संत कवि पवन दीवान की जयंती एक जनवरी पर विशेष आलेख - स्वराज करुण
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए अपनी मर्मस्पर्शी और ओजस्वी कविताओं के माध्यम से कई दशकों तक जन -जागरण में लगे पवन दीवान आज अगर हमारे बीच होते तो 76 साल के हो चुके होते । लेकिन तब भी उनमें युवाओं जैसा जोश और ज़ज़्बा जस का तस कायम रहता।
वह छत्तीसगढ़ी और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में समान रूप से लिखने और सस्वर काव्यपाठ करने वाले लोकप्रिय कवि थे, जिन्हें संत कवि के नाम से भी सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में अपार लोकप्रियता मिली। भागवत प्रवचनकर्ता के रूप में भी वह काफी लोकप्रिय रहे। उनका आध्यात्मिक नाम -स्वामी अमृतानन्द सरस्वती था।
अब वह हमारे बीच नहीं हैं ,लेकिन आज अंग्रेजी कैलेण्डर के प्रथम पृष्ठ पर नये साल का पहला दिन उनकी जयंती के रूप में हमें उनके विलक्षण व्यक्तित्व की और उनकी कविताओं की याद दिला रहा है। चाहे कड़ाके की ठंड हो, चिलचिलाती गर्मी हो, या फिर घनघोर बारिश! हर मौसम में और हर हाल में गौर वर्णीय देह पर वस्त्र के नाम पर सिर्फ़ एक गेरुआ गमछा! यही था उनके आध्यात्मिक जीवन का सादगीपूर्ण पहनावा।
इसके साथ ही सबको सम्मोहित करने वाला उनका आकर्षक अट्टहास, लेकिन इस अट्टहास के पीछे वह अपने अंतर्मन की व्यथा को छुपकर रखते थे, जो उनकी कविताओं में प्रकट होती थी। देश और विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के किसानों ,मज़दूरों और आम जनों की कारुणिक परिस्थितियाँ उन्हें हमेशा व्यथित और विचलित करती थीं।
राज्य के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. परदेशीराम वर्मा ने वर्ष 2011 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘सितारों का छत्तीसगढ़’ में यहाँ के जिन 36 सितारों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपने 36 आलेखों में विस्तार से जानकारी दी है ,उनमें पवन दीवान भी शामिल हैं। लेखक ‘मातृभूमि और छत्तीसगढ़ के लिए समर्पित फ़क़ीर – संत कवि पवन दीवान ‘शीर्षक अपने आलेख में कहते हैं —
संत सदैव सत (सत्य ) का पक्ष लेते हैं। वे राजा से भी नहीं डरते। संत पवन दीवान इस दौर के ऐसे ही अक्खड़ संत हैं। उनकी आवाज़ पर लाखों -लाख लोग पंक्तिबद्ध हो जाते हैं। उनकी वाणी के जादू से बंधे लाखों लोग सप्ताह भर भुइंया पर बैठकर कथा सुनते हैं।
उनकी कविता लाल किले में गूंज चुकी है।। वे छत्तीसगढ़ के दिलों में बसते हैं। उनका अट्टहास चिन्ता -संसो में पड़े लोगों को बली बनाता है।वे योद्धा संन्यासी हैं। संसार से डरकर भागने फिरने वाले संन्यासी नहीं ,बल्कि ताल ठोंककर इस दौर के मलिन हृदय -द्रोहियों से लड़ जाने वाले योद्धा संन्यासी हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ महतारी के लिए अपना घर -द्वार त्याग दिया।
वे जन -जन के नायक हो गए। और तो और ,उन्होंने गमछा कमर में बाँधकर शेष वस्त्र भी त्याग दिया। ‘जतके ओढ़ना -ततके जाड़ ‘ अट्टहास करते हुए दीवान जी ने यह संदेश हमें दिया। गाँधीजी ने कहा था कि जितनी जरूरत हो उतना ही एकत्र करो।
उन्होंने भी अपने देश के भूखे -नंगे भाइयों -बहनों की हालत देखकर वस्त्र तक को कम से कम पहनकर संदेश दिया कि हमें दूसरों के साथ जुड़ना चाहिए।उनके दुःख को बाँटना चाहिए।सत्य ,अहिंसा , अपरिग्रह आदि गाँधीजी के सिद्धांत हैं। संत पवन दीवान ने इन सिद्धांतों को जीवन में उतारा है। इन सिद्धांतों के लिए खुद को तपाया है।इसलिए उन्हें छत्तीसगढ़ का गाँधी भी कहा गया है। छत्तीसगढ़ भर में यह नारा ख़ूब गूँजता है (था )-” पवन नहीं यह आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है।”
छत्तीसगढ़ के माटी -पुत्र संत पवन दीवान का जन्म एक जनवरी 1945 को तत्कालीन रायपुर जिले में राजिम के पास महानदी के निकटवर्ती ग्राम किरवई में हुआ था । वर्तमान में यह गाँव बिन्द्रानवागढ़ ( गरियाबंद ) जिले में है। उनका निधन 2 मार्च 2016 गुरुग्राम (हरियाणा) के एक अस्पताल में हुआ। अगले दिन 3 मार्च को राजिम स्थित उनके ब्रम्हचर्य आश्रम परिसर में उनकी पार्थिव काया समाधि में लीन हो गयी ।यजुर्वेद के शांति – मन्त्र और वैदिक विधि -विधान के साथ उनके हजारों श्रद्धालुओं और प्रशंसकों ने अश्रुपूरित नेत्रों से उनके अंतिम दर्शन किए।
दीवान जी की महाविद्यालयीन शिक्षा रायपुर में हुई ,जहाँ उन्होंने हिन्दी ,संस्कृत और अंग्रेजी में एम.ए. किया। वह छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रमुख नेताओं में थे। दीवान जी वर्ष 1977 से 1979 तक संयुक्त मध्यप्रदेश में राजिम से विधायक और मध्यप्रदेश सरकार के जेल मंत्री और वर्ष 1991 से 1996 तक छत्तीसगढ़ के महासमुंद से लोकसभा सांसद रहे।
राजिम स्थित संस्कृत विद्यापीठ में लम्बे समय तक प्राचार्य के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश निर्माण के बाद राज्य शासन की संस्था छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष पद का भी दायित्व संभाला।
वर्ष 1970 के दशक में राजिम से साहित्यिक लघु पत्रिका ‘अंतरिक्ष ‘ ,’महानदी ‘ और ‘ बिम्ब’ का सम्पादन और प्रकाशन। समाचार पत्र -पत्रिकाओं में उनकी कविताएं वर्षों तक छपती रहीं। वह कवि सम्मेलनों के भी प्रमुख आकर्षण हुआ करते थे।
उनके प्रकाशित काव्य संग्रह हैं (1) अम्बर का आशीष (2) मेरा हर स्वर इसका पूजन और (3) छत्तीसगढ़ी गीत। समकालीन राजनीति ने उनके साहित्यिक व्यक्तित्व को कुछ वर्षों तक नेपथ्य में डाल रखा था। इसके बावज़ूद जनता के बीच उनकी सबसे बड़ी पहचान कवि के रूप में ही बनी रही।
एक समय ऐसा भी था, जब कवि सम्मेलनों के मंचों पर चमकदार सितारे की तरह अपनी रचनाओं का प्रकाश बिखेरते हुए वह सबके आकर्षण का केन्द्र बने रहते थे। भारत माता और छत्तीसगढ़ महतारी की माटी के कण -कण में व्याप्त मानवीय संवेदनाओं को अपनी कविताओं के जरिए जन -जन तक पहुँचा कर उन्होंने देश और समाज को राष्ट्र प्रेम और मानवता का संदेश दिया।
इसे हम उनके काव्य -संग्रह ‘अम्बर का आशीष ‘ में प्रकाशित उनकी एक रचना ‘ मेरा हर स्वर इसका पूजन ‘ की इन पंक्तियों में महसूस कर सकते हैं —
माटी से तन ,माटी से मन , माटी से ही सबका पूजन
मेरा हर स्वर इसका पूजन , यह चन्दन से भी है पावन ।
जिसके स्वर से जग मुखरित था ,वह माटी में मौन हो गया ,
चाँद-सितारे पूछ रहे हैं ,शांति घाट में कौन सो गया ?
इस माटी से मिलने सागर ,लहरों में फँसकर व्याकुल है ,
अवतारों का खेल रचाने ,अम्बर का वासी आकुल है ।
इसका दुर्लभ दर्शन करने ,स्वर्ग धरा पर आ जाता है,
इसकी मोहक हरियाली से नन्दन भी शरमा जाता है।
जब माटी में प्राण समाया ,तो हँसता इन्सान बन गया
माटी का कण ही मंदिर में ,हम सबका भगवान बन गया ।
जिसका एक सपूत हिमालय ,तूफ़ानों में मौन खड़ा है ,
यह रचना का आदि अन्त है ,इस माटी से कौन बड़ा है ?
कवि अपने देश की माटी की महिमा से भी प्रभावित और आल्हादित है। पवन दीवान ‘ मेरे देश की माटी ‘ शीर्षक अपनी रचना में माटी का जयगान करते हुए कहते हैं —
तुझमें खेले गाँधी ,गौतम ,कृष्ण ,राम ,बलराम ,
मेरे देश की माटी तुझको सौ -सौ बार प्रणाम ।
नव -बिहान का सूरज बनकर चमके तेरा नाम ,
मेरे देश की माटी तुझको सौ -सौ बार प्रणाम ।
सामाजिक विसंगतियों के साथ मनुष्य के भटकाव और सांस्कृतिक पतन को देखकर किसी भी संवेदनशील कवि हृदय का विचलित होना बहुत स्वाभाविक है। पवन दीवान का कवि -हृदय भी इस दर्द से अछूता नहीं था। तभी तो उनकी अंतर्रात्मा एक दिन इस पीड़ा से कराहते हुए कहने लगी —
कोई कहता है चिंतन का सूरज भटक गया है ,
कोई कहता है चेहरों का दर्पण चटक गया है ।
कोई अंधकार के आगे घुटने टेक रहा है,
कोई संस्कृति के माथे पर पत्थर फेंक रहा है।
रोज निराशा की खाई क्यों गहराती जाती है,
क्यों सच्चाई को कहने से आत्मा घबराती है ?
हम पानी में खड़े हुए हैं , फिर भी क्यों प्यासे हैं ,
हम ज़िन्दा हैं या कोई चलती -फिरती लाशें हैं ?
हमारे महान पूर्वजों की तरह छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण सन्त कवि पवन दीवान का भी एक बड़ा सपना था । इसके लिए उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से जनमत निर्माण का भी सार्थक प्रयास किया । वह छत्तीसगढ़ की जनता में आ रही जागृति को लेकर आशान्वित थे ,लेकिन कई बार समाज में व्याप्त खामोशी उन्हें विचलित करती थी । उनकी कलम से निकली उनकी भावनाओं को इन पंक्तियों में आप भी महसूस कीजिए —
घोर अंधेरा भाग रहा है , छत्तीसगढ़ अब जाग रहा है ,
खौल रहा नदियों का पानी, खेतों में उग रही जवानी ।
गूंगे जंगल बोल रहे हैं, पत्थर भी मुँह खोल रहे हैं।
कसम हमारी सन्तानों की, निश्छल ,निर्मल मुस्कानों की,
गाँवों के शोषित दुखियारे, लुटे हुए बेज़ानों की।
छत्तीसगढ़ में सब कुछ है , पर एक कमी है स्वाभिमान की,
मुझसे सही नहीं जाती है ऐसी चुप्पी वर्तमान की ।
पवन दीवान का कवि हृदय देश में व्याप्त सामाजिक -आर्थिक विषमता की दिनों दिन गहराती और चौड़ी हो रही खाई को देखकर भी विचलित है। वह महानगरों को जीवन का संदेश सुनाना चाहता है —
ओ थके पथिक ! विश्राम करो, मैं बोधि वृक्ष की छाया हूँ,
इस महानगर में जीवन का संदेश सुनाने आया हूँ।
मुझको सहन नहीं होगा ,कोई भी प्राण उदास मरे,
ओ महलों वाले! ध्यान रखो, कोई भी कंठ न प्यास मरे।
महलों के लिए गरीबों का दिन-रात पसीना बहता है ,
उजड़ी कुटिया का सूनापन ,निज राम कहानी कहता है।
वर्तमान युग में तीव्र गति से हो रहे मानव समाज के भौतिक विकास को लेकर पवन दीवान का यह मानना था कि ऐसा विकास हमारे सुख और आनन्द की कीमत पर नहीं होना चाहिए । वर्ष 2010 में प्रकाशित अपने काव्य -संग्रह के प्रारंभ में उन्होंने ‘साहित्य साधना है ‘ शीर्षक से अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में लिखा है —
” मन ही मनुष्य की स्वतंत्रता और गुलामी का कारण है। विषय-वासना विष से भी ज्यादा ख़तरनाक़ है। हमारी कर्मेन्द्रियां विषय की ओर खींचती हैं। संसार से जुड़ना योग है। साहित्य साधना है। काव्य का सृजन उत्कर्ष के लिए हो, जन -मन के आनन्द के लिए हो, मानव -समाज के हित के लिए हो। सवाल है कि दुनिया में विकास होना ठीक है। किन्तु यदि विकास हमारे सुख और आनन्द की कीमत पर हो, तो वह किस काम का, जो मनुष्य को मात्र मशीन बनाकर रख दे !”
दीवान जी के इस काव्य संग्रह का प्रकाशन उनके शिष्य और छत्तीसगढ़ी भाषा के लोकप्रिय कवि (अब स्वर्गीय )लक्ष्मण मस्तुरिया ने बहुत प्रयास करके उनकी कुछ रचनाओं को संकलित करने के बाद किया था। उन्होंने रायपुर स्थित अपनी संस्था ‘लोकसुर प्रकाशन ‘ के माध्यम से इसे प्रकाशित किया था। इसमें दीवान जी की छोटी -बड़ी 117 कविताएं शामिल हैं। इस काव्य -संग्रह की भूमिका में लक्ष्मण मस्तुरिया ने लिखा है —
“संचयन ,मंचयन आडम्बर और छल -प्रपंच से बिदकने वाले संत कवि ने तो अपनी काव्य -रचनाओं से भी मोह नहीं किया। पता नहीं, कितनी रचनाओं की डायरी खो गयी, कहीं पांडुलिपि गायब हो गयी। स्व. ओंकार शुक्ल के सौजन्य से एक संकलन किसी तरह प्रकाशित किया गया था उसका भी कहीं अता -पता नहीं, कहीं कोई जिक्र करने वाला नहीं है।
विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमों में कहीं उनकी रचनाएं सम्मिलित दिखाई नहीं देतीं। दीवान जी के कई शुभचिंतकों ने मुझसे कई बार कहा कि उनकी कोई किताब है क्या? हमारा यह प्रयास इसी उद्देश्य के लिए है कि संत कवि श्री पवन दीवान की रचनाएं साहित्य जगत से ओझल न होने पाएं।उनके कृतित्व का समुचित मूल्यांकन होना चाहिए। ”
यह सच है कि संत पवन दीवान जैसे बड़े कवि की रचनाओं का मूल्यांकन अवश्य होना चाहिए। लेकिन करेगा कौन? मेरे विचार से समय ही सबसे बड़ा मूल्यांकनकर्ता है। कवि और लेखक तो रचनाओं में अपनी बात कहकर दुनिया से एक न एक दिन चले ही जाते हैं और रह जाती हैं उनकी रचनाएं , जिनका मूल्यांकन सिर्फ़ समय ही कर सकता है।
लेकिन ‘समय ‘ के लिए भी यह तभी संभव है, जब सबसे पहले उन रचनाओं का ठीक से संरक्षण हो। कई साहित्यकारों का यह दुर्भाग्य रहा है कि दुनिया से उनके जाने के बाद उनके घर -परिवार में कोई भी उनकी रचनाओं को संभालकर रखने वाला नहीं होता । सब अपनी अपनी-अपनी दुनियादारी में व्यस्त हो जाते हैं।
अगर परिवार में कोई साहित्यिक रुचि का सदस्य हो तो शायद वह उनकी कृतियों को संरक्षित कर सकता है, लेकिन ऐसा बहुत कम ही देखने में आता है। ऐसे में स्थानीय साहित्यिक संस्थाओं की यह नैतिक ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि वे अपने यहाँ के दिवंगत कवियों, कहानीकारों और अन्य विधाओं के दिवंगत रचनाकारों की प्रकाशित-अप्रकाशित, हर तरह की रचनाओं को संकलित और संरक्षित करें और अप्रकाशित कृतियों के प्रकाशन के लिए पहल और प्रयास करते रहें। स्थानीय वाचनालयों में उनकी पुस्तकों और पांडुलिपियों को अलग से सुरक्षित रखकर प्रदर्शित भी किया जा सकता है।
आलेख
श्री स्वराज करुण,
वरिष्ठ साहित्यकार रायपुर, छत्तीसगढ़
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संत कवि अउ भगवताचार्य - पवन दीवान जी
जउन मन मा हा छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ला जगाय के गजब उदिम करिस वोमन मन मा श्रद्धेय खूबचंद बघेल , कृष्णा रंजन , हरि ठाकुर ,लक्ष्मण मस्तुरिया , अउ संत कवि, भगवताचार्य पवन दीवान के नांव अव्वल हवय । दीवान जी हा बाहरी मनखे मन के द्वारा जउन शोषण करे जात रिहिस वोकर अब्बड़ विरोध करिन. लाल किला ले काव्य पाठ कर छत्तीसगढ़ के मान बढाइन.
दीवान जी के जनम किरवई गांव मा 1 जनवरी 1945 मा होय रिहिस । वोकर कर्मभूमि राजिम के संगे संग पूरा छत्तीसगढ़ रिहिन ।
वे एक भगवताचार्य के संगे संग बड़का साहित्यकार अउ राजनीतिज्ञ रिहिन। विधायक, सांसद अउ अविभाजित मध्य प्रदेश के मंत्री घलो बनिस । गौ सेवा आयोग छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष बनाय गिस ।
दीवान जी के भागवत प्रवचन मेहा पहिली बार राजनांदगांव जिला के गांव भर्रेगांव मा सुने रेहेंव ।वो समय मेहा मीडिल स्कूल मा पढ़त रेहेंव ।वो समय वोहा जवान रिहिन हे । वोकर भागवत प्रवचन सुने बर अपार जन समूह उमड़ पड़े । वोकर जोरदार ठहाका ला भर्रेगांव मा सुने रेहेंव । जब वोहा हंसय ता सब ला हंसा के छोड़य । अइसने बुचीभरदा (सुरगी) मा घलो वोकर प्रवचन के लाभ उठाय रेहेंव ।बीच बीच मा अपन कविता सुना के मनोरंजन करे के संगे संग लोगन मन मा जागरुकता लाय । अपन हक बर आगू आके लड़े के प्रेरणा देवय ।
सन् 2001 मा कन्हारपुरी, राजनांदगांव मा छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन मा दीवान जी के काव्य पाठ सुने के अवसर मिलिस. येकर बाद छत्तीसगढ़ राज
भाषा आयोग के प्रांतीय सम्मेलन मा उंकर सुग्घर विचार सुने ला मिलिस. सौभाग्य से हमू मन ला माई पहुना के रुप मा दीवान जी के दर्शन होइस वोकर सुग्घर बिचार सुने के संगे संग हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी कविता ला सुनके धन्य होगेन ।
जब साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव द्वारा 10 जून 2007 मा होवइया आठवां वार्षिक सम्मान समारोह बर निमंत्रण छपवायेन ता सुरगी के संगे संग आस पास के गांव के लोगन मन ला एको कनक बिश्वास नइ होय कि पवन दीवान जी हा इंकर कार्यक्रम मा आही!
ये सब संभव हो पाय रिहिस डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी के कारण । मूलत : भाटापारा (बलौदाबाजार) निवासी वर्मा जी वो समय दिग्विजय कालेज राजनांदगांव मा हिन्दी के प्रोफेसर रिहिन । वर्मा जी अउ हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के कुबेर सिंह साहू जी , वरिष्ठ कहानीकार डॉ. परदेशी राम वर्मा जी से बढ़िया संबंध बन गे रिहिस । एकर से पहिली डॉ. वर्मा जी हाै हमर वार्षिक समारोह मा दो तीन बार पहुना के रूप मा पहुंच चुके रिहिन ।ये प्रकार ले साकेत परिषद् ले सुग्घर संबंध बन गे रिहिन ।डॉ. परदेशी राम वर्मा जी कृपा ले पवन दीवान जी के सुरगी आगमन होइस ।संगे संग हमर छत्तीसगढ़ के मुखिया आदरणीय भूपेश बघेल जी हा घलो पहुना बन के आय रिहिन । वो समय बघेल जी हा विपक्ष मा दमदार नेता रिहिन ।
ये कार्यक्रम मा दीवान जी के हाथ ले छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति राजनांदगांव के अध्यक्ष आत्मा राम कोशा अमात्य जी अउ साकेत के तत्कालीन सचिव अउ वर्तमान अध्यक्ष भाई लखन लाल साहू लहर जी ला साकेत सम्मान 2007 प्रदान करिन ।
इहाँ दीवान जी हा अपन विचार राखिस तेमा छत्तीसगढ़ी भाखा ला राजभाषा बनाय के मांग करे गिस । येमा पारित प्रस्ताव ला राज्य शासन के पास भेजे गिस.येकर बर डॉ. परदेशी राम वर्मा जी के साथ मिलके अभियान घलो चलाइस ।अपन उद्बोधन के माध्यम से छत्तीसगढ़िया मन ला जागरुक करिन।बीच बीच मा अपन जोरदार ठहाका ले लोगन मन ला गजब हंसाइस ।दीवान जी हा किहिस - "हमर छत्तीसगढ़ हा माता कौशल्या के मइके हरय तेकर सेति भगवान राम हा इहां के भांचा कहलाथे । तेकरे सेति हमर छत्तीसगढ़ मा भांचा भांची ला गजब सम्मान देय जाथे । आगे किहिस कइसे सुग्घर ढंग ले कहिथन - कइसे भांचा राम । सब बने बने भांचा राम । कोनो हा कैसे भांचा कृष्ण नइ काहय ।अउ कहइया हा अइसने कहि दिस ता वोहा का कहाही ।अइसन कहिके फेर जमगरहा ठहाका लगाइस अउ उपस्थित लोगन मन जोरदार ताली बजा के सभा ला गुंजायमान करिन । ये कार्यक्रम हा
सुरगी के शनिचर बाजार चौक के मुख्य मंच मा होइस ।दीवान जी हा किहिस कि मेहा पहिली बार कोनो साहित्यिक कार्यक्रम ला खुला मंच मा होवत देखत हंव।"अइसे कहिके परिषद् के लोगन मन ला प्रोत्साहित करिस ।
साथ मा हमर गांव " सुरगी "
के सुग्घर व्याख्या घलो कर दिस " सुर " माने देवता अउ "गी " माने गांव ।
एकर बाद दीवान जी हा" राख " "चन्दा " अउ "तोर धरती तोर माटी रे भइया "कविता सुनाके काव्यप्रेमी मन ला आनंदित करिन. तो ये किसम ले संत कवि पवन दीवान जी के कार्यक्रम हा यादगार बनिस ।हमर साकेत के कार्यक्रम मा पहुंच के परिषद् ला गौरवान्वित करिन । 10 जून 2007 हा हमर परिषद् अउ गांव बर ऐतिहासिक तिथि के रुप मा अंकित रही । 2 मार्च 2016 मा दीवान जी हा स्वर्ग लोक चले गिस ।
शत् शत् नमन हे
ओमप्रकाश साहू अंकुर
सुरगी, राजनांदगांव
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छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाने वाले राजिम (महानदी पैरी और सोदूर नदी का जीवंत संगम) के पास स्थिति किरवई गांव में 01 जनवरी 1945 को प्रतिष्ठित ब्राम्हण परिवार में जन्मे पवन दीवान की प्रारंभिक शिक्षा फिंगेश्वर में हुई। जहां दीवान जी ने प्राथमिक शिक्षा ली I हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में एम.ए. करने वाले पवन दीवान जब संस्कृत कालेज रायपुर में पढ़ते थे तब आचार्य रजनीश भी वहां व्याख्याता थे। छात्र जीवन से ही साहित्य सृजन करने वाले दीवानजी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी में कविता भी करने लगे थे, वैसे उन्होंने कुछ कविताएं अंग्रेजी में भी लिखी थी। कविता करते करते वे भागवत प्रवचन में लग गये और छत्तीसगढ़ की हालत, दलितों की पीड़ा और अन्यत्र कारणों से व्यथित होकर उन्होंने स्वर्गधाम मैनपुरी ऋषिकेश के स्वामी भजनानंद जी महाराज से दीक्षा लेकर वैराग्य के मार्ग पर बढ़ चले। उनका नाम भी दीक्षा के बाद स्वामी अमृतानंद हो गया हालांकि वे पवन दीवान के नाम से पहचाने जाते थे।
आपातकाल के समय उन्होंने 'पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी से भी रायपुर से चुनाव लड़ा उन्हें सफलता से तो नहीं मिली पर 'पृथक छत्तीसगढ़ राज्य' के लिए अलख जगाने का बीज उन्होंने रोपित ही दिया। स्व. खूबचंद बघेल से लेकर स्व. चंदूलाल चंद्राकर के सतत् संपर्क में रहकर उन्होंने 'पृथक छत्तीसगढ़ के लिए जमकर संघर्ष भी किया। उनके बारे में एक नारा बहुत उछला था 'पवन नहीं वह आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी है '.
वर्ष 1975 में आपात काल के बाद सन 1977 में जनता पार्टी से राजिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। एक युवा संत कवि के सामने तब कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामाचरण शुक्ल कांग्रेस पार्टी से मैदान में थे, श्यामाचरण शुक्ल को हराकर सबको चौंका दिया था। तब उस दौर में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है। श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेता को हराने का इनाम पवन दीवान को मिला और अविभाजित मध्य प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे। इसके बाद वे कांग्रेस के साथ आ गए और फिर पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनने तक कांग्रेस में रहे.पूर्व सरकार में गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे .
संवादात्मक कविता 'राख'
राखत भर ले राख …
तहाँ ले आखिरी में राख।।
राखबे ते राख…।।
अतेक राखे के कोसिस करिन…।।
नि राखे सकिन……
तेके दिन ले…।
राखबे ते राख…।।
नइ राखस ते झन राख…।
आखिर में होना च हे राख…।
तहूँ होबे राख महूँ होहू राख…।
सब हो ही राख…
सुरू से आखिरी तक…।।
सब हे राख…।।
ऐखरे सेती शंकर भगवान……
चुपर ले हे राख……।
उनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह 'मेरा हर स्वर इसका पूजन' और 'अम्बर का आशीष' उल्लेखनीय हैं। 'अंतरिक्ष' ,'बिम्ब' और 'महानदी' नामक साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन किया।समय गुजरते-गुजरते एक दिन ऐसा भी आया, जब अपनी खिलखिलाहट से समूचे छत्तीसगढ़ को हंसा देने वाले पवन दीवान का 2 मार्च, 2014 को दिल्ली में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।