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वन संरक्षण व विकास में नये आयाम :संयुक्त वन प्रबंधन



वन संरक्षण व विकास में नये आयाम :संयुक्त वन प्रबंधन

वन तथा पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने हेतु भारत के संविधान में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से प्रावधान किये गये हैं
1. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धातों अंतर्गत धारा 48 (अ) में राज्य को पर्यावरण के संरक्षा, संवर्धन, वन तथा वन्य जीवों की रक्षा हेतु निर्देशित किया गया है तथा यह आशा की गई है कि शासन इस हेतु सदैव, प्रयासरत रहेगा।

2 नागरिकों के मूल कर्तव्यों के अंतर्गत धारा 51 (अ) में पर्यावरण के संरक्षण एवं विकास के प्रयास करना एक भारतीय का कर्तव्य निर्धारित किया गया है।
  1988 की राष्ट्रीय वन नीति में वन प्रबंधन में जन भागीदारी 2 नागरिकों के मूल कर्तव्यों के अंतर्गत धारा 51 (अ) सुनिश्चित करने के दिशा निर्देश हैं। इस नीति के परिपालन | में पर्यावरण के संरक्षण एवं विकास के प्रयास करना में वन क्षेत्रों में रहने वाले वनवासियों के माध्यम से वन प्रबंधन | एक भारतीय का कर्तव्य निर्धारित किया गया है। एवं विकास को मूर्त रूप देने हेतु 1 जून, 1990 को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत शासन द्वारा एक नीति परिपत्र जारी किया गया जिसमें संयुक्त वन प्रबंधन की अवधारणा को अंगीकार किया गया।
  प्रदेश में संयुक्त वन प्रबंधन का आधार बनता जा रहा है। संयुक्त वन प्रबंधन के अंतर्गत प्रदेश में तीन प्रकार की समितियाँ गठित की गई हैं (देखें बॉक्स)। ये समितियां ऐसे ग्रामों में पंजीकृत की गई हैं जो वनों के भीतर या वन सीमा से 5 कि.मी. परिधि में स्थित हैं। प्रदेश का अधिकांश वन क्षेत्र इन समितियों के प्रबंधन के दायरे में आ रहा है. तथा वनप्रबंधन में समितियों की भागीदारी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। उद्देश्य यह है कि प्रदेश के ऐसे समस्त ग्राम जो वनों के भीतर हैं या वनक्षेत्र की सीमा में 5 कि.मी. की परिधि के अंतर्गत हैं, को वन प्रबंधन में भागीदार बनाया जाए। प्रदेश के चार अभयारण्यों सीतानदी, उदन्ती, अचानकमार और तमोरपिंगला तथा इंद्रावती उद्यान में इको विकास परियोजना के अंतर्गत इको विकास समितियों के माध्यम से जनजातियों की सहभागिता विशेष रूप से सुनिश्चित की जा रही है।
महिलाओं की भागीदारी - संयुक्त वन प्रबंधन के समिति सुदृढीकरण हेतु फरवरी 2000 में शासन द्वारा पारित विविध संकल्प में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ग्राम के प्रत्येक परिवार से एक समिति महिला को समिति का सदस्य रखा गया है।  इसके साथ ही कार्यकारिणी में न्यूनतम 2 महिला सदस्यों के साथ समितियों में महिलाओं की 50% भागीदारी सुनिश्चित की गई है।

क्र.  समिति वनक्षेत्र संख्या
1 ग्राम वन समिति बिगड़े वन क्षेत्र में (वन घनत्व 40%से कम) 3107
2 वन सुरक्षा समिति सघन वन (वन घनत्व 40% या इससे | 2955
 समिति अधिक)
2955
3 इको विकास  समिति आरक्षित क्षेत्र (राष्ट्रीय उद्यान/अभ्यारण्या 0199
कुल क्षेत्र23.3 लाखहे. कुल सं.- 6261

मानव संसाधन विकास - राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के उचित क्रियान्वयन के लिए मानव संसाधन विकास हेतु विभाग के अधिकारी/कर्मचारी के अतिरिक्त ग्राम वन समिति, वन सुरक्षा समिति, ईको विकास समिति के सदस्यों तथा गैर सरकारी संस्थाओं से जुडें व्यक्तियों को भी प्रशिक्षित किया जाना निश्चित किया गया है।
  इस संपूर्ण कार्य में वन विभाग के कर्मचारियों की भूमिका को दृष्टिगत रखते हुए विमाग की कार्य-प्रणाली को नया मोड़ देकर एक विकासोन्मुखी प्रणाली का स्वरूप देने हेतु सघन प्रयास जारी है। विभाग के कर्मचारियों हेतु एक वृहद प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू कर उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय/राज्य स्तरीय संस्थानों से प्रशिक्षित कराया गया है। इसके अतिरिक्त वनों पर आश्रित समुदायों की वनों पर निर्भरता कम करने के लिए उन्हें वैकल्पिक रोजगार अपनाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण आयोजित किये गये हैं। ग्राम स्तरीय वन समितियों के संस्थागत विकास के लिए ईको विकास केन्द्र की स्थापना की जा चुकी है, जहां सदस्यों हेतु विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण आयोजित किये जाते हैं।
संयुक्त प्रबंधित क्षेत्र : संयुक्त वन प्रबंध के अंतर्गत 203 लाख हेक्टेयर प्रबंधित क्षेत्र छत्तीसगढ़ के अंतर्गत है।