पद्यश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय
पं. मुकुटधर पाण्डेय हिंदी साहित्य के इतिहास में छायावाद के प्रवर्तक के रूप में विख्यात हैं। उनका जन्म जांजगीर-चांपा जिले के चंद्रपुर के निकट स्थित ग्राम बालपुर में 30 सितम्बर सन् 1895 ई. में हुआ था। उनके पिताजी का नाम चिंतामणि पाण्डेय तथा माताजी का नाम देवहुति देवी था। राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकार पं. लोचनप्रसाद तथा पं. पुरुषोत्तम पाण्डेय पं. मुकुटधर के अग्रज थे। चिंतामणि पाण्डेय ने अपनी माता पार्वती देवी के नाम पर अपने गृहग्राम बालपुर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी। बाद में उन्होंने एक पाठशाला भी खोली, जहाँ मुकुटधर पाण्डेय ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने सन् 1912 ई. में रायगढ़ से मीडिल स्कूल तथा सन् 1915 ई. में मैट्रिक की परीक्षा पास की।
उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए मुकुटधर पाण्डेय ने सन् 1916 ई. में प्रयाग के क्रिष्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया। विपरीत परिस्थितियों के कारण वे कॉलेज की शिक्षा अधूरी छोड़कर बालपुर लौट आए तथा गाँव की पाठशाला में सन् 1919 से 1931 ई. तक अध्यापन करते हुए स्वतंत्र रूप से साहित्य रचना करने लगे। साहित्यानुरागी पितामह तथा अग्रजों के स्नेह सानिध्य में पाण्डेय जी ने 12 वर्ष की अल्पायु में ही लिखना प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने घर पर ही हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत, उड़िया तथा बांग्ला आदि भाषाएँ सीख ली। सन् 1909 ई. में उनकी पहली कविता आगरा से प्रकाशित पत्रिका स्वदेश बांधव में प्रार्थना पंचक नाम से छपी थी।
जब मुकुटधर पाण्डेय मीडिल स्कूल में पढ़ते थे, तब उनकी लिखी हुई कविताएँ स्वदेश बांधव, हितकारिणी, इन्दु, आर्य महिला तथा सरस्वती में छपने लगी थीं। उनकी प्रारंभिक रचनाओं में थोड़ा बहुत संशोधन तथा सुधार उनके अग्रज लोचन प्रसाद पाण्डेय करते थे। उन्हीं की प्रेरणा और प्रोत्साहन से मुकुटधर ने भावनात्मक कविताएँ लिखीं, जिसे महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती में प्रकाशित की। ये कविताएँ भाव, भाषा एवं शिल्प की दृष्टि से सर्वथा नवीन थीं। इससे आचार्य द्विवेदी बहुत प्रभावित हुए तथा उनकी कविताएँ नियमित रूप से सरस्वती में छपने लगीं।
सन् 1931 ई. में पं. मुकुटधर पाण्डेय रायगढ़ नरेष चक्रधर सिंह के संपर्क में आए। उनके आग्रह पर ही वे सन् 1931 से 1937 ई. तक रायगढ़ के नटवर हाईस्कूल में अध्यापक रहे। उन्होंने सन् 1937 से 1940 ई. तक रायगढ़ स्टेट में द्वितीय श्रेणी दण्डाधिकारी का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व निभाया। राजा से उनके मित्रवत संबंध रहे।
छायावाद की नवीन शैली को साहित्य जगत में परिभाषित तथा नामकरण करने का श्रेय पं. मुकुटधर पाण्डेय को है। इस शैली के संबंध में सन् 1920 ई. में जबलपुर से प्रकाशित पत्रिका श्री षारदा के चार अंकों में जब उनकी लेखमाला ‘छायावाद’ शीर्षक से छपी तब इस पर राष्ट्रव्यापी विमर्श हुआ। जुलाई सन् 1920 ई. में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘सरस्वती’ में उनकी ‘कुररी के प्रति’ जैसी छायावाद की दिशा निर्दिष्ट करने वाली कविता छपी, जो छायावादी काव्यधारा की पहली कविता मानी जाती है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ. रामविलास शर्मा, जयशंकर प्रसाद तथा डॉ. नामवर सिंह ने पं. मुकुटधर पाण्डेय को छायावाद का प्रवर्तक कवि माना है। छायावाद के मर्म को समझाने के साथ-साथ पाण्डेय जी ने अपने चिंतन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी प्रश्न उठाया। वे कविप्रतिभा के स्वतंत्र उठान के पक्षधर थे। उन्होंने राष्ट्रीय चेतना के प्रचार-प्रसार व जातीय अस्मिता की रक्षा को कवि का उद्देश्य घोषित किया।श्
अबाध गति से देश के सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखते हुए पं. मुकुटधर पाण्डेय ने हिंदी पद्य के साथ-साथ गद्य पर भी खूब लिखा है। उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं- पूजा के फूल (काव्य संग्रह), शैलबाला (अनुदित उपन्यास), लच्छमा (अनुदित उपन्यास), परिश्रम (निबंध संग्रह), हृदयदान (कहानी संग्रह), मामा (अनुदित उपन्यास), छायावाद और अन्य निबंध, स्मृतिपुंज, विश्वबोध (काव्य संकलन), छायावाद और अन्य श्रेष्ठ निबंध, मेघदूत (छत्तीसगढ़ी अनुवाद)।
महाकवि कालिदास से पं. मुकुटधर पाण्डेय बहुत प्रभावित थे। भारतीयता की रक्षा के लिए कालिदास के ग्रंथों की रक्षा को आवश्यक मानते थे। उन्होंने न केवल कालीदास की मेघदूत का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद किया बल्कि कालिदास तथा मनोविज्ञान, कालिदासकालीन भारत का भौगोलिक चित्र, रघुवंष महाकाव्य में आदर्श स्थापना जैसे निबंध भी लिखे जो उनके कालिदास के प्रति उनकी आस्था को प्रकट करते हैं।
सन् 1928 ई. के कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन में पं. मुकुटधर पाण्डेय को राष्ट्रभाषा सम्मेलन के अध्यक्ष महात्मा गांधी तथा नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ मंच पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पं. मुकुटधर पाण्डेय को बीसवीं सदी के लगभग सभी महान् राजनीतिज्ञों, साहित्यकारों के संपर्क में आने का सौभाग्य मिला, जिनमें प्रमुख हैं- बनारसी दास चतुर्वेदी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जयषंकर प्रसाद, बालकृष्ण शर्मा नवीन, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, पं. माधवराव सप्रे, पं. रामदयाल तिवारी, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र, भगवती चरण वर्मा, पं. रविशंकर शुक्ल आदि।
पाण्डेय जी का व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक एवं प्रभावषाली था। ष्वेत केष और धवल दाढ़ी से युक्त वे प्राचीन ऋषियों जैसे दिखाई देते थे। वे सभी से बडे़ पे्रमपूर्वक मिलते थे। नवोदित युवक कवि जब उनके पास आते तो वे उनकी रचनाओं और बातों को बड़े ध्यानपूर्वक सुनते व पढ़ते और उन्हें प्रोत्साहित करते थे। उनको छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी से अगाध प्रेम था। हरि ठाकुर को एक पत्र में उन्होंने लिखा था- ‘‘हम छत्तीसगढ़ी भाई जहाँ भी मिलें, आपस में छत्तीसगढ़ी में ही बात करें।’’ उनके द्वारा छत्तीसगढ़ी में अनुदित मेघदूत कालिदास के मूल काव्य से कम रोचक नहीं है।
पं. मुकुटधर पाण्डेय को पं. रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय, रायपुर एवं गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर द्वारा डी.लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था। 26 जनवरी सन् 1976 ई. को भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री की उपाधि से विभूषित किया गया।
6 नवम्बर सन् 1989 ई. में रायपुर में लंबी बीमारी के बाद पाण्डेय जी का देहांत हो गया किंतु छायावाद के प्रवर्तक के रूप में वे हिंदी साहित्याकाश में दैदीप्यमान नक्षत्र के रुप में सदैव प्रकाशमान रहते हुए नव सृजनोन्मेषी मानसिकता की राह प्रशस्त करते रहेंगे।
राज्य निर्माण के उपरांत छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा उनकी स्मृति में राज्य स्तरीय पं. मुकुटधर पाण्डेय स्मृति शिक्षक सम्मान स्थापित किया गया है।
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