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बर - बिहाव ( विवाह )

हमर पुरखा के रिसी - मुनी मन गहन चिन्तन - मनन ले सोचिन कि ये जिनगी ला बने किसिम ले चलाय खातिर का करे जाय तब चार आसरम ( आश्रम ) बनाय गीस । पहिली हे ब्रह्मचर्य , गिरहस्थय , बानपरस्थ , संन्यास जेला 25 - 25 बच्छर के बाँट दिन घर - परवार गिरहस्थय ला कईसे बने । किसिम ले सुसंकारी बनाय जाय , चलाय जाय कहिके इही ला बने समझीन अउर ओला एक सुग्घर महेल बताईन । बिहाव - बि + हाव येखर मायने ये होथे कि बिशेष किसिम के भार ( उत्तरदायित्व ) ला बहन करना ' एक परकार ले विवाह हा पति - पत्नी के करार हे ' । विहाव के मतलब केवल लईका जनमई नोहे ये , भरी जिनगी ला कईसे बने तौर तरिका ले चलाय जाय अउर परवार मा आदरस ( आदर्श ) कइसे किसिम ले स्थिपित किया जाय । सोलह संस्कार ले सबले बने महान संस्कार रिसी मुनी मन बिहाव ला बताईन हे इहीं संस्कार मा रही के सरी दुनिया ला जाने जाथे कि मनसे के उपयोगिता कतिक , कहाँ अउर कोन करा हे । येखर नेक ठन उधारन ला देखब ।

1 . चार बेद छय शास्त्र उन्नीसवाँ पुरान मा बिहाव आसरम ( आश्रम ) ला योग साधना कहीन ।

2 . मनु भगवान तो नर - नारी ओकर लईका संग ला पूरा मनसे ( मनुष्य ) कहिस हे अउर दूनों चरितवान संसार के धनसम्पत्ति , ऐश्वर्य , सुख के सहज ही भण्डार ला पालेथे ओ मन कहिस । ।

3 . विष्णु पुरान मा तो नर - नारी ला देवता मानिन हे अउर कहिन हे कि असार संसार हा बिहाव ले सारवान बन जाथे ।

4 . भरथरीकृत मा केहे गे हे कि पति के बिगन सुख नी हे , सरग नी हे धन नी हे अउर पति के बिगन ये चोला अबिरथा हे ।

4 . पद्म भूमि मा केहे पति - पत्नी मा जम्मो तिरीथ समाय हे जे तुरुत फल देथे अउर दुख ले उबर जाथें ।

5 . कला बिधौ मा पत्नी हा धरम मंत्री हे , मीत अउर सब्बो कला के चेली बताय गेहे । बिहाव के बिगन मनसे चोला हा अधकचरा , अधुरा हावै , तभे तो भगवान राम , किसन कन्हैया शंकर , बिसनु ( विष्णु ) इहाँ तक की देवी - देवता , रिसी मुनी मन घलोक गिरहस्थय आश्रम के मरयादा के साधना ले मुक्ति , ऋद्धि सिद्धि , सरग ला पाये बर सहज योग कहि दिन है ।

6 . कबीर तक हर तो ये आसरम ला सहज योग कहि दिस हे । योग मतलब हे जोड़ना गियानयोग , करमयोग , भगतियोग , राजयोग , हठयोग येसनेच 84 योग हे दू आत्मा के मिलन ही असली योग है ।

7 . वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्री राम शर्मा आचार्य तो ' गिरहस्थय अईसन तपोवन हे जेमा संयम , सेवा अउर सहिष्णुता के साधना करे ला पड़थे ' सही मायने मा तो बिहाव करके जिनगी चलाना तो संन्यासी कस होथे । बिहाव ला सहीं मान के चले निमगा भोग - बिलास नी माने ले येकर सहीं सुख अउर दूसरा सुख नी हे संसार मा । नर - नारी ला मितान कस जिना ही तो असली सुख अउर मजा ( आनंद ) हे । नर हा तो एके कुल ला तारथे पर नारी तो दूनों कुल ला उबार देथे । धरती माता नारी हे , भारत माता नारी हे , छत्तीसगढ़ माता नारी हे , बेद माता नारी हे , देव माता नारी हे , विश्व माता नारी हे , देव शक्ति नारी हे नव दुर्गा नारी हे , शक्ति के शक्ति नारी हे , इहाँ तक की घर के माता घलोक हमर नारी है । ये हमर भारती संस्कृति के देन हवै कि एक घाव अगिन , ध्रुवतारा अउर पाँच पंच के साखी मा सात फेरा किंजरे के नियम ला जनगी भर निभाथे का सात जनत तक हम दूनों परानी एक संग रहन कहिके किरिया खाथें ये सज्जिब हे , लबारी नोंहे सुभिता ले चलते रही जेमा ये बर - बिहाव ले मनसे मन आदरस थापना कर सकथें , बिहाव संसार मा मनसे जात के होथे कुन्हू पशु , चिरई - चिरगन के सुने हो का कि ऊँकर बिहाव होईस हे कहि के । दू प्रान मिल के एक प्रान बनथे ओ हे नर ( डौका ) अउर नारी ( डौकी ) सबले ऊँचहा प्रानी मा गिने जाथे तभे तो दू आत्मा के मिले ले एक नवाँ आत्मा के जनम होथे उही आत्मा हर देवता बन के ये धरती ला सरग बनाथे । ये संसार हा वसुधैवकुटुम्बकम् हे । विवाह बेदो मा आठ ठन बताय गेहे । ।

1 . ब्रह्मबिहाव  ये ओ बिहाव हे दूनों कोती ( पक्ष ) ले सहमती , सुन्ता ले सुयोग बर ले कैना के बिहाव निश्चित करथें ये उही बिहाव कहाथे , बैदिक बिहाव घला कथें येला ।

2 . देवबिहाव तईहा - तईहा ये बिहाव होवे काबर की कुन्हू सेवा - भाव ले कारज धारमिक काम मा ( विशेष धार्मिक अनुष्ठान ) के मुल्य खातिर अपन दुलोरी कुमारी कैना ला दान कर देवै येला देव बिहाव कथें ।

3 . प्रजापत्यबिहाव कुमारी नोनी के बिगन सहमति के ये बिहाव होवे बाँट बिराज नी कर सके ( अविभाज्य ) बर्ग ले करई ला तो इही बिहाव कथें । ।

4 . आर्षबिहाव कुमारी कैना के कोती ले ओखर किमत्त देके ( येसने गउ दान करके ) बिहाव करई हर येला आर्षबिहाव कहाथे ।

5 . असुर बिहाव कैना ला बिसा के बिहाव करई हर ये बिहाव कहाथे ये नीच जात मन या छोटे जात के मन मा होते रथे ।

6 . गान्धर्व बिहाव परिवार ला बिगन पूछे कैना अउर वर अपन मन पसंद ले कुन्हू मंदिर मा जाके अपन मर्जी ले जयमाला पहिरिक - पहिरा होथें अउर माँग मा सेंदुर लगा लेथें ओला आज के युग मा परेम बिहाव कथें , येमा सुख गंज दिन तक नी रहे , छोड़िक छोड़ा हो जाथे , बिदेस मा ये बिहाव के परथा हे । आज कल गंजे चलन हावे । पढ़े - लिखे मन करत हावें येला अब गाँव मा ये बिहाव ला ' उड़री बिहाव या उड़रिहा बिहाव ' कथें ।

7 . पैशाच बिहाव कैना ला जबरन दारु पिया के या बेहोशी करके या निंदरा मा मानसिक दुरबलता के लाभ उठा के ओखर संग तन के संम्बध बना लेना अउर बिहाव रचा के अपन घरवाली बनालेथे ये उही बिहाव मा आथे ।

8 . स्वयंबर बिहाव ये ओ बिहाव हे जेमा बड़े - बड़े सूरबीर योद्धा मला कैना के बरन करे बा बल ( ताकत , गुन ) के मुताबिक रही उही ला ओकर ढेटू मा जयमाला पेहरा देथे । आज समें के अउर धन बरबाद ला देख के ये बिहाव आदर्श बिहाव ला चुनत हावें । आज एक ठीन अउर आदरश बिहाव जुड़े हैं ।

9 . आदरश बिहाव ( आदर्श विवाह ) समे , स्थिति के मुताबिक बिगन खर्चा के जाति - समाज या सरकार अपन खर्चा ले जघा - जघा करत हैं । येखर ले लोगन मा जागरुक आवत हे कहीं धनी - धनवान मन घलोक येसने बिहाव करें , अपना ले ते फायदा अउरे होही । छत्तीसगढ़ मा आज ये किसिम के बिहाव हर तको चलन हे बड़े बिहाव , नान्हे बिहाव , जयमाला बिहाव , धुमधाम के बिहाव . दहेज बिहाव , मंगनीबरनी , लगीन पूजा बरात , पठोनी बिहाव आदि