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छत्तीसगढ़ के मेले



छत्तीसगढ़ के मेले
छत्तीसगढ़ में मेले और मड़ई आस्था एवं विश्वास के प्रतीक होते हैं। छत्तीसगढ़ी लोक उमंग और अपनी आस्था को 'मेले' के माध्यम से अभिव्यक्त करता है, जहां मेले, मड़ई जनजीवन में चेतना का संचार करते हैं। वहीं सामाजिक ज्ञान का भी बोध कराते हैं। छत्तीसगढ़ में भी विभिन्न अवसरों पर मेलों, मड़ई भरने की परम्परा रही है। क्षेत्रवार मड़ई, मेले निम्नानुसार होते हैं-
रायपुर संभाग-  संभाग के अंतर्गत जो मेले लगते हैं उनमें सिहावा का कर्णेश्वर मेला (माघ पूर्णिमा), राजिम मेला (माघपूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक), चम्पारण्य मेला, सिरपुर का मेला (माघ पूर्णिमा से शिवरात्रि तक), तुरतुरिया मेला (पौष पूर्णिमा), गिरौदपुरी (फाल्गुन पंचमी), खल्लारी मेला (चैत पूर्णिमा), महादेव घाट मेला (कार्तिक पूर्णिमा). दामाखेड़ा माघ मेला (माघ पूर्णिमा), रनबौर की मड़ई (पौष पूर्णिमा), करिया धुरवा की मड़ई. राऊताही मड़ई (कार्तिक पूर्णिमा), राजनांदगांव जिले के अंतर्गत डोंगरगढ़ में डोंगरगढ़ मेला (क्वार, चैत्र), भोरमदेव मेला (रामनवमी), मौहार मेला (कार्तिक पूर्णिमा), नरबदा मेला (महाशिवरात्रि), दशरंगपुर मेला (महाशिवरात्रि), दुर्ग जिले के विभिन्न ग्रामों में नवंबर माह में मड़ई का आयोजन होता है। यह ग्राम चंगोरी मेला (महाशिवरात्रि), साजा मेला (माघ पूर्णिमा), हरडुब्ब, नेकेशा मेला, चौरेले मेला (माघ पूर्णिमा)।
बिलासपुर संभाग -  संभाग के अंतर्गत बिलासपुर जिले में माघ पूर्णिमा पर बिल्हा, रतनपुर, उपका, सेतगंगा, बेलपान, सागर, घुटली, मदकू में महाशिवरात्रि पर मल्हार, तुर्की, कनकी, सेमरताल में, जांजगीर जिले में देवरघटा, शिवरीनारायण,मकर संक्रांति पर लखनघाट में, होली पर पिथमपुर में, जनवरी माह में कोरबा जिले के अखरार, कटघोरा आदि में मेले का आयोजन होता है। अम्बिकापुर (सरगुजा) जिले के अंतर्गत रामगढ़, देवगढ़, महेशपुर, सीतापुर, सूरजपुर, कूदरगढ़, लाची, करवां, कल्याणपुर, धीर्रा, डिपाली, हकला, दुर्गापुर, रनहत, करीचलगली, तातापानी, सोनहत, कैलाशपुर, रमदहा में मेले आयोजित होते हैं। यहां अधिकांश स्थानों पर मेले शिवरात्रि और दशहरा के समय भरते हैं। रायगढ़ जिले के अंतर्गत जन्माष्टमी मेला (रायगढ़), शिवरात्रि मेला (कांपू). दशहरा मेला (रायगढ़, खरसिया, सारंगढ़, लैलूंगा)], मकर संक्रांति मेला (पोरथा) तथा जशपुर जिले के स्थलों में मेले लगते हैं। विभिन्न स्थानों पर माघ फाल्गुन और आषाढ़ माह में रथ यात्राओं का आयोजन होता है।
बस्तर संभाग -  बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर में बस्तर दशहरा (हरियाली अमावस्या से आश्विन शुक्ल पक्ष), नावाखानी पर्व रामरामी मेला, दियारी पर्व, हरियाली अमावस्या, माटी जिहार पर्व, शक्ति पूजा, दिसंबर-जनवरी-फरवरी माह में 40 से अधिक स्थानों पर शृंखलाबद्ध मड़ई का आयोजन होता है। मड़ई में ग्रामवासी अपने देवी-देवताओं के साथ आते हैं। मड़ई, मेले का लघु रूप होता है। इस आयोजन में भी दुकानें लगती हैं। मनोरंजन के विभिन्न साधन जुटते हैं। होली के अवसर पर मां दन्तेश्वरी देवी के सम्मान स्वरूप फाल्गुन मड़ई लगती है। यह नौ दिवसीय आयोजन फाल्गुन शुक्ल छटी से चौदस तक होता है। नारायणपुर में घड़ियादेव का मेला लगता है। कोंडागांव और नारायणपुर के बीच स्थित ग्राम में भिंगराम डोकरा मेला भरता है। यह मेला जून माह में आयोजित होता है।
छत्तीसगढ़ के परंपरागत पर्व
हरेली -  मुख्य रूप से किसानों का पर्व है। किसानों द्वारा धान की बोनी से निवृत्त होकर श्रावण अमावस्या के दिन सभी कृषि एवं लौह उपकरणों की पूजा की जाती है। यह त्यौहार छत्तीसगढ़ में वर्ष का प्रथम पर्व होता है। इस दिन बच्चे बांस की गेंड़ी बनाकर उस पर घूमते व नाचते हैं।
रक्षाबंधन -  भाई-बहन के प्रेम व विश्वास का प्रतीक यह त्यौहार श्रावण माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसमें बहनें भाइयों की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती हैं।
हरछट (हलछट) -  इस पर्व में महिलायें भूमि पर कुण्ड (सगरी) बनाकर शिव पार्वती की पूजा करती हैं और अपने पुत्र की लंबी आयु की कामना करती हैं।

पोला पाटन -  भाद्र माह में यह त्यौहार मुख्य रूप से कृषकों द्वारा मनाया जाता है। इसमें मिट्टी के बैल और पोला बनाये जाते हैं। इस दिन बैलों को सजा कर बैल दौड़ प्रतियोगिता की जाती है।
हरतालिका (तीजा) -  विवाह का स्वरूप लिए हुए यह उत्सव बैसाख माह में छत्तीसगढ़ की अविवाहित लड़कियों द्वारा मनाया जाता है।
दशहरा -  प्रदेश का प्रमुख त्यौहार है। राम की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर शस्त्र पूजन और रावण दहन के पश्चात् दशहरा मिलन होता है। आज के दिन गांवों में मेला लगता है।
दीपावली -  कार्तिक माह में इस दिन आंगन में महालक्ष्मी के स्वागत के लिये दीप प्रज्वलित किये जाते हैं। सायंकाल शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी की पूजा एवं आतिशबाजी की जाती है।
गोवर्धन पूजा -  दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। यह पूजा गौ-धन से संबंधित है।
नवान्न -  नई फसल पकने पर दीपावली के बाद नये अनाज से भोजन बनाकर यह पर्व मनाया जाता है।
छेरछेरा -  यह त्यौहार पौष माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस अवसर पर बच्चे नई फसल के धान मांगने निकलते हैं। बच्चों की टोली घर-घर जाकर छेरछेरा-छेरछेरा कोठी के धान ल हेर-हेरा' आवाज लगाकर अनाज एवं दान लेते है। लड़कियां आज के दिन प्रसिद्ध सुआ नृत्य करतीं और दान लेती हैं।
होली -  सभी वर्गों के लोगों द्वारा फागुन पूर्णिमा को रंगों का पर्व मनाया जाता है।
नौरात्रि -  चैत्र और आश्विन दोनों ही माहों में मां दुर्गा की उपासना तथा नौ दिनों तक आराधना एवं रात्रि जागरण कर मां दुर्गा की पूजा उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस समय दंतेश्वरी, बम्लेश्वरी, महामाया एवं अन्य शक्ति पीठों पर विशेष पूजन होता है। आश्विन नौरात्रि में मां दुर्गा की आकर्षक एवं दिव्य प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं।
जनजातीय पर्व -  प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में मनाये जाने वाले प्रमुख पर्व निम्न हैं
दन्तेश्वरी पूजा -  बस्तर जिले में आदिवासियों की आराध्य देवी दन्तेश्वरी की पूजा नौ दिनों तक की जाती है।
दशहरा -  यह बस्तर का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जो तेरह दिनों तक मनाया जाता है।
मेघनाद -  फाल्गुन में गोंड आदिवासियों द्वारा यह पर्व मनाया जाता है। रावण पुत्र मेघनाद को गोंड़ सर्वोच्च देवता मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं। आदिवासी मेघनाद के प्रतीक के रूप में मेघनाद खम्भ (पांच खम्भों का) बनाते हैं। पांचवें खम्भे में बल्ली बांधकर, उस पर लटक कर चारों दिशाओं में घूमते हैं।
लारूकाज -  इस उत्सव में सुअर की बलि दी जाती है। यह उत्सव गोंड नारायण देव के सम्मान में मनाते हैं।
ककसार -  यह अबूझमाड़िया आदिवासियों का प्रमुख पर्व है। इसी दौरान अविवाहित युवक-युवती अपने जीवन साथी का चुनाव कर सकते हैं। इस अवसर पर पूरी रात आनन्द मनाया जाता है।
धुरवा -  बस्तर की धुरवा जनजाति के मध्य (इंद्रावती और कांगेर नदियों के आसपास धुरवा क्षेत्रों में) धुरवा पर्वोत्सव मनाया जाता है। यह पर्वोत्सव चैत माह की प्रतिपदा से शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक मनाया जाता है।
बीज बोहानी -  कोरवा जनजाति द्वारा जून में खेतों में बीज बोने के पूर्व जश्न मनाया जाता है।
कोरा -  माह सितंबर में कोरवा आदिवासी कुटकी, गोंदली की फसल काटने के बाद उत्सव मनाते हैं।
घेरसा -  कोरवाओं द्वारा जनवरी में उत्तरा (सरसों, दाल आदि) की फसल कटने पर मनाया जाता है।
नवाखानी -  भादों के दूसरे पक्ष में गोंड़ अपने पूर्वजों को नया अनाज और मदिरा चढ़ाते हैं। नई फसल से अनाज प्राप्ति के उपलक्ष्य में बस्तर में नवाखानी पर्व मनाया जाता है।
चैत्रई -  परजा और धुरवा जनजाति यह पर्व मनाते हैं जिसमें सुअर अथवा मुर्गे की बलि दी जाती है। गोंचा-बस्तर में दशहरे के समय रथ यात्रा को ही गोंचा कहा जाता है, जो यहां का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।
दियारी -  बस्तर में जनजाति अपने तरीके से दीपावली का त्यौहार मनाते हैं। यह दीपावली के दूसरे दिन सुबह
बैलों को खिचड़ी खिलाकर मनाया जाता है।
माटी तिहार -  दीपावली के पश्चात् बस्तर में यह त्यौहार मनाया जाता है, जिसमें पृथ्वी पूजा की जाती है। आमा खाई-बस्तर में धुरवा और परजा जनजातियां आम फलने के समय में यह त्यौहार मनाते हैं।
करमा -  हरियाली आने की खुशी में यह त्यौहार मुख्य रूप से उरांव मनाते हैं। जब धान रोपने के लिए तैयार हो जाता है तब यह उत्सव मनाया जाता है और करमा नृत्य किया जाता है।

सरहुल -  यह उत्सव उरांव जनजाति का महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस अवसर पर प्रतीकात्मक रूप से सूर्य देव और धरती माता का विवाह रचाया जाता है। मुर्गे की बलि भी दी जाती है। अप्रैल के आरंभ में साल वृक्ष में फूल आने पर यह त्यौहार मनाया जाता है।
 अन्य धर्मों के पर्व
छत्तीसगढ़ में हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मावलंबी भी रहते हैं जिनके पर्व निम्न हैं .
मुस्लिमों के त्यौहार -  संपूर्ण देश के समान प्रदेश में भी इस्लाम को मानने वाले विभिन्न त्यौहार मनाते हैं इनके त्यौहारों की तिथि चांद की स्थिति से निर्धारित होती है। ये निम्न हैं
ईद-उल-फितर -  यह मुस्लिमों का प्रमुख त्यौहार है। इबादत, सदका और खैरात इस त्योहार की प्रमुख विशेषता
होती है।
रमजान -  रमजान इस्लामी कैलेंडर का नवां महीना होता है। पूरे माह रोजा रखा जाता है। रमजान की शुरूआत हिजरी संवत् तीन (624 ई.) को हुई थी। इस तरह रमजान शुरू हुये 1375 वर्ष हो चुके हैं।
ईद-उल-जुहा -  यह मुस्लिमों का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। इसे बकरीद या नमकीन ईद भी कहते हैं। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है।
मीलाद-उन-नबी - मुहम्मद साहब का जन्म दिन, शब-ए-बारात आदि हैं।
मोहर्रम -  मोहर्रम इमाम हुसैन की शहादत का दिन होता है, इस दिन मुस्लिम मातम मनाते हैं। इनकी याद में ताजिये निकाले जाते हैं। मोहर्रम के दसवें दिन सुन्नी छोटे-बड़े ताजिये व अखाड़ों के चल समारोह निकालते हैं जबकि शिया हजरत नोहर पढ़ते और मातम करते अलम का जुलूस निकालते हैं। ताजिये कर्बला मैदान में विसर्जित करते हैं। इस अवसर पर कर्बला का मेला लगता है। इसी दिन सड़कों पर शेर नृत्य का प्रदर्शन होता है। मुस्लिम त्यौहारों में हिन्दू भी बराबरी से सिरकत करते हैं।
जैन धर्म के त्यौहार -  पर्दूषण एवं महावीर जयंती प्रमुख हैं। पर्दूषण का उद्देश्य वर्षभर के दुर्विचारों की गंदगी को साफ कर आत्मा पर लगे धब्बों को मिटाना और अंतः प्रेरणा से अंधकार से प्रकाश की ओर कदम बढ़ाना है।
ईसाइयों के त्यौहार -  छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्मावलंबी काफी संख्या में हैं। इनके मुख्य त्यौहार क्रिसमस, गुड फ्राइडे, न्यू इयर्स डे, ईस्टर आदि हैं। क्रिसमस प्रत्येक दिसंबर की 25 तारीख को मनाया जाता है।
सिखों के त्यौहार -  गुरु नानक जयंती एवं बैशाखी प्रमुख हैं। इस दिन गुरुद्वारों पर विशेष लंगर आयोजित होते हैं। वैशाखी नये वर्ष एवं खुशियों का त्यौहार होता है। यह प्रतिवर्ष 13 अप्रैल को पड़ता है। इस दिन गुरुद्वारों में अरदास एवं मत्था टेकने का विशेष महत्व होता है।
सिंधियों के त्यौहार -  चेटीचंड सिंधियों का प्रमुख त्यौहार है। यह उनके इष्टदेव झुलेलाल के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। 40 दिनों तक चलने वाला चेटीचंड महोत्सव आमतौर पर 16 जुलाई से 24 अगस्त के बीच मनाया जाता है।
बौद्ध धर्म के त्यौहार -  छत्तीसगढ़ में बौद्धधर्मावलंबियों की संख्या अल्प है, किंतु सरगुजा जिले के मैनपाट में इनका एक बड़ा समूह रहता है। इनका मुख्य पर्व बुद्धपूर्णिमा होता है। साल में ऐसी तीन पूर्णिमाएं आती हैं-बुद्ध के जन्म, सम्बोधि, मृत्यु आदि पूर्णिमा के दिन ही हुये थे, जो बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाने जाते हैं।
पारसियों के त्यौहार-  नौरोज इनका प्रमुख त्यौहार होता है। इस अवसर पर पारसी संप्रदाय के लोग अग्निदेव की पूजा करके परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। बिलासपुर, रायपुर में पारसियों का समूह रहता है।
गैर छत्तीसगढ़ी हिन्दुओं के पर्व
पोंगल -  यह छत्तीसगढ़ में बसे तमिल, तेलुगू और कन्नड़ लोगों द्वारा मनाया जाता है। जनवरी के मध्य में धान की नई फसल आने की खुशी के साथ 13 से 15 जनवरी के मध्य तीन दिन तक मनाये जाने वाले इस त्यौहार में धरती, पशु एवं ईश्वर के प्रति अच्छी फसल के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। पोंगल का अर्थ है-चावल से बनाया गया मीठा और स्वादिष्ट व्यंजन ।
ओणम -  यह छत्तीसगढ़ में बसे मलयालियों द्वारा चिंगम माह (अगस्त के अंत या सितंबर के आरंभ में) मनाया जाता है। मुख्यतः यह फसल कटने का त्यौहार है। इस अवसर पर युवक बाघ और चीतों की खाल पहनकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। केरल में इस दिन पंपा नदी पर विश्व प्रसिद्ध नौका दौड़ आयोजित होती है।