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भू-वैज्ञानिक संरचना



भू-वैज्ञानिक संरचना

पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास के प्रारंभिक काल से ही भारत का पठार स्थल का भाग रहा है। केवल कुछ काल तक आंशिक रूप से यह छिछले समुद्र में ढक गया था जिसे 'टेथिस सागर पुकारा गया। इस काल के निक्षेपण जलज चट्टानों (अवसादी) के रूप में मिलते हैं। भू-भाग पर अंतरभौमिक क्रियाओं का भी अधिक प्रभाव नहीं हुआ है। केवल पर्वत निर्माणकारी छत्तीसगढ़ क्रियाओं के फलस्वरूप विस्तृत भू-भाग पठारों के रूप में ऊपर उठ गए हैं अथवा भ्रंशों के सहारे धंस गए हैं, जिसके प्रमाण यहाँ की भौतिक संरचना तथा नदियों की घाटियों में मिलते हैं। इस पठार का भाग होने के नाते छत्तीसगढ़ में ये सभी विशेषताएं मिलती हैं।
  छत्तीसगढ़ की भू-गर्भिक बनावट में आधा (50%) महाकल्प समूह तथा पुराना संघ के (लगभग 30%) शैल समूह का विस्तार सर्वाधिक पाया जाता है। इसके बाद क्रिटेशस कल्प के दक्कन ट्रेप शैल समूह. संकेत 'धारवाड़ शैल समूह, गोंडवाना प्राचीन एल्युवियम लैटेराइट (15%) शैल (आर्य संघ) समूह बाध व लेमेटा तथा छोटे से भाग में प्राचीन एलुवियम् व लैटराइट शैल दक्कन ट्रेप समूह यदा-कदा आंशिक रूप ऊपरी गोंडवाना भूमि में पाए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में निचली गोंडवाना भूमि रायोलाइट फेल्साइट विजावर कड़प्पा समूह मिया राजनाहगाव द्रविड़ संघ के शैल समूह का नितांत अभाव है। वास्तव इस शैल समूह का प्रतिनिधित्व दक्कन पठार में ही नहीं मिलता। प्रदेश के भू-गर्भ में सन्निहित इन शैल समूहों का विवरण अग्रानुसार है-


1.आर्कियन शैल समूह  - छत्तीसगढ़ की भू-वैज्ञानिक बनावट में आद्यमहाकल्प शैल समूह महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। लगभग संपूर्ण छत्तीसगढ़ इन घट्टानो का बना हुआ है। परतुतः या शैल समूह भू-पटल की मूलभूरा घटाने माने जाते हैं तथा भूगर्भ में अत्यंत गहराई पर पाए जाते है। ये शैल पायः जीवाश्म रहित है. जो इसकी प्राचीन का महत्वपूर्ण प्रमाण है। ये घट्टानें पृथ्वी की प्रथम कठोर चट्टानो का प्रतिनिधित्व करती है। इनमें से कुछ लाया के ठंडे होने पर बनी हैं अर्थात ये आग्नेय तथा अन्य निक्षेपण के द्वारा बनी प्राचीनतम अवसादी चट्टानें हैं। इन दोनों ही समूहों का प्रादेशिक तथा तापीय कायान्तरण इतना अधिक हुआ है कि अब इनमें विभेद करना असंभव है। ये पटाने ग्रेनाइट तथा शिष्ट के रूप में प्राप्त होती है। ये प्रदेश के लगभग 50% भाग पर विस्तृत हैं। आर्कियन्स क्रम के अन्य शैल जैसे-क्वार्ट्ज. फैल्स. पैथिक, टैफशिष्ट व हार्न प्लेण्ड प्रदेश में कहीं-कहीं पहाड़ी ढालों में पाये जाते हैं। प्रदेश में इस समूह का वितरण निम्नानुसार है-
वितरण-बघेलखण्ड का पठार - अबिकापुर तहसील में।
जशपुर-सामरी पाट - सामरी, तुड़ा. सीतापुर. जशपुर, बगीचा, कुनकुरी, पत्थलगांव तहसीलों में।
छत्तीसगढ़ का मैदान - परपोडा (रायगट रेसिन में). उत्तर-पश्चिम में कोटा, पेंड्रा, लोरमी तथा पंडरिया तहसीलों में एवं दक्षिणी भाग में महासमुद. राजिम, गरियावन्द, कुरूद, धमतरी, डौण्डीलोहार, बालोद आदि तहसीलों में प्राप्त होते हैं।
दण्डकारण्य का पठार - चारामा. भानुप्रतापपुर. कांकेर कोडागांव, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा तहसीलों में।
2. धारवाड़ शैल समूह - धारवाड शैल समूह आद्य महाकल्प की चट्टानों के अपरदन से निकले पदार्थ से बना है। इसका भी दाव तथा ताप से कापान्तरण हुआ है. कितु फिर भी इनमे जलज चट्टानें थी. यह पहचाना जा सकता है। इनमें भी जीवाश्म नही मिलते, जिससे इनकी प्राचीनता सिद्ध होती है। इस क्रम के शैल प्रदेश में छोटे-छोटे समूहों में विखरे पाए जाते है। बस्तर में पाए जाने वाले लोह निक्षेपण भी धारवाड़ शैल समूह में ही प्राप्त होते है। जिसमें नीस, क्वार्टजाइट तथा हेमेटाइट प्रमुख चट्टाने है। इसके अलावा चिल्पी घाटी में भी ये शैल मिलते हैं, जिनमें अत्यधिक मोटी स्लेट तथा फाइलाइट की तहे मिलती है। इसकी संरचना में ग्रीट कांग्लोमरेट, माईकाशिष्ट, स्लेट तथा क्वार्ट्जशिष्ट अधिकता मे है। प्रदेश में इस शैल समूह का वितरण निम्नानुसार है
बघेलखण्ड - रामानुजगंज, वाड्रफनगर तहसीलों में।
छत्तीसगढ़ का मैदान - कसडोल. पंडरिया, कवर्धा तहसीलों में।
दण्डकारण्य - मोहला(दक्षिणी भाग). भानुप्रतापपुर, जगदलपुर तथा दंतेवाड़ा तहसीलों में पाया जाता है।
3. पुराना संघ-आध महाकल्प की समाप्ति के पश्चात् पुनः एक लम्बा काल ऐसा था, जिसका कोई इतिहास नहीं मिलता। इस काल की पर्वत निर्माण क्रिया के फलस्वरूप धारवाड शैल समूल मोड़दार पर्वतों में परिवर्तित हो गए थे जो कालान्तर मे कटकर समाप्त हो गए तथा वह प्रदेश समतल प्रायः हो गया। इस कटी हुई सतह के ऊपर बाद के काल की चट्टानो का निक्षेपण हुआ। भारतीय भू-विज्ञान में इन्हें पुराना शैल के नाम से जाना जाता है। इसके दो भाग है-(1) कड़प्पा (2) विन्ध्यन
(1) कड़प्पा शैल समूह - यह अपेक्षतया प्राचीन है तथा इसकी चट्टानें टूटी तथा कायांतरित हैं। इसका विस्तार प्रदेश के 30% भाग मे है। वितरण निम्नानुसार हैं
बघेलखण्ड का पठार - अप्राप्त
जशपुर सामरीपाट - अप्राप्त
छत्तीसगढ़ का मैदान - रायगढ, सक्ती. डभरा, जांजगीर-चांपा, मुंगेली, तखतपुर, बिलासपुर, बिल्हा, सारंगढ़, बलौदा बाजार, बिलाईगढ़, भाटापारा, कसडोल, तिल्दा, दुर्ग, नवागढ़, धमधा, सरायपाली, महासमुंद, गुण्डरदेही आदि. तहसीलों मे।
दण्डकारण्य - भोपालपट्टनम तथा जगदलपुर तहसील में सर्वाधिक विस्तार है।
  छत्तीसगढ़ के मैदान में संस्तर में विस्तृत यह शैल रायपुर सिरीज कहलाता है। इस समूह में सामान्यतः चूने का पत्थर, डोलोमाइट एवं बालूका का पत्थर पाया जाता है इसीलिये इस समूह के विस्तार क्षेत्र में अनेक सीमेंट संयंत्र हैं।
(2) विन्ध्यन शैल समूह - ये जलज चट्टानें हैं जो अन्तरभौमिक क्रियाओं से नितान्त बची हुई हैं। प्रदेश में इसकी.मोटी तहें अत्यल्प प्राप्त होती हैं। ये शैल दो भागों में प्राप्त होते हैं-

(1) लोअर विध्यन
(II) अपर विध्यन

(I) लोअर विध्यन - इसके विस्तृत प्रदेश विध्यायल श्रेणी में दृष्टिगत होते हैं जो नर्मदा के उत्तर में पूर्व से पश्चिमराक फैली हैं। ये सोन की घाटी में विस्तृत है। छत्तीसगढ़ के मैदान में भी ये अत्यल्प मिलते हैं।
(II) अपर विध्यन - इसके विस्तृत प्रदेश नर्मदा के उत्तर में मिलते है अतः ये छत्तीसगढ़ में प्राप्त नहीं होते।
गोण्डवाना शैल - यह आर्य संघ के शैलों पर निक्षेपित पदार्थ से बने शैल संचों का समूह है तथा विभिन्न प्रकार के स्थलीय वनस्पति जीवों के अवशेषों तथा ऐतिहासिक भू-वैज्ञानिक युग के जलवायु परिवर्तनों के चिन्हों से युक्त हैं। अतः ये शैल रामूह भारतीय भू-वैज्ञानिक इतिहास का एक अभिन्न अंग है। इस युग की चट्टानें दक्षिणी अफीका, मेडागारकर, आरट्रेलिया तथा दक्षिणी अमेरिका में भी मिलती हैं। अतः भू-वैज्ञानिक इन्हें एक ही भू-खण्ड-गोण्डवाना का अंग मानते है। ये शैल समूह मुख्यतः लौह अयस्क तथा कोयले की खानों के लिए प्रसिद्ध है। इस शैल समूह को लाक्षणिक आधार पर तीन भागों बाँटा गया है-
(1) अपर गॉडवाना
(II) मध्य गॉडवाना
(III) लोअर गोंडवाना

(I) अपर गोंडवाना - बघेलखण्ड क्षेत्र में ये शैल समूह प्राप्त होते हैं, जिसमें अधिकतर बालू का पत्थर व शैल मिलते हैं. किंतु इसकी मध्य गोंडवाना में भिन्नता यह है कि इसमें कोयले की कुछ तहें. वानस्पतिक पदार्थ तया चूने के पत्थर की तहें भी मिलती हैं। यह बघेलखण्ड के जनकपुर, मनेंद्रगढ, प्रतापपुर, बैकुंठपुर, सूरजपुर आदि तहसीलों के अंतर्गत आता है। इस क्रम की मुख्य शैलें काग्लामरेट क्वार्टजाईट तथा बालूपत्थर मुख्य है जिसमें कोयले की मोटी तह विस्तृत है। इस शैल समूह को जबलपुर एवं महादेव-क्षेत्र के अतर्गत रखा गया है।
(II) मध्य गोंडवाना - मध्य गोंडवाना शैल का अधिक विकास छत्तीसगढ प्रदेश में नहीं हो सका. फिर भी ये सोन, महानदी क्षेत्र में मिलते हैं जो परसोरा' तथा 'टिकी नाम से जाने जाते हैं। लोअर तथा मध्य गोंडवाना के बीच का विन्यास असमान है तथा दोनों के जीवाश्म भी भिन्न-भिन्न हैं। बघेलखण्ड में परसोरा तथा टिकी शैल समूह को इनमें प्राप्त जीव अवशेषों में भिन्नता के आधार पर अलग किया जा सकता है।
(III) लोअर गोंडवाना - प्रदेश में निम्न गोंडवाना क्रम की शैल ऊपरी गोंडवाना शैल समूह की पट्टी से संलग्न निचले भाग में प्राप्त होती हैं। यहाँ यह शैल समूह मनेद्रगढ (दक्षिणी भाग). बैकुंठपुर (दक्षिणी भाग). सरगुजा (दक्षिणी भाग). अंबिकापुर (दक्षिणी भाग), कटघोड़ा, कोरबा, खरसिया, धरमजयगढ़ तथा रायगढ़ तहसीलों में विस्तृत हैं. जिसे तलचर, बराकर एवं कामठी सीरीज में रखा गया है. जो कोमल सफेद तथा संगठित बालू पत्थर, शेलग्रिट और कोयलों की परतों से निर्मित है।
दक्कन ट्रेप - क्रिटिशस कल्प में दक्कन के पठार में विभिन्न क्रियाएं हुई जिनके चिन्ह म.प्र. तथा छत्तीसगढ़ के भू-विज्ञान में मिलते हैं। बाघ तथा लमेटा स्तरों के निक्षेपण के पश्चात् दक्कन के पठार पर बड़े पैमाने पर दराटी ज्यालामुखी क्रिया हुई जिसके कारण बेसाल्ट मय लावा की कई हजार मोटी तहों से तत्कालीन भौतिक स्वरूप आवृत हो गये। इस निक्षेपण को दक्कन ट्रेप के नाम से पुकारते हैं। दक्कन इसलिए कहा गया. क्योंकि ये दक्कन प्लेट में विस्तृत हुआ है तथा ट्रेप को इस संदर्भ में सीटीनुमा ढलान के रूप में समझा जाता है। ट्रेप में लाया का बहाव समतल तहों के रूप में है. जिनकी मोटाई 3 से 7.5 मी. के मध्य मिलती है। कहीं-कहीं पर इन्टरट्रेपियन बेंड भी हैं जिनमें चूने का पत्थर तथा अन्य जलज चट्टानें मिलती हैं। बेसाल्ट की रासायनिक बनावट आश्चर्यजनक रूप से समान है केवल रंग और गठन में भिन्नता मिलती है। इसी कारण काली मिट्टी के रंगों में भिन्नता प्राप्त होती है, क्योंकि बेराल्ट के ऋतुक्षरण से ही समस्त दक्कन ट्रेप में काली मिट्टी निर्मित हुई है। प्रदेश में इस शैल समूह का विस्तार जशपुर तथा बागीचा तहसीलों के उत्तरी भागों तथा पंडरिया. लोरमी एवं पेड्रा तहसीलों के उत्तरी सीमांत में विस्तृत हैं। ये शैल समूह गहरे मटमैले रंग के हैं। इसमें छेद भी मिलते हैं! जिनमें अन्य खनिज जैसे-केल्साइट, क्वार्ट्ज तथा जीओलाइट भी निक्षेपित हो गए इसके प्रमुख खनिज क्वार्टज, अर्थोक्लेस. एल्बाइट. एनोरथाइट आदि हैं।
  छत्तीसगढ़ के इस भू-वैज्ञानिक विश्लेषण से स्पष्ट है कि प्राचीनतम से नवीनतम चट्टानों का प्रतिनिधित्व यहाँ मिलता है तथा लम्बे भूगर्भिक क्रियाओं के संयोजन से यहाँ की भौतिक बनावट अपनी वर्तमान स्थिति में आ सका है।भौतिक संरचना से स्पष्ट है कि इस प्रदेश में कई अपरदन चक्र हुए जिनके चिन्ह विभिन्न सतहों में प्राप्त होते हैं।