छत्तीसगढ़ में लोक चित्रकला
छत्तीसगढ़ ने अपनी समृद्ध संस्कृति के दर्शन कराते हुए अपने यहां पर्यटन की संभावना बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। छत्तीसगढ़ की शिल्प-कला ने राज्य के राजस्व में प्राथमिक हिस्सेदारी का योगदान करने के अलावा अपने कारीगरों की निपुणता के माध्यम से पूरे विश्वभर में प्रसिद्धि भी पाने लगी है। लकड़ी पर नक्काशी का कार्य, बांस की बनी वस्तुएं/फर्नीचर, कांसा धातु से बने शिल्प, मृदुभांड की मूर्त्तियां, जनजाति लोगों के आभूषण, पेंटिंग और मिट्टी से बनी वस्तुएं राज्य की कुछ विशेषताएं हैं। विश्वसनीय हस्तशिल्प संस्कृति के किसी अन्य तत्व की भांति पीढ़ियों तक चलता रहता है। प्रत्येक शिल्प-कला की ओजस्विता बीते अन्तहीन कालखंड और समकालीन प्रभावों के बीच समन्वय को दर्शाती है। चूंकि नस्लीय जनसंख्या पारिस्थितिकी प्रणाली के असीमित तौर-तरीकों पर निर्भर करती है, जबकि उनके अन्दर प्रकृति की मौन भव्यता की सहज वृत्ति झलकती है। पर्यावरण की विपुलता ने अपनी सम्पूर्ण सूक्ष्मता के साथ उन शिल्पकारों की कल्पनाशीलता पर अमिट छाप छोड़ी है। सभी उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों की अधिकतम क्षमता का उपयोग किया गया है, पत्थरों को तराशकर एक परिष्कृत कार्य को अंजाम दिया गया है जो पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। दैनिक उपयोग की लगभग सारी वस्तुएं अपने मूल से हटकर महान सौंदर्यपरक मूल्य का एहसास कराने वाली वस्तुओं के रूप में बदल गई है। इसके परिणामस्वरूप, एक स्वदेशी प्रौद्योगिकी का विकास हुआ है जिसकी संकल्पना तो सरल है किन्तु व्यवहारिक तौर पर वे काफी परिष्कृत हैं। यह चीज अन्य किसी कृति में इतनी स्पष्ट तौर पर परिलक्षित नहीं होती है, जितनी कि उनलोगों के गृह निर्माण में दिखती है। घर के आस-पास बांस की बत्तियों से बाड़ खड़ी की जाती है। उसी प्रकार से सुअरबाडे़ और मुर्गी दरबे बनाए जाते हैं। उन लोगों के घर मिट्टी, लकड़ी, बांस और पुआल से बनाए जाते हैं, ये सारी सामग्री उसी पर्यावरण से प्राप्त होते हैं और उनका निपुणता से उपयोग किया जाता है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी कौड़ियों, शीशे और रेशे की सहायता से रोचक वस्तुओं का निर्माण करते हैं जो आधुनिक घरों के सजाने के काम आते हैं। तोरण, दरवाजों पर लटकाए जाने वाले सजावटी सामान, लटकाई जाने वाली चटाइयां,