शहीद पंकज विक्रम
शहीद राजीव पांडेय
शहीद विनोद चौबे
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दाऊ मंदराजी
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शहीद विनोद चौबे



शहीद विनोद चौबे विनोद चौबे का जन्म 22 अप्रैल सन् 1960 ई. को बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में हुआ। उनके पिताजी का नाम श्री द्वारिका प्रसाद चौबे और माताजी का नात श्रीमती कमलादेवी था। विनोद चौबे ने एम.एस-सी. (रसायन शास्त्र) तक की शिक्षा बिलासपुर में ही प्राप्त की। विनोद चौबे बचपन से ही अनुशासन प्रिय, संयमित और प्रखर बुद्धि वाले थे। देश की सेवा के लिए पुलिस अधिकारी बनना उनका लक्ष्य था। उनका सन् 1983 ई. में राज्य पुलिस सेवा में पुलिस उप अधीक्षक के पद पर चयन हुआ। रायपुर में परीवीक्षा अवधि के बाद विभिन्न स्थानों पर पदस्थ रहे तथा लगातार अपनी कार्यकुशलता और क्षमता के बल पर विभिन्न पदों पर पदोन्नति प्राप्त की और सन् 1998 ई. में भारतीय पुलिस सेवा में वरिष्ठता प्राप्त की। इसके बाद वे पुलिस अधीक्षक अम्बिकापुर, कांकेर और राजनाँदगाँव में पदस्थ हुए। अनुशासन ने उनके आंतरिक एवं बाह्य जीवन को किसी षांत नदी की तरह एक तट से दूसरे तट तक बांधकर रखा था। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण सन् 1984 ई. में सिक्ख विरोधी दंगों में जब पूरा देश अस्थिर था तब उन्होंने बलौदा बाजार में अनुविभागीय अधिकारी के रूप में दृढ़ता के साथ शांति एवं कानून व्यवस्था को नियंत्रित कर साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करना, मध्यप्रदेश के सबसे संवेदनशील अनुविभाग आप्टा में विभिन्न संप्रदाय के लोगों में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करना, कंजरों के आतंक से पूरे अनुविभाग को मुक्त कराना, उज्जैन में दाऊद इब्राहिम के शूटर ‘शेरूवाला’ के आतंकी दास्तान को खत्म करने के आपरेशन ब्लेक थोर्न (काला कोटा) में सुनियोजित खुफिया तंत्र खड़ाकर एक भीषण मुठभेड़ में इस दुर्दान्त आतंकी को खत्म करना आदि था। नक्सलवाद को खत्म करने के लिए विनोद चौबे का मानना था कि कुछ नक्सलियों को मारने या पकड़ने से ही इस समस्या का अंत नहीं होगा। इनकी जड़ों को खोजकर उसे समाप्त करना होगा, जिसके लिए सूचना तंत्र को मजबूत करना पड़ेगा। खासकर अपने अंतिम कार्यकाल के दौरान राजनांदगांव में उन्होंने नक्सलियों के षहरी नेटवर्क को तोड़ने में सफलता प्राप्त की। नक्सलियों के विरूद्ध किए गए कार्यों एवं नक्सलवाद को जड़ से मिटाने के आपके दृढ़ संकल्प के कारण नक्सलियों ने उनको हिट लिस्ट में षामिल कर लिया। इसी के कारण कांकेर में बारूदी सुरंग से जानलेवा हमला भी किया गया, लेकिन उनके बौद्धिक चातुर्य के कारण कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। अपनी विफलताओं से बौखलाए नक्सलियों ने कई कायराना हरकतों को अंजाम देने की कोषिषें कीं। अपने पूरे कार्यकाल में में विनोद चौबे को उनकी सफलताओं के लिए कई बार पुरस्कृत एवं सम्मानित किया गया। 15 अगस्त सन् 2002 ई. में उनको सराहनीय सेवाओं के लिए तात्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी द्वारा राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया। उनके कार्यकाल के इस सफलतम दौर में आखिर वह पड़ाव भी आया, जिसने समूचे देश-प्रदेश को स्तब्ध व मायूस कर दिया। 12 जुलाई 2009 को सुबह 7 बजे विनोद चौबे को संदेश मिला कि नक्सलियों ने जिला राजनांदगांव के पुलिस थाना मानपुर की बाहरी पोस्ट मदनवाड़ा पर आक्रमण कर दिया तथा तथा दो पुलिस वालों को मार गिराया है। वे तुरंत घटना स्थल पर पहुँचे जहाँ भयंकर लड़ाई चल रही थी। पुलिस के सुरंगरोधी वाहनों पर गोलियों व बमों से आक्रमण किया गया। सही समय पर उनके आ जाने की वजह से लड़ाई में फंसे पुलिसकर्मी बच गए एवं परिवहन यात्री बस भी सुरक्षित बच गया। लगभग 300 नक्सली गोलीबारी करते हुए जंगल से बाहर आकर पेड़ों पर चढ़ गए और पुलिस दल पर हथगोले फेंकने लगे। नक्सलियों की संख्या अधिक होने एवं पहाड़ी के ऊपर होने के बावजूद उनके नेतृत्व में पुलिस दल डटा रहा। इस संघर्ष में विनोद चौबे का दृढ़ निश्चय और अदम्य साहस एक नायक की तरह रहा। गोलीबारी में वे गंभीर रूप से घायल हो गए और अंततः कर्तव्य की वेदी पर अपना सर्वोच्च बलिदान देकर अमर शहीद हो गए। स्व. विनोद चौबे के अदम्य साहस और बलिदान के लिए राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के करकमलों से मरणोपरांत कीर्ति चक्र से नवाजा गया, जो राज्य में दिया गया यह प्रथम पुरस्कार है। छत्तीसगढ़ शासन के खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा उनकी स्मृति में सीनियर खिलाड़ियों के लिए राज्य स्तरीय ‘शहीद राजीव पांडेय पुरस्कार’ की स्थापना की गई है। -00-