सोन नदी
सोन नदी:- सोन राज्य की महत्वपूर्ण नदी है। सोन के उद्गम को लेकर अनेक तर्क तथ्य मिथक और कथायें हैं । मिथकीय तौर पर इसका उद्गम अमरकंटक में नर्मदाकुंड के विपरीत स्थित सोनमुड़ा है सोनमुड़ा से निकला जल माही नाला से मिलता है, जो कि आरपा और शिवनाथ की सहायक नदी है । वैसे वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित उद्गम स्थल प्रेंड्रा के सोन बचरवार के पास है ।
यह नदी बहुत पवित्र मानी जाती है । यह विश्वास किया जाता है कि इसके किनारों पर स्नान करने से मुक्ति मिलती है और यहां तक कि ब्रम्ह हत्या करने वाले व्यक्ति को भी स्वर्ग मिलता है । संस्कृत साहित्य में इसे हिरण्य वाह या हिरण्य वाहु भी कहा गया है एरियन के सोनस एरनोबोअस को भी सोन माना जाता है । रामचरितमानस, भागवत पुराण तथा महाभारत में अनेक प्रसंगों में इस नदी का उलेख मिलता है।
सोन नदी के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं । एक कथा में सोन और नर्मदा को अमरकंटक पर्वत श्रेणी के दोनों ओर गिरे ब्रम्हा के दो आंसुओं से उत्पन्न बताया गया है । इस कथा में कहा गा है कि सोनभद्र (इजसे नर नदी कहा जाता है) कुंवारी नर्मदा के आनिंद्य सौंदर्य का समाचार पाकर उसे प्रणय याचना करने के लिए आया । सोनभद्र के आगमन का समाचार पाकर नर्मदा ने नदी का रूप धारण कर लिया और त्रस्त होकर अपने घर अमरकंटक से तेजी से बह निकली । यहां यह तथ्य भी रूचिकर है कि जहाँ भारत की लगभग सभी नदियों के नाम (ब्रम्हपुत्र को छोड़कर) ी वाची है, वहां सोनभद्र नाम पुरूष वाची इसी बीच है एक जनश्रुति अन्य में कहा गया है कि नर्मदा तथा सोन एक दूसरे से प्रेम करते थे किन्तु इसी बीच सोन ने गंगा की ओर बहना शुरू कर दिया इसे गंगा के प्रति सोन की आशक्ति का संकेत मानकर नर्मदा ने निराशा और क्रोध से भरकर पश्चिम को ओर बहना शुरू कर दिया और सोनभद्र को उत्तरकी ओर बहकर गंगा से मिलने के लिए छोड़ दिया ।
इस नदी को यूनानी भूगोल के वेत्ता के एरियन मेगास्थनीज द्वारा वर्णित एरानोबोअस (हिरण्य वाह) और टालिमी की सोआ (सोन) भी माना गया है। सोन की हिरण्य वाह या सोने की भुजा वाला भी गया है, जो शिव की उपाधि है । सि नदी के नाम की व्युत्पत्ति संबंधी विभिन्न व्याख्याएं, जो कि अधिकांशत: अर्वाचीन है,सोन महात्म्य तथा वृहत ब्रम्ह पुराण में दी गई है ।
सोन नदी अपने उद्गम स्थल से निकलकर लगभग उत्तर की ओर बहती है और उसके बाद मरवाही पठार, जो अपेक्षाकृत समतल तथा अधिक आबाद क्षेत्र है, में प्रवेश करने से पूर्व उत्तर-पश्चिम की ओर मुड़ जाती है । यह नदी इस जिले में गभग 48 किलोमीटर तक बहती है और यहां इसकी श्रेणी द्रोणी संकरी है जिसकी इसकी महत्वपूर्ण समायक नदियां खुज्जी, माला गंगनई, नाला तथा गुजर नाला जिले की उत्तर पश्चिमी सीमा के किनारे -किनारे बहती है और वह सोन में उस स्थान पर मिलती है, जहां से वह शहडोल जिले में प्रवेश करती है । आगे चलकर इस नदी में बरतू के समीप जाहिला और सरसी के समीप महानदी आ कगारों से आगे बढ़ती है । छत्तीसगढ़ छोडऩे और उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने के पूर्व दम्भा के समीप बनास तथा के बरडी के समीप गोपद इसमें आकर मिलती है । राज्य में इसका अधिकांश प्रवाह मार्ग समुद्र तल से 308 मीटर के ऊपर है । गोपद के संगम के बाद इसका पाट चौड़ा हो जाता है और सीधी होकर लगभग 242 मीटर बहने लगती है । गंगा के निचले मैदान में प्रवेश करने से पूर्व इसके दाहिने किनारे पर रिहन्द, कन्हार, तथा उत्तर कोईल इससे मिल जाती है। यह रामनगर के पास गंगा से जाकर मिल जाती है।
सोन नदी का तल इसकी पूरी लंबाई में लगभग विंध्य बलुआ पत्थर का है। अनेक स्थानों पर विशेषकर निचली घाटी में, वर्ष के अधिकांश समय में वह बालू से भरी रहती है, और जल धारा बहुत मामली होती है, जिसे लगभग सभी स्थानों पर चलकर पार किया जा सकता है । एक पुराने अनुमान के अनुसार इस समय पानी प्रति सेकेन्ड 620 क्यूबिक फूट निम्न स्तर तक हो जाता है । यह प्रवाह एक सा रहता है किन्तु वर्षा काल में कुछ घंटों की वर्षा होने पर यह नदी गरजते हुए बहने लगती है और यदा कदा बही हुई बालू के ढेर छोड़ जाती है । यह खतरनाक बलुआ दल-दल चोर- बारू कहलाता ै । जब विन्ध्य पठार पर भीषण वर्षा होती है, तो नदी में बाढ़ आ जाती है । इसका वेग प्रति सेकेण्ड 830000 घन फुट होता है, जो इस प्रणाली को निकास क्षमता से बहुत अधिक होता है ये भारी बाढ़ अल्प अवधि की होती है और कदाचित ही चार दिन से अधिक की होती है, किन्तु कभी-कभी निचले मैदानों के लिए विनाशकारी होती है । तथापि नदी बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में अपने पीछे उर्वर गाद जमा कर जाती है। निचले मैदानों में इसका पाटा अत्यधिक चौड़ा है, और कुछ स्थानों तक फैला हुआ है।