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अभिलेख



अभिलेख

विभिन्न राजवंशों से संबंधित अनेक अभिलेख अंचल से पुरातात्विक सामग्री के रूप में प्राप्त हुये हैं। ये अभिलेख पत्थर, ताम्रपत्र एवं एक स्थान से काष्ठ पर अंकित मिले हैं, जिनसे अंचल के इतिहास एवं संस्कृति के अभिज्ञान में सहायता प्राप्त होती है। शिलालेखों से मंदिर, मठ, सरोवर, कुए आदि के निर्माण की जानकारी मिलती है, जबकि ताम्रपत्रों से ग्राम दान, भूमि दान अथवा अन्य राजाज्ञाओं का विवरण प्राप्त होता है और साथ ही इन ताम्रपत्रों के साथ राजचिन्ह युक्त मुद्रा भी संलग्न रहती है। इन अभिलेखों में यदा-कदा राजाओं की वंशावली, नाम, तिथि एव अन्य आर्थिक, सामाजिक एवं परंपरागत जानकरियां प्राप्त होती हैं।
भाषा एवं लिपि-  इन लेखों की लिपि पेटिकाशीर्ष, कीलाक्षर. ब्राह्मी, कुटिल, आरंभिक नागरी एवं विकसित देवनागरी आदि है। सामान्यतः भाषा शुद्ध संस्कृत है। कई लेख पद्य में भी प्राप्त हुये है, किंतु अधिकतर गद्य में हैं। इन लेखो के विषय में रायबहादुर हीरालाल ने 'इन्सक्रीप्सन्स इन द सेन्ट्रल प्रोविन्स एण्ड बरार में, व्ही.व्ही. मिराशी ने कार्पस इन्सक्रीप्सन्स इंडिकारम-भाग-4 एवं 'इन्सक्रीप्सन्स आफ द कलचुरि चेदि एरा' में तथा बालचन्द्र जैन ने 'उत्कीर्ण लेख में प्रकाश डाला है। अजय मित्र शास्त्री का इन्सक्रीप्सन्स आफ शरभपुरीयाज, पाण्डुवंशीज एण्ड सोमवंशीज' नामक ग्रंथ भी अचल के अभिलेखों के संबंध में महत्वपूर्ण प्रकाश डालता

महत्वपूर्ण अभिलेख-  अंचल से मौर्य कालीन, सातवाहन कालीन, वाकाटक-गुप्त कालीन, गुप्तोत्तर तथा कलचुरि कालीन अभिलेख प्राप्त हुये हैं, जिनमें नल, राज्ययर्षितुल्य, परर्वतद्वारक, शरभपुरी, सोमवंशी आदि प्राचीन कालीन तथा मध्यकालीन अभिलेखों में कलचुरि. बस्तर के छिदक नागवंश एवं काकतीय वंश, कवर्धा के फणीनागवश, काकेर के परवर्ती सोमवंश आदि राजवंशों के अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इनमें रामगढ़ गुफा अभिलेख (3-2री सदी ई.पू.). किरारी (चन्द्रपुर) काष्ठ स्तंभ लेख (द्वितीय सदी ई.). सोमवंशी बालार्जुन के 27 ताम्रपत्र निधि (600-650ई.). नल राजा विलाशतुग का राजिम शिलालेख (700-740ई.). नागवंशी रानी गंगमहादेवी का बारसूर शिलालेख (1208 ई.), नरसिंह देव का जतनपाल शिलालेख (1224 ई.). टेमरा का सती स्मारक लेख (1324 ई.). कवर्धा का मड़वा महल अभिलेख (1349 ई.). कांकेर के सोमवंशी भानुदेव का कांकेर शिलालेख (1320 ई.). काकतीयों का दंतेवाड़ा शिलालेख (पूर्वार्ध 14वीं सदी ई.) आदि महत्वपूर्ण अभिलेख हैं। इसके अलावा 'छत्तीसगढ़ का इतिहास अध्याय में ऐतिहासिक विवरण से संबंधित राजवंशों के अभिलेखों का उल्लेख प्रसंगानुसार किया गया है। इनमें छत्तीसगढ़ के बाहर के अभिलेख भी हैं. जो छत्तीसगढ़ के संबंध में जानकारियां देते हैं। इसके अतिरिक्त भी अनेक ऐसे लेख हैं, जिनका प्रयोग वहां नहीं किया जा सका है, क्योंकि इन अभिलेखों में इतिहास के नये पक्ष को उद्घाटित करने वाले मूलभूत तथ्यों का समावेश नहीं है।
संबद्ध स्थल-  छत्तीसगढ़ में जिन स्थलों से अभिलेख प्राप्त हुए हैं उनमें पिपरदूल्हा, कुरूद, रवान. मल्हार, आरंग, नहना (खारियार), आमगुडा (खारियार). सिरपुर, कौआताल, रायपुर. सारंगढ़, ठाकुरदिया, बोण्डा, राजिम, बलौदा, अड़भार. लोधिया. बरदुला, सेनकपाट, खरौद, पाली, ताला, अमोदा, रतनपुर. शिवरीनारायण, अकलतरा, कोटगढ़, सरखो. परगांव, दैकोनी, कुगदा, बिलईगढ, कोनी, घोटिया, पुजारीपाली, पेन्डराबन्ध, कोसईगढ़, खल्लारी, कोनारी, कुटेरा, पासिद, बारसूर. पोटिनार, भैरमगढ़, दन्तेवाड़ा. राजपुर, कुरूसपाल, नारायणपाल, जतनपाल, दन्तेवाड़ा. टेमरा, सुनारपाल, मड़वा महल (कवर्धा). गुरूर, सिहावा, तहनकापार, कांकेर, डोंगर, लहेंगाभाठा आदि प्रमुख हैं।
छत्तीसगढ़ क्षेत्र से प्राप्त कुछ अद्वितीय एवं महत्वपूर्ण अभिलेखों का संक्षिप्त विवरण यहां दिया जा रहा है।
रामगढ़ गुहा लेख-   सर्वाधिक महत्वपूर्ण और छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक प्राचीन लेख सरगुजा जिले के रामगढ़ पर्वत के जोगीमारा में ई. पू. तीसरी शताब्दी का पांच पंक्तियों का ब्राह्मी लिपि व पाली भाषा में है जिसमें सुतनुका देवदासी एवं देवदीन नामक रूपदक्ष के प्रेम का वर्णन प्राप्त होता है। यह लेख इसलिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि अभिलेखीय साक्ष्य में पहली बार 'रूपदक्ष' अर्थात् स्थापति (वास्तुविद्) तथा देवदासी' शब्द का प्रयोग किया गया है। यह लेख उतना ही प्राचीन लगता है, जितने अशोक के 'बराबर के गुहा लेख।
किरारी काष्ठ स्तंभ लेख-  जांजगीर जिले के किरारी (चन्द्रपुर) से प्राप्त दूसरी शताब्दी ई. का अभिलिखित काष्ठ स्तंभ लेख भारत में अपने ढंग का एकमात्र लेख है, किंतु अब इसका अंश ही सुरक्षित है। किरारी के हीराबंध तालाब से निकले लकड़ी के इस खंभे का महत्व समझकर स्थानीय श्री लक्ष्मीधर उपाध्याय ने इसकी नकल उतार ली थी। परीक्षणोपरांत पुरालिपिशास्त्रियों ने इस लेख का अध्ययन किया, जिसमें तत्कालीन अनेक राजपदाधिकारियों के नामों का उल्लेख है। वर्तमान में यह रायपुर संग्रहालय में सुरक्षित हैं। इसके अनुसार शक्ति के निकट दमऊदहरा अथवा गुंजी लगभग दो हजार साल पहले ऋषभतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध था। यहां राजा अमात्य, दण्डनायक और बलाधिकृत ने दो बार एक-एक हजार गायों का दान किया था। यह अभिलिखित प्रमाण भी अपनी प्राचीनता के कारण दुर्लभ होने के साथ क्षेत्र की संपन्न परंपरा को बताता है।
विक्रमखोल-  इसी प्रकार क्षेत्र की सीमा से संलग्न विक्रमखोल का चट्टान लेख हड़प्पा कालीन संकेतों और ब्राह्मी लिपि के मध्य की कड़ी माने जाने के कारण अत्यधिक महत्वपूर्ण और अनूठा है।