राष्ट्रीय चेतना के विकास के साथ छत्तीसगढ़ में
पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास
अर्वाचीन भारतीय इतिहास में 19वीं शाताब्दी के उत्तरार्द्ध का काल राष्ट्रीय चेतना के विकास का द्योतक है। इस अवधि में सांस्कृतिक संचेतना के संवाहक के रूप में अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं का उद्भव हुआ अर्थात् पत्रकारिता विकसित हुई। देश के हृदय में स्थित प्रदेश छत्तीसगढ़ 19वीं सदी के मध्य तक अनेक रहस्यों के लिए अनजान व पिछड़ा समझा जाता था, किंतु अंतिम दशक में इस क्षेत्र के संचेतकों ने कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कार्य किये जिसने इस अवधारणा को निर्मूल सिद्ध कर दिया। स्वाधीनता आंदोलन की अवधि में छत्तीसगढ़ अंचल की पत्रकारिता ने भी अहम भूमिका अदा की पर देश के इतिहास के पृष्ठों पर इसका सही आकलन प्रस्तुत नहीं हुआ है।
सन् 1857 की क्रांति से लेकर 1947 (स्वतंत्रता प्राप्ति) तक के देशव्यापी घटनाओं का प्रभाव छत्तीसगढ़ पर भी पड़ा जिससे राष्ट्रीय चेतना विकसित होती गई। इसी परिप्रेक्ष्य में जब हम 1900-1947 ई. के मध्य छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि इस अवधि के समाचार पत्र-पत्रिकाओं ने न केवल राष्ट्रीय चेतना का विकास किया बल्कि इस क्षेत्र की जनता को स्वतंत्रता का अर्थ समझाया व उन्हें उसकी प्राप्ति के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी। आरम्भ से लेकर स्वातंत्र्योदय तक प्रकाशित पत्रों का संक्षिप्त विवरण यहाँ दिया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ मित्र (1900 ई. से 1903) छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के युग का सूत्रपात सन् 1900 ई. में पं. माधवराव सप्रे के द्वारा छत्तीसगढ़ मित्र के प्रकाशन से हुआ जो सप्रे जी व पडित रामराव चिंचोलकर के संयुक्त प्रयासों से 'पेण्ड्रारोड बिलासपुर से.निकला जिसका मुद्रण प्रारम्भ में कय्यूमी प्रेस व बाद में नागपुर के देश सेवक प्रेस से होने लगा। 'मित्र' का उद्देश्य शुद्ध सरल व हिंदी भाषा का प्रचार व छत्तीसगढ़ अंचल में ज्ञान व विद्या का प्रसार करना था। यह पत्र दासता का प्रतिकार एवं स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करता था। मित्र सरकारी नौकरों की चापलूसी व भ्रष्टाचार पर भी अपना विरोध पैने व्यंग लिखकर प्रकट करता था। इसके लेख स्वहित का त्याग व देश सेवा के विचारों से प्रेरित होते थे। इस पत्र को साहित्यिक गौरव के साथ राजनीतिक जागृति का संदेशवाहक होने का भी गौरव प्राप्त है। तीन वर्ष की समाप्ति के बाद निरंतर घाटे की वजह से पत्र का प्रकाशन बंद हो गया, किंतु विरासत में 'मित्र' कुछ बातें दे गयी। छत्तीसगढ़ सहित महाकोशल के जन-जागरण में उसका महत्वपूर्ण योगदान है जब लोग पश्चिम के अंधानुकरण की ओर निरंतर अग्रसित हो रहे थे। इसने अपनी सभ्यता, संस्कृति व राष्ट्रीय स्वत्वों से प्रेम करने की शिक्षा दी।
सरस्वती (1900 ई.)- सन् 1900 ई. में राजनांदगाँव में 'सरस्वती' नामक पत्रिका प्रकाशित हुई जिसका छत्तीसगढ़ के राजनीतिक उत्थान में उल्लेखनीय योगदान रहा। हिन्दी की इस प्रमुख साहित्यिक पत्रि के सम्पादन का गौरव पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को दिया जाता है, किंतु 1903 ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पादकत्व में इसमें नई गरिमा का संचार हुआ।
हिन्दी ग्रंथ प्रकाशन मंडली (1905 ई.)- छत्तीसगढ़ मित्र' के बंद हो जाने के बाद सप्रेजी ने 1905 में नागपुर में 'हिन्दी ग्रंथ प्रकाशन मंडली' की स्थापना की जिसका प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा पढ़ने वालों में देशोन्नति के नूतन विचारों की जागृति हेतु आधुनिक तथा उपयोगी विषयों के उत्तमोत्तम ग्रंथों को प्रकाशित करना था।
हिन्दी ग्रंथमाला (1906 ई.)- सप्रेजी ने 1906 में नागपुर से ही हिन्दी मासिक हिन्दी ग्रंथमाला' का प्रकाशन शुरू किया जो 1909 में बंद हो गया.। इसमें राष्ट्रीय भावना से परिपूर्ण लेख होते थे।
हिन्दी केसरी (1907 ई.)- लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में आकर उनके मराठी पत्र केसरी से प्रभावित होकर नागपुर से 1907 ई. में सप्रेजी ने हिन्दी में 'हिन्दी केसरी' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। जिसके प्रधान सम्पादक स्वयं सप्रेजी एवं सहायतार्थ पं. जगन्नाथ प्रसादजी शुक्ल व लक्ष्मीधर बाजपेई थे। इस समय मध्य प्रदेश सहित छत्तीसगढ़ के गॉव -गॉव में स्वदेशी आंदोलन फैल चूका था और लोग निष्ठा से आंदोलन चला रहे थे अतः हिन्दी केसरी ने प्रचार कार्य तेज किया।
सूर्योदय (1915 ई.)- सन् 1915 में रायपुर से हस्तलिखित पत्रिका सूर्योदय' डॉ. कन्हैयालाल शर्मा द्वारा निकाला गया जिसका नाम बाद में विद्योदय' कर दिया गया। इन्होंने तीन वर्ष तक इसके सम्पादन के पश्चात् एक अन्य हस्तलिखित पत्रिका 'कभी-कभी' स्वयं के प्रयास एवं सम्पादकत्व से निकाला।
अरुणोदय (1921-22 ई.)- सन् 1921-22 में राजनांदगाँव से हस्तलिखित पत्रिका 'अरुणोदय' निकली जिसके माध्यम से इस रियासत की जनता को ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने असहयोग आंदोलन में खीच लिया। इस पत्रिका के केवल नौ अंक ही निकले। इसके माध्यम से ठाकुरजी ने वे बातें कह दी जिन्हें रियासत में भीड़ जुटाकर कहने में वे कठिनाई अनुभव करते, जिसकी सजा उन्हें रियासत निष्कासन के रूप में मिली।
श्रीकृष्ण जन्म स्थान समाचार पत्र-जेल पत्रिका (1922-23 ई.)- असहयोग आंदोलन के दौरान सन् 1922 ई. में जब देशभक्त पं. सुंदर लाल शर्मा रायपुर जेल में डाल दिये गये तो उन्होंने जेल से एक हस्तलिखित पत्रिका 'श्रीकृष्ण जन्म स्थान समाचार पत्र निकाली जिसमें कविताओं व लेखों का संग्रह होता था। इस पत्रिका का केवल पाँचवाँ अंक ही उपलब्ध है। जेल पत्रिका में एक ओर साहित्यिक रसों का उल्लेख था तो दूसरी ओर जेल की घटनाओं का चित्रण था। पत्र के प्रारम्भ में प्रभु की वंदना होती थी, जिससे कवि की आंतरिक वेदना व भावना का पता चलता है। इसके माध्यम से शर्माजी ने साहित्य व पत्रकारिता को समन्वित कर राष्ट्रीय भावधार से इस अंचल को सम्पृक्त किया एवं रामचरितमानस के सृदश छत्तीसगढ़ भाषा में ‘दानलाली' लिखकर छत्तीसगढ़ के ग्राम्य जीवन में चेतनात्मक हलचल उत्पन्न कर समाज के शैक्षणिक बोध को जाग्रत किया। इस दृष्टि से इनके पत्रकारिता प्रदेय का अन्वेषण नहीं हो सका है।
छत्तीसगढ़ (1923 ई.)- श्री मनोहर प्रसाद मिश्र के सम्पादकत्व में सन् 1923 में चन्द्रपुर, रायगढ़ से 'छत्तीसगढ़ नामक पत्रिका प्रकाशित हुई जिसके दो मुख्य उद्देश्य (1) छत्तीसगढ़ में जनजागृति व (2) छत्तीसगढ़ की साहित्यिक प्रगति थे। इस पत्र को प्रांत के सभी प्रमुख लेखकों का श्रेय प्राप्त हुआ। लड़ाई के समय कागज के महँगे होने व अन्य अडचनों से पत्रिका निकालना सम्भव न था अतः यह मासिक अक्टूबर 1922 से मार्च 1924 तक चला, फिर बंद हो गया।
बिलासपुर डिस्ट्रिक्ट काउंसिल पत्रिका विकास (1920-1930)- डिस्ट्रिक्ट काउंसिल ने असहयोग आंदोलन के दौरान शैक्षणिक पत्रिका निकालकर शिक्षित ग्रामवासियों में उसका प्रसारण कर उनमें देशप्रेम की भावना का रोपण किया। बिलासपुर डिस्ट्रिक्ट काउंसिल द्वारा प्रकाशित 'विकास' (1920) एक ऐसी ही पत्रिका थी जो पहले त्रैमासिक थी। इसके संस्थापक ई. राघवेन्द्रराव थे, इनके पूर्व शिवदास पाण्डेय थे, बाद में कुलदीप मुद्रक एवं प्रकाशक ने इसके सम्पादकत्व का भार लिया। विकास की वार्षिक रिपोर्ट में इसे गैर राजनीतिक पत्र बताया गया है, किंतु पत्रों को पढ़ने से ज्ञात होता है कि किस प्रकार यह पत्र राष्ट्रीय भावना के प्रचार-प्रसार में सफल रहा। लोगों को राष्ट्रीयता से परिचित कराने हेतु पत्र महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित करता था। पत्र यदा-कदा नेताओं के उत्तेजक भाषणों को भी छापने का साहस करता था। महिला आंदोलन में प्रांत के पिछड़ेपन पर पत्र ने उद्धृत किया तथा मातृभाषा को राष्ट्रीयता का एक महत्वपूर्ण आधार बताया।
रायपुर डिस्ट्रिक्ट काउंसिल पत्रिका उत्थान (1935-37 ई.)- सन् 1935 ई. में पं. रविशंकर शुक्ल के संरक्षण में उत्थान विषयक पत्रिका रायपुर डिस्ट्रिक्ट काउंसिल से प्रकाशित हुआ जो पं. सुन्दरलाल त्रिपाठी द्वारा सम्पादित होता था। राष्ट्रीय विचारधारा का यह सुरुचिपूर्ण मासिक इलाहाबाद इंडियन प्रेस से मुद्रित होता था तथा साढ़े तीन वर्षों तक प्रकाशित होने के बाद बंद हो गया। जवाहरलाल नेहरू तथा राजेन्द्र प्रसाद जैसे शीर्षस्थ नेताओं ने भी इस प्रकाशन को सराहा था जिसमें छत्तीसगढ़ की राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक चेतना प्रतिविम्बित होती है। उत्थान' ने प्रकाशन के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए लिखा था कि -"विगत हजार वर्षों की पराधीनता के कारण आज भारत दुर्गति प्राप्त व पदावनत है। ग्रामीण जनता के विकास पर ही देश का उत्थान सबसे अधिक निर्भर है। इसी दृष्टिकोण को सामने रखकर रायपुर डिस्ट्रिक्ट काउंसिल उत्थान का प्रकाशन आरम्भ कर रही है।"
‘उत्थान' ने छत्तीसगढ़ 'मित्र' व 'विकास' की भाँति युग निर्माण का कार्य किया। इसने ग्रामीणों तक स्वदेशी आंदोलन का संदेश पहुँचाया। सरकारी दृष्टि में यह ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस के प्रचार का यंत्र था निःसंदेह शासन का ऐसा दृष्टिकोण उत्थान की बड़ी सफलता थी।
महाकौशल (1936 ई.)- सन् 1936 में हिन्दी साप्ताहिक 'महाकौशल' अम्बिकाचरण शुक्ल के सम्पादकत्व में रायपुर से प्रकाशित हुआ जिसके द्वारा छत्तीसगढ़ के साहित्य का पर्याप्त संवर्द्धन होता रहा। सरकारी रिपोर्ट ने लिखा था कि-"इस अवधि में प्रारम्भ होने वाला महत्वपूर्ण दैनिक महाकौशल रायपुर का यह पत्र पूर्णतः कांग्रेस के प्रचार-प्रसार को समर्पित था। चुनाव अभियान में इसने महत्वपूर्ण योगदान दिया और उसकी समाप्ति के बाद बंद हो गया। यह इस अंचल का प्रथम साप्ताहिक पत्र था जिसे दीर्घजीवी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो बाद में दैनिक हुआ।"
आलोक (1938 ई.)- हिन्दी साहित्य मंडल रायपुर के तत्वावधान में सर्व श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी, श्री केशव प्रसाद वर्मा एवं श्री घनश्याम प्रसाद श्याम के सम्पादकत्व में 1936 में रायपुर के मुख्य पत्र मासिक 'आलोक का प्रकाशन हुआ जिसने छत्तीसगढ़ में साहित्यिक सक्रियता को बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान दिया, किंतु यह अल्पजीवी रहा।
निष्पक्ष (1936 ई.)- बैरिस्टर रेवा प्रसाद मिश्र का हिन्दी साप्ताहिक 'निष्पक्ष 5 अक्टूबर, 1936 को रायपुर से प्रकाशित हुआ जो चुनाव के बाद मार्च 1937 में बंद हो गया।
प्रकाश (1936 ई.)- सन् 1936 ई. में हिन्दी साहित्यिक प्रकाश बिलासपुर से यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव के प्रकाशन से निकला जो कांग्रेस पार्टी का चुनावी शस्त्र था जिसने स्थानीय कांग्रेस उम्मीदवारों का जमकर प्रचार किया। इसकी प्रकाशन अवधि 6 नवम्बर, 1936 से 10 फरवरी, 1937 थी।
हैह्यवंश (1936 ई.)- दुर्ग जिले का प्रथम मासिक पत्र “हैह्यवंश" उदय प्रताप जी उदय के सम्पादकत्व में दुर्ग से 1936 में प्रकाशित हुआ। जातीय पत्रिका होने के कारण अंचल में इसका अधिक प्रचार नहीं हो सका।
कांग्रेस पत्रिका (1937 ई.)- रायपुर जिला कांग्रेस के द्वारा रायपुर से नंदकुमार दानी के सम्पादकत्व में 1937 में हिन्दी भाषी पत्र 'कांग्रेस पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ जो रायपुर जिला व छत्तीसगढ़ का ही नहीं वरन् सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में कांग्रेस का बड़ा शस्त्र प्रमाणित हुआ। 1937 के चुनाव में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित इस पत्र ने ग्रामीणों में राष्ट्रीयता का बीज बोने का अथक प्रयास किया। छत्तीसगढ़ से निकलने वाला यह साप्ताहिक पत्र प्रांत भर में कांग्रेस का एकमात्र पत्र था जिसका उद्देश्य कांग्रेस के कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करना था।
सचेत (1937 ई.)- सन् 1937 में बिलासपुर से प्रथम साप्ताहिक सचेत कुलदीप सहाय के सम्पादकत्व में निकला जो एक निर्दलीय उम्मीदवार का प्रचारक था एवं दो माह की अवधि तक चला।
सरगुजा समाचार (1937 ई.)- 1937 में सरगुजा से सरगुजा समाचार साप्ताहिक प्रकाशन हुआ जिसके सम्पादक चंद्रशेखर शरण उसके बाद रवीन्द्र प्रताप सिंह थे एवं वर्तमान में रामप्यारे रसिक' हैं।
कांग्रेस प्रचार पत्रिका (1939 ई.)- हिन्दी मासिक कांग्रेस प्रचारक पत्रिका पंडित रत्नाकर झा के सम्पादकत्व में 1939 ई. में दुर्ग जिला कांग्रेस कमेटी के तत्वावधान में दुर्ग से निकली जिसका प्रमुख उद्देश्य ग्रामीणों को कांग्रेस की नीति एवं तात्कालिक वातावरण से अवगत कराना था। पत्रिका लोकप्रिय रही सरकारी रिपोर्टानुसार आर्थिक 'कठिनाइयों के कारण नवम्बर 1939 में ही इसका प्रकाशन बंद हो गया।
पराक्रम एवं कर्मवीर (1939 ई.)- रामकृष्ण पंडित के संपादकत्व में बिलासपुर से 1939 में पत्रिका 'पराक्रम तथा बंदे अली फातमी के संपादन में रायगढ़ से 1939 में 'कर्मवीर' निकली।
शिक्षा (1939-40 ई.)- पंडित रविशंकर शुक्ल की विद्या मंदिर योजना के प्रारम्भ होने पर उसके उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए 'शिक्षानामक शैक्षणिक पत्रिका केशव प्रसाद एवं घनश्याम प्रसादजी श्याम के सम्पादकत्व में पटेरिया बुक डिपो रायपुर से निकली।
नवयुवक (1939-40 ई.)- 'नवयुवक' का प्रकाशन नवयुवक मंडल धमतरी द्वारा 1939-40 ई.में हरिजी हंसराजशाह के सम्पादकत्व में हुआ।
जन्म भूमि एवं श्री (1946 ई.)- 1946 में हिन्दी 'जन्मभूमि' खैरागढ़ से एवं रायपुर से रामकृष्ण अग्रवाल की हिन्दी मासिक 'श्री' प्रकाशित हुई। 'सरगुजा संदेश' व 'बस्तर समाचार' (सप्ताहिक) जैसे कुछ पत्र स्वतंत्रता पूर्व प्रकाशित हुए थे।
छत्तीसगढ़ केसरी (1947 ई.)- स्वतंत्रता के समय 1947 में रायपुर में छत्तीसगढ़ केसरी' का प्रकाशन हुआ जिसका नाम 1952 में 'केसरी' हो गया।
जिन्दगी (1947 ई.)- पं. केदारनाथ झा ‘चन्द्र' द्वारा सम्पादित पत्र 'जिन्दगी' का प्रकाशन 1947 में दुर्ग से हुआ जो निष्पक्ष एवं साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने वाला था। यह 1961 में बंद हो गया।
इस तरह हम देखते हैं कि सन् 1947 तक के भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का व्यापक रूप से प्रभाव सम्पूर्ण भारत के विभिन्न प्रांतों में पड़ा जिन्हें वृहत रूप प्रदान करने का श्रेय देश के विभिन्न पत्रों एवं पत्रिकाओं को है। इनमें छत्तीसगढ के पत्र-पत्रिकाओं का छत्तीसगढ़ अंचल के संदर्भ मेें राष्ट्रीय चेतना विकसित करने के अमूल्य एवं सर्वप्रमुख योगदान है।
राष्ट्रीय चेतना के विकास में छत्तीसगढ़ के प्रमुख पत्रकारों में जहाँ सप्रेजी युग दृष्टा थे, छत्तीसगढ़ के उद्धारक थे. जन चेतना के विकास में उनका अविस्मरणीय योगदान था, वहीं पं. सुंदरलाल शर्मा छत्तीसगढ़ के राजनीतिक व सांस्कृतिक चेतना के संवाहक थे। पं. रविशंकर शुक्ल ने कांग्रेस के आदर्श पर चलकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अथक परिश्रम किया। उनके साहस व त्याग ने स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों को सदैव प्रेरणा दी। उन्होंने 'उत्थान' के माध्यम से निःसंदेह छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों को जगाया व राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान किया। पं. सुदरलाल त्रिपाठी एवं बाबू कुलदीप सहाय ने भी पत्रकारिता के माध्यम से जनता को जाग्रत किया।
राष्ट्रीय संचेतना के संवाहक के प्रतीकस्वरूप छत्तीसगढ़ अंचल की पत्रकारिता का अमूल्य योगदान रहा है जो न केवल क्षेत्रीय इतिहास की धरोहर है वरन राष्ट्रीय इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ी है। इस संदर्भ में व्यापक अन्वेषण प्रतीक्षित है जिससे नव्य सम्भावनाओं के परिप्रेक्ष्य तथ्यपरक अध्ययन हो सकेगा।