भतरा नाट
बस्तर के लोग सदियों से संस्कृति के बल पर जीवित रहे हैं? अभावों और पीड़ाओं के बीच भी अगर वे पलाश की तरह खिलते हैं तो इसका कारण उनकी उत्सवप्रियता? उनका नृत्य संगीत और सह.जीवन तथा प्रकृति के साथ स्थापित तादात्म्य है। ये कवच ही उन्हें भीमकाय मशीनी सभ्यता से बचाए हुए हैं।
बस्तर में उड़ीसा प्रांत की सीमा से लगे हुए भाग में भतरा जनजाति का निवास है. ये भतरा बस्तर के आदिवासी समाज में सामाजिक स्तरीयकरण के दृष्टिकोण से प्रथम स्थान पर आते हैं। बस्तर राजा ने भी इन्हें जनेऊ धारण करने का अधिकार देकर राजकीय मान्यता दे दी थी। भतरा जनजाति अपने को भगवान राम के भाई भरत से संबंधित बतलाते हैं। भतरों की अन्य विशेषताओं के अलावा उनका नाट जो भतरा नाट के रूप में चर्चित वर्णित है? प्रमुख विशेषता है। नाट? संस्कृत के नाट्य और हिन्दी के नाटक का समानार्थी है।
भरत मुनि के नाट्य शास्त्र की परंपरागत व्यवस्थाओं में से अनेक तथ्य अभी भी आदिवासी अंचल में स्थापित है। बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर के आसपास भतरों के निवास के बावजूद जगदलपुर का शहरी व्यक्ति भतरा नाट के प्रति उदासीन है। माड़िया नृत्य के प्रति तो रुझान दिखला कर जगदलपुर व अन्य शहर के लोगों ने खुशी के मौके पर माड़िया नर्तकों को बुलाना प्रारंभ किया है। मगर भतरा नाट वालों को यह सम्मान नहीं मिला है। नगर की सीमा से लगे गांवों में भतरा नाट की सूचना मिलने के बावजूद शहरी वहां नहीं जाते केवल व्यापार के निमित्त कुछ लोग दुकान लगाने पहुंचते हैं। बस्तर के बहुचर्चित दशहरा उत्सव के अवसर पर भतरा.समूह महारथ के साथ.साथ विभिन्न भूभंगिमाओं का प्रदर्शन करते चलता है।
उड़ीसा में ‘पाल्हा’ का प्रचलन है? इसी प्रकार पाल्हा का बस्तरिया संस्करण नाट है। अधिकांश नाटों को कथानक जैसा कि महाकाव्यीन होता है। बस्तर की अन्य आदिम जातियों को भी नाटक करने में महारत हासिल है। छेरछेरा के अवसर पर विभिन्न मुखौटा लगाए आदिवासी समूह को देखा जा सकता है। माड़िया जनजाति का गौर.नृत्य तो पूरी तरह से अभिनयनिस्ट होता है। गौर नामक जंगली जानवर की हरकतों की नकल इस प्रकार से नर्तक करते हैं कि अनायास दांतों तले उंगलियां दबाने को विवश होना पड़ता है। मुरिया जनजाति भी नाटक प्रेमी है।
भतरा नाट के दो नाट्य