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तिलमति-चांउरमति

बाम्हन-बम्हनिन एक सहर म रहत रहिन। दोखहा पेट के कारन उनला भीख मांगे बर एती-उती जाय ल परय।। एक दिन भीख म उनला दू ठो बेल मिलिस। बेल कच्चा रहिस तौ ओला पकोए बर ओमन एक ठो ल तील म अउ दूसर ल चांउर म गड़िया देइन। दिन उपर दिन बीतत गइस अउ ओमन गड़ियाए बेल के सुरता अइसे बिसरा दिन जानौ-मानौ बेल उनला मिलेच नइं रहिस। एक दिन राजा के घोड़सार ले घोड़ा ढिला के जो छूटिस के हड़बड़ी मचगे अउ दीवान संग सिपाही मन हदबिद-हदबिद भागिन। घोड़ा हर बाम्हन-बम्हनिन के घर के रांचर के उप्पर कूद के अंगना म सुखोये बर बगरे गरीबहा धान ल खाए लगिस। घोड़ा के पाछू करत सहिस ह अंगना हबरिस तौ देखत हे-अपछरा सांही गदराए आमा कस सुघ्घर दू ठो जवान टूरी। तुरते सहिस ह जाके राजा ल आंखी देखी सबो बात बताइस। संझाकुन चिरई चिंव-चिंव करत अपन खोंधरा डहार लउटिन अउ अपन लइका ल अपन मुंह ले चारा खबाए लगिन ओतके बेरा बाम्हन-बम्हनिन मन भीख मांग के आये तुरते खा-पी के तियार होय रहिन के राजा के सिपाही आके कहिस-" बाम्हन! तोला राजा ह अभीच्चे बलाइस हे।" अतका सुनके बाम्हन डर्रा गे अउ सोंचे लगिस-" बिन जाने समझे कोन गलती होगे भगवान! मोर सो राजा के काय काम।" बाम्हन हा अइसने गुनत-गुनत राजा मेर हबर गइस। राजा ह ओला मया ले बइठारिस अउ भभर के कहिस-" बाम्हन! तोर इहां दू झन सुघ्घर-सुघ्घर जवान कुंवारी बेटी हे। एक ल मोर अउ दूसर ल दीवान बर बिहा देते।" बाम्हन हा अकबका के कहिस-" मोर इहां बेटीच नइंए महाराज।" बाम्हन अतके कहिस के राजा ओला लबारी बोलत हे, अपन बेटी ल लुकावत हे जान के धमकावत-डेरावत कहिस-"कौंहो अइसे नइं करबे तौ तोला ए राज ले बाहिर निकार देबो।" डेर्राए हिरदे ले बाम्हन अपन ओसारी म अमाइस अउ दसे खटिया म गोड़ लगा के सोय लगिस। …………फ़ेर नींद कहां ले आवय। अइसनहे गुनत-गुनत बड़ बेर म सोइस। बड़ दुख वाले सुपना सपनाइस ओहर अउ भिनसारे उठके सब बात बम्हनिन ल बताइस। जउन डर बाम्हन ल रहिस तउने डर बम्हनिन ल घला होगे। ओ दिन भीख मांगे बर घलो नइं गइन। मंझनिया सुरुज देवता तपत रहै। बाम्हन-बम्हनिन ओसारी म रहैं तभो ले उहां घाम हर पेल दे रहिस हे। उपर के छानी दोखहा घलाव ह सुरुज के घाम बर आये के दुवारी खोल दे रहिस हे। भूख लागिस दूनों ल त सुरता आइस गड़ियाये बेल के। बेल ल निकार के

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