पूर्वी बघेलखण्ड का पठार
स्थिति - छत्तीसगढ़ में बघेलखण्ड प्रदेश का पूर्वी भाग सम्मिलित है। यह म. प्र. राज्य की उत्तर-पूर्वी सीमा से लगा हुआ है। वस्तुतः संपूर्ण बघेलखण्ड का विस्तार 23°40 से 24°35* उत्तरी अक्षांश तथा 80°5' से 83°35' पूर्वी देशांतर तक है, किंतु इस पठार का पूर्वी हिस्सा जिसका विस्तार 23°40' से 24°8' उत्तरी अक्षांश तथा 80°5 से 81°23° पूर्वी देशांतर तक है, का क्षेत्र छत्तीसगढ़ में सम्मिलित है। बघेलखण्ड का कुल क्षेत्रफल 46,200 वर्ग कि.मी. है, जिसमें 21863.24 वर्ग कि.मी. अर्थात इसके कुल क्षेत्रफल का 47.32% छत्तीसगढ़ में आता है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में झारखंड राज्य, दक्षिण में जांजगीर-चांपा, कोरबा तथा रायगढ़ जिले तथा पश्चिम में शहडोल व डिंडोरी जिले आते हैं। सामान्यतः पश्चिम में सोन नदी, दक्षिण में मैकल श्रेणियों एवं महानदी बेसिन तथा पूर्व में छोटा नागपुर के मध्य का कटा-फटा पहाड़ी प्रदेश बघेलखण्ड के नाम से जाना जाता है। पूर्व की ओर इसी क्रम में छोटा नागपुर के पठार का पश्चिमी भाग भू-आकृतिक यनावट की दृष्टि से बघेलखण्ड से काफी साम्य रखता है। पश्चिमी छोटा नागपुर के समान ही बघेलखण्ड सोन के बेसिन का भाग है। यह पठार गंगा एवं महानदी के बीच जल द्विभाजक का दक्षिणी भाग हैं।
भौतिक संरचना - बघेलखण्ड के पठार में उच्चावच पर्याप्त अधिक हैं। यह पठार औसत 300 मी. से लेकर 700 मी. तक का अधिक ऊँचा-नीचा, कटा-फटा प्रदेश है। संपूर्ण प्रदेश के अध्ययन से ज्ञात होता है कि यहाँ तीन सुस्पष्ट सतहें हैं। पहली सतह (550 मी.) पटना तथा खरगयां के पूर्व सरगुजा बेसिन की सतह है। दूसरी सोनहट के पठार (755 मी.) की है तथा तीसरी अधिकतम ऊँची सतह देवगढ की पहाड़ियों के सबसे ऊँचे भाग (1033 मी.) हैं। यही ऊँचाई इसके पूर्व में स्थित पाट प्रदेश में मिलती है। बघेलखण्ड के पटार को (उत्तर से दक्षिण की ओर) निम्नलिखित भौतिक उपविभागों के द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है-
(a) सोहागपुर बेसिन (b) कन्हार बेसिन (c) रिहन्द बेसिन (d) देवगढ़ की पहाड़ियाँ
(e) सरगुजा बेसिन (0 हसदो-रामपुर बेसिन।
इसमें सोहागढ़ बेसिन छत्तीसगढ़ राज्य के अंतर्गत नहीं आता, यह पश्चिमी बघेलखण्ड का हिस्सा है।
बघेलखण्ड के पठार को पूर्व से पश्चिम में क्रमशः पेंड्रा-लोरमी का पठार. कोरवा वेसिन तथा छुरी की पहाड़ियों द्वारा छतीसगढ़ के मैदान से पृथक किया जाता है।
कन्हार बेसिन- यह राज्य के उत्तर-पूर्वी सीमांत क्षेत्र में अवस्थित है। यह पूर्वी सरगुजा जिले के उत्तर रामानुजगंज तहसील में आता है। बेसिन की औसत ऊँचाई 300-450 मी. है।
रिहन्द बेसिन - रिहन्द नदी, दक्षिण में स्थित छुरी की पहाडियों से निकलती है तथा सरगुजा बेसिन एवं देवगढ़ की पहाड़ियों को काटते हुए सोन नदी से मिलती है। इसका बेसिन देवगढ की पहाड़ियों के ठीक उत्तर में तथा कन्हार बेसिन के पश्चिम में राज्य के उत्तरी सीमांत में अवस्थित है। यह वाड्रफनगर तहसील ने फैला हुआ है। इसकी औसत ऊँचाई समुद्र तल से 300-450 मी. है। इसे सिंगरौली बेसिन भी कहा जाता है।
देवगढ़ की पहाड़ियाँ - बघेलखण्ड के अधिकतम ऊँचे भाग में से एक है। यहाँ की ऊँची चोटियाँ 1029-1030 मी. तक है, किन्तु विस्तृत प्रदेश इससे कम पर 600 मी. से ऊँचे हैं। उत्तर तथा दक्षिण से सोन व महानदी की सहायक नदियाँ तीव्र कटाव कर रही हैं जिससे संपूर्ण प्रदेश पहाडियों तथा गहरी कंदराओं में परिवर्तित हो गया, क्योंकि ढालू पठार का जल अपरदन हुआ है। महानदी की सहायक हसदो इसी पहाडी से निकलती है तथा अपेक्षतया नीची घाटी बनाती है। ये पहाड़ियाँ जनकपुर, बैकुंठपुर, प्रतापपुर, मनेन्द्रगढ़, उत्तरी सरगुजा, उत्तरी अम्बिकापुर, पश्चिमी कुसमीएवं दक्षिणी रामानुजगंज तहसीलों में विस्तृत हैं।
सरगुजा बेसिन - यह देवगढ़ तथा मैनपाट-छुरी पहाड़ियों से घिरा क्षेत्र है। इसकी औसत ऊँचाई 450 मी. के लगभग है। बीच-बीच में पहाड़ियाँ 600 मी. के ऊपर पहुंच जाती है। इस बेसिन के दक्षिण-पूर्व में पाट प्रदेश (मैनपाट, जारंगपाट, सामरीपाट. जशपुरपाट) है। यह राज्य के उत्तर-मध्य क्षेत्र में आता है। इसका विस्तार पूर्वी सरगुजा जिले से अम्बिकापुर. दक्षिणी सरगुजा. दक्षिणी प्रतापपुर, पश्चिमी सीतापुर तहसीलों में है। इस क्षेत्र मे रामगढ की पहाड़ी स्थित है, जहाँ विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला है। इसके दक्षिण-पश्चिम में हसदेव-रामपुर बेसिन जुड़ा हुआ है।
सोनहट- कोरिया की पहाड़ियाँ - देवगढ़ पहाड़ियों दक्षिण में तथा सरगुजा बेसिन के पश्चिम में एक पठार का भाग प्रतीत होता है ये सरगुजा बेसिन के अतर्गत आती हैं। यहां की औसत ऊँचाई 380-460 मी. है। यहाँ उच्चावच बहुत अधिक है।
हसदो-रामपुर बेसिन - यह राज्य के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में अवस्थित है। इसका विस्तार कोरिया जिले की दक्षिणी मनेन्द्रगढ़ तहसील. बिलासपुर की पूर्वी पेंड्रा तथा कोरबा जिले की उत्तरी कटघोरा तहसील में है। इसकी औसत ऊँचाई 300-450 मी. है। इस क्षेत्र में शृंखलाबद्ध वृहद जल प्रपात मिलते है। इसके दक्षिण-पूर्व में पेंड्रा-लोरमी का पठार, दक्षिण-पश्चिम में कोरबा बेसिन, दक्षिण-पूर्व में छुरी-उदयपुर की पहाड़ियाँ. उत्तर-पूर्व में सरगुजा बेसिन तथा उत्तर में देवगढ़ की पहाड़ियाँ हैं।
अपवाह - बघेलखण्ड का पठार गंगा एवं महानदी के जल द्विभाजक का दक्षिणी भाग है। उत्तर की ओर सोन की सहायक नदियाँ-बनास, गोपद, रिहन्द तथा कन्हार बहती हैं। दक्षिण में हसदो के अतिरिक्त महानदी की कोई सहायक नदी नहीं है। इसका कारण यह भी है कि बघेलखण्ड के पठार का दक्षिणी किनारा जल द्विभाजक है। हसदो में उतरते समय उसकी सहायक नदियाँ अनेक प्रपात बनाती हैं। हसदेव उत्तर में देवगढ़ की पहाड़ियों से निकलती है और पठार के दक्षिण हिस्से का जल ले जाकर महानदी अपवाह प्रणाली में मिल जाती है। रिहन्द दक्षिण में छुरी पहाड़ियों से निकलती है, इसका जल गंगा अपवाह प्रणाली में सोन के द्वारा मिल जाता है। सोन, हसदो तथा इनकी सहायक नदियों ने अनेक बेसिनों-रिहन्द, कन्हार, सरगुजा, हसदो-रामपुर, सोहागपुर आदि का निर्माण किया है। बघेलखण्ड का प्रदेश मुख्यतः सोन नदी अपवाह क्षेत्र में आता है।
जलवायु - कर्क रेखा इस प्रदेश के लगभग मध्य से जाती है. अतः यहाँ की जलवायु मानसूनी है। यहाँ गर्मी उष्णाई एवं शीत ऋतु सामान्य एवं शुष्क होती है। पूर्वी क्षेत्र में वर्षा का औसत बढ़ता जाता है। गर्मियों में औसत तापमान 35.5° सेंटीग्रेड तथा सर्दियों में 20° सेंटीग्रेड के आस- पास होता है। इस क्षेत्र में औसत वर्षा 125 सेंटीमीटर से अधिक होती है। अंबिकापुर, बैकुंठपुर में अधिक वर्षा होती है।
मिट्टी एवं वनस्पति - इस क्षेत्र में मुख्यतः लाल-पीली. मिट्टी पायी जाती है। यनो की अधिकता है। इस प्रदेश मे 12.184 वर्ग कि.मी. क्षेत्र वनाच्छादित है. जो पठार के क्षेत्रफल का तगभग आधा है। यहाँ उष्णकटिबंधीय आई एवं शुष्क पर्णपाती वन पाये जाते हैं। यह प्रदेश उच्च साल वनों का क्षेत्र है। क्षेत्र से वनोपज अच्छी मात्रा में प्राप्त होती है। चावल यहाँ की प्रमुख फसल है। अन्य फसलो में ज्वार. अलसी तथा तिल प्रमुख हैं। खनिज-कोयला उत्पादन के छोटे-छोटे बीस क्षेत्र है. जिसमें झागराखण्ड, चिरमिरी, उमरिया, झिलमिली. जोहिला एवं विश्रामपुर प्रमुख है। इसके अतिरिक बाक्साइट. चूने का पत्थर एवं फायर क्ले के भण्डार भी यहाँ पाए जाते हैं। यहाँ से बाक्साइट की आपूर्ति बाल्को को की जाती है।