देश के चोला गाँव मा बसथे , जे गाँव मा सिधवा , सोझहा अउर महिनती के बाना आरुग पहनावा हे । ददरिया हा दूसर लोक - गीत कस एक निचित ( निश्चित ) मातरा मा ( मात्रा ) नी होवय अउर न वर्ण ला सवारथे । स्वर लहरी हा हिरदे तरी के धोनी हावे , येखर शैली हा अलगेच पहिचान बना लेथे अउर हर मातरा , वर्ण के अन्तर रहिथे । ददरिया ला लोकगीत घलोक कह सकथन । हिन्दी मा ' लोक ' शब्द हा अंगरेजी के ' फोक ' शब्द के पर्यायवाची बन के ही आईस हे । येखर अरथ ये हे कि येसने लोगन मला ( साधरन मला ) बिशेष महत्त दे के ला कहिथें । दूसर भाखा मा हम कह सकथन कि ' छत्तीसगढ़ी के लोक छंद हा ददरिया हे अउर गाँवगीत हा रानी हे ' , ' सतसई मुक्तक काब्य ' हा येखर बने उदाहरन हे । ददरिया मा दूनों पंक्ति हा एक दूसर ले गुँथाय रईथेच , तेकर सेती श्रृंगार रस के जोरदार रिमझिम बर्षा होथे । सहीच मायने मा येला कहा जाय ते ' ददरिया हा गाँव के धनदौलत हे ' येखर बिगन मनसे मन गाँव - गोहड़ा मा सुन्ना परे रही येमा गाँव के जैवरिया टूरी - टूरा मन के स्वछन्द परेम भाव छलकथे । ददरिया के चार साखा होथे ( 1 ) साल्हो ( 2 ) ठाढ़ ( 3 ) गढ़हा ( 4 ) अलवाजलवा ( सामान्य ) ददरिया । येला ' जनगीत ' घलोक हम कही सकथन , काबर की येला नर - नारी ही गाथें , कुन्हू जानेवर नी गावे । येखर चार बिशेषता हावे ( 1 ) धुन ( 2 ) कथात्मकता ( 3 ) बार्तालाप शैली ( 4 ) दुहराव के शैली ।
> डॉ० रामचन्द्र राव येला ' थीरकन ' के ' सरल ' अउर ' तरल काब्य ' माने हे ।
> हजारी प्रसाद द्विवेदी लोक शब्द शहेर अउर गाँव के लोगन के गीत माने हे ।
> आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी येला ' ग्रामगीत ' माने हे ।
> पं० राम नरेश त्रिपाठी हा गीत के नामकरन ग्राम शब्द ले केहे हे अउर कहीस हे कि ये गीत मन गाँव के सम्पत्ति हे । हमर छत्तीसगढ़ी ददरिया मा जुवानी के झलक , रुप , परेम , मिलन - बिछुड़न ( बियोग - संयोग ) धारमिक नीति के बरनन रहिथे ।
> कर्नल गार्डन हा मानिस हे कि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के डोंगरी - पहाड़ ले जे बरन - बरन के पखना मा फोटू मिले हे ओ ये माने गेहे कि फोटू ( चित्रकला ) नाच ( नृत्य ) अउर संगीत 20 हजार बच्छर जून्ना ले आगर होही ।
> बेंगलर साहब ( अंग्रेज ) येहू हा रईपुर के दूधाधारी मठ के गजबे परसंसा अउर हमर छत्तीसगढ़ी ददरिया के खुबे बड़ाई करे रीहिस तभे एक घाँव कहे रीहिस कि ' मेहाँ तोला मुंदरी मा बँधाय कुची देवत हावॅव अउर में रईपुर के रहवईया हों , चंदा तोर दाई सुरुज तोर बाप , गढ़ लंका तौर मईके दुरुग तोर ससुरार ' येखर ले झलकथे कि वह हा ददरिया के कतीक परेमी रहीस होही ।
> रायपुर हैदरवंशी राजामन के लुहरी शाखा के राजधानी रहीस । रायब्रह्मदेव हा येला बसाय रहीस । तभे आज ओखरे नाम ले रायपुर पड़ीस हे ।
> राजा जगतपाल हा राजिम के मूरती ला थापे ( स्थापन ) करे रीहिस तभे तो नीतनाम हर दिन पूजा - पाठ , दर्शन - परसन बा 30 किलो मीटर ले आवे । ओखर सरधा भक्ति गजब के रहीस ।
> ददरिया हा मोर मत हे मुताबिक ' ओ परेम गीत हे , जे जरिया टूरी - टूरा मन बिहाव के पहिली अपन मयापिरा ला दूनों झन मा बाटिक - बाँटा होथें अउर मिलन के हिरर्द बिदारक पीरा के आरुगगीत ' हावे । गिरहस्थय मा निगेते साठ चुम्मूक ले लुका जाथे अउर अपन नवाँ जिनगी जिये के कला मा लग जाथें । अलग - अलग भाषा के , राज के अलग - अलग लोकगीत होथे । जतिक राज हे ओतिक लोकगीत । अपन - अपन राज मा गाए जाथे । ओसने किसम - किसम के हमर गढ़ के ददरिया लोक - गीत अपन ' नानकुन शिल्प बिदिया हे ' जेमा छत्तीसगढ़ के बने तौर ले ऐतिहासिक , धारमिक , पुरातात्वि , राजनईतिक अपन अलग पहिचान बानी ले बना थें । हमर माटी ला गर्व हे कि येखर हर ढेला के कन - कन मा कला के गुडतुर कंहर कंहरत हे । हमर हिन्दी साहित के काब्य मा नौ रस होथे , जेमे हमन सिंगार ( श्रृंगार रस ) के बात करथन । नारी जाति के हिरदे हा जनम ले एकदम लुदलुदा , मयापीरा के भाउसम - बेदना हा हर बेरा तरीया के पानी कस छलकत रईथे । हमर छत्तीसगढ़ी मा ददरिया हा एक परेमी अउर परेमीका ( प्रेमी - प्रेमिका ) मिलन के गीत हे , जेमा विरही के दुख के उद्गार होथे । बिचारी हा अपन पीरा ला आँसूढार के , सरी लुगरा के ओंछरा टप - टप भिगा के भाजी - पाला कस अईलाय परे रहिथे अउर मारे सूसक - सूसक के बिहना ले सँझा अउर पूरा रथिया ला काटते रथे । ओखर दुख के गोहार ला कोन सुने , कोन समझे , कोन माने , कोन ला बतावय । नोनी ला खाय ला भावे , न पिये ला , न सूते ला , न कुछू जीनिस सुहावे । रात दिन टकटकी अपन परेमी के याद मा भुकुर - भुकुर लगे रथे । आँखी - आँखी मा सहुँत खंजरी बूंदी , रेंगना , बुलत अउर चेहरा - मुँहरन हा झूलत रईथे । अपन मनेमन मा ददरिया ला गुनगुनातव गात रईथे ।
बटकी मा बासी अउर चुटकी मा नून । ।
मैं हा गावत हँव ददरिया तेंहा कान दे के सून । ।
दुखियान नोनी हा कथे कि में अपन बिरहा ला कईसे परगट करव कि तें मोला अपना लेबे । तबले घलोक मोर मन माने नहीं , मेंहा ये ददरिया गाय के परयास करथों । मोला तोर सुध मा कुछ नई सुहावे । रंधना - गढ़ना नीहे । बटकी मा बासी अउर चुटकी मा नून रख के खाये ला बईठे तो हों , पर का करव सुहावे नहीं । तबले ददरिया गावत हो तें कान लगा के सून ले सगा , संगी ।
डोंगरी के मंदिर मा कलश नीहेगा ।
अठोरिया होगे संगी तोर दरश नीहेगा । ।
मोर घर के तीर मा डोंगरी मा मंदिर है , पर कलश के कमी है । संगी ओसने किसम के मोर हिरदे रुपी मंदिर हा सुना है । जइसे अठोरिया बितगेहे तोर दरश , खोज - खबर नीहे ।
नवाँ सड़किया मा निकले ला गिट्टी ।
बड़दिन होगे जंवारा भेजे नहीं चिट्ठी ।
दुख के खातिर बिचारी का करे ? सड़क ता नवाँ बने हे आज तोर मोर चिन्हारी नवाँ हे परेम - रुपी गिट्टी निकर गेहे । अउर अबड़ेच दिन - बादन बीत गीस हे । एको ठन चिठिया तक नी भेजे हो । का बात हे ? का मोर खातिर घुसिया गेहो फेर या नराजी तो नोंहे ?
लोभ - लहर मोरो आगू - पाछू तीरे - तीर ,
अन्न - पानी ला तियागेवं तोरेच खातिर । ।
का बतांव संगी , संगवारी । मोर जंवरिया के पीरा ला तोर मया के लोभ - लहर हा मोर आगू - पाछू रात - दिन हलाकान करत हे , ते मोला दगा देबे ते मैंहा अन्न - पानी ला तोरच खातिर तियाग देहूँ ।
बाली हे उमरिया छाती मा मारे बान ,
पीरा कईसे सहों मोर निकरथे परान । ।
तोर मया के डोरी हा मोला अईसन कटकटा के बाँधे हे का बतावॅव ? निकरे नहीं देवे बैरी हा । मोर बाली उमरिया के छाती मा तोर परेम के बान हा बेधे हे का का कहाँव ? अउर ओ पीरा ला मैं कईसे सहन करों ? परान अबक - तबक निकरे बर तियार हे ।
बैरी कोयली कुके लीमवा के डारी ओ ,
मया मोर उले संगी नोहे ये लबारी ओ ।
का कहाँव संगी ? ये लीम के गाछ मा बैरी कारी कोयली हा मोर पिरीत ला घेरीभेरी भूले हों , तेला याद देवाथे । कुहूक - कुहूक कही - कही के मया हा तोर बर कोन - जनी कइसे अबड़ आगीस ? ते में नी जानवँ । ये गोठ लबारी नोहे सत हे ।
नवाँ रे लुगरा किनारी करले ,
में रईथो नगरी चिन्हारी करले ।
तोर मया हा मोला अईसल कायेल करडारे हावे , तेला कईसे कोन मुँह ले , कहों मेहाँ ओ ? तोरेच खातिर में आज चिकमीकी , छिटही , चाकर आँछी वाला लुगरा बड़े परेम ले आने हों । ते थोरकुन पेहेर के किनारी करले ओ । में हाँ गंजदूरिया नहीं , तोर गाँव तिर नगरी मा रईथों । थोरकुन चिन्हारी करले ओ ।
बागे बगीचा दिखेंला हरियर ,
गाड़ी वाला नी दिखें बधेव नरियर । ।
परेमीका अपन परेमी बर नरियर के मनौती मान के अबड़े बेरा ले रस्ता जोहते रथे । येमा सुतंत्र रूप गाय के रथे । समे के बदलाव के मुताबिक येला गाये जाथे । कन्ह येला टोपी वाला , मोटर वाल ला , टरक वाला , पान वाला , रेडियो वाला आदि नामों से पुकारा जाता है ।
पाँच के लगईया पच्चीस लग जाये ,
बिना लेगे नहीं छोड़ो पुलुस लग जाये । ।
तोर मोर परेम मा कतकोन अड़चन जो भी हो , तोर खातिर चाहे जो हो , पांच के जघा भले पच्चीस लोग पूर पारा लग जाये , सकला जाय । तेहाँ मोर हस अउर मेंहा तोर हों । बिगन लेगे ( बिहाव ) करे छोड़ो नहीं । चाहे अभी कतकोन पुलुस लगजाये ।
रस्ता ला रेंगे हलाये डेरी हाथ ,
जीबो मरबो संगी दुनों एके साथ । ।
का कहाँव , कोन ला बतावॅव ? एके जघा जनमेंन , पढ़ेन - लिखेन , बड़े होयेन , पर ये तोर खातिर परेम ले अईसे मोहाँगेहों , तेला कईसे गोठियावव ? हे मोर संगी - संगवारी हम ऐकेला नहीं हन । हम जीबोन । संग मा मरबोन । संग मा चाहे जो होजाय ।
छत्तीसगढ़ के ददरिया हा एक अईसन गीत हे , जे करा होत रही , गात रहीं अउर जेमन सुनत रहीं , ओ जुवानी टूरी - टूरा मन के तन - मन का ऐके जघा थीरके कईसे बईठे रही । भला ओ तो मन के गुदगुदी , गुड़तुर बानी मा माते मतवार कस किंदरत रहीं । अउर अपन संगवारी ला बिधुन होके खोजत फीरत रहीं ।
मेहाँ एक दिन नवरात परब मा मोर मन ला समझायेवँ । केहेवँ कि एकोकनी तहूँ घलोक कुछु तो कर ले रे मन , तब मन हा गुनगुनावे , गंगा के गोद , हिमालय के छईयाँ , सजल श्रद्धा - प्रखर - प्रज्ञा के तीरिया मा बईठ के एकठन ददरिया गाय के सुल हा भड़कीस
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी ,
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे ओ । ।
युग ऋषि के हावे , येहा तपस्थली ,
दया - मया , करुना के , महके ये कली ।
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी - - - ओ । ।
गायत्री के मंदिर मा , बाजे ला घंटी ,
गुरु केहे हे , मोर सात जनम गारंटी ।
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी - - - ओ । ।
शंख , चक्र , गदा , हंस के सवारी ,
पुकारत देरी हे , आवे तुरते महतारी ।
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी - - - ओ । ।
सन 26 ले बरथे , ये अखण्ड जोति ,
दर्शन ले बरे , बगबगा हिर्दे मोती ।
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी - - - ओ । ।
धरम के हे यज्ञ पिता , गायत्री हावे दाई ,
श्रीराम शर्मा , भगवती , बिपत पार हजाई ।
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी - - - ओ । ।
एक्कीसवी सदी के , हावे इहीं गंगोत्री ,
गियान के बतावे , परोसे अतरी - पतरी ।
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी - - - ओ । ।
परेम - भाव , दया - मया , के खान शांतिकुंज ,
सरी दुनिया ला , फैइलावे ओ परकाश पुंज । ।
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी - - ओ । ।
सब दुख मिटाही लाल ये मशाल ,
उगते सुरुज हावे केसरइया लाल ।
गंगा के गोद मा , गोंदा फूलगे दीदी - - ओ ।