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छत्तीसगढ़ में वन



वन
छत्तीसगढ़ अंचल जिस प्रकार धान के अधिकाधिक उत्पादन के कारण 'धान का कटोरा कहा जाता है उसी प्रकार यह क्षेत्र वन संपदा के नाम से संपूर्ण देश में एक विशेष एवं महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अपनी सघन एवं विविध वन संपदा तथा वन्य प्राणियों का अभी भी प्रदेश के वनों में विविधता एवं बहुलता से उपलब्ध होने के कारण प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जा रहा है। भौगोलिक स्वरूप के साथ वनों की सघनता के कारण ही यह क्षेत्र बाह्य जगत से अछूता रहा है, जिससे यहां की अपनी विशिष्ट संस्कृति मोटे तौर पर अपने मूल स्वरूप में आज भी विद्यमान है। छत्तीसगढ़ की आदिम संस्कृति यहां के वनों की विशिष्ट देन है।
  कृषि, खनन के पश्चात वन राज्य शासन की आय का प्रमुख परंपरागत स्रोत है (गैर-कर राजस्व के अंतर्गत)। वनों से वर्ष 1999-2000 में कुल 121.18 करोड़ रु. की आय प्राप्त हुई जो अविभाजित म.प्र. की वनों से आय (513 करोड़, 1999-2000) का 23.62% थी तथा छत्तीसगढ़ प्रदेश की कुल आय (2342.09 करोड 1 नवम्बर 2000 की स्थिति में) का 5.17% तथा गैर-कर राजस्व का 12.70% थी। यहां के विविध वन संपदा के सरक्षण हेतु विश्व स्तरीय वित्तीय संस्थाओं जैसे-विश्व बैंक आदि से बड़ी मात्रा में ऋण एवं अनुदान प्राप्त होते हैं।
  छत्तीसगढ़ का कुल क्षेत्रफल 1,35.194 वर्ग कि.मी. है जिसके 59772.389 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में वन हैं। इस दृष्टि से प्रदेश का 44.2% क्षेत्र वनों से आच्छादित है जो देश के वन क्षेत्र का लगभग 1228% है। पिछले कुछ वर्षों से वन क्षेत्र लगातार कम हो रहे हैं। अत्यधिक जैविक दबाव के कारण वनों की गुणवत्ता में काफी गिरावट आयी है। आज प्रदेश के लगभग 50% वन बिगड़े वनों की श्रेणी में आ गये हैं। संयुक्त वन प्रबध (वन नीति 1988 के तहत) माध्यम से बिगड़े वनों का सुधार' (RDF) कार्यक्रम चलाया जा रहा है. साथ ही सुरक्षित वनों के विकास हेतु सहायक पुनउत्पादन (Assisted Natural Re-generation) कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
  वनों को विधिक आधार (Status) पर तीन क्र. वन वृत्त आरक्षित संरक्षित संरक्षित योग भागों में वर्गीकृत किया गया है (देखें बाक्स)। वनों का घनत्व पूरे प्रदेश में एक समान नहीं है। बस्तर को प्रदेश का सर्वाधिक घने वनों का क्षेत्र माना जाता है जबकि जशपुर, सरगुजा. रायगढ़. कोरिया, रायपुर, धमतरी, जिले घने वन वाले क्षेत्रों में से एक हैं। सर्वाधिक आरक्षित वन दंतेवाड़ा जिले में 5179.79 वर्ग किमी तथा सबसे जिले में सबसे अधिक 8347.69 वर्ग कि.मी. है तथा सबसे कम जाँजगीर-चांपा जिले में 250.06 वर्ग कि.मी. है।

प्रदेश में वृत्तवार वन क्षेत्रों की स्थिति (वर्ग किमी में) सीमांकित असीमांकित

क्रं वन का नाम आरक्षित वन संरक्षित सीमांकित वन संरक्षित असीमांकित वन योग
1  जगदलपुर 3742.124 6405.978 2138.280 12286.382
2 दुर्ग 2284.81 2744.230 609.430 5638.470
3 कांकेर 3717.127 2201.022 2283.534 8201.683
4 बिलासपुर 4178.169 5358.671 3883.457 13420.297
5 रायपुर 4721.790 2280.082 1039.420 8041.297
6 सरगुजा 4474.293 7709.972 - 12184.265
  योग :- 23118.313  26699.959  9954.121 59772.389
  कुल वनक्षेत्र से प्रतिशत 38.67 14.87 16.83 100

  साल एवं सागौन प्रदेश की प्रमुख वृक्ष प्रजातियां हैं। किंतु संपूर्ण प्रदेश प्रमुखतः साल वनों का क्षेत्र है जबकि सागौन के प्राकृतिक वन उत्तर रायपुर. राजनांदगांव. भानुप्रतापपुर एवं नारायणपुर वन मंडलों में प्राप्त होते हैं। नारायणपुर के समीप कुरसेल घाटी का सागौन प्रदेश में श्रेष्ठ है। यहा का सागौन बर्मा सागौन की श्रेणी का है. किंतु गुणवत्ता वर्ग (Quality Classwise) के अनुसार प्रदेश मे द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के ही सागौन प्राप्त होते हैं। बस्तर के कोमलनार एवं मंगनार क्षेत्र का गगनचुंबी साल नेपाल के तराई साल के तुल्य है। इसके अलावा प्रदेश में मिश्रित यनों में मुख्यतः साजा. बीजा. धावड़ा. लेण्डिया. हल्दू, अंजन, खम्हार. तेंदू, महुआ. हर्राबहेड़ा. आंवला. पलसा, बाँस, सवई आदि प्राप्त होते हैं। उक्त प्रजातियां साल वनों में भी उसके अधीनस्थ सहवासियों (Associate) के रूप में प्राप्त होती हैं। इन वनों में ग्राउण्ड फ्लोरा के रूप में अनेक औषधि प्रजातियां प्राप्त होती हैं। इस प्रकार प्रदेश विपुल जैव विविधता का क्षेत्र है। यहां पर बाँस जो कि लघु वनोपज की श्रेणी में रखा गया है, प्रदेश के लगभग समस्त क्षेत्रों में पाया जाता है। प्रदेश मे मुख्यतः नर बाँस (Male Bamboo-Dendrocalamus stricus) ही प्राप्त होते हैं। जबकि सरगुजा वन मंडल में प्राकृतिक रूप से कटग (Bambusa arundinacia), न्यूटेन (Lambusa mutans) तथा (Dendrocalamus longispathus) भी मिलते है। अकेले बस्तर (जगदलपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर) में ही बाँस की गभग 80 प्रजातियों की प्राप्ति का दावा किया गया है किंतु 1971 में S.S.R.Bannet &Gaur के सर्वे के अनुसार उन्होंने केवल 9 प्रजातियों की पुष्टि की है, जबकि Bisen & Ujjaini (T.E.R.I.Jabalpur] 1996) के अनुसार केवल 10 प्रजातियों की पुष्टि (Identify) होती है। छत्तीसगढ़ में पायी जाने वाली बाँस की प्रजातियां निम्न तालिका में दी गई हैं

क्र. प्रजाति का नाम

फूल चक्र 

(Flowering
Cycle)

क्षेत्र/वन मंडल
स्थानीय नाम Botanical name
1. नर बांस.लाठी बाँस. Dendrocalamus strictus 25-45 वर्ष संपूर्ण छत्तीसगढ़ में।
2. डोहना बॉस. चाही बाँस Dendrocalamus longisparhus unrecorded दक्षिण सरगुजा वनमंडल के शंकरगढ़ परिवृत्त, राजपुर तथा कुसमी रेंज में विशेषतः मिलता है।
3. बासुरी बाँस Dendrocalamus membranaceus 19-20 वर्ष माझकोट, जगदलपुर रेंज (बस्तर)।
4. कटंग या कांटा बाँस Bambusa bambos (arundinacea) 25-36 वर्ष संपूर्ण छत्तीसगढ़ में।
5.  - Bambusa polymorpha unrecorded यह बस्तर के अंतागढ़, कुरसैल वैली, नारायणपुर, अबुझमाड़ में पाया जाता है।
6. पानी बाँस Bambusa burmanica 30-32 वर्ष जगदलपुर रेंज, इंद्रावती पार्क, चित्रकोट आदि क्षेत्र।
7.  - Bambusa rulda 30-36 वर्ष कांकेर से. नारायणपुर, बीजापुर, अंतागढ़, कुरसैल वैली में कोयली बेड़ा, गुड़ाबेड़ा, छिंदभाट आदि क्षेत्र ।
8. रोपा बाँस Bambusa nulans 35 वर्ष सरगुजा जिले के अंतर्गत राजपुर, उदयपुर, लखनपुर, शंकरगढ़, भानुप्रतापपुर तथा कोरबा के केंदई रेंज के मोरगा तक विस्थापित है। पत्थलगांव, कुनकुरी, जशपुर, प्रतापपुर में पाया जाता है। कांकेर, केशकाल दंतेवाड़ा में भी पाया जाता है।
9.  नारंगी बाँस Cephalostachyum pergracile 35-60 वर्ष नारायणपुर, कुरसैल वैली में
10  -- Gigantochloa nigrociliata 7-16 वर्ष दंतेवाड़ा. भोपालपटनम् (दक्षिण बस्तर) में।

उत्पादन : लघु वनोपज से प्राप्त होने वाली आय बढ़ रही है, जबकि मुख्य वनोपज (Major forest produce) का उत्पादन घट रहा है। वर्ष 1998-99 में संपूर्ण-म.प्र. से प्राप्त लकड़ी कूपों के राजस्व का 47.26% केवल छत्तीसगढ़ से प्राप्त होता था जबकि बाँस वनों से प्राप्त राजस्व में छत्तीसगढ़ का हिस्सा 42.36% था। वर्ष 1999-2000 में 82.11 हजार घन मीटर इमारती लकड़ी 127.99 हजार घन मीटर जलाऊ लकड़ी तथा 106.45 हजार नोशनल टन बॉस (1 नोशनल टन = 2400 मी. बाँस) का उत्पादन किया गया। लघु वनोपज के अंतर्गत वर्ष 1999-2000 में 18.37 लाख मानक बोरे तेंदूपत्ते का तथा सालबीज एवं हर्रा का क्रमशः 146.63 हजार एवं 29.28 हजार क्विंटल संग्रहण किया   गया। इसके अलावा गोंद, महुआ, तिखूर, अचार, कुल्ली, बैचान्दी, बहेड़ा, आंवला, शहद, माहुल पत्ता आदि प्रमुख लघु वनोपज हैं। वर्ष 2000-2001 में तेंदूपत्ता का संग्रहण अत्यंत कम 9 लाख 40 हजार मानक बोरा हुआ, जिसकी कीमत नीलामी पर 116 करोड़ 46 लाख | रुपये प्राप्त हुई। प्रदेश का तेंदूपत्ता अपनी गुणवत्ता एवं उत्पादन के लिए संपूर्ण देश में प्रसिद्ध है तथा देश के उत्पादन का 17% होता है।
  छत्तीसगढ़ की वन संपदा के अंतर्गत वन्य प्राणियों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। यहा मुख्यतः शेर, वन भैंसा, गौर, भालू, तेंदूआ, चीतल, सांभर, नीलगाय, सोन कुत्ता, चौसिंगा, कोटरी तथा मगर प्रमुख उत्तर बिलासपुर वन मंडल के मरवाही परिक्षेत्र में सफेद भालू भी देखे गए हैं।
  इस प्रकार प्रदेश में वन जैव विविधताओं से पूर्ण हैं। वनों के | संरक्षण, संवर्धन एवं संतुलित तथा वैज्ञानिक विदोहन के लिए वन | विभाग के रूप में विकसित प्रशासकीय एवं कार्यकारी संस्था कार्यशील | है। 1862 ई. में वनों के प्रबंध के लिए ब्रिटिश सरकार ने वन विभाग की स्थापना की थी किंतु रियासतों में वनों की सुरक्षा तथा प्रबंध के  लिए विशेष ध्यान नहीं दिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात् संपूर्ण वन,  वन विभाग के अंतर्गत आ गए।

विभाग के कार्य - वन विभाग का कार्य प्रदेश के वनों की जैव विविधता को बनाये रखना है। वनों एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण एवं संवर्धन का सतत् कार्य.करते हुये आम आदमी को लाभान्वित करना है। वन विभाग के मुख्य कार्य निम्नानुसार हैं
1. राज्य में वनों की जैव विविधता का संरक्षण जिसमें वन्य पशुओं एवं वनस्पति का संरक्षण भी शामिल है।
2. राज्य में वन जिसमें रोपण भी सम्मिलित हैं,संरक्षण,संवर्धन, सीमांकन, विकास, गैर- वानिकी उपयोग, वनो-  पज निकासी, चराई एवं | अन्य निस्तार सुविधाओं का निर्धारण, संयुक्त वन प्रबंध के संबंध में अधि- नियम तथा नियमों के अनुसार नीति निर्धारण।
3. जन हानि, पशु हानि के संबंध में नियमन | तथा हिंसक हुये पशुओं के विनाश के लिए नियम
4. वन तथा वन्य प्राणी संबंधी कार्य।
5. गैर-वानिकी क्षेत्रों  में वानिकी का विस्तार।

पद प्रवर्ग स्वीकृत पद संख्या
भारतीय वन सेवा 115
राज्य वन सेवा -  
1.सहायक वन संरक्षक 135
2.वन प्रक्षेत्राधिकरी 484

वन विभाग की भौगालिक व प्रशासनिक इकाइयाँ - विभाग के क्रियाकलापों हेतु एक पृथक मंत्रालय स्थापित है। विभाग का सचिवालयीन ढांचा विभिन्न विभागों की तरह ही है। विभाग प्रमुख, प्रधान मुख्य वन संरक्षण (सामान्य) होता है (Principal Chier Conservator of Forests)। वन मंडलाधिकारी तथा उसके ऊपर के अधिकारी अखिल भारतीय संवर्ग भारतीय वन सेदा (Indian Forest Services) के होते है। इसके नीचे के अधिकारी राज्य वन सेवा (State Forest Services) के होते है। सपूर्ण प्रदेश वन वृत्तों, वन मंडलों, उपवन मंडलों, परिक्षेत्र (Range), उप- परिक्षेत्र अथवा परिवृत्त (Sub Range). परिसरों (Bcals) में विभाजित होते हैं। कार्यात्मक प्रबंध की सुविधा की दृष्टि से वनों को खण्ड (Black) तथा प्रखंड (Compartments) तथा वन दोहन हेतु प्रखंडों को कूपों (Coups) में विभाजित किया गया है। उपरोक्त क्षेत्रीय इकाइयों के अलावा विशिष्ट कार्यों जैसे-उत्पादन, विक्रय, वन्य प्राणी, अनुसंधान एवं विस्तार, सामाजिक वानिकी. भू-सरक्षण, कार्य आयोजना एवं प्रशिक्षण हेतु पृथक् संरचना है। वर्तमान में प्रदेश में कुल 47 वनमंडल, 7 वन वृत्त. 3 राष्ट्रीय उद्यान, 12 अभयारण्य व 3 वनविद्यालय हैं। प्रदेश में केवल इंद्रावती उद्यान में ही बाघ परियोजना (Project Tiger) चल रही है। प्रशासनिक इकाइयाँ एवं उनकी संख्या पिछले पृष्ठ पर बाक्स में दी गई है।

प्रशासनिक इकाइयाँ
क्षेत्रीय वन वृत्त 06
कार्य आयोजना वृत्त 01
क्षेत्र संचालन प्रोजेक्ट टाइगर (इंद्रावती) 01
क्षेत्रीय वनमंडल 27
उत्पादन वनमंडल 04
सामाजिक वानिकी वनमंडल 07
भूमि संरक्षण वनमंडल 01
कार्य आयोजना वनमंडल 07
राष्ट्रीय उद्यान 03
वन्य प्राणी वनमंडल 01
वन्य प्राणी अभयारण्य 11
वनविद्यालय (वनपाल/वनरक्षक)  
जगदलपुर 01
वनविद्यालय (वनरक्षक) शक्ति, महासमुंद 02