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संगीत एवं नृत्य



शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य
छत्तीसगढ़ की संगीत परंपरा प्राचीन और समृद्ध है। रामगढ़ की सुतनुका देवदासी संगीत और नृत्य कला मे प्रवीण थी। इसी तरह डोंगरगढ़ जो पहले कामनगरी कहलाती थी. में सुप्रसिद्ध नर्तकी कामकंदला रहती थी। रायगढ़ के राजगोंड नरेश संगीत और साहित्य सर्वोत्तम पोषक थे। अरण्ययासियों के नृत्य और गीत सामूहिक होते हैं, जो आज भी प्रचलित हैं। कबीरपंथी भजन. देवी के जसगीत और भोजली में छत्तीसगढ़ की समृद्ध संगीत परंपरा की झलक मिलती है।
  भारतीय संगीत के इतिहास में रायगढ़ का विशिष्ट योगदान है। यहां के राजा चक्रधर सिंह (1904-47 ई.) उच्चकोटि के संगीतज्ञ थे, जिन्होंने घरानों की परंपरा में एक नया नाम जोड़ा-रायगढ़। यद्यपि राजा चक्रधर सिंह की ख्याति एक तबलावादक की थी, लेकिन नर्तन सर्वस्व जैसे ग्रंथ की रचना कर उन्होंने कत्थक विधा को एक नई दिशा दी। इनके बाद इनके शिष्य नृत्याचार्य पं. कार्तिकराम एवं कल्याणदास की जोड़ी ने इस घराने की परंपरा को आगे बढ़ाया। बिलासपुर के पं. पचकौड़ प्रसाद पांडेय बाजा मास्टर (1894-1975 ई.) जे धुपद और धमार पर विशेष अधिकार रखते थे, का भी नाम उल्लेखनीय है। वर्तमान में रायपुर के भैरोप्रसाद श्रीवास्तव, सेन दंपत्ति (डॉ. अरुण कुमार सेन एवं डॉ. श्रीमती अनिता सेन), गुणवंत व्यास. दिगंबर केलकर, राजेश गनोदवाले. बिलासपुर के तुलसी राम देवांगन, बी.टी. नाग. दुर्ग (भिलाई) के विमलेन्दु मुखर्जी व इनके पुत्र बुधादित्य मुखर्जी, राजनांदगांव के वसंत रानाडे, एम.के. गंगाजलीयाले आदि कुछ उल्लेखनीय नाम हैं. जो प्रदेश की श्रेष्ठ संगीत हस्तियां हैं, जिन्होंने समूचे देश के संगीत जगत में प्रदेश को स्थापित किया है। भिलाई के सितार वादक 'बुद्धादित्य मुखर्जी लंदन के हाउस ऑफ कामन्स में संगीत कार्यक्रम पेश करने वाले पहले भारतीय हैं। सितार पर टप्पा बजाने का सबसे पहला प्रयोग भी बुद्धादित्य ने ही किया।
प्रदेश के संगीत संस्थान - खैरागढ़ में एशिया का एकमात्र कला व संगीत विश्वविद्यालय और संग्रहालय है। संग्रहालय में वैदिककाल से लेकर वर्तमान तक के संगीत याद्यों की प्रतिलिपियां हैं। रायपुर का कमला कला संगीत महाविद्यालय भी प्रमुखता से इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहा है। यहां का रंग मंदिर' वर्तमान में अंचल का एकमात्र स्थापित थियेटर है। रायपुर में ही श्रीराम संगीत महाविद्यालय, बिलासपुर में भातखण्डे संगीत महाविद्यालय, राजनांदगांव और कवर्धा में शारदा संगीत महाविद्यालय आदि संस्थान शास्त्रीय एवं सुगम संगीत के साथ विभिन्न वाद्यों एवं शास्त्रीय नृत्यों की विभिन्न विधाओं के प्रशिक्षण एवं अध्ययन के प्रमुख केन्द्र हैं। भिलाई दक्षिण भारतीय संगीत का महत्वपूर्ण केन्द्र है जहां से राष्ट्रीय स्तर के कलाकार निकले हैं।
शास्त्रीय नृत्य - गायन, वादन एवं अभिनय से सन्नियिष्ट नृत्य भी एक नितांत मनोरम कला है। शास्त्रीय नृत्य विशेष रूप से कत्थक के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ घराने का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। इस घराने ने कत्थक को एक लिजलिजी विलासिता से उबारकर महिमामंडित किया है। रायगढ़ के संगीत प्रेमी नरेश चक्रधर सिंह इस घराने के अधिष्ठाता थे। इस घराने के नृत्याचार्य कार्तिकराम, कल्याणदास और फिरतु महाराज की उपलब्धियां छत्तीसगढ़ को गौरव प्रदान करती हैं।
संगीत से जुड़ी छत्तीसगढ़ की हस्तियां-शास्त्रीय गायन - स्व. डॉ. अरुण सेन, डॉ. श्रीमती अनिता सेन, दिगंबर केलकर, मनोहर गणेश गंगाजलीवाले, विप्लव चक्रवर्ती, श्रीमती अपरा त्रिपाठी, डॉ. चंद्रमोहन वर्मा।
शास्त्रीय नृत्य-कत्थक - आरती जैन
भरतनाट्यम - श्रीमती मधुरिमा चंद्रशेखर शास्त्री
शास्त्रीय वाद्य-तबला - सोहन दुबे, सुखेंदु चटर्जी. सुनील थवाईत. मुकुंद नारायण भाले।
वायलीन - कीर्तिव्यास. तुलसीराम देवांगन, श्री एस. गुप्ता ।
सितार - स्व. विमलेन्दु मुखर्जी, बुधादित्य मुखर्जी, संजय बैनर्जी, कंकना बैनर्जी, अवनीन्द्र शिवलीकर, इंद्रानी चक्रवर्ती।

बांसुरी - संतोष टाँक।
जलतरंग -राजेश गनोदवाले।
सुगम संगीत - कल्याण सेन, शेखर सेन, हुकमचंद्र शर्मा, मदन चौहान, श्रीमती अपरा त्रिपाठी (गजल). स्वाती देशपांडे (गजल). मंजुला दासगुप्ता आदि प्रमुख हैं।