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वर्ग शब्द

पोषाग (कपडालत्ता)

इतिहास बताथे कि हमर आदि मानव मन तको बड़ सौक करत रहीन । ओमन पोषाक के रूप मा चाकर - चाकर पाना ले अपन तन ढकत रहीन हे पाना के गहना बना के अपन काया ला सुग्घर दिखे कहि के सजाते रहीन है । ये मनसे तन जबले होस संभालिस हे तबले ये अनमोल तन ला ढके के खातिर ओनहा के उपयोग होवत हे । ऊनी , सुती , रेसमी बरन - बानी के ओनहा बना के अपन ये काया ला सुग्घर किसिम ले कट - कट के पेहेरे ओढे सजा , सवारे जात हे । आज फिलमी दुनिया ला देख के तो अउरे नावा - नावा पोषाग सुरु होगे हे जेला नावा - नवा कट कथें । आज सिलेमा देखिन की दुसर दिन ओखर नकल करके ओसनेच कपड़ा सिला के पेहेर डारथें । तो पहिली जमाना मा नर - नारी , लकन - पिचकन नोनी - बाबू , बहू - बेटी आदि मन का का पोषाग के गंज सौकिंन रीहिन हे तेला देखब । ।

1 . नारी जाति मन के पोषाग : - लुगा , साया , पोलखा , फूंदरा , गजरा , झाबा , कुर्ती पोतली , पोंनतरा , लिगोटी , करधनी , मोतिम , पोतिया , फीता , उरमाल , पागा , गुप्ती , बाडी , ओली आदि ।

2 . जुवान अउर बबा मन केः - धोती , कुरता , पटका , पंछा , फथोरी , सलूखा , बंडी , कमीज , जाकिट , आसकीट , कोट , पज्जी , कच्छा , पितामड़ी , जीन्स के बरन बानी के ओनहा , टोपी , तीरसठ , पचत्थर , मुंड मा पागा , पागा मा चोगी , हाथ मा सटका , कोकानी लउठी , कनिहाँ मा चकमक , तस्मा आदि ।

3 . बिधवा मईलोगिन केः - सादा रंग के लुगा , चाँदी के पटला , पर आज कल फेसनुबल हे वहुमन सौंक मा सोहागिन ले कम नी हे फिलमी दुनिया ले ।

4 . लईका मन के : - हापट , सरट , बनियईन , पज्जी , तीरसरट आदि ।

5 . नान्हे लेकी टूरी अउर नोनी मन के : - झबुवा , लुगरी , स्कट , बलाऊज , फराक , सुटकुपईजामा , पज्जी , बनियान आदि ।

6 . मोटियारी मन के : - आज के युग हा बड़ा बिचित्तर हे काबर कि ये फिलमी दुनिया हा जम्मो अभी के होन - हार नोनी - बाबू पढ़ईया - लिखईया मला बिगाड़ के रख दिस हे । मोटियारी मन के नगतें डाट जनम पतला - पतला झेंगझेंगहा सेलवार कुरता देहे दिखावत , लम्बा फराक अउर चिकमिकी लुगरा पोलखा ( बुलाउज ) फेसनेबुल बरन - बानी आज के टूरी - टूरा मन के पोसाग के मारे कोन ट्री हे , कोन ट्ररा हे तेकर तको चिन्हारी नी हे आज के जमान मा ।