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जनकवि कोदूराम 'दलित'



छत्तीसगढ़ मा छन्द के अलख जगइया - जनकवि कोदूराम "दलित"

छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के हर मंच ले दुनिया मा कविता के सब ले छोटे परिभाषा ला सुरता करे जाथे “जइसे मुसुवा निकलथे बिल ले, वइसे कविता निकलथे दिल ले” अउ एकरे संग सुरता करे जाथे ये परिभाषा देवइया जनकवि कोदूराम “दलित” जी ला. दलित जी के जनम ग्राम टिकरी (अर्जुन्दा) मा 05 मार्च 1910 के होइस. उनकर काव्य यात्रा सन् 1926 ले शुरू होईस. छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा उनकर बराबर अधिकार रहिस. गाँव मा बचपना बीते के कारन उनकर कविता मा प्रकृति चित्रण देखे ले लाइक रथे. दलित जी अपन जिनगी मा भारत के गुलामी के बेरा ला देखिन अउ आजादी के बाद के भारत ला घलो देखिन. अंग्रेज मन के शासन काल मा सरकार के विरोध मा बोले के मनाही रहिस, आन्दोलन करइया मन ला पुलिसवाला मन जेल मा बंद कर देवत रहिन. अइसन बेरा मा दलित जी गाँव गाँव मा जा के अपन कविता के माध्यम ले देशवासी मन हे हिरदे मा देशभक्ति के भाव ला जगावत रहिन. दोहा मा देशभक्ति के सन्देश दे के राउत नाचा के माध्यम ले आजादी के आन्दोलन ला मजबूत करत रहिन. आजादी के पहिली के उनकर कविता मन आजादी के आव्हान रहिन. आजादी के बाद दलित जी अपन कविता के माध्यम ले सरकारी योजना मन के भरपूर प्रचार करिन. समाज मा फइले अन्धविश्वास, छुआछूत, अशिक्षा  जइसन कुरीति ला दूर करे बर उनकर कलम मशाल के काम करिस.
जनकवि कोदूराम “दलित” जी के पहचान छत्तीसगढ़ी कवि के रूप मा होइस हे फेर उनकर हिन्दी भाषा ऊपर घलो समान अधिकार रहिस. लइका मन बर सरल भाषा मा बाल कविता, जनउला, बाल नाटक, क्रिया गीत रचिन. तइहा के ज़माना मा ( सन् पचास के दशक) जब छत्तीसगढ़ी भाषा गाँव देहात के भाषा रहिस कोदूराम दलित जी आकाशवाणी नागपुर, भोपाल, इंदौर मा जा के छत्तीसगढ़ी भाषा मा कविता  अउ कहानी सुनावत रहिन. छत्तीसगढ़ी भाषा ला कविसम्मेलन के मंच मा स्थापित करइया शुरुवाती दौर के कवि मन मा उनला सुरता करे जाही. दलित जी के भाषा सरल, सरस औ सुबोध रहिस. व्याकरण के शुद्धता ऊपर वोमन ज्यादा ध्यान देवत रहिन इही पाय के उनकर ज्यादातर कविता मन मा छन्द के दर्शन होथे. दलित जी के हिन्दी रचना मन घलो छन्दबद्ध हें.   पंडित सुंदरलाल शर्मा के बाद कोनो कवि हर छत्तीसगढ़ मा छन्द ला पुनर्स्थापित करिस हे त वो कवि कोदूराम "दलित" आय. 28 सितम्बर 1967 के दलित जी के निधन होइस। दलित जी के छन्दबद्ध रचना ला छन्द विधान सहित जानीं।
 
दोहा छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 13 अउ 11 मात्रा मा यति होथे। कोदूराम दलित जी के नीतिपरक दोहा देखव -

संगत सज्जन के करौ, सज्जन सूपा आय।
दाना दाना ला रखै, भूँसा देय उड़ाय।।

दलित जी मूलतः हास्य व्यंग्य के कवि रहिन। उनकर दोहा मा समाज के आडम्बर ऊपर व्यंग्य देखव -

ढोंगी मन माला जपैं, लम्भा तिलक लगाँय।
मनखे ला छीययँ नहीं, चिंगरी मछरी खाँय।।

बाहिर ले बेपारी मन आके सिधवा छत्तीसगढ़िया ऊपर राज करे लगिन। ये पीरा ला दलित जी व्यंग्य मा लिखिन हें –

फुटहा लोटा ला धरव, जावव दूसर गाँव।
बेपारी बनके उहाँ, सिप्पा अपन जमाँव।।

टिकरी गाँव के माटी मा जनमे कवि दलित के बचपना गाँवे मा बीतिस। गाँव मा हर चीज के अपन महत्व होथे। गोबर के सदुपयोग कइसे करे जाय, एला बतावत उनकर दोहा देखव –

गरुवा के गोबर बिनौ, घुरवा मा ले जाव।
खूब सड़ो के खेत बर, सुग्घर खाद बनाव।।

छत्तीसगढ़ धान के कटोरा आय। इहाँ के मनखे के मुख्य भोजन बासी आय। दलित जी भला बासी के गुनगान कइसे नइ करतिन –

बासी मा गुन हे गजब, येला सब मन खाव।
ठठिया भर पसिया पियव, तन ला पुष्ट बनाव।।

दलित जी किसान के बेटा रहिन। किसानी के अनुभव उनकर दोहा मा साफ दिखत हे –

बरखा कम या जासती, होवय जउने साल।
धान-पान होवय नहीं, पर जाथै अंकाल।।

जनकवि कोदूराम "दलित" जी नवा अविष्कार ला अपनाये के पक्षधर रहिन। ये प्रगतिशीलता कहे जाथे। कवि ला बदलाव के संग चलना पड़थे। देखव उनकर दोहा मा विज्ञान ला अपनाए बर कतिक सुग्घर संदेश हे –

आइस जुग विज्ञान के, सीख़ौ सब विज्ञान।
सुग्घर आविष्कार कर, करौ जगत कल्यान।।

सोरठा छन्द - ये दोहा के बिल्कुले उल्टा होथे। यहू दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों विषम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ विषम चरण के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 11 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।

बंदँव बारम्बार, विद्या देवी सरस्वती।
पूरन करहु हमार, ज्ञान यज्ञ मातेस्वरी।।

उल्लाला छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। विषम अउ सम चरण  या सम अउ सम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ हर चरण दोहा के विषम चरण असन होथे। ये छन्द मा 13 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।

खेलव मत कोन्हों जुआ, करव न धन बरबाद जी।
आय जुआ के खेलना, बहुत बड़े अपराध जी।।

 
सरसी छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 16 अउ 11 मात्रा मा यति होथे। दलित जी सन् 1931 मा दुरुग आइन अउ इहें बस गें। वोमन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। उनकर सरसी छन्द मा गुरुजी के पीरा घलो देखे बर मिलथे –

चिटिक प्राथमिक शिक्षक मन के, सुनलो भइया हाल।
महँगाई के मारे निच्चट , बने हवयँ कंगाल।।

गुरुजी मन के हाल बर सरकार ऊपर व्यंग्य देखव –
 
जउन देस मा गुरूजी मन ला, मिलथे कष्ट अपार।
कहै कबीरा तउन देस के , होथे बंठाढार।।

दलित जी अइसन गुरुजी मन ऊपर घलो व्यंग्य करिन जउन मन अपन दायित्व ला बने ढंग ले नइ निभावँय –

जउन गुरूजी मन लइका ला, अच्छा नहीं पढ़ायँ।
तउन गुरूजी अपन देस के, पक्का दुस्मन आयँ।।

रोला छन्द - चार पद, दू - दू पद मा तुकांत, 11 अउ 13 मात्रा मे यति या हर पद मा कुल 24 मात्रा।
दलित जी के ये रोला छन्द मा बात के महत्ता बताये गेहे –

जग के लोग तमाम, बात मा बस मा आवैं।
बाते मां  अड़हा - सुजान  मन चीन्हें जावैं।।
करो सम्हल के बात, बात मा झगरा बाढ़य।
बने-बुनाये काम,सबो ला  बात  बिगाड़य।।

आज के जमाना मा बेटा-बहू मन अपन ददा दाई ला छोड़ के जावत हें। इही पीरा ला बतावत दलित जी के एक अउ रोला छन्द –

डउकी के बन जायँ, ददा - दाई नइ भावैं।
छोड़-छाँड़ के उन्हला, अलग पकावैं-खावैं।।
धरम - करम सब भूल, जाँय भकला मन भाई।
बनँय ददा-दाई बर ये कपूत दुखदाई।।

छप्पय छन्द – एक रोला छन्द के बाद एक उल्लाला छन्द रखे ले छप्पय छन्द बनथे। ये छै पद के छन्द होथे। गुरु के महत्ता बतावत दलित जी के छप्पय छन्द देखव –

गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे।
माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे।।
मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे।
खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे।।
गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान जी।
गुरु के आदर नित करो, गुरु हर आय महान जी।।

चौपई छन्द - 15, 15 मात्रा वाले चार पद के छन्द चौपई छन्द कहे जाथे। चारों पद या दू-दू पद आपस मे तुकांत होथें।

धन धन रे न्यायी भगवान। कहाँ हवय जी आँखी कान।।
नइये ककरो सुरता-चेत। देव आस के भूत-परेत।।
एक्के भारत माँ के पूत। तब कइसे कुछ भइन अछूत।।
दिखगे समदरसीपन तोर। हवस निचट निरदई कठोर।।

चौपाई छन्द - ये 16, 16 मात्रा मे यति वाले चार पद के छन्द आय। एखर एक पद ला अर्द्धाली घलो कहे जाथे। चौपाई बहुत लोकप्रिय छन्द आय। तुलसीदास के राम चरित मानस मा चौपाई के सब ले ज्यादा प्रयोग होय हे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन कविता ला साकार घलो करत रहिन। उन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। अपन निजी प्रयास मा प्रौढ़ शिक्षा के अभियान चला के  आसपास के गाँव साँझ के जाके प्रौढ़ गाँव वाला मन ला पढ़ावत घलो रहिन। प्रौढ़ शिक्षा ऊपर उनकर एक चौपाई –

सुनव सुनव सब बहिनी भाई। तुम्हरो बर अब खुलिस पढ़ाई।।
गपसप मा झन समय गँवावव। सुरता करके इसकुल आवव।।
दू दू अक्छर के सीखे मा। दू-दू अक्छर के लीखे मा।।
मूरख हर पंडित हो जाथे। नाम कमाथे आदर पाथे।।
अब तो आइस नवा जमाना।हो गै तुम्हरे राज खजाना।।
आज घलो अनपढ़ रहि जाहू।तो कइसे तुम राज चलाहू।।

पद्धरि छन्द - ये 16, 16 मात्रा मा यति वाले दू पद के छ्न्द आय। एखर शुरुवात मा द्विकल (दू मात्रा वाले शब्द) अउ अंत मा जगण (लघु, गुरु, लघु मात्रा वाले शब्द) आथे। हर दू पद आपस मा तुकांत होथे। दलित जी अपन जागरण गीत मा पद्धरि छन्द के बड़ सुग्घर प्रयोग करिन हें –

झन सुत सँगवारी जाग जाग। अब तोर देश के खुलिस भाग।।
अड़बड़ दिन मा होइस बिहान। सुबरन बिखेर के उइस भान।।
घनघोर घुप्प अँधियार हटिस। ले दे के पापिन रात कटिस।।
वन उपवन माँ आइस बहार। चारों कोती छाइस बहार।।

मनहरण घनाक्षरी - कई किसम के घनाक्षरी छन्द होथे जेमा मनहरण घनाक्षरी सब ले ज्यादा प्रसिद्ध छन्द आय। येहर वार्णिक छन्द आय। 16, 15 वर्ण मा यति देके चार डाँड़ आपस मा तुकांत रखे ले मनहरण घनाक्षरी लिखे जाथे। चारों डाँड़ आपस मा तुकांत रहिथे। घनाक्षरी छन्द ला कवित्त घलो कहे जाथे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी के ये प्रिय छन्द रहिस। उनकर बहुत अकन रचना मन घनाक्षरी छन्द मा हें। कविता मा गाँव के नान नान चीज ला प्रयोग मा लाना उनकर विशेषता रहिस। ये मनहरण घनाक्षरी मा देखव अइसन अइसन चीज के बरतन हे जउन मन समे के संगेसंग नँदा गिन। चीज के नँदाए के दूसर प्रभाव भाजहा ऊपर पड़थे। चीज के संगेसंग ओकर नाम अउ शब्द मन चलन ले बाहिर होवत जाथें अउ शब्दकोश कम होवत जाथे। तेपाय के असली साहित्यकार मन अइसन चीज के नाम के प्रयोग अपन साहित्य मा करके ओला चलन मा जिन्दा राखथें। ये घनाक्षरी दलित जी अइसने प्रयास आय –

सूपा ह पसीने-फुने, चलनी चालत जाय
बहाना मूसर ढेंकी, मन कूटें धान-ला।
हँसिया पउले साग, बेलना बेलय रोटी
बहारी बहारे जाँता पिसय पिसान-ला।
फुँकनी फुँकत जाय, चिमटा ह टारे आगी
बहू रोज राँधे-गढ़े, सबो पकवान-ला।
चूल्हा बटलोही डुवा तेलाई तावा-मनन
मिलके तयार करें, खाये के समान-ला।।

जब अपन देश ऊपर कोनो दुश्मन देश हमला कर देथे तब कवि के कलम दुश्मन ला ललकारथे। सन् 1962 मा चीन हर हर देश ऊपर हमला करे रहिस। दलित जी के कलम के ललकार देखव -

चीनी आक्रमण के विरुद्ध (घनाक्षरी)

अरे बेसरम चीन, समझे रहेन तोला
परोसी के नता-मा, अपन बँद-भाई रे।
का जानी कि कपटी-कुटाली तैं ह एक दिन
डस देबे हम्मन ला, डोमी साँप साहीं रे ।
बघवा के संग जूझे, लगे कोल्हिया निपोर
दीखत हवे कि तोर आइगे हे आई रे।
लड़ाई लड़े के रोग, डाँटे हवै बहुँते तो
रहि ले-ले तोर हम, करबो दवाई रे ।।

अइसने सन् 1965 मा पाकिस्तान संग जुद्ध होइस। दलित जी के आव्हान ला देखव ये घनाक्षरी मा –
 
चलो जी चलो जी मोर, भारत के वीर चलो
फन्दी पाकिस्तानी ला, हँकालो मार-मार के।
कच्छ के मेड़ों के सबो, चिखलही भुइयाँ ला
पाट डारो उन्हला, जीयत डार-डार के।
सम्हालो बन्दूक बम , तोप तलवार अब
आये है समय मातृ-भूमि के उद्धार के।
धन देके जन देके, लहू अउ सोन देके
करो खूब मदद अपन सरकार के।।

गाँव मे पले-बढ़े के कारण दलित जी अपन रचना मन मा गाँव के दृश्य ला सजीव कर देवत रहिन। उनकर चउमास नाम के कविता घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। उहाँ के दू दृश्य मा छत्तीसगढ़ के गाँव के सजीव बरनन देखव –

बाढिन गजब माँछी बत्तर-कीरा "ओ" फांफा,
झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।
पानी-मां मउज करें-मेचका भिंदोल घोंघी,
केंकरा केंछुवा जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।
अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलयं,
बड़ बिखहर बिच्छी सांप-चरगोरिया ।
कनखजूरा-पताड़ा सतबूंदिया औ" गोहे,
मुंह लेड़ी धूर नाँग, कँरायत कौड़िया ।।

जनकवि कोदूराम "दलित" के एक प्रसिद्ध रचना "तुलसी के मया मोह राई छाईं उड़गे" मा गोस्वामी तुलसी दास के जनम ले लेके राम चरित मानस गढ़े तक के कहिनी घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। वो रचना के एक दृश्य देखव कि छत्तीसगढ़ के परिवेश कइसे समाए हे –

एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा,
ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के।
पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत,
मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के।
खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी,
फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के।
रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो,
थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।।

कुण्डलिया छन्द – ये छै डांड़ के छन्द होथे. पहिली दू  डांड़ दोहा के होथे ओखर बाद एक रोला छन्द रखे जथे. दोहा के चौथा चरण रोला के पहिली चरण बनथे. शुरू के शब्द या शब्द-समूह वइसने के वइसने कुण्डलिया के आखिर मा आना अनिवार्य होते. कोदूराम "दलित" जी  आठ सौ ले ज्यादा कविता लिखिन हें फेर अपन जीवन काल मा एके किताब छपवा पाइन - "सियानी गोठ"। ये किताब कुण्डलिया छन्द के संग्रह हे। कवि गिरिधर कविराय, कुण्डलिया छन्द के जनक कहे जाथें। उनकर परम्परा ला दलित जी, छत्तीसगढ़ मा पुनर्स्थापित करिन हें। साहित्य जगत मा कोदूराम "दलित" जी ला छत्तीसगढ़ के गिरिधर कविराय घलो कहे जाथे। गिरिधर कविराय के जम्मो कुण्डलिया छन्द नीतिपरक हें फेर दलित जी के कुण्डलिया छन्द मा विविधता देखे बर मिलथे। आवव कोदूराम "दलित" जी के कुण्डलिया छन्द के अलग-अलग रंग देखव –

नीतिपरक कुण्डलिया – राख

नष्ट करो झन राख –ला, राख काम के आय।
परय खेत-मां राख हर , गजब अन्न उपजाय।।
गजब  अन्न  उपजाय, राख मां  फूँको-झारो।
राखे-मां  कपड़ा – बरतन  उज्जर  कर  डारो।।
राख  चुपरथे  तन –मां, साधु,संत, जोगी मन।
राख  दवाई  आय, राख –ला नष्ट करो झन।।

सम सामयिक  - पेपर
पेपर मन –मां रोज तुम, समाचार छपवाव।
पत्रकार संसार ला, मारग सुघर दिखाव।।
मारग सुघर दिखाव, अउर जन-प्रिय हो जाओ।
स्वारथ - बर पेपर-ला, झन पिस्तौल बनाओ।।
पेपर मन से जागृति आ जावय जन-जन मा।
सुग्घर समाचार छपना चाही पेपर-मा।।

पँचसाला योजना  (सरकारी योजना) -
 
पँचसाला हर योजना, होइन सफल हमार।
बाँध कारखाना सड़क, बनवाइस सरकार।।
बनवाइस सरकार, दिहिन सहयोग सजाबो झन।
अस्पताल बिजली घर इसकुल घलो गइन बन।।
देख हमार प्रगति अचरज, होइस दुनिया ला।
होइन सफल हमार, योजना मन पँचसाला।।

अल्प बचत योजना - (जन जागरण)
अल्प बचत के योजना, रुपया जमा कराव।
सौ के बारे साल मा, पौने दू सौ पाव।।
पौने दू सौ पाव, आयकर पड़ै न देना।
अपन बाल बच्चा के सेर बचा तुम लेना।।
दिही काम के बेरा मा, ठउँका  आफत के।
बनिस योजना तुम्हरे खातिर अल्प बचत के।।

विज्ञान – (आधुनिक विचार)
आइस जुग विज्ञान के , सीखो  सब  विज्ञान।
सुग्घर आविस्कार कर ,  करो जगत कल्यान।।
करो जगत कल्यान, असीस सबो झिन के लो।
तुम्हू जियो अउ दूसर मन ला घलो जियन दो।।
ऋषि मन के विज्ञान , सबो ला सुखी बनाइस।
सीखो सब  विज्ञान,   येकरे जुग अब आइस।।

टेटका – (व्यंग्य)

मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग।
जइसन देखय समय ला, तइसन बदलिन रंग।।
तइसन बदलिन रंग, बचाय अपन वो चोला।
लिलय  गटागट जतका, किरवा पाय सबोला।।
भरय पेट तब पान-पतेरा-मां छिप जावय।
ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय।।

खटारा साइकिल – (हास्य)

अरे खटारा साइकिल, निच्चट गए बुढ़ाय।
बेचे बर ले जाव तो, कोन्हों नहीं बिसाय।।
कोन्हों नहीं बिसाय, खियागें सब पुरजा मन।
सुधरइया मन घलो हार खागें सब्बो झन।।
लगिस जंग अउ उड़िस रंग, सिकुड़िस तन सारा।
पुरगे मूँड़ा तोर, साइकिल अरे खटारा।।

अउ आखिर मा दलित जी के ये कुण्डलिया छन्द, हिन्दी भाषा मा -
नाम -
रह जाना है नाम ही, इस दुनिया में यार।
अतः सभी का कर भला, है इसमें ही सार।।
है इसमें ही सार, यार तू तज के स्वारथ।
अमर रहेगा नाम, किया कर नित परमारथ।।
काया रूपी महल, एक दिन ढह जाना है।
किन्तु सुनाम सदा दुनिया में रह जाना है।।

छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन पहिली कुण्डलिया छन्द संग्रह "सियानी गोठ" (प्रकाशन वर्ष - 1967) मा अपन भूमिका मा लिखे रहिन- "ये बोली (छत्तीसगढ़ी) मा खास करके छन्द बद्ध कविता के अभाव असन हवय, इहाँ के कवि-मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करें। स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देवें। ये बोली पूर्वी हिन्दी कहे जाथे। येहर राष्ट्र-भाषा हिन्दी ला अड़बड़ सहयोग दे सकथे। यही सोच के महूँ हर ये बोली मा रचना करे लगे हँव"।

उंकर निधन 28 सितम्बर 1967 मा होइस, उंकर बाद छत्तीसगढ़ी मा छन्दबद्ध रचना लिखना लगभग बंद होगे। सन् 2015 के दलित जी के बेटा अरुण कुमार निगम हर छत्तीसगढ़ी मा विधान सहित 50 किसम के छन्द के एक संग्रह "छन्द के छ" प्रकाशित करवा के दलित जी के सपना ला पूरा करिन। आजकाल छन्द के छ नाम के ऑनलाइन गुरुकुल मा छत्तीसगढ़ के नवा कवि मन ला छन्द के ज्ञान देवत हें जेमा करीब 200 नवा कवि मन छत्तीसगढ़ी भाषा मा कई किसम के छन्द लिखत हें अउ अपन भाषा ला पोठ करत हें।

आलेख - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़
संपर्क - 9907174334

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अजय अमृतांशु
  भाटापारा (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के नाम से मशहूर जनकवि कोदूराम दलित जी का जन्म 5 मार्च 1910 को ग्राम-टिकरी (अर्जुन्दा) जिला दुर्ग के  साधारण किसान परिवार में हुआ था। किसान परिवार में पालन पोषण होने के कारण पूरा बचपन किसानों और बनिहारों के बीच में बीता ।आजादी के पहले और बाद में भी उन्होंने कालजयी रचनाओं का सृजन किया । समतावादी विचार, मानवतावादी दृष्टिकोण और यथार्थवादी सोच के कारण आज पर्यन्त वे प्रासंगिक बने हुए हैं।
दलित जी के कृतित्व में खेती-किसानी का अदभुत चित्रण मिलता है। खेती-किसानी को उन्होंने करीब से देखा और जिया है, इस कारण उनके गीतों में जीवंत चित्रण मिलता है -

पाकिस धान-अजान, भेजरी, गुरमटिया,बैकोनी,
कारी-बरई ,बुढ़िया-बाँको, लुचई, श्याम-सलोनी।
धान के डोली पींयर-पींयर, दीखय जइसे सोना,
वो जग-पालनहार बिछाइस, ये सुनहरा बिछौना।
दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,
आही हँसिया-राजा मोला, लेगही आज बिहा के।

स्वतंत्रता आंदोलन के समय लिखे उनके प्रेरणादायी छन्दों ने लोगों को जागृत करने का काम किया :

अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल सँगवारी,
कतको झिन मन चल देइन, आइस अब हमरो बारी।

गाँधीजी की विचारधारा से प्रभावित उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत खिलाफ साहित्य को अपना हथियार बनाया। सरकारी शिक्षक होते हुए भी लोगों को जागृत करने के लिए राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत राउत दोहा लिखकर उन्हें आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया: 

हमर तिरंगा झंडा भैया, फहरावै असमान।
येकर शान रखे खातिर हम, देबो अपन परान।

अपने मन के उद्गार को बेबाक होकर लिखने वाले  दलित जी की रचनाएँ, कबीर के काफी नजदीक मिलती है । जैसे फक्कड़ और निडर कबीर थे वैसे ही दलित जी। समाज में व्याप्त पाखण्ड का उन्होंने खुलकर विरोध किया। एक कुण्डलिया देखिए :-

ढोंगी मन माला जपैं, लम्हा तिलक लगायँ।
हरिजन ला छीययँ नहीं, चिंगरी मछरी खायँ।।
चिंगरी मछरी खायँ, दलित मन ला दुत्कारैं।
कुकुर-बिलाई ला  चूमयँ चाटयँ पुचकारैं।
छोड़-छाँड़ के गाँधी के, सुग्घर रसदा ला।
भेद-भाव पनपायँ , जपयँ ढोंगी मन माला।

कोदूराम दलित को जनकवि कहने के पीछे  खास वजह यह भी है कि उनकी रचनाओं में आम जनता की पीड़ा है, आँसू है, समस्यायें है। उनकी कविता सुनने के बाद आम और खास दोनो ही प्रभावित हुए बिना नइ रह पाये। उनकी कवितायें लोगों को मुँह जुबानी याद रहती थी। उनकी रचनायें समाज में व्याप्त बुराईयों पर सीधे चोट करती थीं । उन्होंने जो भी लिखा बिना कोई लाग-लपेट के लिखा । बातों को घुमा फिराकर लिखना उनके व्यवहार में नहीं था। छत्तीसगढ़ियों की पीड़ा को दलित जी ने अपने जीवनकाल में ही उकेर दिया था जो आज भी प्रासंगिक है। उनके छन्दों में आम छत्तीसगढ़ियों के हक की बात होती थी :

छत्तीसगढ़ पैदा करय, अड़बड़ चाँउर दार।
हँवय लोग मन इहाँ के, सिधवा अउ उदार।।
सिधवा अउ उदार, हवँय दिन रात कमावयँ।
दे दूसर ला भात , अपन मन बासी खावयँ।
ठगथयँ बपुरा मन ला , ये बंचक मन अड़बड़।
पिछड़े हवय अतेक, इही करन छत्तीसगढ़।

कवि हृदय प्रकृति के प्रति उदात्त भाव रखता है क्योंकि उनका मन बहुत कोमल होता है । दलित जी का प्रकृति प्रेम भी किसी से छुपा नहीं था। उनकी एक घनाक्षरी में प्रकृति का अदभुत चित्रण और संदेश मिलता है:

बन के बिरिच्छ मन, जड़ी-बूटी, कांदा-कुसा
फल-फूल, लकड़ी अउ देयं डारा-पाना जी ।
हाड़ा-गोड़ा, माँस-चाम, चरबी, सुरा के बाल
मौहां औ मंजूर पाँखी देय मनमाना जी ।
लासा, कोसा, मंदरस, तेल बर बीजा देयं
जभे काम पड़े, तभे जंगल में जाना जी ।
बाँस, ठारा, बांख, कोयला, मयाल कांदी औ
खादर, ला-ला के तुम काम निपटाना जी ।
एक आदर्श विद्यालय का सपना उनकी कविता में कुछ ऐसा था--
अपन गाँव मा शाला-भवन, जुरमिल के बनाव
ओकर हाता के भितरी मा, कुँआ घलो खनाव
फुलवारी अउ रुख लगाके, अच्छा बने सजाव
सुन्दर-सुन्दर पोथी-पुस्तक, बाँचे बर मँगवाव ।

खादी कुर्ता, पायजामा, गाँधी टोपी और हाथ में छाता देखकर कोई भी व्यक्ति दूर से ही उनको पहचान लेता।  हँसमुख और मिलनसार दलित जी का कविकर्म व्यापक था । गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित होने के कारण सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का संदेश अक्सर वे अपनी रचनाओं में दे जाते थे। हास्य व्यंग्य का स्थापति कवि होने के कारण समाज की विसंगतियों को उन्होंने अपने व्यंग्य का हिस्सा बनाया। राजनीति पर धारदार व्यंग्य देखिए :

तब के नेता जन हितकारी ।
अब के नेता पदवीधारी ।।
तब के नेता काटे जेल ।
अब के नेता चौथी फेल ।।
तब के नेता लिये सुराज ।
अब के पूरा भोगैं राज ।।

दलित जी ने अपने काव्य-कौशल को केवल लेखन तक ही सीमित नहीं रखा वरन् मंचों में प्रस्तुत कर खूब नाम कमाया । अपने समय मे वे मंच के सरताज कवि हुआ करते थे। सटीक शब्द चयन, परिष्कृत भाषा और व्याकरण सम्मत रचनाओं के कारण उनकी प्रस्तुति प्रभावशाली होती थीं । कविता की सबसे सटीक परिभाषा दलित जी ने  मात्र दो लाइनों में दी थीं  -
जइसे मुसुवा निकलथे बिल से,
वइसने कविता निकलथे दिल से।

छत्तीसगढ़ी कविता को मंचीय रूप देने का श्रेय पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र और कोदूराम दलित को जाता है । 50 के दशक में दलित जी की छत्तीसगढ़ी कविताओं का  प्रसारण आकाशवाणी भोपाल, इंदौर,ग्वालियर और नागपुर से लगातार हुआ जिसके कारण छत्तीसगढ़ी को नई ऊँचाई मिली। समाज सुधारक के रूप में दलित जी का संदेश अतुलनीय है -

भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आँय।
कोन्हों खूँदे जाँय नित, कोन्हों पूजे जाँय।।
कोन्हों पूजे जाँय, देउँता बन मंदर के।
खूँदे जाथें वोमन फरश बनयँ जे घर के।
चुनो ठउर सुग्घर मंदर के पथरा साँही।
तब तुम घलो सबर दिन पूजे जाहू भाई ।।

दलित जी की तेरह कृतियों का उल्लेख मिलता है- (1) सियानी गोठ (2) हमर देश (3) कनवा समधी (4) दू-मितान (5) प्रकृति वर्णन (6)बाल-कविता - ये सभी पद्य में हैं. गद्य में उन्होंने जो पुस्तकें लिखी हैं वे हैं (7) अलहन (8) कथा-कहानी (9) प्रहसन (10) छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ (11) बाल-निबंध (12) छत्तीसगढ़ी शब्द-भंडार (13) कृष्ण-जन्म (हिंदी पद्य) है।  दुर्भाग्य से उनके जीवनकाल में केवल एक कृति- सियानी-गोठ ही प्रकाशित हो पायी जिसमें 76 हास्य-व्यंग्य की कुण्डलियाँ संकलित है। बाद में बहुजन हिताय बहुजन सुखाय और 'छन्नर छन्नर पैरी बाजे' का प्रकाशन हुआ।  विलक्षण प्रतिभा का धनी होने के बावजूद भी दलित जी आज भी उपेक्षित हैं यह छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिए चिंतन का विषय है।  प्रचुर मात्रा में साहित्य उपलब्ध होने के उपरांत भी दलित जी पर जितना काम होना था वह नहीं हो पाया है।

दलित जी साहित्यकार के साथ आदर्श शिक्षक, समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और संस्कृत के विद्वान भी थे । वे छत्तीसगढ़ी के साथ हिंदी के भी सशक्त हस्ताक्षर थे।  साक्षरता और प्रौढ़ शिक्षा के वे प्रबल पक्षधर थे । जब तक जीवित रहे तब तक दबे कुचले लोगों की पीड़ा को लिखते रहे । 28 सितम्बर 1967 को अपनी नश्वर देह को त्यागकर वे परमात्मा में विलीन हो गये किंतु अपनी रचनाओं  के माध्यम से वे आज भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराते हैं। दलित जी का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण और अभावों में बीता, शायद इसी वजह से वे अपनी कविताओं का प्रकाशन नहीं करा सके। आज जरूरत इस बात की है कि वर्तमान पीढ़ी उनके साहित्य को गंभीर होकर अध्ययन करें।