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धातु प्रतिमाएं



धातु प्रतिमाएं

भारतवर्ष में धातु प्रतिमाओं का निर्माण हड़प्पा काल में होने लगा था। कालांतर में कुषाण एवं गुप्तकाल में अनेक सुंदर धातु प्रतिमाओं का निर्माण हुआ। छत्तीसगढ़ में लगभग 7वीं-8वीं शताब्दी ई. में धातु प्रतिमा के निर्माण का एक केन्द्र था। यहां बनने वाले प्रतिमाओं को खंड-खंड पहले ढालकर बाद में जोड दिया जाता था। इसके पश्चात् अलंकरण से सज्जित करने के उपरांत सोने का मुलम्मा, आँखों में चांदी का जडाव, बालों में काला रंग, ओष्ठ में ताॅंम्बे का रंग आदि चढ़ाया जाता था और अन्त में असली रत्नों सहित आभूषण से अलंकृत किया जाता था।
सिरपुर की धात्तु प्रतिमाएं- सिरपुर सेप्राप्त अनेक धातु प्रतिमाएं सोमवंशियों के काल में छत्तीसगढ़ के आर्थिक, सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं। लगभग 25 धातुओं की प्रतिमाएं वहां के तत्कालीन मालगुजार श्यामसुन्दर दास के अधिकार में थीं, जिसमें से छ: मूर्तियां उन्होंने विभिन्न लोगों को भेंट में दे दी थी। दो प्रतिमाएं मुनि कांति सागर को प्रदान की गई थी। इसमें से सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा तारा की मानी जाती है, इसे मुनि कांति सागर ने बम्बई के भारत विद्या भवन को प्रदान किया था। यह आजकल अमेरिका के लॉस एंजिल्स शहर के निजी संग्रहालय में है। शेष प्रतिमाओं में से ग्यारह रायपुर संग्रहालय में संरक्षित की गई हैं। इनमें से तीन बुद्ध की. पद्मपाणि अवलोकितेश्वर की. एक वज्रपाणि की, दो मंजुश्री की और एक तारा की है। ये सभी बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा से संबंधित हैं। स्पष्टतः सिरपुर प्राचीन समय में एक बहुत बड़ा बौद्ध केन्द्र था। आरंभ में यहां महायान शाखा स्थापित थी, किंतु वजयान शाखा से संबंधित मंजुश्री एवं तारा आदि की धातु प्रतिमाओं के प्राप्त होने से ऐसा प्रतीत होता है कि यहां कालांतर में वज्रयान रधारा प्रभावी हो गई थी। ये धातु प्रतिमायें न केवल छत्तीसगढ़ वरन् भारतीय कला की अनुपम निधि हैं। इतनी उत्कृष्ट और अधिक मात्रा में बौद्ध धर्म से संबंधित प्राचीन धातु प्रतिमाएं देश में अन्यत्र कहीं भी प्राप्त नहीं हुई हैं।

अन्य स्थलों से प्राप्त धातु प्रतिमाएं- सिरपुर की धातु प्रतिमाओं के अतिरिक्त सिरपुर के निकट फुसेरा से प्राप्त विष्णु प्रतिमा तथा जांजगीर जिले के सलखन ग्राम से पांच धातु की मूर्तियां, चार घंटियां तथा तीन आरती दानें मिली हैं। इनमें तीन मूर्तियां नागपुर संग्रहालय से प्राप्त की गईं, जो विष्णु की श्रीधर, उमा एवं चामुण्डा की हैं। चामुण्डा की प्रतिमा बाद में रायपुर संग्रहालय स्थानांतरित कर दी गई।