भगवान कतीक दयालु हे । हर मनसे बर जम्मो जोरा करके रखे हे , पर नून - नमक नी लगे मनसे चोला ला । आये दिन प्रभू के हिनता करते रथे कि भगवान हमला ये नी दिस , ओ नी दिस कही - कही के , रोना - रोते रथे , मेंछराथे , दुख बताथे रईथे , तबले लाज - बीज नी लागे । संसार मा सब प्रानी ले सुख - सुबधा मनसे ला मिले हे तबले मनसे जात ला एको कनी धीरज तो थोरकुन घलोक धर लेतिन कहाँ पाबे । रात - दिन आपा - धापी मा मचे हावे । आज हमर जनसंख्या अतिक ये कदर के अबड़े बड़त हे का बताववँ , येमा रोक नी लगहीं ते दुनिया के मनसे बा धरती के भूयाँ हा 1x1 फुट के जघा मिल पाही , बस होगे संसार के गुजारा । उही परसे अभी धरती मा गाँव मन के बाटुर 9 - 10 लाख के होगीस होही । आज पारा ले तो गाँव बनगे , गाँव ले शहेर , शहर ले राज , राज ले देश , देश ले संसार बनगे तबले मनसे ला सुख नी है । पशु - पंछी मन तो खोह मा , गुड़ा जठा के घलोक रहिथे उही ओकर बा घर - दु वार हे । लोग तो आज घर - कुरिया बनाय , सवरे , सजाय बा ही होड़ मा लगे हे । इही खातिर आज आपा - धापी मचे हे । धर - दुवार बनाना घलो जुरुरी हे । पर देखी - सिखा नी करे के अपन आड़ी - पूँजी के मुताबिक ही घर बनाय ले । फायदा हे । जेसने ये तन मा नेक अंग मिल के काया बने हे ओसने ये घर हे नेक ठन भाग मिलके घर - कुरिया कहाथे । जेमा मनसे जात मन अराम से जिंनगी जी के रहिथें , आज इही पुस्तक मा थोरकुन लिखे के परयास करे हों ।
1 . मईघर : - मईघर परमुख कुरिया हे जेमा देव - धामी , पूजा , धान के कोठी घला एक तीर मा बनाय जाथे । इही मा मईधारन के खंभा रहिथे कहिरीन मन हाथा - छापा छापथें इही मा । कुरिया के जेकर घर कमी रथे तो इही मा सुतना बइठना घलोक करथें ।
2 . डेहरी ( देहरी ) : - ये डेरौठी सींग दरवाजा हे , घर के परमुख दरवाजा ला देहरी घलो कथें कथे नीका ' जइसन - जइसन घर - कुरिय ओइसन - ओइसन खेरपा ' हर मनसे अपने आड़ी - पूँजी ले इही डेहरी ला रंग - रोगन करके सजाथें कि हमर घर के सुन्दरई हा बड़ जावे ।
3 . सूते के कुरिया ( बेडरुम ) : - इहीं मा डइकी - डौका के जठना - पिवड़ा रहिथे , घर भर के मन इहीं सूतथे , उठथे , बईठथे । आज कल पढ़े - लिखे घर जटना हा दूनों के ऐके मा सटे रथे जेला संगरेबिस्तरा ( डबलबेड़ ) कथें ये फेंसन होगे हावे आज के दुनिया मा डोकरी - डोकरा मन घलोक समे के मुताबिक वह मन सतथे - बइठथें ।
4 . गुड़ी घर : - जेकर नंगते देव - धामी पोसे रथे या मानथे ओखर घर तो अपन रेहे बसे के घर ले थोरेक दमरिया मा ये घर ला बनाय जाथे ओमा डांग - डोली रखे रथे । ये गाँव मा बइगा घर के नाम ले जाने जाथे ।
5 . रधनी खोली ( रसोईघर ) : - आज काल पहिली कस पढ़े - लिखे नकरिहा मन आगी के चुल्हा बरई ला पसंद नी करें गंज सुखियार होगे हैं । ये हर साग पान , जेवन आदि राधे - बनाय के कुरिया हे पूरा मईपिला बर इहीं जेंवन बनथे सुग्घर किसिम के । आज कल चूल्हा ऊँचा मा रहीथे कारन की लकड़ी के कभी के खातिर गेस ले जेवन बने बर जम्मो जघा सुरु होगे हे , येमा समे अउर धन के बचत होथे ।
6 . पानीमाचा ( पनियाँ ) : - पानी - काँजी ला साफ - सुथरा राखे के खातिर पनीमाचा बनाय जाथे ये अकसर रधनीकुरिया मा ही रथे एक ऊँचा आँट बना के राखथे ये 2 - 3 फुट उपर होथे काबर की घर के नान्हे लईका मन चिभोर झिन दे कहिके , मईलालो पानी ला पीये ले तन बने नहीं रही जर - बुखार आते रही ।
7 . जोरा कुरिया : - इही खोली मा पुरा घर - परवार के आरुग खाय - पीये के जोरा रहीथे चऊर , दार , नून , मिरजा , मशाला , आलू , गोंदली , घींव , गुण , तेल फूल आदि । येला भण्डार घर घलो कथें पूरा चम्मास भर के समान इहीं मा राखे जाथे समान कुरिया घलोक इही ला कथें ।
8 . अवजार खोली : - ये खोली ला अपन मुताबिक नान्हें - बड़े बना लेथें गाड़ी के जोरा , गाड़ी खूटा , नागर - कोपर , सुमेला , जोता , चक्की , चक्का आदि के जोरा राखे जाते ये हर किसनहा घर मा तो अक्सर पाये जाथे ।
9 . बईठक कुरिया : - हमर भारतीय संस्कृति के देन हे कि पहुना ला देवता माने गेहे , ओकर आदर सत्कार हा देवता के आदर सत्कार कथें । ये ओ कुरिया जेमा सगा - सोदर , अवईया - जवईया मन के पहिली ठौर रथे , येखर बिसाव बर आगु ही बनाय जाथे काबर की जे मन पहिली आहीं ओ उहीं ठुक - ठुक ले अतरें अउर ओखर आदर बने किसिम ले होते रहाय । ।
10 . गुड़ी घर : - जेकर नंगते देव - धामी पोसे रथे या मानथे ओखर घर तो अपन रेहे बसे के घर ले थोरेक दमरिया मा ये घर ला बनाय जाथे ओमा डांग डोली रखे रथे । ये गाँव मा बइगा घर के नाम ले जाने जाथे ।
11 . कोठी : - गाँव - घर मा हर किसनहा मन साल भर के अनाज रखे ला परथेच , खई , या फेर बनिहार - बुथियार , बीज - भात बर एकदम जुरुरी होथे तेकर सेती पटाव के उपर या बड़े किसान मन एक खोली ला कोठी बना लेथें ये शहेर मा नी होवै काबर की उहाँ कहाँ खेत - खार है ।
12 . कोठा : - आज बिगियान के युग हमागीस हे कुन्हू आरुग नी रही गे हे , कहाँ पाबे आज के दुनिया मा कोठा - काठा नई हे , अब तो बड़े - बड़े डेरी मन हथिया लिन हे , कहुँ मन तो अरछी - परछी मा गाय - गरु ला बाँध लेथे अलवा जलवा । दउँरी बा बईला तो नोहर होगे हे घर - घर छूछवाय ला लागथे कोठा नाम बरायन बाँचे हे , अब तो घर - अँगना गोबर ले कहाँलीपे - पोते जाथे छिरा छटका भर दे पाथें मईलोगिन मन जमो जगा तो सिरमीट के होगे हे भूयाँ हर ।
13 . कोठार ( खलिहान ) : - अनाज तो अनाज हे चाहे दलहन मा उरीद , लाख - लाखड़ी मूंग आदि के या धान के मिंजई - कुटई बा तो लम्बा - चौड़ा कोठार जरुरी हे काबर की दौरी नदागे हे ते टेकटर ले मिंजाई कर लेथें अपन ताकत केनुसार मा भूया ला बना लेथें , नान्हें किसान मन हरुना कोदो , कुटकी , डवरधान बो लेथें आज किसान जाने बड़े - बड़े कोठार होथे गाँव मा ।
14 . गोड़ा : - गोड़ा ओ भाग हे जे सिढ़ीया के खल्हे मा रहिथे जेमा नान - मुन समान जईसे कुदारी , रापा , सुमेला , जोंता खेती किसानी के समान घलो आदि राखथें ।
15 . गोर्रा : - ' अब गोर्रा नदागे - पहाट भगागे ' गाँव के गउटिया , जमीदार , पूँजी पतिमन करा बडे - बड़े गोर्रा रहाय दूध , दही , मही , लेवना , घीव एसनेच खाय बा मिलत रहीस कथे कि आशिष देवें ' दूधे का दूधे अचों ' । पहिली बरदी खोरे - खोरे रेगें कतकोन बड़े - बड़े रोग - रई येसने भगाते रहीस अब नवाँ – नवाँ= बिमारी पईदा होगे हे जे सुने ला मिलथे आज कल के लईका मन येला कहाँ जानथे कि गोर्रा का होथे । लोगन मन गऊ के धनी रहीन जम्मों सिरागे अब गोर्रा , दईहान के शब्द घला नदात हावे ।
16 . ढेंकी कुरिया : - आज ढेंकी तो हजागे पर चक्की गाँव - गाँव आगे हे , ढेंकी के चऊर ला आज के सुखियार मन नई पचा सकें काबर की ओमा बिटामीन गंजे रथे अउर चऊर हा खड़ - खड़े निकलथे । ढेंकी ले धान , दार आदि कुटे छरे जाथे । आज तो ढेकी दिखब मा बड़ मुसकुल हे गाँव मा ही देखे ला मिल सकत हे , आज जेला हमन ओखली कथन ।
17 . परछी : - घर के आगु - पाछू छपरी बने रथे ते घर के सुन्दरई अउरे बड़ जाथे । अवईया - जवईया मन इहीं थोरकुन बईठ के थिराथें । आज शहर मा परछी तो कमें मिलथे । हवा - गरेर मा इहीं रहे के अपन काया के रक्षा हो जाथे किसानी काम मा परछी जरुरीच हे अभी घलोक ।
18 . परसार ( बड़ाबरामदा ) : - परसार नाम ले पता चलथे कि येकर अकार बड़का हे , जेमा बईसका बईठ सकें , पटेल या बउंटिया मन करा परसार रहाय , अब तो पंचायती राज ले ये जम्मो हर नी हे ।
19 . आँट : - ये धर के तजबुती बा पाया के रूप हे येला हर घर गाँव मा बनाय जाथे , नहीं बनाहीं ते घर भसके के डर रहिथे । ये हा घर के आगू मा ही रहीथे । लम्बाई तो रथे पर चौड़ाई कम हाथ भर रहिथे उखरु बईठे मा येमा बने बनथे पूरा घर चुकले दिखथे ।
20 . दूवार ( अँगना ) : - जेकर घर मा दुवार हे ओकर घर के सुन्दरई येसनेच बने रहिथे जतीक अंगना बड़े रही ओतकच मनसे हमाहीं । गाँव हो या शहेर येला देखे ला मिलथे पर आज के जमाना मा शहेर मा येला कमे रखथे काबर की फुट के मुताबिक जमीन मिलत है ।
21 . घानीकुरिया : - पहिली जमाना मा हर तेली के घर मा घानी के कुरिया रहाय पर अब नी हे एक्का - दुक्का देखे ला गाँव मा कहीं - कहीं मिलथे । घानी के तेल ले आरुग तेल - फूल चूपरे ला मिले अब तो मिलाऊटी अउर नकली तेला आ गेहे मशीन ले पेरे जाथे । बिमारी ला नेवता देवई के बरोबर हे मिलाऊटी तेल हा ।
22 . तुलसी चऊँरा ( चौरा ) : - तुलसी ला तो परसाद माने गेहे , तुलसी चऊँरा तो हर परिवार मा पाबे येखर बिगन घर तो भूतहा घर कस हे येला देवी रूख के नाम ले जाने जाथे । ' तुलसी बिन्दा ' तुलसी के महिमा तो सबो परिवार जानथें । जिहाँ तुलसी के पौधा रही उहाँ तो भगवान शालिगराम के निवास रही भगवान के हर भोग मा तुलसी ला परसाद के रूप मा भोग लगाय जाथे येखर बिगन परसाद नी माने जाय चाहे कतकोन मेवा - मिठाई घलोक रहाय । तुलसी तो बजरा अचूक दवाई के काम मा आथे । आठो काल बारो महिना संझा बिहना ओखर दरबार मा दीया - बती ले आरती उतारथें अउर कथे हे महारानी तोरे कस हमर परिवार सदा दिन हरियर अउर अच्छा रहाय हँसी खुसी सुग्घर किसिम से हमर जिनगी बने चलते रहाय । गाँव मा आज घलोक कातिक महिना मा तुलसी चऊँरा करा अकाश दीयना बारथें ऊचहा बल्ली मा टाँग के , काबर की हमर पूरा परिवार हा ओखरे अँजोर ले हमर जिंनगी जगमगाते रहाय आठो काल बारो महिना । येमा घलोक बड़ जब्बड़ दर्शन लुकाय हे ।
23 . फुला , पठेरा ( आला ) : - ये छोटे कन रथे नानमून समान शिशी - उसी रखे मढ़ाय के काम मा आथे । येखर ढकना नी होय ये दंग - दंग ले उघरा रथे , येला पाखा ( दिवार ) मा खन के ( खोद के ) बनाय रथे या निकाले जाथे ।
24 . आलमारी : - हर घर मा आलमारी होथे । ये फूला के बड़े रूप में गरीबहा मन नान - कून अउर अमीरहा मन बड़का आलमारी बना लेथें । येमा जेवर , रपिया - पैसा जरुरी जीनिस रखे जाथे तारा - कुची बंद करके । आज कल तो बिहाव मा जुरुरी होगे हे कि बेटी बिहाव मा आलमारी देयेच ला परहिच कथें ।
25 . खिड़की ( रोशनदान ) : - आज के दुनिया मा घर - कुरिया मा अंजोर ( प्रकाश ) बने रहाय तभे बने लागथे । पहिली कुरिया - काठा मन चिमिक ले अंधियार रहाय , नाम बरायन खिडकी रहाय । हमर जमाना मा 52 दरवाजा के महेल नरहरदेव राजा हा कांकेर मा बनाय हे जे हा देखनऊंट रहाय , कहत लागे ओ महे मे नाम हा । स्वास्थ खातिर कुरिया मा आज हर घर मा अंजोर बर हर कुरिया मा एक न एक खिड़की जुरुर रहिथे । ।
26 . पोखर घर ( पयखाना ) : - पहिली जमाना मा कहाँ पाबे बहिर - बट्टा तो भाठा , बहिर मा ही पोखार जावें , पर आज तो एक जुरुरी होगे हे कि हर घर मा पोखार जघा बनाय के । शहेर ले नवाँ - नवाँ पढे - लिखे बहू - बेटी आ गेहें अउर । घलोक पोखार घर बनाय बा अनुदान देवत हे । तेकर सेती तो हर घर मा पोखर घर बने ला चालु होगेहे ।
27 . नहानी कुरिया : - पहिली तो कुँआ , नदिया , तरिया मा अभी घला गाँव कोती उघरा बदन नहाथे किसानी कमाई मा तो काम - बुता ले फुरसुद कहाँ मिलथे ये तो आज शहेर मा माड़ी उघारत लाज लागथे । टी 0 बी 0 अउर एल 0 सी 0 डी 0 देख के । नवाँ दुनिया हमागिस हे ते आज के नहानी कुरिया तो जुरुरी हे , उघरा देहें नहवई पसन्द नी हे आज सरकार नहानी कुरिया बनाय बा पंचायत के माध्यम ले अनुदान देवत हे गाँव - गाँव । घर मा ससुर , कुराससुर , सास , देवर देरानी - जेठानी आदि रईथें ।
28 . कोला - बारी : - बारी - बखरी हमर जिनगी ले जुड़े हे यह घर के एक अंग हे । नानकुन कोला - बारी पतरी कस होना जुरुरी हे , जेमा नार - बियार , चटनी खाय बर बंगाला , पदीनापान , धनिया , मिरचा , आदा हरथे जगा जा सके । पर आज जो कई मंजिला अउर एक सीधा बुलाक बन गेहे ते कोला बारी शहेर मा नी हे , गाँव - गोहड़ा मा आज घलोक कोला - बारी - बखरी देखे ला मिलथे । ।
29 . भाड़ी वाला बारी - बखरी : - ये ओ बारी - बखरी हे जेमा चारो कोती ले भाड़ी मराय रथे अउर भाड़ी मा चारो कोती ले डारा - पाना के पलानी लगे रथे काबर की माटी के पाखा के कारन ओदरे , भसके के डर रहिथे , ये गाँव मा तो हर कोठार , बखरी वाला मन घर तो पाबेच करथें । पर अभी पथरा , ईटा ले घेरा मरय जरुरी दिखे मा आथे ।
30 . कुँआ : - एक जमाना रहिस की कुँआ हर घर निस्तारी करे बा होय पर आज पानी के सोत ( श्रोत ) गहिंरागे हे काबर की खेती - किसानी बर बोरींग जघा - जघा पलाय बर होगे हे । हमर सरकार हा पानी के कमी के खाय पीये ला देख के चौक चौक मा गहीर - बोरींग खना देहे ' कुँआ के पानी सिरागे , तईहा के गोठ तीरा गे ' ।
31 . बावली : - राजा , महाराजा , सेठ , साहूकार मन पहिली जमाना मा घर गाँव ले लगे बावली खोदाय रहाय जेकर नहाय - धोय के निस्तार होते रहाय पर जघा के कमी के कारन ओ बावली पटा गे अब तो देखे - सुने ला घलोक नी मिले । बावली ओला कथें तरीया के छोटे रूप पर गंज गहीर रहाय ।
32 . पटाव वाला घर : - छानी के नीचे घर मा लकड़ी के पटाव रहाय ये बारो महिना बाता - बरन बर बने रहाय धुपकाला मा ठंड़ी अउर जुड़काला मा गर्मी जेकर ले स्वास्थ हा बने रहाय , येला दूमंजिला घर तो नी कह पावन काबर की रहना बसना उपन मा नई होवय धान - चऊर जीनिस रखे जाय । अब तो छतवाला घर ले बरनबानी के गर्मी जे निजात पाय बर बिजली ले चले कुलर , पंखा नेक सुबधा होगे हे ।
33 . दूमंजिला घर : - चूना , सिरमीट , लोहा - लाखा ले दूमंजिला घर बनाय जाथे जेमा रहना - बसना होथे । ये माटी के घर मा नई बने जल्दी अलहन , भसके के डर हे । दू - मंजिला के घर शहर में घरो - घर पाबे , रहना - बसना , किराया दे बर सुबधा होथे ।
34 . टाँड़ा : - घर - परवार मा समान ला गंज तो होइच जाथे तेकर सेती अबड़े दिन बर रखे बर टाँडा बनायेच ला परथे येखर ले समान टुटे - फुटे नीही बने साबुत रहीथे ।
35 . छानी ( छत ) : - छानी तो घर के मर्यादा हे बिना छानी के घर भंग - भंग ले दिखथे जइसन बिन ओनहा ले ये काया के मरजाद का रही कतकोन गहना - गठा पेहरा दे ओखर का मतलब है । पुरा गॉव मा खपरा छानी पाबे पर आज सुबधा ले छत वाला घर बनत जात हे ।
36 . ओरछा : - छानी ( छत ) के आगु वाला भाग ला ओरछा कथें ये छानी के पहिली भाग हे चम्मास भर इही ओरछा ले पानी गिरथे मन ला घलोक लुभाय डारथे रझ - रझ - रझ के संगीत के अवाज ले । पर आज तो शहेर मा मंजिल वाला घर ले ओरछा नी हे छत ले पानी निकासी बा पाईप लगा ले हैं ।
37 . पिछोत कुरिया : - समे परिस्थिति के मुताबिक घर के पिछोत मा नान मुन कुरिया - काठा जुरुही हे जेमा कभू - कभू जेवन बनाय या कई ठन काम आथे कहीं तो ओमा ढेकी घला गड़िया देथें । चूल्हा बारे बर लकड़ी घलोक इही पिछोत कुरिया मा पानी ले झिन फिजे कही के राख देथें । ।
38 . रेक : - ये घलोक समान बने अउर सरे नहीं कही के रधनी कुरिया मा
आँखी - आँखी मा देखे खातिर साग - पान बने रहाय कहीके चार गोड़ वाला लकड़ी या लोहा के बना के रखे ला परथे
39 . फीरीज ( फ्रीज ) : - आज बिगियान के युग खातिर साग - सब्जी मन बने ताजा रहाय ठंडा पानी बारों महिना पीये - खाय ला मीले कही के अब शहेर का गाँव मा पढ़े - लिखे नवकरियाहा , अमीरहामन अउर किसनहा अपन घर मा फीरीज बिसा के राखे ला लगगीन हे ।
40 . कुलर : - बिगियान के जुग हा सबला मोहाडारिस हे आज पहिली कस बाताबरन नी रहीगे हे लोग - लुगई सुखीयार बन गेहें । गर्मी के दिन मा नंगते गर्मी परथे येखर ले नीजात पायबर कुलर बिसा के लाने ला परथे ।
41 . बासिंग मशीन : - आज ये हा एकदम जुरुरी होगे हे समें के बचत होथे ।