छत्तीसगढ़ मा नेक धरम के मनसे हे जेमन अपन दुख - पिरा ला बाँटे खातिर इहाँ मितान बधथें , मितान बर अपन जान दे तको तियार रथें । भगवान राम के छत्तीसगढ़ ला आजी - आजा के गाँव - घर मानथें अउर रमायेन काल के मीत ला याद करथे । ये दू शब्द ले बने हे ' मित + तान = मितान ' केहे ले बड़ गुडतुर लागथे ये एक दूसर के दुख - सुख के भागीदारी के बंधन हे , जे समें समें मा बजरा काम आथे अउर मनसे के इही दुख - सुख , पीरा - हीरा मा परछो होथे । कथें कि भगवान राम - सुगरीव अउर भगवान किसन - सुदामा ले ये परथा चले आवत हे । जे मनसे चोला मन आज तक निभावत हे । ये गाँव मा अबड़े देखे ला मिलथे । येमा जात - पात के भेदभाव नी रहे अपन - अपन जैवरिया टूरी - टूरा या मईलोगिन , या पुरुष वर्ग मन घलोक येला मित - मितान बधथे आगी , पानी अउर सूरज , चंदादेव , ध्रुवतारा , गाँव के सिहनहा - सिहनहीन अउर दाई - महतारी के गवाही ( साक्षी ) मा , बस दूनों के मन मिलगे ते जम्मों मिलगे , तिहार - बार , तीज - तिहार आना - जाना अपन भाव ले मेवा - मिठाई , चउर - दार , सब्जी के लेन - देन खान - पान चलते रथे । येखर आत्मीयता अउर बड़जाथे जे भुल - चुक हा याद देवाथे । अइसन परेम शहेर मा कहाँ पाबे पर आज कल शहेर मा येला सहेली , दोस्त कथे पर ये थोरको बेरा के परेम हावै । तो आवव देखव का का कथे थोकुन महाप्रसाद , गंगाजल , गंगाबारु , गजानूँग , गोरधर , तुलसीदल , भोजली , जवाँरा , करोंदा , गोंदा , दावना , मोंगरा आदि ।