शहीद पंकज विक्रम
शहीद राजीव पांडेय
शहीद विनोद चौबे
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव
नगर माता बिन्नीबाई सोनकर
प्रो. जयनारायण पाण्डेय
बिसाहू दास महंत
हबीब तनवीर
चंदूलाल चंद्राकर
मिनीमाता
गजानन माधव मुक्तिबोध
दाऊ रामचन्द्र देशमुख
दाऊ मंदराजी
महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव
संत गहिरा गुरु
राजा चक्रधर सिंह
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र
पद्यश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय
पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
यति यतनलाल
पं. रामदयाल तिवारी
ठा. प्यारेलाल सिंह
ई. राघवेन्द्र राव
पं. सुन्दरलाल शर्मा
पं. रविशंकर शुक्ल
पं. वामनराव लाखे
पं. माधवराव सप्रे
वीर हनुमान सिंह
वीर सुरेंद्र साय
क्रांतिवीर नारायण सिंह
संत गुरु घासीदास
छत्तीसगढ़ के व्यक्तित्व
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शहीद पंकज विक्रम



शहीद पंकज विक्रम अपनी वीरता और साहसपूर्ण कारनामों से छत्तीसगढ़ का नाम ऊँचा करने वालों में शहीद लेफ्टिनेंट पंकज विक्रम का नाम सर्वोपरि है। उनका जन्म 16 जून सन् 1963 ई. को मिलिट्री हास्पीटल कानपुर में हुआ था। उनके पिताजी का नाम जीतेन्द्र विक्रम तथा माताजी का नाम राहिल विक्रम था। पंकज विक्रम की स्कूली शिक्षा होलीक्रास स्कूल, पेंशनबाड़ा, रायपुर में हुई। वे पढ़ाई-लिखाई ही नहीं खेलकूद में भी सदैव आगे रहते थे। वे अपने स्कूल के व्हालीबाल टीम के कप्तान थे। उन्होंने रायपुर जिले की टेनिस टीम के कप्तान के रूप में भी टीम का प्रतिनिधित्व किया। पंकज विक्रम विनम्र स्वभाव के एक प्रतिभाषाली विद्यार्थी थे। उन्होंने गणित संकाय के विषयों में विशिष्ट योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में हायर सेकेण्ड्री की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। उन्होंने रायपुर के शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय में सन् 1979 में बी.ई. के सिविल निकाय में प्रवेश लिया। वे न केवल खेलकूद बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। उन्होंने सन् 1985 में बी.ई. की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। उनका समग्र छात्र-जीवन एक आदर्ष मेधावी छात्र का जीवन रहा। पंकज विक्रम की बचपन से ही इच्छा थी कि वे आर्मी ज्वाइन करें। वे अकसर अपने मित्रों और परिजनों से भी सेना में भर्ती होने की चर्चा किया करते थे। जहाँ चाह है वहाँ राह है। सन् 1985 ई. में ही पंकज विक्रम का चयन भारतीय थल सेना में कमीशन प्राप्त अफसर के रूप में हो गया। जनवरी सन् 1985 से दिसम्बर सन् 1986 तक दो वर्ष तक आई.एम.ए. देहरादून में कठिन प्रशिक्षण के बाद उन्हें कमीशन एवं लेफ्टिनेंट की उपाधि मिली। उन्होंने जनवरी सन् 1987 से जुलाई सन् 1987 तक छह माह का यंग आफिसर्स का प्रशिक्षण मिलिट्री कॉलेज पुणे से प्राप्त किया। यंग आफिसर्स का प्रशिक्षण सफलतापूर्वक पूर्ण करने के उपरांत उनकी पहली नियुक्ति इंजीनियर्स रेजीमेण्ट सिंकदराबाद मुख्यालय में की हुई। जुलाई सन् 1987 ई. में भारत व श्रीलंका के मध्य एक ऐतिहासिक समझौता हुआ। इसके अनुसार श्रीलंका में शांति स्थापित करने भारत से शांति सैनिक भेजे गए। पंकज विक्रम भी अपनी युनिट के साथ शांति सैनिक के रूप में श्रीलंका गए। श्रीलंका में उस समय भयंकर अशांति एवं गृहयुद्ध जैसा माहौल था। अत्याधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादी संगठन तमिल टाइगर्स के हमलों से प्रतिदिन श्रीलंका के सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे जा रहे थे। श्रीलंका का जाफना क्षेत्र उस समय सर्वाधिक प्रभावित था। जगह- जगह बारूदी सुरंग बिछाए गए थे। पंकज विक्रम की टुकड़ी का मुख्य काम श्रीलंका के जाफना क्षेत्र में आतंकवादियों द्वारा बिछाई गई बारूदी सुरंगों को निष्प्रभावी करना था। यह बहुत ही जोखिम भरा काम था। स्पेशल इंजीनियरिंग टास्क फोर्स के इंचार्ज पंकज विक्रम ही थे। कुछ ही दिनों में उन्होंने सत्ताइस जगह अत्याधुनिक विस्फोटक प्रणाली को निष्क्रिय किया। 12 अगस्त सन् 1987 को उनकी सैनिक टुकड़ी षिवन पिल्लई मार्ग पर विस्फोटकों को निष्क्रिय करने में लगी थी। विस्फोटकों को निष्क्रिय करते समय एक भीषण विस्फोट हुआ, जिसमें पंकज विक्रम सहित चार सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें जाफना के अस्पताल में भर्ती कराया गया। दो दिन बाद 14 अगस्त सन् 1987 को उनका देहांत हो गया। पंकज विक्रम के अद्भुत पराक्रम के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत सेना पदक से सम्मानित किया जिसे उनके माता-पिता ने ग्रहण किया। शहीद रायपुर नगर पालिक निगम के एक वार्ड का नाम ‘शहीद पंकज विक्रम वार्ड’ रखा गया है तथा चौक पर उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। रायपुर विकास प्राधिक्करण के द्वारा भी राजेन्द्र नगर क्षेत्र में ‘शहीद पंकज विक्रम परिसर’ की स्थापना की गई है। शहीद पंकज विक्रम की स्मृति में छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा एक राज्य स्तरीय खेल सम्मान स्थापित किया गया है। -00-