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बकरी और सियार

एक बकरी थी। रोज़ सुबर जंगल चली जाती थी - सारा दिन जंगल में चरती और जैसे ही सूर्य विदा लेते इस धरती से, बकरी जंगल से निकल आती। रात के वक्त उस जंगल में रहना पसन्द नहीं था। रात को वह चैन की नींद सो जाना चाहती थी। जंगल में जंगली जानवर क्या उसे सोने देगें? जंगल के पास उसने एक छोटा सा घर बनाया हुआ था। घर आकर वह आराम से सो जाती थी। कुछ महीने बाद उसके चार बच्चे हुए। बच्चों का नाम उसने रखा आले, बाले, छुन्नु और मुन्नु। नन्हें-नन्हें बच्चे बकरी की ओर प्यार भरी निगाहों से देखते और माँ से लिपट कर सो जाते। बकरी कुछ दिनों तक जंगल नहीं गई। आस-पास उसे जो पौधे दिखते, उसी से भूख मिटाकर घर चली जाती और बच्चों को प्यार करती। एक दिन उसने देखा कि आसपास और कुछ भी नहीं है। अब तो फिर से जंगल में ही जाना पड़ेगा - क्या करे? एक सियार आस-पास घूमता रहता है। वह तो आले, बाले, छुन्नु और मुन्नु को नहीं छोड़ेगा। कैसे बच्चों की रक्षा करे? बकरी बहुत चिन्तित थी। बहुत सोचकर उसने एक टटिया बनाया और बच्चों से कहा - "आले, बाले, छुन्नु और मुन्नु, ये टटिया न खोलना, जब मैं आऊँ, आवाज़ दूँ, तभी ये टटिया खोलना" - सबने सर हिलाया और कहा - "हम टटिया न खोले, जब तक आप हमसे न बोले"। बकरी अब निश्चिन्त होकर जंगल चरने के लिए जाने लगी। शाम को वापस आकर आवाज़ देती - "आले टटिया खोल बाले टटिया खोल छुन्नु टटिया खोल मुन्नु टटिया खोल" आले, बाले, छुन्नु, मुन्नु दौड़कर दरवाज़ा खोल देते और माँ से लिपट जाते। वह सियार तो आस-पास घुमता रहता था। उसने एक दिन एक पेड़ के पीछे खड़े होकर सब कुछ सुन लिया। तो ये बात है। बकरी जब बुलाती, तब ही बच्चे टटिया खोलते। एक दिन बकरी जब जंगल चली गई, सियार ने इधर देखा और उधर देखा, और फिर पहुँच गया बकरी के घर के सामने। और फिर आवाज लगाई - आले टटिया खोल बाले टटिया खोल छुन्नु टटिया खोल मुन्नु टटिया खोल आले, बाले, छुन्नु और मुन्नु ने एक दूसरे की ओर देखा - "इतनी जल्दी आज माँ लौट आई" - चारों बड़ी खुशी-खुसी टटिया के पास आये और टटिया खोल दिये। सियार को देखकर बच्चों की खुशी गायब हो गई। चारों उछल-उछल कर घर के और भीतर जाने लगे। सियार कूद कर उनके बीच आ गया और एक-एक करके पकड़ने लगा। आले, बाले, छुन्नु, मुन्नु रोते रह

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