शहीद राजीव पांडेय
स्वतंत्रता के बाद देश के लिए प्राणोत्सर्ग करने वालों में शहीद राजीव पांडेय का नाम अत्यंत ही श्रद्धापूर्वक लिया जाता है। उनका जन्म 11 अप्रैल सन् 1963 ई. को परतेवा नामक गाँव में हुआ था। यह रायपुर जिले के राजिम विकासखंड मुख्यालय से तेरह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उनके पिताजी का नाम आर.पी. पांडेय था। अपने पिताजी से वे बहुत प्रभावित थे और उन्हें अपना आदर्श मानते थे।
राजीव पांडेय की प्राथमिक शिक्षा सेंट एलासेस स्कूल, जबलपुर तथा माध्यमिक शिक्षा सेंट्रल स्कूल, भोपाल में संपन्न हुई। उन्होंने उच्चतर माध्यमिक की पढ़़ाई केन्द्रीय विद्यालय, किर्की से करने के बाद शासकीय नागार्जुन विज्ञान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रायपुर से बी.एस-सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। विद्यार्थी जीवन में वे बैंडमिंटन और क्रिकेट के एक अच्छे खिलाड़ी थे।
राजीव पांडेय के पिताजी का जहाँ-जहाँ स्थानांतरण होता परिवार भी साथ ही जाता। फलस्वरूप उनकी पढ़ाई कई जगहों में हुई। बी.एस.सी. करने के कुछ दिन बाद ही राजीव पांडेय का चयन भारतीय सेना में हो गया। उन्होंने भारतीय रक्षा संस्थान देहरादून में डेढ़ वर्ष का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। जून 1985 ई. में सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वे सेकेण्ड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त हुए। उनकी पहली पोस्ंिटग जम्मू एण्ड कष्मीर लाइट इन्फेंटरी में हुई।
सन् 1985 ई. में कमीशन प्राप्त करने के मात्र छह माह बाद ही राजीव पांडेय ने 26 जनवरी सन् 1986 ई. को गणतंत्र दिवस परेड में जम्मू एवं कष्मीर लाइट इंफेंटरी रेजीमेंट की टुकडी़ का नेतृत्व किया। शानदार परेड के लिए उन्हें तात्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल वी.एस. नंदा ने ट्राफी प्रदान कर सम्मानित किया।
नवम्बर सन् 1986 ई. में जब वे एक बार पेट्रोलिंग पर निकले थे तो उन्हें सूचना मिली कि कुछ लोग बर्फ में दब गए हैं। वे तत्काल साथियों के साथ उस दुर्गम क्षेत्र में पहुँचे और बर्फ में दबे हुए 22 बेहोश लोगों को निकालकर 15-15 किलोमीटर कंधे पर लादकर सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। इस कार्य के लिए उनका नाम एवार्ड के लिए भेजा गया था।
राजीव पांडेय अपने साथी सैनिकों की अपेक्षा अधिक सतर्क, सक्रिय एवं सजग थे। यही कारण है कि जब पाकिस्तानी सेना ने भारत के सियाचीन ग्लेशियर के मोर्चे पर बलात कब्जा कर लिया था। सेना प्रमुख ने उन्हें ग्रुप लीडर बनाकर वहाँ भेजा। उनके साथ जी.सी.ओ. तथा अन्य सात सदस्य शामिल थे। ये सभी दक्ष पर्वतारोही थे।
सियाचीन ग्लेशियर का तापमान ऋण तीस डिग्री सेल्सियस था। इतने कम तापमान पर ठीक से साँस लेना भी बहुत मुश्किल है। सियाचीन मोर्चा बहुत ही महत्वपूर्ण था। सियाचीन क्षेत्र के अन्य सभी भारतीय चैकियों की रसद, शस्त्रास्त्र आदि पहुँचाने वाले हेलिकाप्टरों को इसी चौकी से ही गुजरना पड़ता था और पाकिस्तानी प्रहारों का शिकार होना पड़ता था। राजीव पांडेय के पहले भी वहाँ अन्य चार बटालियनों के सैन्य अधिकारियों को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी किंतु वे सभी इसे फतह करने में नाकाम रहे थे।
राजीव पांडेय के नेतृत्व में उनकी टीम ने बहुत ही सतर्कता पूर्वक अपने मिशन की शुरूआत की। उन्होंने विश्व की महत्वपूर्ण इक्कीस हजार फीट की इस ऊँची चोटी पर चढ़ने के लिए तीन किलोमीटर खुले रास्ते की अपेक्षा 1200 फीट के एक अन्य चढ़ाई वाले रास्ते से अभियान की शुरूआत की। पच्चीस मीटर के कठिन और अज्ञात रास्ते की खोज करने वे आगे बढ़े।
सामान्यतया वहाँ पहुँचने के लिए उन्हें 16-17 घंटे लगे। राजीव पांडेय चौकी के नजदीक पहुँचे ही थे कि राजीव के पीछे स्थित कवर फायरिंग के लिए तैनात अधिकारी ने रेडियो सेट पर बताया कि चार-पाँच पाकिस्तानी सैनिक ऊपर चढ़ रहे हैं और वह उन्हें गोली मारकर गिरा रहा है। उसने पाकिस्तानी सैनिकों पर फायरिंग कर दी। उस फायरिंग की आवाज सुनकर चौकी के अंदर के पाकिस्तानी सैनिक सतर्क हो गए। उन्होंने बाहर आकर राजीव और उनके सैनिकों पर अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी।
29 मई सन् 1987 ई. को हुए इस फायरिंग में राजीव पांडेय की छाती में गोली लगी। वे वहीं शहीद हो गए। कुछ देर बाद उनके अन्य छह साथी भी शहीद हो गए। दो अन्य साथी जख्मी हालत में वापस आए। बाद में ब्रिगेड कमांडर के नेतृत्व में 24, 25 एवं 26 जून को तीन दिन लगातार पचास जवानों के प्रयासों से उस चौकी पर हमला कर भारत ने कब्जा किया।
24 जून सन् 1987 ई. को पहली बार उन्होंने वहाँ पर जाने का रास्ता खोजा पर इस कार्य में उन्हें सफलता नहीं मिली। अगले दिन 25 जून को उन्हें राजीव पांडेय के द्वारा पहले से ढूंढ़ा गया रास्ता मिल गया, जिसमें उन्होंने मोटी-मोटी कीलें गाड़कर रस्सी बाँधी थी। इसके सहारे वे सभी ऊपर तो पहुंच गए, किंतु रात के अंधेरे में अत्यंत ठंड से उनके हथियार ठीक से काम नहीं कर पाए और गोले नहीं फूटे। इस कारण उन्हें न चाहते हुए भी वापस लौटना पड़ा। अगले दिन 26 जून को उन्होंने पूरी तैयारी से उस चौकी पर पुनः हमला किया और भारतीय तिरंगा झण्डा फहरा दिया। इस मुठभेड़ में 20 पाकिस्तानी तथा चार भारतीय सैनिक मारे गए।
इस महत्वपूर्ण चौकी पर भारतीय कब्जे का मुख्य श्रेय राजीव पांडेय को दिया गया क्योंकि उन्हीं के बनाए रास्ते से उस चौकी तक सफलतापूर्वक पहुंचा जा सका।
2 अप्रैल सन् 1988 ई. को शहीद राजीव पांडेय को मरणोपरांत ‘वीरचक्र’ प्रदान किया गया। उनका त्याग एवं बलिदान सदियों तक देश के युवाओं को बल और प्रेरणा देता रहेगा।
छत्तीसगढ़ शासन के खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा उनकी स्मृति में सीनियर खिलाड़ियों के लिए राज्य स्तरीय ‘शहीद राजीव पांडेय पुरस्कार’ की स्थापना की गई है। इस पुरस्कार के अंतर्गत वर्तमान में तीन लाख रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाता है।
शहीद राजीव पांडेय की स्मृति में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के संजय नगर में स्कूल का नाम ‘शहीद राजीव पाण्डेय स्कूल’ रखा गया है।
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