उधारन हे ।
6 . बहुब्रीहि समास : - जे समास मा ओकर सामासिक शब्द के दूनों पद में ले । कुन्हू पद हा प्रधान नी होवय अउर दूनों शब्द हा मिल के एक विशेषण बनाथे , जेहर कुन्हू तीसरा अलग सांकेतिक अरथ मा संज्ञा के बोध कराथे , ओला बहुब्रीहि समास कथें ।
जइसे :
सामासिक पद समास विग्रह
पीताम्बर पीत हे अम्बर ( वस्त्र / ओनहा ) जेकर ओ अर्थात् श्रीकृष्ण ।
दशानन दश हे आनन ( मुड़ी ) जेकर ओ अर्थात् रावण ।
सुलोचना सुन्दर हे लोचन ( आँखी ) जेकर ओ अर्थात् मेघनाथ के पत्नी ।
लम्बोदर लम्बा हे उदर ( पेट ) जेकर ओ अर्थात् गणेश ।
दुरात्मा दुष्ट आत्मा बाला अर्थात् कोई दुष्ट ।
पंकज पंक ( चिखला ) मा जन्में हे जो अर्थात् जे कमल ।
मंदबुद्धि मंद हे बुद्धि जेकर ओ ।
सपत्नीक सहीत हे पत्नी के जो ओ ।
बारहसिंगा बारह सिंग हे जेकर ओ ।
तिरंगा तीन रंग हे जेकर ओ अर्थात् भारत के राष्ट्रध्वज ।
चन्द्रमुखी चन्दा जइसे मुंह / चेहरा हे जेकर ओ अर्थात् एक सुग्घर नारी ।