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आधुनिक चित्रकला



आधुनिक चित्रकला
आधुनिक भारतीय चित्रकला की जडें प्रागैतिहासिक भित्ति चित्रों अथया शैलचित्रों में निहित हैं। आज की भारतीय चित्रकला ने अपने वर्तमान रयरूप को अनेक चरणों से होकर प्राप्त किया है। आदिम अथवा पाषाण कालीन मानव के आंतरिक सौंदर्य से उपजे काल्पनिक वियो एवं रोजमर्रा के अनुभवें की मिश्रित भावाभिव्यक्ति को उसने शैल भित्तियों अथवा गुहा भित्तियों पर विविध आयामों एव रंगों में उकेरा था। हजारों वर्ष पूर्व कंदराओं की छतों और दीवारों पर अंकित रोचक पित्र आज भी सुरक्षित है. जिनमें तत्कालीन मानव के क्रियाकलाप और विचार अनुगुंजित हो रहे हैं। ऐसे चित्र अगशेष हमें देश के अन्य हिस्सों यथा मिर्जापुर. भीमबैठका. पचगढ़ी आदि के साथ प्रदेश के कवरा पहाड़ सिंघनपुर तथा चितवाडोंगरी में देखने को मिलते है।
  आद्य ऐतिहासिक चित्रकला के नमूने हमें सिंधुघाटी के अवशेषों में देखने को मिलते हैं, जिससे निश्चय ही तत्कालीन समय मे इस विधा के पूर्ण परिपक्व होने का पता चलता है। अतः कहा जा सकता है कि आज से पांच हजार वर्ष पूर्व भारत में चिकला एक विकसित विधा के रूप में स्थापित थी।
  ऐतिहासिक कला के चित्रों के अवशेष हमें. सरगुजा के जोगीमारा (तृतीय-द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व). अजंता (ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी से 5वीं सदी तक). वाघ (5-6वीं शताब्दी). ऐलोरा (7वीं से 9वीं शताब्दी) आदि में मिलते हैं। इन चिों में क्रमशः बौद्ध, जैन और हिन्दू मतों का प्रभाव परिलक्षित होता है। पूर्व मध्यकाल में दक्षिण के चोल तथा उत्तर के पाल चित्र शैलियो के उदाहरण मिलते हैं। राजपूताना तो अपनी यहुआयामी चित्र शैलियों के लिए आरंभ से विशिष्टता पूर्वक स्थापित है, किंतु देश में मुस्लिम आधिपत्य के साथ चित्रकला को इस्लाम विरुद्ध मानने के कारण भारत की समृद्ध चित्रकला गर्त पर जा पहुंची थी. पर मुगलों के विशेष संरक्षण से यहां फिर हिन्दू-फरसी चित्रशैली ने खूब उन्नति की। पुनः औरंगजेब की ताजपोशी के बाद से एवं मुगलों के पतन ने इस दरवारी चित्रकला को क्षेत्रीय संरक्षण में जाने को वाध्य किया, और फिर जन्म हुआ अनेक क्षेत्रीय शैलियों का जिनमें, मेवड़, किशनगढ़, जयपुर, ओरछा. कांगडा, गढवाल. बसोहली. कुल्लु. जम्मू और कश्मीर आदि प्रमुख थे। मुगलों के पतन के बाद मोटे तौर पर जो शैलियां आयीं ये थी-दिल्ली-लखनऊ. राजस्थान-पंजाय, पटना शैली, दक्षिण की तंजौर और मैसूर शैली आदि हैं।

इसके अलावा यूरोपीय प्रभाव से एक पृथक पश्चात्य शैली का भी भारत में आविर्भाव हुआ, जो यूरोपीय चित्रांकन पद्धति और कला से पूर्णतः प्रभावित थी। यहीं से भारत की आधुनिक चित्रकला ने अपना स्यरूप गढ़ना आरंभ कर दिया. किंतु भारतीय कला मुगलों के पतन के बाद दो शताब्दियों तक पाश विद्वानों द्वारा हेय की दृष्टि से देखी गई।
  वस्तुतः भारतीय चित्रकला के आधुनिक युग का सूत्रपात सामान्य तौर पर 20वीं शताब्दी के आरंभ से हुआ है और पूर्ण शताब्दी में इस विधा ने विश्व में श्रेष्ठता हासिल कर ली है। 19वीं सदी के अंत में राजा रविवर्मा ने यूरोपय पद्धति अनुरूप भारतीय चित्रकला की धारा को नई दिशा प्रदान करने की चेष्टा की। वे तत्कालीन यूरोपीय शैली में चित्रांकन करने वाले भारतीयो में श्रेष्ठ थे. किंतु यूरोपीय शैली में उच्च स्थान नहीं प्राप्त कर सके। टैगोर बंधुओं ने चित्रकला की जिन प्रवृत्तियों को स्पष्ट किया. वे आधुनिक चित्रकला का पोषण करने वाली आधार भूमि थी। ये शैली बंगाल रकूल के नाम से प्रसिद्ध है। दूसरी ओर यंबई के सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स से संबद्ध कलाकरों ने विभिन्न भारतीय चित्रशैलियों यथा अजंता, राजपूत, कांगड़ा आदि का अध्ययन कर भारतीय कला के विकसिक रूप के साथ एक सर्वथा नवीन रूप प्रस्तुत किया, जो बंबई स्कूल ऑफ आर्ट्स के नाम से जाना जाता है। इसने भारतीय चित्रकला को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर दिया।
  तीसरी शैली वर्ग में उन चित्रकला प्रवृत्तियों को रखा जाता है, जिनका प्रदुर्भाव स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हुआ। स्वतंत्र्योत्तर काल में कला के आयामों की अवधारणा में परिवर्तन आया। वह अब देश तथा काल की सीमाएं लांघ कर स्थानीयता से मुक्त होने का प्रयास करने लगी। इस वर्ग ने कला को सार्वदेशिक और सर्वकालीक माना। इनकी प्रेरणा का कंन गरिस भा। इत्त प्रवृत्ति को नंदलाल वसु, अवनीन्द्रनाथ आदि कलाकार प्रमुख हैं।

छत्तीसगढ़ में आधुनिक चित्रकला - प्रदेश में आधुनिक चित्रकला के केन्द्र यहा के शासकीयः - शासकीय , अशासकीय कला महाविद्यालय और कला संस्थाएं हैं , जिनमें प्रदेश का संगीत विश्वविद्यालय गैरागढ एव अन्ला संगीत संस्थान प्रमुख हैं । ये संस्थाए ही प्रदेश में विविध कलात्मक गतिविधियों का संचालन कर रही है । यहां फाईन आर्टस के अंतर्गत चित्रकला का अध्ययन व प्रशिक्षण कलाकारों को मिलता है । रायपुर प्रदेश का मुत्य मित्रफला केन्द्र है । भिलाई सयंत्र द्वारा सचालित आर्ट गैलरी भी इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही है ।

प्रमुख चित्रकार - राज्य के कलात्मक विकास में रायपुर के सर्वश्री कल्याण प्रसाद शर्मा , ची सगाई , ए के मुखर्जी , मनोहरलाल यदु और ए के दानी आदि का योगदान महत्वपूर्ण रहा है । लोककला के अभिप्रायों में पली - खूबी से श्री  शर्मा ने अपने चित्रों में चित्रित किया है । वर्तमान में निरंजन महादर एवं डॉ प्रवीण शर्मा आदि चित्रकला सक्रिय है । यहां से कलाकृति नामक पत्रिका का प्रकाशन भी होता है ।

निरंजन महावर - ये पिछले 30 वर्षों से कविता , पेंटिग , मूर्तिकला त फोटोग्राफी के दोष में सक्रिय है । इनकी लोक कला पंड संग्रह ने विश्वभर में प्रसिद्धि प्राप्त की । ये आदिवासी लोककलाओं से संबंधित नासा की आदिवासी कला  छत्तीसगढ़ का विश्वकोष , भारत का लोक रंगमंच ' विषयक तीन वृहद परियोजनाओं पर कार्यरत रहे । इनके पास आदिवासी एवं लोककला कृतिया का महत्त्वपूर्ण निजी संग्रह है ।

डॉ . प्रवीण शर्मा - इनका जन्म 18 जुलाई , 1961 को रायपुर में हुआ था । ये महाकौशल फाईन आर्टस इस्टीटयूट में प्राचार्य और के पी . शर्मा , लाईबेरी , रायपुर में निदेशक तथा साथ में ना तकनीकी शिक्षा मंडल भोगल के सदस्य भी रह चुके हैं । इन्होंने 42 राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय कला प्रदर्शनी में हिस्सा लिया है । इन्हें लगातार तीन बार भारतीय कला प्रदर्शनी 1982-84 में अवार्ड प्राप्त हुआ है ।