रहस-
कृष्ण लीला पर केंद्रित रहस् नाट्य बिलासपुर जिले एवं उसके आसपास के क्षेत्र में प्रचलित है। नाट्य वैष्णव भक्ति आंदोलन से उद्धृत इसलिए उसमे धार्मिक अनुष्ठान समाहित हैं रहस् का आयोजन एक यज्ञ की भांति किया जाता है। रहस का मंच संचालन करने वाला रहस् पंडित कहलाता है और रहस् का आयोजन करने वाला यजमान। रहस् के आयोजन की तिथि कई माह पूर्व ही निश्चित हो जाती है। आयोजन एक बड़े समारोह की तरह होता है। सम्पूर्ण गाँव को, जिसमे रहस् का आयोजन होता है उसे ब्रज मंडल मान कर उसकी नाट्य की जाती है। गाँव में मिट्टी की बड़ी बड़ी विशाल मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। किसी स्थान पर भीम की मूर्ति तो किसी स्थान पर कंस की। महाभारत के आरम्भ में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए रथ पर सारथी रूप में सवार कृष्ण की भी प्रतिमा बनाई जाती है। इसके आलावा रासलीला के प्रसंगों पर आधारित प्रतिमाएँ जैसे पूतना वध, बकासुर वध, महारास आदि की प्रतिमाएँ भी बनाई जाती हैं।
कुल प्रतिमाएँ एक सौ छब्बीस तक बनाई जाती हैं। परन्तु अपने साधनों के आधार पर उनकी संख्या और आकार निश्चित किये जाते हैं। प्रतिमाएँ रहस संपन्न होने पर उन्ही स्थानों पर छोड़ दी जाती हैं। जो वर्षा एवं वायु-धूप से क्षीण होती हुई मिट्टी में मिल जाती हैं। ग्रामीण जनों के आस्था है कि इससे उनके गाँव की भूमि पवित्र हो जाती है। और उस पर किसी प्रकार की विपत्ति नहीं आ पाती।
वैष्णव भक्ति आंदोलन से प्रेरित छत्तीसगढ़ी रहस नाट्य में ग्राम में मिट्टी की मूर्तियाँ स्थापित किया जाना यह उसकी अपनी विशिष्टता है। मूर्तिया बनाने का कार्य चितेरा जाति के कलाकार करते हैं जो उड़ीसा से आकार छत्तीसगढ़ी में बसे हैं। कुछ प्रतिमाएँ मंच भी स्थापित की जाती हैं। जिनमें ब्रह्मा, गरुड़, हनुमान आदि की प्रतिमाएँ सम्मिलित हैं। मंच के बीचों बीच एक स्तंभ बनाया जाता है जो कदम के वृक्ष का प्रतीक होता है। इस स्तंभ की परिक्रमा करते हुए ही नाट्य प्रस्तुतियाँ होती हैं आगे आगे कलाकार अभिनय करते हुए चलते हैं और पीछे पीछे संगत, वाद्यों को गले में लटकाए हुए चलती है। रहस् का कथानक रतनपुर के प्रसिद्ध साहित्यकार बाबू रेवाराम ने तैयार किया था। जिसे रहस् गुटका कहा जाता है। वह हस्त लिखित गुटका सभी रहस्धारियों के