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प्रदेश में वन संपदा



प्रदेश में वन संपदा

संपत्ति के रूप में वन हमारी सांस्कृतिक धरोहर तो हैं ही, किंतु पर्यावरण को संतुलित रखने एवं अनेक जीवनोपयोगी उत्पाद देने के कारण यह हमारी एक महत्वपूर्ण निधि भी है। पर्यावरण एवं पारिस्थितिक साम्य को प्रभावित करने वाले घटकों में वन सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रमुख हैं। इस दृष्टि से इनका मूल्य आकलन से परे है। पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकीय दृष्टि से प्रदेश के वन स्वयं एवं पड़ोसी राज्यों के लिए भी हितकर हैं। महानदी. गोदावरी, गंगा, आदि नदी प्रणालियों के जल ग्रहण क्षेत्र में होने के कारण प्रदेश के वनों का राष्ट्रीय महत्व और भी बढ़ जाता है। प्रदेश के वनों की विविधता अद्वितीय है। जहां एक ओर मिश्रित प्रजाति के पर्णपाती वन हैं वहीं दूसरी ओर सागौन तथा साल के सघन वन हैं। प्रदेश में साल वनों का बाहुल्य है। बांस भी अधिकांश क्षेत्रों में पाया जाता है। लघु वनोपज संपूर्ण प्रदेश के वनों में उपलब्ध है, जो कि प्रदेश के वनवासियों के दैनिक जीविकोपार्जन के साथ इनकी सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक व्यवस्था से जुड़ी हुई है।
  प्रत्यक्ष लाभ के रूप में हमें वनों से उत्पाद प्राप्त होते हैं। वनोपज व इन पर आधारित उद्योगों का देश व प्रदेश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। इस आर्थिक महत्व को देखते हुए 1964 से राष्ट्रीय स्तर पर वनोपज का व्यापार आरंभ किया गया। 1969 में हर्रा, गोंद, महुआ फल तथा महुआ बीज का राजकीय व्यापार प्रारंभ हुआ। 1970 से 1976 के बीच पांच चरणों में समूचे प्रदेश में इमारती लकड़ी का राजकीय व्यापार प्रारंभ हुआ। साथ ही इसमें बांस, सलई, साल बीज और खैर को भी शामिल किया गया। 1976 के अंत तक सभी महत्वपूर्ण वनोपज का राष्ट्रीयकरण हो गया। राष्ट्रीयकरण के उद्देश्यों के अनुरूप वनों की सुरक्षा, वनों के विकास, वन विदोहन आदि के लिए नियमावली तैयार की गई। वनोपज के व्यापार से बिचौलियों, आढ़तियों को हटाने की शुरूआत इसी समय हुई। म.प्र. ठेकेदारी समाप्त करने वाला पहला राज्य था। इन उत्पादों को मोटे तौर पर दो भागों में रखा गया है-मुख्य एवं गौण उत्पादन।
1. मुख्य वनोत्पादन (Major Forest Produce) - इसमें मुख्यतः काष्ठ उत्पाद एवं जलाऊ लकड़ी को रखा गया है। इनमें वे वृक्ष प्रजातियां सम्मिलित हैं जिनसे इमारती लकड़ी प्राप्त होती है। प्रदेश में काष्ठ के व्यापार का राष्ट्रीयकरण म.प्र. वनोपज (व्यापार विनिमयन) अधिनियम, 1969 के द्वारा किया गया था जबकि म.प्र. वनोपज (व्यापार विनिमयन) संशोधन अधिनियम 1983 के अनुसार 13 मुख्य प्रजातियों को इमारती लकड़ी की श्रेणी में शामिल किया गया है. जिसमें 6 राष्ट्रीयकृत प्रजातियां हैं- साल (Shorea robusta). सागौन (Tectona grandis), बीजा (Pterocarpusmarsupium). साजा (Terminaliatomentosa). शीशम (Dalbergia latifolia). खैर (Acaciacatechu) आदि हैं। प्रदेश में प्रति वर्ष 10.94.167 घन मी. इमारती लकड़ी. 2.20.549 घन मी. जलाऊ लकड़ी तथा 93,803 नोशनल टन बांस औसतन प्राप्त होता है। अविभाजित म.प्र. में लकड़ी कूपों से प्राप्त राजस्व का 47.26% छत्तीसगढ़ से प्राप्त होता था।
2 गौण वनोपज (Minor Forest Produce) या लघु वनोपज - लघु वनोपज में बाँस, तेंदूपत्ता. इमली, महुआ, गोंद, हर्रा, लाख, चिरौंजी. खैर. बबूल, अंजन. साल बीज. साजा, छाल. धावड़ा, चरौटा बीज, वन तुलसी. आम गुठली, छिंद घास, नागरमोथा. आवला फल. चार गुठली. कुसुम बीज. बहेड़ा. धवई फूल, बेल आदि हैं। लघुवनोपज का संग्रहण वन विभाग के नियत्रण में प्राथमिक लघु वनोपज समितियों एवं संयुक्त प्रबंध के अंतर्गत गठित वन समितियों तथा मुख्य कार्यपालन अधिकारी के नियत्रण में गठित समितियों, राजस्व विभाग, लैम्पस् आदि के द्वारा किया जाता है। विभिन्न लघु वनोपज की सग्रहण दर अलग-अलग है।
  प्रदेश में 20 से 25 लाख मानक बोरा तेदूपत्ता. 3 लाख क्विंटल साल बीज. 60 हजार क्विंटल हर्रा का उत्पादन औसतन होता है, जिनका अनुमानित मूल्य 250 करोड़ रुपये होता है। इसके अलावा अराष्ट्रीयकृत लघु वनोपज से लगभग 400 करोड रूपयो की आय होती है।
  राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज का विदोहन एवं निवर्तन - राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज में साल बीज, तेंदूपत्ता, हर्रा, गोंद व बांस आते है। बास को हाल ही मे हटा (denotify) लिया गया है। राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज के संग्रहण एवं व्यापार के लिए राज्य लघु वनोपज संघ को शासन द्वारा अभिकर्ता नियुक्त किया गया है।
1. बाँस - राज्य वनोपज (व्यापार विनियमन) अधिनियम, 1969 के अंतर्गत इसका विदोहन एवं निवर्तन शासकीय प्रावधानों के तहत कराया जाता है। विदोहन का कार्य मार्च तक कर लिया जाता है तथा किसी भी दशा में पातनांश में मई तक इनका परिवहन कर लिया जाता है।
2 तेंदूपत्ता - तेदूपत्ता के सग्रहण एवं निवर्तन का कार्य राज्य वन (व्यापार विनियमन) अधिनियम,1964 तथा इसके अतर्गत बनाये गए नियमों के अनुसार किया जाता है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन की ओर से छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज (व्यापार एव विकास) सहकारी संघ मर्यादित द्वारा यह कार्य किया जा रहा है। तेंदूपत्ता के व्यापार में संग्राहको की भूमिका को प्रभावशाली बनाने के उद्देश्य से वर्ष 1989 में शासन द्वारा तेंदूपत्ते के सहकारीकरण का निर्णय लिया गया। इसके लिए प्रदेश के तेदूपत्ता उत्पादक जिलों में सहकारिता की एक त्रि-स्तरीय संरचना स्थापित की गई। वर्ष 1989 से तेदूपत्ता के संग्रहण का कार्य सहकारी समितियों के माध्यम से किया जा रहा है। प्रदेश में वर्तमान में कुल 881 नियमित सनितिया जो सामान्य वन मडल से संबंधित है तथा 12 समितियां अभयारण्य क्षेत्रों के अतर्गत कार्यरत हैं। प्रत्येक जिले के अंतर्गत आने वाली सहकारी समितियों को मिलाकर जिला यूनियन बनाया जाता है जो पत्ते के संग्रहण का कार्य विभागीय अमले की देखरेख में करता है। इस प्रकार प्रदेश में कुल 16 जिला यूनियन कार्यरत हैं। प्रदेश में इसका उत्पादन 20 से 25 लाख मानक बोरा होता है।
3. गों - यह भी एक राष्ट्रीयकृत वनोपज है, जिसका संग्रहण एवं निवर्तन का कार्य भी राज्य वनोपज (व्यापार विनियमन) अधिनियम, 1969 के प्रावधानों के अनुसार छत्तीसगढ़ लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) संघ मर्यादित द्वारा किया जाता है। वर्ग एक में आने वाली प्रजातियों के गोंद जैसे-कुल्लु गोंद आदि पर प्रतिबंध है, केवल वर्ग दोके ही गोंद के संग्रहण में कोई रायल्टी नहीं है एवं संग्रहणकर्ता गोंद विक्रय हेतु स्वतंत्र हैं।
  इसी प्रकार हर्रा एवं साल बीज का संग्रहण एवं व्यापार संघ द्वारा किया जाता है। वर्तमान में महुआ फूल का समर्थन मूल्य पर क्रय भी प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से चल रहा है।
अराष्ट्रीयकृत (अन्य) वनोपज - प्रदेश में पाई जाने वाली राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज के अलावा अनेक महत्वपूर्ण लघु वनोपज प्राप्त होते हैं। इसके अलावा औषधि कंद, घास, बेला आदि विभिन्न प्रजातियों से भी वनोपज प्राप्त होते हैं।
  आदिवासियों को शोषण से बचाने हेतु छत्तीसगढ़ लघु वनोपज संघ द्वारा प्रतिवर्ष महत्वपूर्ण प्रजातियों का समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। बाजार मूल्य यदि समर्थन मूल्य से कम है तो संघ द्वारा वनोपज क्रय किया जाता है। अन्य अराष्ट्रीयकृत लघु वनोपजों का सही मूल्य दिलाने के लिए शासन द्वारा अराष्ट्रीयकृत लघु वनोपजों के संग्रहण, प्रसंस्करण एवं क्रय के लिए सुसंगठित व्यवस्था निर्मित करने हेतु पंचायती व सहकारी संस्थाओं तथा ग्राम सभाओं के माध्यम से प्रयास किया जा रहा है।
  लघु वनोपज के क्रय-मूल्य का निर्धारण-मूल्य निर्धारण हेतु अपेक्स समिति का गठन जिला कलेक्टरों की  अध्यक्षता में किया जाता है जो संबंधित क्षेत्रों में वनोपज क्रय हेतु मूल्य निर्धारित करते हैं। किंतु यदि राज्य शासन प्रदेश में वनोपज क्रय हेतु समर्थन मूल्य निर्धारित करती हो तो उसी दर पर क्रय किया जाता है, यदि समर्थन मूल्य अपेक्स समिति के समर्थन मूल्य से कम न हो। मूल्य निर्धारण का उददेश्य संग्रहणकर्ताओं द्वारा संगृहीत (अराष्ट्रीयकृत) वनोपज का उन्हें उचित दाम प्राप्त हो सके तथा कोचियों, विचौलियों के द्वारा उनका शोषण रोका जा सके। राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज जिसमें तेंदूपत्ता, साल बीज, गोंद, हर्रा एवं बाँस प्रमुख है। इन लघु वनोपजों का विदोहन एवं निवर्तन विभाग द्वारा किया जाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ - 1984 में एक शीर्ष सहकारी संस्था के रूप में म.प्र. राज्य लघुवनोपज संघ का गठन किया गया था। आदिवासियों के आर्थिक उत्थान तथा उनके कल्याण के लिए 1988-89 में तेंदूपत्ता व अन्य लघु वनोपजों का व्यापार सहकारिता के माध्यम से करने का निर्णय म.प्र. शासन द्वारा लिया गया था। छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने के पूर्व ही 30.10.2000 को छत्तीसगढ़ राज्य लघुवनोपज (व्यापार एवं विकास सहकारी संघ मर्यादित) का गठन किया गया व इसका मुख्यालय रायपुर में है तथा कार्य का क्षेत्र संपूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य है। संघ को म.प्र. सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 के प्रावधानों के अधीन पंजीकृत किया गया।
  वन मंत्री संघ का पदेन अध्यक्ष होता है तथा संघ का मुख्य कार्यपालक राज्य शासन द्वारा नियुक्त अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (Addl.P.C.C.F.) स्तर का अधिकारी होता है, जिसे समिति के अध्यक्ष के अधीक्षण, नियंत्रण एवं निर्देशन के अधीन रहते हुये संघ के कार्यकलापों का संचालन करना होता है। संघ के कार्यकारी संचालक (संघ में पदस्थ C.C.F. स्तर का अधिकारी),महाप्रबंधक (वनसंरक्षक स्तर के संबंधित वन वृत्तों में पदस्थ), तथा प्रबंध संचालक वन मंडलों में पदस्थ वनमंडलाधिकारी होते हैं। साथ ही विमाग का समस्त अमला निर्धारित व्यवस्था के अंतर्गत संघ के कार्यों से संलग्न रहता है।
  राज्य लघु वनोपज एवं विकास सहकारी संघ के अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्रीय वन मण्डल के स्तर पर एक जिला वनोपज सहकारी संघ बनाया गया है। इस संरचना के माध्यम से राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज जैसे तेंदूपत्ता, हर्रा, साल बीज एवं गोंद इत्यादि का संग्रहण कराया जा रहा है। साथ ही प्राथमिक समितियों को अन्य अराष्ट्रीयकृत वनोपज संग्रहण करने हेतु भी प्रोत्साहित किया जाता है।
उददेश्य-  संघ के मौलिक उदेश्य निम्नलिखित हैं
1. राष्ट्रीयकृत वनोपज के व्यापार से ठेकेदारी प्रथा को पूर्ण रूप से समाप्त करने, आदिवासी एवं ग्रामीणों को उनके संग्रह का कार्य सहकारी समितियों के माध्यम से कराना है।
2. वनोपज/कृषि उपज जैसे-रमतिल्ला, जगनी, कोदो, कुटकी इत्यादि के उत्पादन संकलन, प्रक्रिया तथा अनुसंधान व विकास की विभिन्न गतिविधियों को सहकारी आधार पर संगठित करना तथा क्रय-विक्रय एवं वितरण की ऐसी व्यवस्था करना जिससे कि सदस्यों को सर्वोत्तम लाभ मिल सके। प्राथमिक वनोपज सहकारी संस्थाओं के माध्यम से अराष्ट्रीयकृत वनोपजों के व्यवस्थापन में मार्गदर्शन एवं सहयोग प्रदान करना।
कार्य - उपरोक्त वर्णित उद्देश्यों तथा सदस्यों के वित्तीय एवं आर्थिक, सामाजिक उत्थान हेतु संघ द्वारा सदस्यों के हितों को प्रभावित किये बगैर सदस्यों अथवा अन्य स्त्रोतों से स्थानीय उत्पादित वनोपज का क्रय, एकत्रण, परिवहन, भंडारण, श्रेणीकरण, प्रक्रिया, निर्माण, वितरण एवं विपणन आदि का कार्य किया जाता है। साथ ही संघ के सदस्यों का यथा समय निर्वाचन का संचालन सुनिश्चित करता है। अराष्ट्रीयकृत वनोपज से संबंधित कुटीर उद्योगों की स्थापना हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना, यंत्र/उपकरण क्रय करना, प्रदाय करना, प्रशिक्षण दिलाने की व्यवस्था करना तथा उत्पादित वस्तुओं के विपणन की व्यवस्था करना आदि भी संघ का कार्य है। संघ राज्य शासन की इच्छानुसार अन्य व्यवसाय भी करता है।
  इस संघ के अंतर्गत कुल 893 सहकारी समितियां एवं वन मंडल क्षेत्रों में कुल 881 जिला लघु वनोपज सहकारी यूनियनों का गठन किया गया है।