छत्तीसगढ़ी मा बेरा के नंगते अक अरथ होथे बेर ( सूर्य ) बेरा , अउसर , समे , दर आदि हमर आगू मा एक ठन सवाल ( प्रश्न ) आथे कि ये एक ठन बेरा शब्द के कतीक ताकत हे येला कून्हूं पटके ( पछाड़े ) ला नी सकें , न कून्हों धर सकें न मोटिया सके न पोटार सके न सकेल ( समेट ) पाईन हे , बेरा के मरजाद ले सबों बधे हैं । सुरुज , पवन , पानी , आगी , चंदा , ब्रामांड के नछत्तर ( नछत्र ) अपन - अपन नियत समे मा आथे - जाथे ओला रोके के ताकत काकरो मा नी हे एक बात कह सकथन कि इही हा ' मरजाद ' घलो हे , न ओला टार सकें या हटा सकेंयेला । कतकोन झनकथे कि मोर बेरा बने नी चलत हे , मोर ऊपर का बेरा हमा गेहे , भगवान मोर बेरा ला बने नी बनाईस हे , मोला नी चिन्हीस हे , बनत काम हा बिगड़गे येमा काकर दोष हे ' बनथे ता अपन के बिगड़थे ता भगवान के ' बेरा तो बने हे खुदे आदमी हर अपन नियम - धियम के मुताबिक नी हे अउर दूसरा ला दोष देवत बतावत , गोहार करत हे , बेरामोर बर घुसिया गेहे ओ बरनबानी के गोठ गोठियाथें , ओ तो बड़ दयालु हे कथे नीका ' दूसर बर अइसन बिवहार कर जईसन पभू तोर उपर करे हे ' तो आवव इहीं बेरा , समें ( टाइम ) के गोठ ल गोठिया डारन । इही काल मन बेरा मन , समें मन तीन भाई होथे तीनों के येकर तो कई नाती नतरा हे जेला बने पोगरा के राखें हे , तो अवव देखन परमुख काल तीन परकार के है ।
1 अभिबेरा ( वर्तमान काल ) ।
2 पाछूबेरा ( भूत काल ) ।
3 अगमबेरा ( भविष्य काल ) ।
1 अभीबेरा ( वर्तमानकाल )
( अ ) सुभाव अभिवेरा ( वर्तमान काल ) में भात खावत हों - मैं भात खाता हूँ ।
( ब ) अपुरन वर्तमानवेरा : - में भात खावत हवँव = मैं भात खा रहा हूँ । आदि ।
( स ) पूरन वर्तमानबेरा : - में भात खा डारे हों = मैं भात खा लिया हूँ । आदि ।
2 . पाछू या पछम बेरा :
अ सुभावपछम बेरा : - में भात खायें = मैं भात खाया । आदि ।
ब अपूरन पछम बेरा : - मैं भात खावत रहेंव = मैं भात खा रहा था । आदि ।
स पूरन पछम बेरा : - मै भात खा डारे रेंहव = मैं भात खा चुका था । आदि ।
3 . अगम , अवइया बेरा :
1 . सुभाव अगम बेरा : - में भात खाहंव = मैं भात खाऊंगा ।
2 . अपूरनअगम बेरा : - में भात खावत रहहूँ = मैं भात खाता रहूँगा ।
3 . पूरन अगम बेरा : - में भात खादारे रहहूँ = मैं भात खा चूका रहूँगा ।
1 . वर्तमान बेरा के ( विस्तार ) इहाँ तो देखो :
वर्तमान बेरा ला बिस्तार ले गोठियाय लेथन मन धलो भर जाय तो आवव गोठ करलेन , वर्तमान , अभिबेरा मा कोनों काम के होना , पायेजाथे , जीवन जीनिस के सुभाव पता चलथे अउर येखर क्रिया अन्त मा थों ( थंव ) थे ( थय ) हो ( हंव - हवौ , हवंव ) अस , वे हस ( हवस ) आथे ।
जइसे : - मैं भात खाथंव ।
तैं कहाँ जाथस ।
ओहर गाना गाथय । आदि ।
वर्तमान बेरा हा तीन ठन होथें : - सुभाव वर्तमान बेरा , अपूरन वर्तमान बेरा , पूरन वर्तमान बेरा ।
( अ ) सुभाव वर्तमान बेरा : - येमा कर्ता के सुभाव अउर काज के पता चलथे ।
1 . प्रथम पुरुष एक वचन साधरण बाक्यः ( प्र०पु०ए०व०सा०बा० ) - येखर क्रिया के अखिर मा ( थंव , थओं , थों , आथय )
जइसे : - मैं भात खाथंव । मैं हाट जाथों ।
मैं रेगें बर सकथंव । मैं गीत गाथंव । आदि ।
2 . प्रश्नवाचक वाक्य : - अइसन गोठ बनाय बर कर्म के आगु पहिली या कर्ता ।
के बाद ' क ' के कई ठीन रूप रखे जाथे ।
जइसे : - मैं कइसे भात खाथंव ।
मैं कइसे मदरसा मा पढ़थंव । आदि ।
3 . नकारात्मक वाक्यः - गोठ बात मा नहीं बनाय ला क्रिया के पहिली नई , नी , लगा के क्रिया के थैव ला हटा के वंव ( वौं , वव ) जोड़ के बाक्य बनाय जाथे ।
जइसे : - मैं भात नी खावंव ।
मैं गांव के हाट नी जावंव । आदि ।
4 . आदेशात्मक वाक्य : - ये मा जब हम कर्ता के पहिली ' का ' अउर क्रिया के पाछू सकत हवौं ( हों हहँव ) लगाये जाथे ( जाथय ) तब आदेशात्मक बनथे ।
जइसे : - का में भात खा सकत हवौं या हों ।
का में हाट जा सकत हवौं । आदि ।
( क ) प्रथम पुरुष ( प्र० पु० ब० सा० वा० ) क्रिया के अन्त मा थन ' लगा के देखन ।
जइसे : - हमन भात खाथन ।
हमन जाथन । आदि ।
( ख ) प्रश्न वाचक : - कर्ता के पहिली या आगू मा ' का ' या कर्म के पहिली ' कइसे ' , ' कोन ' लगा के देखन ।
जइसे : - का हमन भात खाथन ?
का हमन कोन किताब बाँचथन ? आदि ।
( ग ) नाकारात्मकगोठ : - इही क्रिया के पहिली ' नी ' ' नई ' अउर छेव मा ' वन ' ' अन ' लगाके थोरकुन देखन घलोक ।
जइसे : - हमन भात नी खावन ।
हमन गाँव नई जावन । आदि ।
( घ ) प्रथम वाचक / आदे०वाक्य : - कारता ( कर्ता ) के पहिली ' का ' अउर क्रिया के बाद ( सकत , हन , हवन , सकथन ) लगा के ।
जइसे : - का हमन भात खा सकत हवन ? |
का हमन तोर गाँव के हाट जा सकत हन ? आदि ।
1 . द्वितीय पु० ए० व० सा० वाक्य : - येमा क्रिया के अन्त मा ' थस ' होथे
जइसे : - तें तें भात खाथस ।
तें तें हाट जाथस । आदि ।
2 . प्रश्न वाचक वाक्यः - येमा धलों करम कर्ता के पहिली ( कइसे , कोन , का ) जोड़ के एहर दू परकार ले बनथे अउर अपन आवाज ला ( ठहराव ) करके बदल देथे ।
जइसे : - कइसे तैं भात खाथस ? ।
तैं कोन गाना गाथस ?
का जिनगी के ठिकाना हे कथस ? आदि ।
3 . नाकारात्मक गोठः - क्रिया के पहिली ( नी , नई , झन ) लगथे ।
जइसे : - तैं के झन ला भात खावाथस ?
तैं नी जानस तबले आथे कथस ?
तैं नई आबे ( साधरण ) । आदि ।
( क ) द्वितीय पुरुष ब०व०सा०वाक्यः - क्रिया के अन्त मा ( था , थव , थौ ) । जोड़ के येला देखौ ।
जइसे : - तुमन अबड़ेच खाथा ।
तुमन भात खाथव ।
तुमन किताब पढ़थौ । आदि ।
( ख ) प्रश्न वाचक शब्द :
जइसे : - तुमन भात कइसन खाथव ?
तुमन कहाँ जाथव ? आदि ।
( ग ) अकबकाना ( अकचार्य बोधक ) शब्द के पहिली का आखर आथे ।
जइसे : - का भात खाथव ।
का कतीक खाहू । आदि ।
( घ ) नाकारात्मक बाक्य : - येमा घलो ( मत , झन , झि , झिन , झो ) लगा । के अउर क्रिया के अन्त मा ' वा ' जोड़े जाथे :
जइसे : - तुमन भात मत खावा ।
तुमन के झिन आये हो ।
तुमन झि जावा । आदि ।
( च ) आदेशात्मक वाक्य : - क्रिया के अखिर मा ( वा , वी , वव ) के बनाय जाथे ।
जइसे : - तुमन भात खावौ तुमन गावव । ।
चलव इहां ले जावौ । आदि ।
1 . तृतीय पु०ए०व०सा०वा०के गोठः - क्रिया के अन्त मा ( थे , थै ) लगाके । इहाँ थोरकुन देख लेथन ।
जइसे : - ओहर हाट जाथे ।
ओहर गाना गाथै । आदि ।
2 . प्रश्न वाचक : - क्रिया के पहिली ( का ) कइसे लगा के बाक्य देखो ।
जइसे : - ओहर का भात खाथै ।
ओहर का जाथै । आदि ।
3 . अकचाकाय बोधक ( आश्चर्य बोधक : - कर्ता के आगु ( का , कइसे ) लगा के देखन ।
जइसे : - कोन का चऊर के भात खाथे !
कइसे ओहर आथे ! आदि ।
4 . नाकारात्मक बाक्य : - क्रिया के पहिली ( झन , मत ) लगा के अउर आखिर मा ( ए , वय , वै ) जोड़ के देखो येला ।
जइसे : - ओहर झन भात खाये ।
ओहर मत गाना गावे । आदि ।
( क ) तृतीय पुरुष बहु० ब० सा० वा० के गोठ : - क्रिया के अन्त मा ( थे , थै , थंव ) लगा के ।
जइसे : - ओमन भात खाथें ।
ओमन गाना गाथै ।
ओकर संग हाट जाथंव । आदि ।
( ख ) प्रश्न वाच० नाकारात्मक : - आगु के गोठ मुताबिक येखरो उहीच हे ।
जइसे : - ओहर भात नी खाये ।
ओहर गीत नी गाये । आदि ।
( ब ) अपूरन वर्तमान बेरा : - अभी बेरा मा काम चालु रइथे अउर क्रिया के
अन्त मा हों ( हवौ , हवंव ) हन ( हवन , हावन ) हस ( हवस , हावस ) ह , हैं आथे ।
जइसे : - मैं भात खावत हवंव ।
तुमन भात खावत हवौ ।
कहाँ हाट जावत हवव
हमन कहाँ जावत हवन । आदि ।
1 . येमा तो प्र०पु०ए०व०सा०वा० गोठ : - क्रिया के अन्त मा ( मत ) हों (हवौं , हवँव ) आथे ।
जइसे : - मैं भात खावत हावँव ।
मैं हाट जावत हवौं ।
मैं हा खेत जावत हों । आदि ।
2 . प्रश्नवाचक , आश्चर्य बोधक अउर नकारात्क के नियम मुताबिक बनथे ।
जइसे : - तुमन का खेले ला नी जावत हवौं !
तुमन हाट नी जावत हवौं !
तुमन का भात नी खावत हवौ ! आदि ।
( क ) प्रथम पु०ब०व०सा०वा०के गोठ : - यहु मा क्रिया के छेव मा हन ( हवन हावन , थन ) जोड़े जाथे ।
जइसे : - हमन भात खावत हवन ?
हमन जावाथन ?
हमन हाट जावत हावन ? आदि ।
( ख ) अन्य वाक्य उपरोक्त नियम घलो लागू होथे : - पहिली कस इही मा ला होथे ।
जइसे : - हमन का भात खावत हवन ?
हमन का ऊहाँ जावन ? आदि ।
1 . द्वितीय पुरु०ए०व०सा०वा०के गोठ : - क्रिया के छेव मा हस ( हवस , हावर रहथस ) ला जोड़े जाथे ।
जइसे : - तैं भात खावत हस ।
तैं कहाँ रहथस ।
तैं कहाँ हवस । आदि
2 . प्रश्न वाचक नाकारात्मक अउर : - पहिली कस ( पूर्वानियमानुसा ) यहु घला । बनथे ।
जइसे : - तें कइसे भात नी खावत हवस ?
तैं हाट नी जात रहथस ?
तैं गीत नी गावत हवस । आदि ।
( क ) द्वितीयपु०ब०व०सा०वा० के गोठः - क्रिया के छेव मा हवौ ( हव , हवव , हो ) लगथे
जइसे : - तुमन भात खावत हव ।
तुमन हाट जावत हावव ।
तुमन गीत गावत हो । आदि ।
( ख ) पहिली नियम ला फेर देख लेवव खाल्हे कोती ।
जइसे : - हमन का भात खावत हवन ।
हमन का हाट जावत हवन । आदि ।
1 . तृतीय पुरुष एक व०सा०वा०के गोठ : - क्रिया के छेव हवै ( हे , हवय ) जोड के देखव ।
जइसे : - ओहर भात खावत हे ।
ओहर हाट जावत हवय । आदि ।
( क ) तृतीय पु०ब०व०सा०वा०गोठ : - क्रिया के छेव मा हवै ( हे , हवय ) घलो देखो ।
जइसे : - ओमन भात खावत हैं ।
ओमन हाट जावत हवय । आदि ।
( स ) पूरन वर्तमान बेरा : - येमा अभी बेरा मा काम पूरा हो जाय रइथे अउर क्रिया के छेव मा तो तालिका ला थोरकुन देखौ ।
प्रथम पुरुष
एकवचन । बहुवचन
दारे - डारे
हवन ,हवस
हों , हावंव
द्वितीय पुरुष
एकवचन । बहुवचन
दारे हौ दारिस
ह , हवौ ,
हावन , हेव ) हवव
तीन पुरुष
एकवचन । बहुवचन
दारिन हवै दारे हौं ।
दारे - हवै । ( हे , हवंय )
( हे , हवय )
जइसे : - 1 . मैं भात खा दारे हवों ।
2 . तूमन भात खा दारे हौं ।
3 . हमन भात खा दारे हन ।
4 . ओहर भात खा दारिस । ।
5 . रौं भात खा दारे हस ।
6 . ओमन भात खा दारिन हवैं ।
2 . पछम बेरा
वर्तमान के पाछू बेरा ला पछम बेरा कहे जाथे । येमा बीते बेरा मा काम - बूता पूरा होईगे रइथे अउर क्रिया के अन्त मा ( एं , एन , इन , रहेइस , रहेन ) या आथे येला खाल्हे कोती देख लेवव । ।
जइसे : - 1 . मै भात खाएं ।
2 . तुमन भात खाएं ।
3 . हमन भात खाएन ।
4 . ओहर भात खाइन ।
5 . तै भात खाए ।
6 . ओमन भात खाइस या रहेइस । आदि ।
पछम बेरा के तीन भेद होथे :
( अ ) सुभाव पाछम बेरा ।
( ब ) अपूरन पाछम बेरा ।
( स ) पूरन पाछम बेरा ।
( अ ) सुभाव पछम बेरा : - येमा बीते बेरा मा बुता होथे अउर कर्ता के सुभाव बोध कराथे ।
जईसे : - मैं भात खाएं ।
मैं गाना गायें । आदि ।
( 1 ) प्रथम पुरुष ए०व०सा वा० के गोठ : - येखर गोठ के छेव मा ' ए ' आ थे ।
जइसे : - मैं भात खाएं । मैं हाट गएं ।
मैं घर गएं । मैं जंगल गएं । आदि ।
( 2 ) प्रश्नवाचक नाकारात्मक गोठः - येमा घलो नी , नई आथे ।
जइसे : - मैं का भात नई खाएं ?
मैं गाना नी गाएं
मैं रायपुर नई गयें ? आदि ।
( 3 ) प्रथम पु०ब०व०सा०वा०के गोठ : - क्रिया के अन्त मा ' एन ' जोड़ के व्याकरण देखे जाथे ये गोठ मा ।
जइसे : - हमन भात खाएन ।
हमन गीत गाएन ।
हमन दूनो प्रानी हाट गेएन । आदि ।
( क ) द्वितीय पु०ए०व०सा०वा० के गोठः - क्रिया के अन्त मा ' ए या ' या ( की ) मात्रा जोड़ के देखे जाय ।
जइसे : - तें भात खाए ।
तैं हाट जाये ।
तैं चल देहे ।
तें ओ गोठ बताए । आदि ।
( ख ) द्वितीय पु०ब०व०सा०वा०के गोठ : - क्रिया के अन्त मा ' T ' आ के मात्रा लगा के या अया जो के देखव ।
जइसे : - तुमन भात खाया ।
तुमन खोया ला पाया ।
ओ हर गीत गाया ।
झटकून गऊकीन आया । आदि ।
( ग ) नाकारात्मक , आदेशात्मक वाक्य मा ( झन , मत , नी , नई , अउर रता ) जोड़ के खाले कोती देख लेवन ।
जइसे : - तुमन भात नी खाया ।
तुमन हमुला नई लाग ।
तुमन झन खाबे ।
तुम घर नी गय रता । आदि ।
1 . तृतीय पु०ए०व०सा०वा०के बने गोठः - क्रिया के अन्त मा ' इस ' ला जोड़ के देखो ।
जइसे : - ओहर भात खाइस ।
ओमन हाट गइस ।
ओ काकी कका संग चल दिइस । आदि ।
2 . तृतीय पु०ब०व०सा०वा के बने गोठ : - क्रिया के अन्त मा ' ईन ' जोड़ के खाल्हे देखो ।
जइसे : - ओमन भात खाईन ।
ओमन गाना गईन ।
ओमन पइसा पाईन । आदि ।
( ब ) अपूरन पछम बेरा : - येमा पछम बेरा हे काम - बूता जारी रथे , चलत रथे , अउर क्रिया के अन्त मा रहें , रहेन , ( रहेव ) रहा , रहिन , रहिस , रहेन आथे ।
जइसे : - मैं भात खावत रहें ।
हमन हाट जावत रहेन ।
तूमन भागत रहा ।
मोर टुरा - दुरी पांचवी पढ़त रहिन ।
ओ आवत रहिसे ।
हमन दाई घर गे रेहेव । आदि ।
1 . प्रथम पु०ए०वचन : - क्रिया के अन्त मा त , रहें , ( रहेंव ) लगथे ।
जइसे : - मैं भात खावत रहेंव ।
मैं गाना गात रहेंव ।
मैं ओकर संग रहें ।
मैं जंगल जात रहेंव । आदि ।
2 . प्रथम पु०ब०वचन के गोठः - क्रिया के अन्त मा ' त ' लगा के रहेन , रेहेन लगथे ।
जइसे : - हमन भात खावत रहेन ।
हमन चलत रेहेन ।
हमन ओला ओरपिट्टा छेकत रेहेन । आदि ।
( क ) द्वितीय पु०ए० वचन के गोठ : - क्रिया के अन्त मा रहेव ( रेहे ) लगथे ।
जइसे : - तैं भात खावत रहेव ।
तैं रेंगत रेहे । आदि ।
( ख ) द्वितीय पु०बहुवचन : - क्रिया के अन्त मा ' त , रहा ' लगथे ।
जइसे : - तुमन भात खावत रहा ।
तुमन सब गाना गावत रहा । आदि ।
( 1 ) तृतीय पु०ए०वचन : - क्रिया के अन्त मा त , रहिस ( रहीसे ) लगे ले बने बन जाथे ।
जइसे : - ओहर भात खावत रहीस ।
सोहन हाट जावत रहिसे । आदि ।
( 2 ) तृतीय पु०ब०वचन : - क्रिया के अन्त मा त , रहिंन लगथे ।
जइसे : - ओमन भात खावत रहिन । ।
फेंकारी मन भागत रहिन । आदि ।
( स ) पूरण पछम बेरा या पाछवा बेरा : - पछम बेरा मा काम - सूता घलो हो जाये रइथे अउर क्रिया के आखिर मा दारे रहें ( दारे रहेंव ) दारे रहेन , दारे रहेन , दादे रहें ( रहेव ) दारे रहा , दारे रहिस दारे रहिन ये जम्मो गोठ मा आथे।
( 1 ) प्रथम पु०ए०व० : - क्रिया के अन्त मा दारे रहेंव ( दारे रहें ) देहे रहेंव ( देहे रहें ) लगथे ।
जइसे : - मैं भात खा दारे रेहेंव ।
मैं तोला काली काँदा देहे रहें ।
मैं गाना गा दारे रहेंव रहे ।
मैं हाट चल देहे रहेन । आदि ।
( 2 ) प्रथम पु०ब० बचव : - येमा घालो दारे रहेंन , देहे रहेंन लगाय ले बड़ मजा आथे ।
जइसे : - हमन भात खा दारे रहेन ।
हमन हाट चल देहे रहेन । आदि ।
( क ) द्वितीय पु० ए० वचन : - क्रिया के आखिर मा ' दारे रहेव ' ( दारे , रहे ) लगथे ।
जइसे : - तैं भात खा दारे रहेव ।
तैं मोर ले पहिली गोठिया दारे रहे । आदि ।
( ख ) द्वितीस पु०ब०बचन : - क्रिया के अन्त मा दारे रहा , देहे रहा , लगथे ।
जइसे : - तुमन भात खा दारे रहा ।
तुमन मोला गारी देहे रहा । आदि ।
( 1 ) तृतीय पु०ए० वचन : - क्रिया के अन्त मा दारे रहिस , गये रहिसे आथे ।
जइसे : - ओमन भात रवा दारे रहिस ।
ओहर हाट गये रहिस ।
ओहर कहाँ जाये रहिसे । आदि ।
( 2 ) तृतीय पु०ब०वचन : - क्रिया के अन्त मा दारे रहिन , देहे रहिन , गये रहिन आथे ।
जइसे : - ओमन खा दारे रहिन ।
ओमन घर गये रहिन ।
ओमन साग - पान देहे रहिन । आदि ।
3 अगम बेरा
येमा आवइया या आने वाला बेरा या समें ला अगमबेरा कइथें , येमा काम - सूता घलो होने वाला रईथे पर क्रिया के अन्त मा हूँ , बे , रहा , रहूँ , रबो , रहिबो , रहिबोन , रबे , रइबे , दारे रहुँ , दारे रइबे आथे ।
जइसे : - मैं भात खा हूँ । ओमन गाना गावत रहीं ।
तुमन घर मा रहिहा । हमन तियार रबो ।
हमन गाना गावत रहिबो । पूजा करत रहिबोन । आदि
( अ ) सुभाव अगम बेरा :
( 1 ) प्रथम पु०ए०व०सा० वाक्य : - एमा कर्ता के सुभाव ला बोध कराईथे अउर क्रिया के अन्त मा ' हूँ ' आइथे ।
जइसे : - मैं भात खाहूँ । मैं गीत गाहूँ ।
मैं रेंगत जाहूँ । मैं गुरु बनाहूँ । आदि ।
( 2 ) नाकारात्मक बाक्य : - इही मा वर्तमान सुभाव प्रथमपु०एक वचन ' नी ' लगा के नाकारात्मक वाक्य प्रयोग होथे ।
जइसे : - मैं भात नी खावव । मैं खेलेला नी जावँव ।
मैं हा गाना नी गावँव । मै कबड्डी नी खेलावँव । आदि ।
( 3 ) प्रथम पु०ब०व०सा० वाक्यः - क्रिया के छेव मा बो०बोन , इबोन ' लगथे ।
जइसे : - हमन भात खाइबोन ।
हमन सीता फर खाबो ।
हमन खेले बा जाइबोन । आदि ।
( 4 ) नाकारात्मक वाक्य बनाय बर वर्तमान सुभाव के प्रथम पुरुष बहुवचन के नाकारात्मक गोठ के परयोग होथे अउर क्रिया के अन्त मा ' आन , आनव , लावन ' ) जोड़े जाथे तेला देखौ । ।
जइसे : - हमन ओकर संग नी आन ।
हमन हाट नी जावन ।
हमन ओला नी लावन । आदि ।
( 5 ) येमा तो क्रिया के अन्त मा आना जोड़ के अउर कर्ता के बाद ' ला ' जोड़े जाथे ता आदेशात्मक गोठ बनथे ।
जइसे : - हमला भात नी खाना हवै । ।
हमला हाट नी जाना हवै । आदि ।
( क ) द्वितीय पु०ए०वचन : - क्रिया के अन्त मा ' बे , इबे ' लगथे ।
जइसे : - " भात खाबे । तैं उपास रईबे ।
तैं हाट जाइबे । आदि ।
( ख ) द्वितीय पु०ब०वचन : - क्रिया के अन्त मा ' इहा ' लगथे ।
जइसे : - तुमन भात खाइहा ।
तुमन हाट जाइहा ।
तुमन गाना गइहा । आदि । ।
( 1 ) तृतीय पु०ए०वचन क्रिया के अन्त मा ' अही ' तो जोड़ के देखे जा सकथे ।
जइसे : - ओहर भात खही ।
ओहर हाट जही । आदि ।
( 2 ) तृतीय पु०बक्रिया केअन्त मा ' अहीं ' जोड़ के येला देखव ।
जइसे : - ओमन भात खहीं ।
ओमन अभी अहीं ।
ओमन हाट जहीं । आदि ।
( ब ) अपूरण अगम बेरा : - अबम बेरा मा काम - बूता जारी रइथे पूरा नी होवे रहे अउर क्रिया के आखिर मा ' रइहा , रबे , रबो , रही , रहीं , रहूँ ' आथे ।
जइसे : - तुमन कहाँ जावत रइहा ।
तैं हाट जावत रबे ।
हमन जावत रबो ।
ओहर जावत रही ।
ओमन जावत रहीं ।
मैं भात खावत रहूँ । आदि ।
नोट : - अपूरण अगम बेरा के कई ठन भाग मा बटाय हे ।
( 1 ) प्रथम पु०ए० वचन : - क्रिया के अन्त मा ' रहहूँ ' आथे ।
जइसे : - मैं हाट जावत रहहूँ ।
मैं भात खावत रहहूँ । आदि ।
( 2 ) प्रथम पु०ब०वचन : - क्रिया के आखिर मा रबो ( रइबो , रइबोन ) आथे ।
जइसे : - हमन भात खावत रइबो ।
हमन हाट जावत रइबोन । आदि ।
( क ) द्वितीय पु०एक वचन : - क्रिया के अन्त मा रबे ( रइबे , रहिबे ) आथे ।
जइसे : - तैं भात खावत रइबे ।
तैं हाट जावत रहिबे । आदि ।
( ख ) द्वितीय पु०ब० : - क्रिया के आखिर मा रइहा ( रहिहा ) लगथे ।
जइसे : - तुमन भात खावत रइहा ।
तुमन हाट जावत रइिहा । आदि ।
( 1 ) तृतीय पु० ए० वचन : - क्रिया के अन्त मा रही ( रइहि , रहही ) जोड़ के देखो ।
जइसे : - ओहर भात खावत रइहि ।
ओहर गाना गात रही ।
ओहर हाट जावत रहही । आदि ।
( 2 ) तृतीय पु० ब० वचन : - क्रिया के अन्त मा रहीं ( रइहीं , रहीं , रहहीं ) लगा के देखो ते मजा आ जाथे ।
जइसे : - ओमन ऊहाँ जावत रइहीं ।
ओहर पुस्तक पढ़त रहीं ।
ओहर हाट जावत रहहीं आदि ।
( स ) अगम पूरण बेरा : - अगम बेरा मा काम - बुता पूरा हो जाये रइथे अउर आखिर मा ( रहूँ , दारे रहूँ , दारे रबो , दारे रबे , दारे रइबे ) लगथे ।
जइसे : - मैं हाट गे रहूँ ।
मैं भात रवा दारे रहूँ ।
हमन आमा खा दारे रबो ।
तुमन गाँव ले आदारे रइबे । आदि ।
( 1 ) प्रथम पु०ए०वचन : - क्रिया के अन्त मा दारे रहूँ ( डारे रहूँ , दारे रहहूँ ,