वन्यप्राणी संरक्षण
प्रदेश वन्य जीवों की दृष्टि से देश में प्रमुख स्थान रखता है। यहां विविध एवं सघन वनों की प्रचुरता के कारण वन्य प्राणी भी पर्याप्त विविधता के साथ प्राकृतिक अवस्था में बहुतायत में प्राप्त होते हैं। चूंकि वन्य जीवों की उपलब्धता उस क्षेत्र में वनों की अच्छी स्थिति का घोतक है अतः वनों के संरक्षण हेतु सर्वप्रथम वन्य जीवों का संरक्षण करना आवश्यक है। पूर्वी एशिया के वन्य जीव छत्तीसगढ़ के जंगलों में विकसित अवस्था में देखे जा सकते हैं। इनके संरक्षण हेतु प्रदेश में राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्य की स्थापना की गई है ताकि इनके विकास एवं संरक्षण हेतु प्राकृतिक तंत्र (Habitat) सुरक्षित रहे। यहां पाये जाने वाले प्रमुख वन्य पशु बाघ, तेंदुआ, चीतल, मोर, सांभर, हिरन, जंगली कुत्ते, नीलगाय, भालू, जंगली सूअर, वनमंसा, गौर आदि प्रमुख हैं। दुर्लभ वन भैसा इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान व कुटरू वन (दंतेवाड़ा) तथा उदयंती अभ्यारण्य (रायपुर) में प्राप्त होते हैं। प्रदेश में एकमात्र बाघ परियोजना (Project Tiger) इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान (दंतेवाड़ा) में चलायी जा रही है। बिलासपुर जिले के मरवाही परिक्षेत्र के वनों में सफेद भालू होने की जानकारी मिली है। जगदलपुर जिले के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में भंसादरहा (कांगेर नदी) नामक स्थल पर प्राकृतिक रूप से मगर पाये जाते हैं जिनके संरक्षण हेतु प्रयास जारी हैं। अबूझमाड़ की जाटलूर नदी में (मुरूमावाडा जंगल के समीप) मगर परिवारों को विगत कुछ वर्षों से देखा जा रहा है, जिनके संरक्षण हेतु आवश्यक कदम उठाये जाने चाहिये।
अंचल के वनों में हाथी पाये जाते थे, किंतु वर्तमान में नहीं मिलते बल्कि बिहार, उड़ीसा के जंगलों से हाथी पलायन द्वारा रायमढ़, जशपुर के जंगलों में प्रवेश करते हैं एवं पुनः वापस चले जाते हैं। हाथी इस प्रदेश के जशपुर, रायगढ़, तथा सरगुजा जिलों में पहले पाये जाते थे, धीरे-धीरे यह प्रजाति इन जिलों से विलुप्त हो गई किंतु सीमावर्ती
राज्य झारखण्ड एवं उड़ीसा से हाथी समय-समय पर प्रदेश के जशपुर, रायगढ़, सरगुजा एवं कोरबा जिलों में आते रहते हैं। 1874 में पुरातत्ववेत्ता मेजर जनरल कनिंघम ने अपनी यात्रा के संदर्भ में इस क्षेत्र का भ्रमण किया था और अपने यात्रा वृत्तांत में उन्होंने यहां के वनों में हाथियों के पाये जाने की बात लिखी है। उनके अनुसार हाथी बिलासपुर जिले के पोड़ी-उपरोड़ा व मातिन क्षेत्र के वनों में होते थे जो झुंड में हसदो नदी पार करते देखे जाते थे।
वर्तमान में प्रदेश में 3 राष्ट्रीय उद्यान तथा 11 अभ्यारण्य स्थापित हैं। वन्यजीव प्रबंध के अंतर्गत प्रदेश का 6815 वर्ग कि.मी. क्षेत्र है। वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में प्रदेश में एक नई शुरूआत 1972 में हुई. जब संसद द्वारा वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम पारित किया गया जो प्रदेश में 1973 से प्रभावी हुआ। इसी के तहत् वन्य प्राणियों को नैसर्गिक आवास प्रदान करने हेतु उद्यान एवं अभ्यारण्य स्थापित किये गये। इनके प्रबंध के लिए पृथक मुख्य वन संरक्षक पदस्थ हैं। छत्तीसगढ़ प्रदेश में विभिन्न प्रकार के वन्यप्राणियों की प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। जहां एक ओर मांसमक्षी खूखार पशु जैसे बाघ एवं तेंदुआ प्रचुरता में पाये जाते हैं वहीं शाकाहारी पशु जैसे, वनभंसा, गौर, चीतल, सांभर आदि भी बहुतायत में हैं।
प्रदेश में तीन राष्ट्रीय उद्यान हैं जिनमें से एक राष्ट्रीय उद्यान इन्द्रावती को भारत सरकार द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर क्षेत्र घोषित किया गया है। संजय राष्ट्रीय उद्यान, सरगुजा एवं कोरिया तथा पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश के सीधी जिलों में फैला था, इस राष्ट्रीय उद्यान के छत्तीसगढ़ क्षेत्र को गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान' घोषित कर अधिसूचना भारत सरकार को भेजी जा चुकी है। प्रदेश के तीनों राष्ट्रीय उद्यानों का कुल क्षेत्रफल 2929 वर्ग कि.मी. है। प्रदेश में 11 अभ्यारण्य भी हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 3577.8 वर्ग कि.मी. है। इस तरह राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभ्यारण्यों का कुल क्षेत्रफल 8815 वर्ग कि.मी. होता है, जो प्रदेश के कुल वन क्षेत्र का लगभग 11% तथा राज्य के कुल क्षेत्रफल का 4.91% है।
वन्य-जीव शाखा- वन्यजीव संरक्षण एवं प्रबंध हेतु मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक (Chief wild life warden). वन्य.प्राणी अभिरक्षक तथा वन्यप्राणी सलाहकार मण्डल गठित है। इस शाखा का प्रमुख अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक स्तर का अधिकारी होता है जो समस्त उद्यानों एवं अभ्यारण्यों से संबंधित क्रियाकलापों पर नियंत्रण रखता है। उद्यानों का प्रबंध वनमंडलाधिकारी स्तर के अधिकारी देखते हैं जबकि अभ्यारण्यों में आवश्यकतानुसार वनमंडलाधिकारी अथवा उद्यान अधीक्षक (सहायक वन संरक्षक स्तर के) पदस्थ होते हैं। इस शाखा द्वारा उक्त आरक्षित क्षेत्र में वन्य-जीव संरक्षण हेतु कार्यों के अलावा महत्वपूर्ण वन्य-जीवों की गणना भी की जाती है। कार्य आयोजना (Working Plan)- कार्य आयोजना वैज्ञानिक एवं तकनीकी आधार पर वनों के प्रबंधन का अभिलेख होता है एवं इसमें दिये गये निर्देशानुसार वनों का प्रबंधन किया जाता है। कार्य आयोजना शाखा का मुख्य कार्य प्रदेश के आरक्षित एवं संरक्षित वनों के प्रबंधन हेतु शासन की नीतियों के अनुसार तकनीकी आधार पर कार्य
आयोजना तैयार किया जाना सुनिश्चित करना है। विभाग में वर्तमान में एक कार्य आयोजना वनवृत्त बिलासपुर में कार्यरत है। प्रत्येक वनमंडल हेतु दस वर्ष की कार्ययोजना तैयार की जाती है, जिसमें तीन वर्ष का समय लगता है। वर्तमान में 6 वनमण्डलों द्वारा कार्य आयोजना पुनरीक्षण का कार्य कराया जा रहा है। संपूर्ण वनमंडल का नक्शा, क्षेत्र एवं उसके अंतर्गत आने वाले वनों से संबंधित सूक्ष्म एवं विस्तृत व्यौरा कार्य योजना में बताया जाता है। यह सामान्यतः वनमंडल में किये जाने वाले समस्त कार्यों/योजनाओं हेतु निर्देशक साहित्य के रूप में उपलब्ध होता है। प्रत्येक दस वर्ष के पश्चात् कार्य आयोजना का अगले दस वर्ष के लिए नवीनीकरण होता है।
भू-प्रबंध- इस शाखा द्वारा वन भूमि व्यवस्थापन का कार्य किया जाता है। शासन के निर्देशानुसार वन भूमि पर काबिज परिवारों का व्यस्थापन संबंधित क्षेत्र में इन वनमंडलों द्वारा किया जाता है। भू-सर्वेक्षण शाखा द्वारा वित्तीय वर्ष 2001 में वैकल्पिक वृक्षारोपण योजनांतर्गत राज्य में दो योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है। इसके अंतर्गत अतिक्रमण, विस्थापन के विरुद्ध वैकल्पिक वृक्षारोपण, विभिन्न स्वीकृत परियोजनाओं के विरुद्ध वैकल्पिक वृक्षारोपण किया जा रहा है।
भू-संरक्षण- प्रदेश के ऐसे क्षेत्र जहां भू-क्षरण (Erosion), कटाव आदि अधिक है उन क्षेत्रों में भूमि तथा जल संरक्षण का कार्य वानस्पतिक एवं यांत्रिक विधियों (Vegetative & Mechanical Measures) से विभाग की भू-संरक्षण शाखा संपादित करती है। इसके लिये यह क्षेत्र में रोपण, कंटूर बंडिंग, गली प्लगिंग, छोटे चेकडेम बनाने आदि का
कार्य करती है। प्रदेश में वर्तमान में केवल एक भू-संरक्षण वन मंडल रायगढ़ में कार्यरत है।
वन विकास निगम- मूलतः यह 24 जुलाई, 1975 को राज्य वन विकास निगम अस्तित्व में आया था। नव छत्तीसगढ़ राज्य में भी निगम पूर्व प्रावधानों के अनुसार कार्यरत है, जिसका गठन मई 2001 में किया गया।
उद्देश्य- निगम की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वनों की उत्पादन क्षमता में त्वरित गति से वृद्धि करने के लिए तेजी से बढ़ने वाली बहूमूल्य एवं औद्योगिक / व्यापारिक कार्यों के लिए उपयोगी प्रजातियों का रोपण करना, गहन वन प्रबंध पद्धति से वनों की उत्पादन क्षमता एवं गुणवत्ता में सुधार लाना तथा राज्य में वानिकी गतिविधियों के लिए सक्षम योजनाएं तैयार कर वित्तीय संस्थानों से ऋण एवं अतिरिक्त धनराशि प्राप्त करना, बिगड़े वनों का सुधार, संयुक्त वन प्रबंध के अंतर्गत औषधीय प्रजातियों का रोपण, डिपाजिट वर्क, वृक्षारोपण, जलग्रहण क्षेत्र उपचार एवं क्षतिपूरक वृक्षारोपण करना है।
कार्यक्रम- उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु छत्तीसगढ़ राज्य के 8 जिलों में निगम के 5 परियोजना मण्डलों-कोटा- पंडरिया, बिलासपुर, बारनवापारा, रायपुर; पानावरस, राजनांदगांव; अंतागढ़, भानुप्रतापपुर (पांचवां कोंडागांव परियोजना मण्डल अंतागढ़ में समाहित हो चुका है) के द्वारा विभिन्न योजनायें क्रियान्वित की जा रही हैं, जो सागौन एवं बाँस का व्यापारिक रोपण, बिगड़े बांस वन क्षेत्रों का सुधार, गैर इमारती वनोपज (औषधी पौधों सहित) का संरक्षण एवं विकास, खदानों एवं अन्य शासकीय संस्थानों के क्षेत्रों में वृक्षारोपण तथा टसर फूड रोपण योजना आदि हैं। इसके अलावा निगम द्वारा खदान क्षेत्र एवं अन्य शासकीय संस्थान क्षेत्रों में वृक्षारोपण किया जाता है।
निगम अपनी प्राधिकृत पूंजी के अतिरिक्त अंशपूंजी, बैंक ऋण तथा आंतरिक साधनों से अपनी वित्तीय व्यवस्था करता है। इस निगम को विश्व बैंक से भी अनुदान प्राप्त हुआ है, जिसके द्वारा उच्च श्रेणी के सागौन वृक्षों का रोपण, वनों में किया गया है और किया जा रहा है। वनोपजों पर आधारित उद्योगों के विकास हेतु महत्वपूर्ण कार्य इस निगम द्वारा किए जा रहे हैं।
वन अनुसंधान एवं शिक्षा- छत्तीसगढ़ राज्य वन अनुसंधान संस्थान की स्थापना बिलासपुर में प्रस्तावित है जबकि म.प्र. राज्य वन अनुसंधान संस्थान के तीन क्षेत्रीय केन्द्र बिलासपुर, रायपुर तथा जगदलपुर में स्थित है जहां संस्थान के निर्देशानुसार विभिन्न योजनांतर्गत विविध अनुसंधान गतिविधियां संचालित की जाती है तथा संबंधित जानकारी एवं आंकड़े आवश्यकतानुसार संस्थान को भेजे जाते हैं जहां विश्लेषण पश्चात अनुसंधान परिणाम प्राप्त किये जाते है। संस्थान विभाग में वन प्रबंध से संबंधित समस्याओं के निराकरण के साथ-साथ तकनीकी मार्गदर्शन समय-समय पर विभाग को उपलब्ध कराता है। संस्थान भू-संरक्षण, वन वनस्पति, वन्य-जीव, वन प्रभाव, वनों की उपयोगिता एवं प्रसार, वृक्ष सुधार, वनवर्धन, जैव-विविधता, पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण, वन प्रबंध एवं सुरक्षा आदि अनेक पहलुओं पर आश्यकतानुसार अनुसंधान कार्य संपादित करती है। किसी क्षेत्र विशेष में वनस्पति एवं वन्य जीव की उपलब्धता एवं स्थिति (Status) के संबंध में सर्वेक्षण भी संस्थान का कार्य है।
वन कर्मियों के प्रशिक्षण एवं वानिकी शिक्षा हेतु राज्य वन सेवा में चयनित सहायक वन संरक्षकों को देहरादून तथा कोयम्बटूर में भेजा जाता है जहां दो वर्षीय पाठ्यक्रम के अंतर्गत इन्हें विभागीय कार्यों हेतु प्रशिक्षित किया जाता है, जबकि वन परिक्षेत्राधिकारियों को प्रशिक्षण हेतु बालाघाट (म.प्र.). राजपिपला (गुजरात). अंगुल (उड़ीसा), जोरहट (असम), कुर्सियांग (प.बंगाल) आदि रेंजर्स कॉलेजों में भेजा जाता है। वनपालों के लिये जगदलपुर एवं वनरक्षकों के प्रशिक्षण हेतु सक्ती, महासमुंद एवं जगदलपुर में वन विद्यालय स्थापित हैं। देश में भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षण परिषद् (Indian Council of Forest Research & Education) वन अनुसंधान एवं शिक्षण से संबंधित सर्वोच्च संस्था है। यहां स्थित अकादमी में भारतीय वन सेवा के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। वनाधिकरियों को आधुनिक प्रबंध का प्रशिक्षण देने हेतु भारतीय वन प्रबंध संस्थान (Indian Institute of EyestManagement) भोपाल में स्थापित है। उच्च वन अधिकरियों (अखिल भारतीय सेवा के) को प्रशासन से संबंधित प्रशिक्षण देने हेतु लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी, मसूरी (उत्तरांचल) में आवश्यकतानुसार भेजा जाता है।
वन संरक्षण (रोकथाम) से सम्बन्धित महत्वपूर्ण अधिनियम- वनों के संरक्षण हेतु शासन द्वारा पर्याप्त कानूनी प्राव- धान किये गये हैं। केन्द्र शासन द्वारा वन नीति, भारतीय वन अधिनियम,1927; वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 वन संरक्षण अधिनियम, 1980 आदि स्थापित किये गये हैं। साथ ही राज्य सरकार द्वारा प्रावधानों के अधीन समय-समय पर नियम-अधिनियम बनाये गये हैं। वन केन्द्र सूची का विषय है. इसमें केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये विधान/निर्णय आदि को वरीयता प्राप्त होती है एवं उनका पालन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। वन संरक्षण से संबंधित अवैध गतिविधियों के विरुद्ध विभिन्न अधिनियमों का सार निम्न है-
1. अवैध वनोपज परिवहन पर कोई भी वाहन यदि किसी वनोपज की अवैध निकासी कर रहा है तो भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा-52 या वनोपज (व्यापार विनियमन) अधिनियम, 1989 की धारा 15 या तेंदूपत्ता (व्यापार विनियमन) अधिनियम, 1964 की धारा 14 के प्रावधान के अनुसार वाहन राजसात किया जा सकता है। अतः वैध परिवहन अनुज्ञा पत्र (Transit Pass) उपलब्ध होने पर ही वाहन का उपयोग किया जाना चाहिये।
2 अवैध गतिविधियों पर- आरक्षित या संरक्षित वन में अवैध कटाई, चराई अतिक्रमण या वनोपज का अवैध परिवहन करने पर क्रमशः भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 28 एवं 33 के अनुसार 1 वर्ष की कैद या 1000 रुपए तक अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
३. अवैध शिकार पर- शेर, तेंदुए या अन्य अधिसूचित किसी वन्य प्राणी के शिकार पर अथवा वन्य प्राणियों के शरीर का अंग रखने या उसका परिवहन करने पर बन्य प्राणी अधिनियम, 1972 के तहत अधिकतम 6 वर्ष तक की सजा तथा 25000 रू. का अर्थदण्ड या दोनों किया जा सकता है। अधिनियम में अनुसूचित वन्य प्राणियों से संबंधित किसी अपराध पर 1 वर्ष की सजा हो सकती है।
4. वन भूमि में अतिक्रमण पर आरक्षित या संरक्षित वनों से अतिक्रमण हटाये जाने हेतु भारतीय वन अधिनियम की धारा 80 (अ) के अनुसार चेतावनी/नोटिस पश्चात् वन मंडलाधिकारी के आदेश द्वारा संक्षिप्त रूप से बेदखल किया जा सकता है और उसकी खड़ी फसलें या भवन या अन्य संपत्ति भी राजसात योग्य है। साथ ही भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अंतर्गत दण्ड भी दिया जा सकता है।
राज्य शासन के (वन) पुरस्कार- पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए स्थानीय जनता द्वारा जो कार्य किये जाते है, उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए राज्य शासन द्वारा लोगों को विभिन्न पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जाता है। वे पुरस्कार निम्नलिखित है
1. उत्कृष्ट वनीकरण के लिए जिला स्तरीय पुरस्कार- वन एवं वनोत्तर क्षेत्रों से वनोपज की उपलब्धता में वृद्धि के जन भागीदारी के प्रयास हेतु प्रत्येक जिला स्तर पर उत्कृष्ट वनीकरण कार्यों के लिए व्यक्ति, अन्य संस्थाओं/ व्यक्तियों को प्रेरणादायक स्रोत के रूप में पुरस्कृत किया जाता है। यह पुरस्कार 2000 रु. से 5000 रु. तक का होता
2. महान पुरस्कार- यह पुरस्कार सबसे अधिक मोटाई और ऊंचाई के वृक्ष जो स्वस्थ और सुविकसित होंगे, उनके संरक्षण और सुरक्षा के लिए प्रतिवर्ष पुरस्कार के रूप में 25 हजार रुपए एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के माध्यम से विभिन्न वृक्ष प्रजातियों के उत्कृष्ट नमूनों के संरक्षण के महत्व के बारे में व्यापार
जागरूकता उत्पन्न होगी।
३ वन अपराध की सूचना देने पर पुरस्कार- शासन के वन विभाग द्वारा वन अपराध प्रकरण में अपराधी को सफलतापूर्वक पकड़वाने के लिए व्यक्ति को प्रति प्रकरण 1500 रुपए का पुरस्कार दिया जाता है। वन अपराध की सूचना देने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है।
4 अवैध शिकार की सूचना देने पर पुरस्कार- यह पुरस्कार राज्य शासन द्वारा वन्य प्राणियों के अवैध शिकार की घटना एवं शिकार करने वालों की सूचना देने वाले व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिए गुप्त रूप से उचित पुस्कार दिया जाता है, जो 5 से 50,000 रुपये तक हो सकता है। सूचना स्थानीय वन रक्षक, परिक्षेत्र सहायक, परिक्षेत्राधिकारी अथवा वन मंडलाधिकारी को दी जा सकती है। इसमें सूचना देने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है।
इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र राष्ट्रीय पुरस्कार- वानिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र पुरस्कार के रूप में 50 हजार रुपये विभिन्न व्यक्तियों, संस्थाओं तथा संगठनों को दिया जाता है, जो एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं एवं दूसरों के लिए प्रेरणादायक होते हैं।