रचना1 :- |
सावन बइरी(सार छंद)
चमक चमक के गरज गरज के,बरस बरस के आथे।
बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।
काटे नहीं कटे दिन रतिहा,छिन छिन लगथे भारी।
सुरुर सुरुर चलके पुरवइया,देथे मोला गारी।
रहि रहि के रोवावत रहिथे,बइरी सावन आके।
हाँस हाँस के नाचत रहिथे,डार पान बिजराके।
छोड़ गये परदेस पिया तैं ,पाँव बजे ना पैरी।
टिकली फुँदरी माला मुँदरी,होगे सब झन बैरी।
महुर मेंहदी मूँगा मोती,बिछिया अँइठी लच्छा।
तोर बिना हे मोला जोड़ी,लगे नहीं कुछु अच्छा।
हरियर हरियर होगे डोली ,हरियर बखरी बारी।
तोर बिना जिनगी मा मोरे,छाय घटा अँधियारी।
नाच कूद के देख मेचका,खुश हो टर टर गाथे।
ताना मारत मारत मोला,झींगुर गीत सुनाथे।
धरके बासी मोर जँवारा ,रोज खेत मा जाथे।
बइठ अपन वो संग सजन के,हाँस हाँस बतियाथे।
मोर परोसिन अपन पिया ला,चीला राँध खवाथे।
छत्ता धरे झड़ी झक्कर मा,घूमय मजा उड़ाथे।
बरसे बादर रिमझिम रिमझिम,चिरई गाये गाना।
जाँवर जोड़ी नाच नाच के,खावत रहिथे दाना।
कउँवा बाटत रहिथे चारा,उड़ उड़ के छानी मा।
मोरो मन होथे भींगे के ,तोर संग पानी मा।
परेवना के पाँख देख के,माँगत रहिथों पाँखीं।
फेर देख मोला उड़ जाथे,बरसत रहिथे आँखी।
भुँइया अबड़ हितागे हावय,पाके मनभर पानी।
रोज जरत हे जिवरा मोरे ,हलाकान जिनगानी।
आँखी मोरे करिया गेहे ,बादर ले बड़ जादा।
झटकुन राजा तैंहर आजा,करके गे हस वादा।
नैना मोरे झड़ी करे तब,बादर डरके भागे।
नैन निहारे रद्दा तो रे,बइठ दुवारी जागे।
मोर बने बइरी रे धन तैं,जोड़ी ला भड़काये।
आजा राजा नइ चाही कुछु,रही जहूँ बिन खाये।
पेट अन्न पानी नइ जाने,जब ले तँय घर छोड़े।
रद्दा ला मैं जोहत रहिथों ,बइठे माड़ी मोड़े।
कतको दिन हा कटगे मोरे,बिना अन्न पानी के।
पान चढ़ावों भोला देदे,सुख ला जिनगानी के।
धरे गाल मैं बइठे हावँव,हाथ हले ना डोले।
आस मरत हे आजा राजा,मुँह नइ बोली बोले।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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रचना2 :- |
मजबूर मैं मजदूर(रोला छंद)
करहूँ का धन जोड़,मोर तो धन जाँगर ए।
गैंती रापा संग , मोर साथी नाँगर ए।
मोर गढ़े मीनार, देख ले लमरे बादर।
मिहीं धरे हौं नेंव,पूछ ले जाके घर घर।
भुँइयाँ ला मैं कोड़,ओगराथँव पानी जी।
जाँगर रोजे टोड़,धरा करथौं धानी जी।
बाँधे हवौं समुंद,कुँआ नदियाँ अउ नाला।
बूता ले दिन रात,हाथ उबके हे छाला।
सच मा हौं मजबूर,रोज महिनत कर करके।
बिगड़े हे तकदीर,ठिकाना नइ हे घर के।
थोरिक सुख आ जाय,बिधाता मोरो आँगन।
महूँ पेट भर खाँव, पड़े हावँव बस लाँघन।
घाम जाड़ आसाड़, कभू नइ सुरतावँव मैं।
करथों अड़बड़ काम,फेर फल नइ पावँव मैं।
हावय तन मा जान,छोड़हूँ महिनत कइसे।
धरम करम हे काम,पूजथँव देबी जइसे।
जुन्ना कपड़ा ओढ़,ढाँकथे करिया तन ला।
कभू जागही भाग,मनावत रहिथों मन ला।
रिहिस कटोरा हाथ, देख ओमा सोना हे।
भूख मरँव दिन रात,भाग मोरे रोना हे।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795 |