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वर्ग शब्द

दोंना ( पत्ते का कटोरी )

भगवान के लीला ला कोन हा पार पा सकत हे , ओखर चरित्र तो अनोखा हे रिषी , मुनि , संत - महात्मा , योगी , यती - सती आदि मन थाह नी पा सकीन हे । जीव अउर प्रकृति मिल के संसार के रचना करीन ओ अपन लईका ( संतान ) बर बड़ चिन्ता - फिकिर मया कर ओखर जिनगी जिये बर नेक ठन जीनिस अउर जिये के उम तियार करीस अउर कहिस कि मोर संतान ला एको कनीक तकलीद झिंन होवे । छईयाँ , फर , फूल , लकड़ी , पत्ता , बनस्पति , नदिया , नरवा , डोंगरी - पहाड़ , सराय , समुंदर नेक ठन अनगिनत के रचना रचिस । उही मा एक ठन रुख के पाना या पत्ता तको हे , जेकर ले गरीबहा मन थारी मानके ओमा जेवन जीनिस खाथें , उपयोग करते रहीन । तइहा - तइहा ले चले आवत हे कि पत्ता के दोना - पतरी के थारी ला धारमिक काज हुमन धूप मरनी - हरनी आदि मा अड़बड़ेच आरुग ( शुद्ध ) माने गेहे काबर की ये कुदरुत के देन है । ये जीनिस हा दोना - थारी ओखर हरथे समें मा उपयोग जलसा या फेर मांदी मा करते आत हे । आज अवादान जनसंख्या के बाटूर खातिर जंगल धीरे - धीरे उरकत जात हे तेकर सेती या फेर आज के बिगियान के जुग के कारन सनपना , कागद , थर्मोकोल आदि के थारी - थरकोलिया , दोना कस कटोरी बना के उपयोग मा लानत हैं । पर ओ पत्ता के पार नी पा सके । पतरी मा बईठ के जेवन कलेवा करे के मजा अउरे हे , तन - मन गदगदा जाथे । जतीक चाकर - चाकर पान हे तेकर दोना - पतरी खिलाई करथे या काड़ी या सिकुन ले खिल के बना लेथें । आज येखर कुटिर उद्योग जघा - जघा खुल गेहे ते मशीन मन ले तको सिलाई करत हे ते नंगते तुरते दोना - पतरी बना लेथें । अउर हाट - बाजार , दुकान मन मा निकार लेथे । तो आवव कोन - कोन पत्ता ले दोना - पतरी बनाय जाथे तेला एक कनी खाल्हे कोती निहार लेथन ।

जैसे : - सिहांरीपान , परसापान , बरपान , बोदल , सागोन , सरईपान , पीपरपान , खंमहार , केरापान , कोरिया , तालपान , तेदूंपान , महुंआ , बदाम , फरहदपान अउर चाकर - चाकर अनगिनत रुख - रई के पाना आदि ले पतरी - दोना बनये के बेचें जाथे ।