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केन्द्र प्रवर्तित योजनाएं



केन्द्र प्रवर्तित योजनाएं

एरिया ओरियन्टेड जलाऊ लकड़ी तथा चारागाह विकास योजना- इस योजना के लिये 50% राशि केन्द्र से तथा शेष राज्य योजना मद से उपलध होती है। प्रदेश के तीन जिलों बिलासपुर, रायपुर एवं दुर्ग में यह योजना क्रियान्वित है, जिसके अंतर्गत चयनित क्षेत्रों में जलाऊ तथा चारा प्रजातियों के रोपण कार्य किये जा रहे है। योजनांतर्गत और जिले शामिल किये जाने के प्रयास किये जा रहे है। इस योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2001-2002 में बिलासपुर जिले में 1250, दुर्ग जिले के लिए 700 हे. एवं रायपुर जिले के लिए 700 है. का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिये 50 लाख रुपये का आर्थिक लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
एकीकृत वनीकरण एवं पारिस्थितिकीय विकास योजना- इस योजना हेतु 100% राशि भारत सरकार से प्राप्त होती है। यह योजना प्रदेश के 3 जिलों सरगुजा, राजनांदगांव एवं कांकेर में क्रियान्वित है। वृक्षारोपण के लिए गांव की समिति तथा माइक्रोप्लान बनाना आवश्यक है। एन्ट्री प्वाइंट एक्टीविटी के लिए 20% धन राशि निर्धारित की गई है। इन क्षेत्रों में कुल 890 हेक्टेयर क्षेत्र में 50 लाख रुपये व्यय पर रोपण एवं 3038 हे. क्षेत्र में रखरखाव का कार्य वर्ष 2000-2001 में किया जा रहा है. जबकि आगामी वर्ष के लिए 975 हे. का लक्ष्य निर्धारित है।
विश्व खाद्य कार्यक्रम- यह कार्यक्रम भारत शासन एवं संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व खाद्य कार्यक्रम के मध्य 10 जुलाई. 1968 में हुए समझौते के अनुसार वानिकी गतिविधियों द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए म.प्र. शासन द्वारा 1 जनवरी, 1986 से विभिन्न चरणों में प्रारंभ किया गया, जो छत्तीसगढ़ शासन द्वारा भी जारी है। योजना का प्रथम चरण जून 1990 में समाप्त हो गया। जुलाई 1990 से योजना का द्वितीय चरण तथा तृतीय चरण 01-10-1997 से आरंभ हुआ। योजना का विभाजन 01-01-2001 से हो चुका है तथा यह योजना छत्तीसगढ़ के बस्तर एवं बिलासपुर संभाग के सभी 10 जिलों में पूर्ववत् लागू है। इस योजना के उद्देश्य निम्नलिखित है-
1. वानिकी कार्यों में लगे कमजोर वर्ग के लोगों को संतुलित आहार उपलब्ध कराना।
2. खाद्यान्न वितरण से एकत्रित कल्याण निधि से गरीब तबके के लोगों का आर्थिक उत्थान तथा क्षेत्रीय विकास
करना।
     छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद इस परियोजना का विभाजन दिनांक 01-01-2001 से हो चुका है। छत्तीसगढ़ राज्य में बस्तर एवं बिलासपुर संभाग के समस्त 10 जिले इस परियोजना के अंतर्गत आते हैं। परियोजनांतर्गत वानिकी कार्यों में लगे अमिकों को प्रति कार्य दिवस पर एक खाद्य यूनिट, जिसमें 2 किलोग्राम गेहूँ/ चावल. 200 ग्राम मटर/चना तथा 200 ग्राम खाद्य तेल होता है, दिया जाता है। यह कार्यक्रम दानदाता देशों द्वारा दिये गये खाद्यान्नों से संचालित होता है जिसके तहत उनके द्वारा देश के बन्दरगाह तक परिवहन कर मुफ्त खाद्यान्न दिया जाता है। श्रमिकों को दिये गये खाद्यान्न की कीमत लगभग 25 रुपये होती है, जबकि उनसे मात्र 10 रुपये प्रति खाद्य यूनिट वसूल कर (प्रतिदिन की मजदूरी पर) उन्हें कूपन दिया जाता है जिसके अनुसार उन्हें वितरण केन्द्रों से खाद्यान्न मिल जाता है। शेष मजदूरी नकद दी जाती है। यह वसूल की गई राशि कल्याण निधि कहलाती है जिससे उनके क्षेत्रों में विकास कार्य किये जाते हैं जैसे शाला भवन, हैण्डपंप. कुएं. स्टापडेम, उदवहन सिंचाई योजनाओं आदि का निर्माण तथा आय वर्धनिक योजनाएं चलाई जाती हैं। इस परियोजना में कम से कम 30% महिलाओं को सीधे फायदा देने का प्रावधान है। दिनांक 01-01-2001 से परियोजना की अवधि 31-12-2002 तक लगभग 16000 मीट्रिक टन खाद्यान्न प्राप्त होगा तथा पूर्व का अवशेष एवं परियोजना के दौरान वसूल की गई कल्याण निधि से लगभग 10 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे।

औषधि पौध रोपण : केन्द्रीय सहायता से पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा औषधीय पौध रोपण योजना प्रदेश के पांच क्षेत्रों यथा कोरिया, पूर्व सरगुजा; दक्षिण सरगुजा, बिलासपुर एवं जशपुर नगर में क्रियान्वित की जा रही हैं। वर्ष 1999-2000 में इस योजनांतर्गत 100 लाख रुपये व्यय कर 900 हेक्टेयर क्षेत्र में रोपण कार्य किया गया।
उत्पादन एवं निस्तार
उत्पादन- इसके कार्य व दायित्व के अंतर्गत कार्य आयोजना के प्रावधानों के अनुसार कूपों (इमारती, जलाऊ. बाँस एवं खैर) की कटाई कर प्राप्त वनोपज का विभिन्न काष्ठागारों में परिवहन तथा निवर्तन करना सम्मिलित है। जनता की इमारती, जलाऊ लकड़ी एवं बाँस की निस्तार तथा व्यापारिक आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था करना। लघु वनोपजों के संग्रहण एवं व्यापार से संबंधित समस्त विधिक एवं अन्य कार्य।
उपरोक्त उत्पादन के लिए प्रदेश के 27 वनमंडलों में स्वीकृत कार्य आयोजना के प्रावधानों के अनुसार विभिन्न कूपों में कटाई की जाती है। विदोहन कार्य हेतु + उत्पादन वनमंडल विशेष रूप से गठित हैं तथा शेष क्षेत्रों में क्षेत्रीय वनमंडलों द्वारा उत्पादन से संबंधित कार्य किया जाता है। प्रदेश के वनों में प्रति वर्ष औसत 696 वार्षिक काष्ठ कूपों में कटाई कार्य संपादित किया जाता है। इस कार्य में लगभग 55 लाख मानव दिवस रोजगार का सृजन प्रति वर्ष होता है। काष्ठ एवं बाँस निवर्तन हेतु 32 काष्ठगार तथा 15 बाँसगार प्रदेश के विभिन्न वनमंडलों में स्थापित हैं। यहां वर्ष भर काष्ठ/बाँस के निवर्तन हेतु नीलामी आयोजित की जाती है। औद्योगिक बाँस का निवर्तन अग्रिम निविदा द्वारा किया जाता है।
निस्तार व्यवस्था- प्रदेश में निस्तार नीति के अंतर्गत कुल 731 निस्तार डिपो स्थापित हैं जिनमें से औसतन 4 लाख इमारती बल्ली, 87 लाख बाँस तथा 1,75,000 जलाऊ चट्टों का प्रदाय ग्रामीण निस्तारी एवं बैंसोड़ों को होता है। निस्तार व्यवस्था जनवरी से जून तक वर्ष में 6 माह तक जारी रहती है. लेकिन बैंसोड़ों को पूरे वर्ष भर बाँस का
प्रदाय जारी रहता है। निस्तार व्यवस्था का संचालन विमागीय कर्मचारियों द्वारा किया जाता है।