पिता :- |
श्री थानू राम देवांगन |
सम्पर्क:- |
8602407353 |
ईमेल :- |
mahendradewanganmati@gmail.com |
जन्म तिथि :- |
06/ 04 / 1969 |
शिक्षा:- |
एम.ए. हिन्दी साहित्य एवं संस्कृत |
पता :- |
ग्राम-बोरसी , (राजिम)
वर्तमान निवास-गोपीबंद पारा पंडरिया,
तहसील-पंडरिया
जिला-कबीरधाम (छ.ग) |
पद:- |
शिक्षक |
विधा :- |
गीत,कविता एवं कहानी लेखन में |
रचना1 शीर्षकन :- |
मोर गांव कहां गंवागे |
रचना1 :- |
मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो।
भाखा बोली सबो बदलगे, मया कहां में पावों।
काहनी किस्सा सबो नंदागे, पीपर पेड़ कटागे ।
नइ सकलाये कोनों चंउरा में, कोयली घलो उड़ागे।
सुन्ना परगे लीम चंउरा ह, रात दिन खेलत जुंवा ।
दारु मउहा पीके संगी, करत हे हुंवा हुंवा ।
मोर अंतस के दुख पीरा ल, कोन ल मय बतावों
मोर गांव कहां .......................
जवांरा भोजली महापरसाद के, रिसता ह नंदागे ।
सुवारथ के संगवारी बनगे, मन में कपट समागे ।
राम राम बोले बर छोड़ दीस, हाय हलो ह आगे ।
टाटा बाय बाय हाथ हलावत, लइका स्कूल भागे
मोर मया के भाखा बोली, कोन ल मय सुनावों ।
मोर गांव कहां..............................
छानी परवा सबो नंदावत, सब घर छत ह बनगे।
बड़े बड़े अब महल अटारी, गांव में मोर तनगे।
नइहे मतलब एक दूसर से, शहरीपन ह आगे ।
नइ चिनहे अब गांव के आदमी, दूसर सहीं लागे ।
लोक लाज अऊ संसक्रिती ल, कइसे में बचावों
मोर गांव कहां........................
धोती कुरता कोनों नइ पहिने, पहिने सूट सफारी
छल कपट बेइमानी बाढ़गे, मारत हे लबारी ।
पच पच थूंकत गुटका खाके, बाढ़त हे बिमारी ।
छोटे बड़े कोनों मनखे के, करत नइहे चिन्हारी ।
का होही भगवान जाने अब, कोन ल मय गोहरावों
मोर गांव कहां...............................
जगा जगा लगे हाबे, चाट अंडा के ठेला ।
दारु भटठी में लगे हाबे, दरुहा मन के मेला ।
पीके सबझन माते हाबे, का गुरु अऊ चेला ।
लड़ई झगरा होवत हाबे, करत हे बरपेला ।
बिगड़त हाबे गांव के लइका, कइसे में समझावों
मोर गांव कहां गंवागे
संगी, कोनों खोज के लावो।। |
रचना2 शीर्षकन :- |
पीतर |
रचना2 :- |
जिंयत भर ले सेवा नइ करे , मरगे त खवावत हे ।
बरा सोंहारी रांध रांध के, पीतर ल मनावत हे ।
अजब ढंग हे दुनिया के, समझ में नइ आये ।
जतका समझे के कोसीस करबे, ओतकी मन फंस जाये ।
दाई ददा ह घिलर घिलर के, मांगत रिहिसे पानी ।
बुढत काल में बेटा ह , याद करा दीस नानी ।
दाई ददा ह मरगे तब , आंसू ल बोहावत हे ।
बरा सोंहारी रांध रांध के, पीतर ल मनावत हे ।
एक मूठा खाय ल नइ देवे, देवे वोला गारी ।
बेटा होके बाप के, करे निंदा चारी ।
वोकरे कमई के राज में , बइठे बइठे खावत हे ।
भुलागे सब एहसान ल , गुन ल नइ गावत हे ।
मरगे बाप ह तब , मांदी ल खवावत हे ।
बरा सोहारी रांध रांध के, पितर ल मनावत हे ।
बड़े बिहनिया सुत उठ के , तरिया में जाथे ।
आत्मा ओकर सांति मिले , पानी देके आथे ।
कांव कांव करके कौवा ह , बरेंडी में आथे ।
दाई ददा ह आगे कहिके, बरा ल खवाथे ।
मरगे दाई ददा तब , आनी बानी के खवावत हे ।
बरा सोहारी रांध रांध के, पीतर ल मनावत हे ।
पहिली ले सेवा करतेस , मिलतीस तोला सुख ।
कांही बात के जिनगी में , नइ होतीस तोला दुख ।
देखा सीखी तोरो बेटा , करही तोला वोइसने ।
देही दुख तहूं ल , करे हस ते जइसने ।
समय ह निकलगे तब , पाछु बर पछतावत हे ।
बरा सोहारी रांध रांध के, पीतर ल मनावत हे । |
पुरस्कार :- |
(1) साहित्य बुलेटिन नई कलम द्वारा "प्रतिभा सम्मान" से सम्मानित (2) संगम साहित्य परिषद द्वारा प्रशस्ति पत्र एवं सम्मान (3) भारतीय दलित साहित्य अकादमी छ.ग.राज्य की ओर से "महर्षि वाल्मिकी अलंकरण" अवार्ड से सम्मानित | (4) छ. ग. क्रांति सेना की ओर से साहित्य सम्मान (5) छत्तीसगढ़ी मंच द्वारा "छत्तीसगढ़ के पागा" सम्मान से सम्मानित (6) राजभाषा आयोग के तरफ से सम्मानित |