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मुहरें एवं मुद्रांक



मुहरें एवं मुद्रांक

सबसे प्राचीन मुहरें एवं मुदांक सिंधु घाटी सभ्यता के प्राप्त होते हैं, जो मिट्टी. सेलखडी के बने होते थे जो निर्मित वस्तुओं एवं इनकी गठरियों में व्यापारिक संस्थानों के छाप लगाने हेतु प्रयुक्त होते थे। प्राचीनकाल में किसी पत्थर या कडी वस्तु में अक्षर, चिन्ह अथवा चित्र आदि उल्टा खोद दी जाती थी। उसकी छाप गीली मिट्टी में उतार ली जाती थी जिससे छाप बनाया जाता था उसे मुद्रा अथवा मुहर (सील) कहा जाता था और जो मिट्टी का छापा तैयार होता था, उसे मुद्रांक (सीलिंग) कहा जाता था। छत्तीसगढ़ अंचल में अनेक ऐसी मुहरें अथवा मुद्रांक प्राप्त हुए हैं।

मल्हार से प्राप्त मुहरें -   मल्हार उत्खनन से वेद सिरिस, गामस कोसलिया तथा महाराज महेन्द्रस्य नाम के मुद्रांक प्राप्त हुए हैं। मल्हार से चद्राकार, केशवदेवस्य आदि मुहरे तथा प्रसन्नमात्र की मुद्राक मिली है। कुछ अन्य मुहरें एवं मुद्रांक भी यहां प्राप्त हुए हैं जिनका अध्ययन किया जा रहा है। मल्हार के एक मृण्मय खण्ड कल्याणार्थी अथवा कल्याणर्चिवम् लेख अंकित है, जिसकी पहचान नहीं हो सकी है।
सिरपुर से प्राप्त मुहरें - सिरपुर उत्खनन से नन्नराज नामक राजा की मुहर मिली है। इसके अतिरिक्त बौद्ध मंत्रों सहित मुद्रांक प्राप्त हुए हैं, जिसमें बुद्ध एवं अवलोकितेश्वर के चित्र अंकित हैं।
अन्य मुहरें-  इसके अतिरिक्त बालपुर से बालकेश्वरी की एक पत्थर की मुद्रा भी प्राप्त हुई है। ये सभी मुद्रा एवं मुद्रांक प्रथम शताब्दी ई. से सातवीं शताब्दी ई. के हैं।