हरेली
हरेली छत्तीसगढ़ के परिवेश और खेती से जुड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है ये उपाधि यूं ही नहीं मिली है इसे पाने के लिए यहां के किसानों ने कमर तोड़ मेहनत कि है बंजर धरती को अपने कड़ी मेहनत और पसीने से सींच कर धान उपजा कर नई मिसाल पेश की है। मेहनतकश किसान समय समय पर पूजा अराधना के माध्यम से भगवान से कृपा बनाये रखने की कामना करते है। इसी अराधना का पर्व है हरेली।
सावन के महीने में हरियाली की चादर आढ़े धरती का श्रृंगार देखते ही बनाता है। करीब डेढ़ माह तक जीतोड़ मेहनत करते किसान लगभग बुआई और रोपाई का कार्य समाप्त होने के बाद अच्छी फसल की कामना लिये सावन के दूसरे पक्ष में हरेली का त्योहार मनाते हैं। इस दिन किसान अपने कृषि उपकरणों की पूजा बड़े की श्रद्धा और उल्लास के साथ करते हैं। किसान खेती किसानी के काम में उपयोग में आने वाले उपकरण जैसे हल, फावड़े, कुल्हाड़ी आदि को साफ धोकर उनकी पूजा करते हैं। साथ ही पशुओं के गोशाला को भी साफ और स्वच्छ कर उसमें नई मिट्टी या मूरूम डालकर सुव्यवस्थित करते हैं। ग्रामीण अंचलों में आज भी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हरेली का पर्व मनाया जाता है। जहां क्या बड़े, क्या बुढ़े सभी इस पर्व का आनंद उठाते हैं। इस पर्व में नारियल फेंक प्रतियोगिता का भी आयोजन कई जगह होते है। हरेली पर्व के माध्यम से छत्तीसगढ़ के किसान भगवान से अच्छी फसल की भी कामना करते है। हालांकि परंपरागत कृषि को छोड़ किसान आधुनिक तरीके से भी खेती करने लगे है लेकिन आज भी हरेली पर्व का ग्रामीण अंचलों में विशेष महत्व है।
हरेली पर्व से एक तरीके से छत्तीसगढ़ में त्योहारों की शुरूआत होती है। होली के बाद लगभग त्योहारों का सिलसिला खत्म हो जाता है जो हरेली त्योहार के साथ शुरू होता है। हालांकि बीच में वैवाहिक कार्यक्रमों की धूम होती है लेकिन असली मायने में इस बीच त्योहार नहीं मनाये जाते है। हरेली त्योहार के बाद छत्तीसगढ़ में त्योहारों के एक क्रम की शुरूवात होती है। छत्तसीगढ़ में हरेली का वही महत्व है जो महत्व पंजाब में बैसाखी, असम में बिहू और तमिलनाडु में पोंगल और उत्तराखण्ड में हरेला पर्व का है। ये सभी त्योहार किसान या बुआई के समय मनाते है या फिर फसल कटाई के पश्चात है। ठीक उसी तरह