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9. गोदना

लोक चित्र शैली का एक अनूठा उदाहरण गोदना भी है। छत्तीसगढ़ की महिलाएं आभूषण स्वरूप विभिन्न आकारों में गोदना गुदवाते हैं। उनकी दृष्टि में गोदना चिरसंगिनी हैं, जो मृत्यु पर्यन्त उनके साथ रहता है। गोदना लोक जीवन का प्रतीक एवं जीवन्त लोक चित्रकला का उदाहरण है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण समाज में गोदना को समाजिक मान्यता प्राप्त है। यहां के बस्तर क्षेत्र के आदिवासी समाज में विवाह के पूर्व कन्याओं के अंगो का गोदना आवश्यक होता है। जिसके शरीर में गुदना नहीं होता है। उसे समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। आदिवासियों के अलावा अन्य सभी जातियों में गोदना कराने का व्यापक प्रचलन है माना जाता है कि मृत्यु के उपरांत भौतिक जगत की सभी वस्तुएं, व या आभूषण इसी लोक में छूट जाते हैं, लेकिन गोदना आत्मा के साथ परलोक तक जाता है। गोदना में निहित जादू तथा पराशक्ति पर विश्वास भी गोदना का एक कारण है। सामाजिक, धार्मिक आस्थाओं के अतिरिक्त गोदना की एक मान्यता यौन भावना को जागृत करना और अलंकरणों के रूप में उनके सौंदर्य में अभिवृद्धि भी है। शरीर में गुदवाने की यह प्रक्रिया काफी कष्टदायक होती है। पहले सुइयों से गुदना कराया जाता था, लेकिन अब मशीनों से गुदना कराने का चलन बढ़ गया है। यहां गुदना का कार्य देवार जाति के लोग करते हैं। रामनामी समाज में गुदना : छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय में गोदना के प्रति विशेष आकर्षण है। इस समाज को लोगों का निवास मुख्यत: रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ सारंगढ़ जांजगीर, मालखरौद, चंद्रपुर कसडोल और बिलाईगढ़ के करीब तीन सौ ग्रामों में है । इनकी जनसंख्या लगभग पांच लाख के ऊपर है रामनामी समाज के लोग अपने चेहरे समेत पूरे शरीर में राम का नाम गुदवा लेते हैं। ऐसा ये अपनी राम के प्रति गहरी भक्ति के कारण करते हैं । शरीर पर राम का नाम गुदवाने का चलनसि समाज में कब से शुरु हुआ है, इसकी सटीक जानकारी कहीं उपलब्ध नहीं हैं, परंतु इस समाज के बुजुर्गों का कहना है कि हजारों वर्षों से उनके पूर्वज अपने शरीर पर राम नाम गुदवाते आ रहे हैं । पीढ़ी-दर-पीढ़ी से यह परंपरा चली आ रही है । रामनामी समाज में लड़का पैदा होने पर निशिचित उम्र में एक संस्कार के तहत शरीर पर राम नाम गुदवाया जाता है, लेकिन लड़कियों के शरीर पर राम नाम विवाह के बाद ही गुदवाने की प्रथा है। पहले रामनामी समाज के लोग पूरे शरीर चेहरे यहां तक की सिर में भी राम नाम गुदवाते थे, लेकिन समय के साथ अब लोगों में परिवर्तन आया है ्ब समाज के युवा सिर्फ माथे, कलाई या शरीर के किसी अंग में गुदवाते हैं। इस समाज का हर समारोह श्रीराम पूजा तथा रामायण के आधार पर होता है। विवाह आडंबर विहीन व बगैर किसी तामझाम के होता है। कन्या पक्ष से किसी प्रकार का कोई दहेज नहीं लिया जाता रामायण को साक्षी मानकर समुदाय का प्रमुख व्यक्ति जयस्तंभ के सात फेरे दिलाकर पति-पत्नी घोषित करता है। इनका संत समागम रामनवमी और पौष एकादषी से त्रयोदशी तक होता है। बिलासपुर के शबरी नारायण में माघ मेला लगता है। बस्तर की गुदना प्रथा:- बस्तर क्षेत्र के आदिवासी समाज में गुदना गुदवाना एक सामाजिक प्रथा है यहां महिलाएं गुदना बड़ी ललक के साथ गुदवाती हैं । यही कारण है कि गुदना प्रथा आदिवासी समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है । समाज में गोदने का कार्य मां या परिवार में कोई बढ़ी-बूढ़ी महिला करती है, जिसे गुदनारी भी कहा जाता है । बस्तर के आदिवासी समाज में विवाह के पूर्व कन्याओं के अंगो का गुदना आवश्यकहै यदि किसी लड़की के शरीर पर गुदना नहीं होता है तो विवाह के समय उसका ससुर लड़की के पिता से इसके एवज में क्षतिपूर्ति वसूलता है । विवाह पूर्व गुदना को माता द्वारा प्रदत्त गुदा कहा जाता है । जबकि विवाह के पश्चात होने वाले गुदना को ससुराल परिवार नारा प्रदत्त गुदना कहा जाता है। इस समाज में गोदना के संबंध में अनेक मिथक, धार्मिक ेवं सामाजिक मान्यताएं जुड़ी हैं । इसके मुताबिक जो महिलाएं अपने शरीर पर गोत्र चिन्ह गुदवाती हैं, उनके पूर्वजों की मृत आत्माएं संकट की घड़ी में उनकी रक्षा करती हैं । इसी प्रकार जो महिलाएं अपने दाहिने कंधे और छाती में किसी देवी- देवता को प्रतीक गुदवाती हैं, उसे कभी कोई हानि नहीं पहुंचा सकता है । जो महिला अपने पैरों में गोदना गुदवाती हैं उसे स्वर्ग की सीढ़ी चढऩे में जरा सी भी परेशानी नहीं आती है । जो महिलाएं अपने घुटनों के ऊपर सामने की ओर गुडना गुदवाती हैं, उनके पैरों में घोड़ों की सी शक्ती होती है। गोदना की विधि :- गोदना गोदने की प्रथा पीढ़ी-दर पीढ़ी हस्तांतरित होती चली आ रही है । गोदना का कार्य समान्यत: देवार जाति के लोग करते हैं वैसे कई अन्य जातियों के लोग भी यह कार्य करते हैं पहले गोदना का कार्य परिवार की कोई बुजुर्ग महिला करती थीं, परंतु अब इसे व्यावसायिक तौर पर अपना लिया गया है। सरगुजा में मलार जाति की महिलाएं गोदना का कार्य करती हैं, जिन्हें गोदनहारी या गुदनारी कहा जाता है। गोदना जिस उपकरण से बनाया जाता है, उसे सुई या सुवा कहा जाता है। गोदना गोदने के लिए तीन या इससे अधिक सुवा एक विशेष ढंग से बांधकर सरसों के तेल में चिकने किए जाते हैं। इन तीन या चार सुइयों के जखना नाम फोपसा या चिमटी कहा जाता है। काजर बनाने की विधि को काजर बिठाना कहते हैं काजर बनने के बाद इसे पानी में घोल लिया जाता है फिर शुरू होती है गोदना बनाने की शुरुआत। इसके तहत सबसे पहले चीन्हा बनाया जाता है। इस क्रिया को लिखना भी कहते हैं। बांस की पतली सींक या झाड़ू की काड़ी से गुदनारी गोदना गुदवाने वाले के शरीर पर विशेष आकृति अंकित करती है। तत्पश्चात गुदनारी अंग विशेष पर दाहिने हाथ की कानी उंगली से टेक लेकर अंगूठे और तर्जनी उंगली की सहायता से फोसा की मदद से गोदने गोदती हैं। गोदना पूरा होने के बाद काजर में डूबी जखनादार सुई से उसमें रंग भर दिया जाता है । गोदना गुदने पर अंग में सूजन आ जाती है। इसे दूर करने गोबरपानी और सरसों का तेल का लेप लगाया जाता है। गोदना वाला शरीर का स्थान पके न इसके लिए हल्दी और सरसों का तेल लगाया जाता है। करीब सात दिनों में गोदे हुए स्थान की त्वचा निकल आती है और शरीर की सूजन खत्म हो जाती है। बैसे तो गुदना गुदवाने का काम साल भर चलता है, परंतु ग्रीष्म ऋतु में गोदना गुदवाना उचित नहीं है। इस दौरान गोदना पकने का सबसे ज्यादा खतरा होता है। गोदना गुदवाने का सबसे अच्छा समय शीत ऋतु माना जाता है। गोदना के प्रकार :- छत्तीसगढ़ समाज में अलग-अलग जातियों में गोदना गुदवाने का ढंग अलग-अलग होता है। कुछ जाति में अलग चिन्हों को गदिवाया जाता है, जो इस जाति की अलग पहचान बन जाते हैं इस प्रकार उरांव गोदना, कोरवां गोदना गोंड गोदना। यह गोदना विशेष चिन्हों, आकृतियों, गोत्र चिन्हों के आधार पर विभक्त होते हैं। उरांव गोदना की विशेषता है माथे और कनपटी पर तीन रेखाओं वाला गोदना। गोड़ गोदना में महिलाएं दोहरा जट गुदवाती हैं। इसमें पहले करेला चानी गोदा जाता है, फिर उसकी ऊपरी सतह पर डोरा गोदा जाता है। उसके ऊपर दोहरा जट गोदा जाता है। अगल-बगल में फूल बनाये जाते हैं। फिर इसमें गोंड़ जाति के गोदना की पहचान बनती है। मंझवार जाति में जट गोजना का प्रचलन है। इनमें सबसे पहले सिकरी या लौंग फूल ऊपर थाम्हा खूरा सबसे ऊपर जट गोदा जाता है। यह मंझवार जाति की पहचान है। इसी प्रकार कंवर जाति में पहले करेला चानी फिर सिकरी फिर लवंग फूल, ुसके ऊपर थाम्हा खूरा और सबसे ऊपर सादा हाथी गोदा जाता है। रजवार गोदना में पांव और बांह पर हाथी गोदना गुदवाने की प्रथा है। रजवान गोदना में छंदुआ हाथी होता है। इसमें सबसे पहले करेला चानी, फिर सिकरीं, लवंग फूल, थाम्हा खूरा और सबसे ऊपर छंदुआ हाथी गोदा जाता है । जनजातीय गोदना के प्रकारों, गोत्र चिन्हों का ज्ञान रहने पर जाति विशेष की महिलाओं की पहचान गोदना कला के आरेखन से की जा सकती है। लेखक : अरविंद मिश्रा गोदना

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